ग्यारह अमावस - 2 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 2


(2)

चारों तरफ पहाड़ों से घिरा बसरपुर एक शांत कस्बा था। सूरज की पहली किरण के साथ ही लोग जाग गए थे। सब अपने अपने कामों में लग गए थे। सड़क के किनारे बनी चाय की दुकानों में भट्टी जल चुकी थी। उन पर चढ़े पतीलों से भाप उठ रही थी। लोग चाय की चुस्कियां लेने के लिए दुकानों पर जमा होने लगे थे।
बंसीलाल ने भी अपनी दुकान खोल दी थी। भट्टी में रखे पतीले में चाय का पानी खौल रहा था। बंसीलाल ने उसमें चाय की पत्ती डाली। कुछ रुककर दूध डाला। अंत में चीनी डालकर थोड़ी और उबल जाने का इंतज़ार करने लगा। एक ग्राहक ने आवाज़ लगाई,
"बंसी भइया थोड़ा जल्दी करो।"
बंसीलाल ने कहा,
"कर रहे हैं महराज। बस हो ही गई है।"
चाय बन जाने पर बंसीलाल ने पास खड़े लड़के से कहा,
"मंगलू जा, जाके गिलास ले आ।"
मंगलू अभी भी नींद में आँखें मल रहा था। उसने सुना नहीं। बंसीलाल ने डांटते हुए कहा,
"सुनता क्यों नहीं है ?"
डांट सुनकर मंगलू की नींद गायब हो गई। वह जल्दी से चाय वाले गिलास उठा लाया। बंसीलाल ने चार गिलासों में चाय भरी। मंगलू से कहा,
"जाकर दे आओ।"
मंगलू ट्रे उठाकर ग्राहकों के पास गया। उन्हें चाय देकर वापस आ गया। दुकान पर मौजूद एक ग्राहक के हाथ में लोकल अखबार की एक प्रति थी। चाय पीते हुए वह अखबार पढ़ने लगा। तीसरे पन्ने पर पहुँचा तो खबर पढ़कर बोला,
"राम राम ये क्या हो रहा है बसरपुर में।"
उसके पास बैठे आदमी ने कहा,
"जोगिंदर क्या हो गया भाई ?"
जोगिंदर ने अखबार उसकी तरफ बढ़ा दिया। खबर पढ़कर वह बोला,
"एक और सरकटी लाश मिली है।"
उसकी बात सुनकर सब चौंक गए। बंसीलाल ने पास आकर कहा,
"सर्वेश अब कहाँ मिल गई लाश ?"
"दक्षिणी पहाड़ के जंगल में...."
जोगिंदर ने कहा,
"पूरब वाले पहाड़ के जंगल में दो लाशें मिली थीं। फिर पश्चिम वाले पहाड़ी जंगल से एक लाश मिली थी। अब दक्षिण वाले पहाड़ के जंगल में एक और लाश मिली है। मिलने वाली सभी सरकटी लाशें हैं।"
बंसीलाल ने कहा,
"बसरपुर में डर फैल गया है। इधर सूरज देवता डूबते हैं उधर सब जाकर अपने अपने घरों में छुप जाते हैं। पता नहीं क्या हो रहा है ? पुलिस बस लाश ढूंढ़ लेती है। अभी तक पता तो नहीं चला कि हो क्या रहा है।"
सर्वेश बोला,
"कौन है जो इस तरह सर काटकर मारता है ? मकसद क्या है उसका ?"
बंसीलाल ने कहा,
"जाने कौन जल्लाद है ? पर भइया डर लगने लगा है। जाने कुछ होगा भी कि नहीं।"
वहाँ मौजूद नज़ीर जो अब तक चुप बैठा था, यह सुनकर बोला,
"बंसी भइया अब शायद कुछ हो...."
बंसीलाल ने सवालिया नज़र डालते हुए कहा,
"क्यों ? पुलिस वालों के हाथ अलादीन का चिराग लग गया है। घिसेंगे और जिन्न निकल कर सब पता कर देगा।"
नज़ीर हंसकर बोला,
"जिन्न नहीं....एक पुलिस अधिकारी आई है।"
सर्वेश ने आश्चर्य से पूछा,
"आई है मतलब.... कोई औरत है ?"
"हाँ....पर सुना है बड़ी काबिल है। खास तौर पर इस केस के लिए भेजी गई है।"
जोगिंदर ने कहा,
"देखते हैं भइया क्या करती हैं अधिकारी मैडम। सच तो यह है कि बसरपुर में अब डर पैदा हो गया है।"
एक और सरकटी लाश की खबर सुनकर सभी के दिल में एक डर आ गया था। सब चुपचाप चाय पीने लगे। बंसीलाल भी जाकर अपनी जगह बैठ गया।

सुबह जल्दी उठकर एसपी गुरुनूर कौर तैयार हो गई थी। वर्दी पहन कर वह आईने के सामने आकर खड़ी हो गई। उसने अपनी कैप पहनी। फिर खुद को आईने में देखा। खुद को वर्दी में देखकर वह हमेशा खुश होती थी। उसे अपनी वर्दी पर नाज़ था। अपने आप को वर्दी में गर्व से निहारने के बाद वह बाहर आई। अर्दली ने अदब से कहा,
"गुड मॉर्निंग मैडम....नाश्ता तैयार है।"
गुरुनूर ने कहा,
"दयाराम टेबल पर रख दो। मैं अभी आती हूँ।"
वह बाहर बरामदे में आ गई। यहाँ धूप में खड़े होकर अच्छा लग रहा था। उसने अपना फोन निकाला और अपने डैडी को वीडियो कॉल लगाया। कल यहाँ आने के बाद उसने फोन करके बस अपने सही सलामत पहुँच जाने की खबर दी थी। वह जानती थी कि उसके डैडी और मम्मी उससे बात करने के लिए परेशान होंगे। उसके डैडी ने फोन उठाया और उसे देखकर बोले,
"तुम तो तैयार हो गई।"
"हाँ डैडी पहला दिन है यहाँ ड्यूटी का। कुछ पहले ही तैयार हो गई।"
तभी उसकी मम्मी की सूरत स्क्रीन पर नज़र आई। उन्होंने कहा,
"रात में ठीक से नींद आई ?"
"बहुत अच्छी नींद आई।"
उसकी मम्मी ने कहा,
"वहाँ बहुत ठंड पड़ती है। ज़रा संभल कर रहना। रोज़ बादाम खाना।"
अपनी मम्मी की बात सुनकर गुरुनूर हंसने लगी। यह देखकर उसकी मम्मी ने कहा,
"हंस क्यों रही हो ?"
गुरुनूर ने कहा,
"मम्मी जब आप मेरी दो चोटियां बनाकर स्कूल भेजती थीं तब भी इसी तरह हिदायत देती थीं।"
उसकी मम्मी ने डांटते हुए कहा,
"तुम पुलिसवाली हो गई हो तो क्या मैं तुम्हारी मांँ नहीं रही।"
गुरुनूर ने मनाते हुए कहा,
"ओफ्फो मम्मी गुस्सा क्यों हो रही हैं। मैं आपकी सारी बातों का ध्यान रखूंँगी। अब जाकर नाश्ता करती हूँ। फिर ड्यूटी पर जाना है।"
"ठीक है....यह बताओ घर कैसा है ?"
"बहुत अच्छा है मम्मी। शाम को लौटकर आऊँगी तो दिखाऊँगी। अभी ड्यूटी पर जाना है। रखती हूँ।"
गुरुनूर ने फोन काट दिया। अंदर जाकर टेबल पर बैठ गई‌। अर्दली ने नाश्ता परोस दिया। वह नाश्ता करने लगी।

एसपी गुरुनूर कौर कल दोपहर तीन बजे के करीब बसरपुर पहुँची थी। थकी हुई थी। अपने आवास में पहुँच कर आराम करने लगी थी। शाम को उसने अपने अर्दली से कहा कि वह कस्बे का चक्कर लगाने जाना चाहती है। उसके अर्दली ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि सूरज डूबते ही कस्बे में शांति छा जाती है। वह भी आज आराम करे। कल कस्बे का चक्कर लगाना अच्छा रहेगा। अर्दली की इस बात पर गुरुनूर ने उससे कारण पूछा तो अर्दली ने कहा कि कारण वही है जिसके लिए उसे यहांँ भेजा गया है। जबसे सरकटी लाशें मिलने लगी हैं तबसे सूरज डूबते ही सारा बसरपुर डरकर अपने घरों में दुबक जाता है। उस समय गुरुनूर ने कुछ नहीं कहा। वह भी सफर के कारण थकी हुई थी। खाना खाकर जल्दी ही सो गई थी।

पुलिस स्टेशन में थाना प्रभारी इंस्पेक्टर विलायत खान थाने में मौजूद सारे स्टाफ के साथ एसपी गुरुनूर कौर का इंतज़ार कर रहा था। कुछ ही देर में गुरुनूर पुलिस स्टेशन पहुँच गई। विलायत खान ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। अपना परिचय देने के बाद एक एक करके सबका परिचय देने लगा। उसके अतिरिक्त दो सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और रंजन सिंह, दो हेड कांस्टेबल और पाँच कांस्टेबल थे। विलायत खान गुरुनूर को उसके केबिन में ले गया। साथ में सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और कांस्टेबल हरीश भी थे। कांस्टेबल हरीश ने गुरुनूर से पूछा,
"मैडम चाय नाश्ता लेकर आऊँ।"
गुरुनूर ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"मैं नाश्ता करके आई हूँ। अब हम काम की बात करेंगे।"
उसने विलायत खान की तरफ देखकर कहा,
"बसरपुर में सरकटी लाशें मिलने से खौफ फैला है। इस केस के बारे में बताइए। कबसे मिलनी शुरू हुई हैं सरकटी लाशें ?"
विलायत खान ने जवाब दिया,
"मैडम दरअसल बसरपुर चारों तरफ पहाड़ से घिरा है। पहाड़ों पर दूर तक जंगल फैले हुए हैं। उन्हीं जंगलों में से अब तक चार सरकटी लाशें मिली हैं। तीन महीने पहले पूरब के पहाड़ी जंगल में एक लाश मिली थी। उसके कुछ ही दिनों के बाद पश्चिमी पहाड़ के जंगल में लाश मिली। फिर पूरब वाले जंगल में एक और लाश मिली थी। कल फिर एक और वैसी ही लाश दक्षिण पहाड़ के जंगल में मिली।"
"आपको इन लाशों की सूचना कैसे मिलती है ?"
"मैडम गरड़ियों से। गरड़िए इन पहाड़ी जंगलों में अपनी भेड़ बकरियां चराने ले जाते हैं। चारों लाशों के बारे में उनसे ही सूचना मिली।"
गुरुनूर गंभीरता से सोचने लगी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम एक खास बात है। सभी लाशें सरकटी तो थीं ही पर लड़कों की थीं। सभी किशोरवय के थे।"
गुरुनूर ने कहा,
"यह तो एक पैटर्न है‌। किशोर उम्र के लड़कों का सर काटकर कोई उनकी हत्या कर रहा है।"
उसने कुछ सोचकर पूछा,
"इन लाशों के पोस्टमार्टम से इन लड़कों के साथ किसी तरह के दुराचार की कोई रिपोर्ट ?"
विलायत खान ने जवाब दिया,
"नहीं मैडम अभी तक ऐसी किसी भी चीज़ की रिपोर्ट नहीं है। अब तक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी धारदार चीज़ से इन सबके सर काटे गए हैं।"
गुरुनूर एक बार फिर सोच में पड़ गई। उसने कहा,
"लाशों के आसपास उनके सर नहीं मिले ?"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"नहीं मैडम.... जब पूरब के पहाड़ के जंगलों में पहली सरकटी लाश मिली थी तभी हमने आसपास सर ढूंढ़ने की कोशिश की थी। उसके बाद हर बार हम अच्छी तरह तलाश करते हैं। पर कोई सर नहीं मिलता है।"
विलायत खान ने कहा,
"कल जिस लाश की सूचना मिली थी उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। पर उसकी दशा देखकर लग रहा था कि हत्या को लगभग एक महीना होने वाला है। इससे पहले मिली लाशें भी बुरी स्थिति में थीं।"
गुरुनूर कुछ देर अब तक की मिली सूचनाओं पर विचार करती रही। उसने एक और सवाल किया,
"सभी किशोर उम्र के लड़के थे। क्या ऐसे लड़कों के गायब होने की कोई रिपोर्ट लिखाई गई है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम सिर्फ एक रिपोर्ट थी। पंद्रह साल का एक लड़का गुस्सा होकर अपने घर से भाग गया था। पाँच दिनों में घर लौट भी आया था। उसके अलावा किसी किशोरवय के लड़के की मिसिंग कंप्लेंट नहीं है।"
गुरुनूर सारी जानकारी पाने के बाद गंभीर हो गई। उसने केस से संबंधित फाइल लेकर आने को कहा। वह फाइल का अध्ययन करने लगी।