शाबाश ग़रीबी Adil Uddin द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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शाबाश ग़रीबी

एक बड़े से हॉल में तालियाँ ही तालियाँ बज रहीं थीं,
तालियों की गड़गड़ाहट गूँज-गूँज कर किसी का स्वागत करने को आतुर थीं तभी तालियों की तलाश ख़त्म हुई और वो चेहरा सामने आ ही गया।

उसने डेस्क पर रखे माइक को उठा कर दो शब्द ही बोले थे-
"कैसे हो साथियों"?

फिर अचानक से तालियों और सीटियों से वातावरण गूँज उठा।

"बस-बस काफी स्वागत और सम्मान आपने मुझे दिया,जिसका मैं तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ और दोस्तों आज मैं आप सबके लिए एक किस्सा लेकर आया हूँ"।

"कुछ किस्से ऐसे होते हैं जो दब कर मर जाते हैं लेकिन जो काफी कुछ सीखा सकते हैं लेकिन ये दुनिया है यहाँ जिसका किरदार बड़ा उसी का किस्सा बड़ा लेकिन इस चकाचौंध के बीच कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी ज़िंदगी में रोज़ एक नया किस्सा बनता है लेकिन उनके किरदार इतने बड़े नही होते
तो वो किस्से भी दब कर दम तोड़ देते हैं"। फिर उसने एक लंबी साँस ली और माइक को फिरसे पकड़ा।

"मैं हूँ अजय चौधरी इस कहानी का आपका सूत्राधार और मैं लेकर आया हूँ दो छोटे-छोटे बहन-भाई मन्नू और पिंकू और उन पर गुज़रे दस दिनों की कहानी"।

सन 2002,दिल्ली।

घड़गड़गड़गड़ बादलों की आवाज़ें और तेज़ बारिश टूटी-फूटी सी झुग्गी और उसमें टप-टप टपकता पानी दोनों भाई-बहन उन पानी की बूंदों से बचने के लिए अपनी माँ के आँचल में छुप कर बैठे थे मन्नू अभी छोटी थी उम्र सिर्फ 4 या 5 वर्ष और पिंकू लगभग 10 वर्ष का था,उनकी माँ शालिनी अपने दोनों बच्चों को समेटे हुए बैठी अपने पति पवन का इंतज़ार कर रही थी बच्चे निरंतर माँ से एक ही सवाल कर रहे थे।

बाबा कब आएंगे माँ बहुत भूख लगी है उनकी माँ जब ये सवाल सुनती तो अपने बच्चों से यही कहती बाबा खाना लेने गए हैं बेटा बस आते ही होंगे।

इधर,
पवन सुबह से काम और रोटी की तलाश में घर से निकला हुआ था लेकिन उसके हाथ न काम लगा और न रोटी बारिश में भीगता हुआ धीमें कदमों से चलता हुआ पवन अपने-आप में बुदबुदाता हुआ चल रहा था "बच्चे भूखे मर जायेंगे सुबह से कुछ नही खाया दोनों ने भगवान को भी दया नही आती मासूम बच्चों पर क्या मुँह लेकर घर जाऊं हे भगवान क्या अपने बच्चों को भूख से मरता देखूँ घर जा कर क्या तू इतना पत्थर दिल हो गया" और फिर उसके आँखों से अश्रु बहने लगे।

रोते-रोते उसकी नज़र एक रेस्टोरेंट पर गई वो बिना कुछ सोचे सीधा उसके अंदर घुस गया और काउंटर पर जा कर वहाँ बैठे आदमी से कहने लगा-

"साहब खाना चाहिए"

उस आदमी ने पहले पवन को बहुत अजीब से नज़र से देखा और बोला "शाही पनीर,कढ़ाई पनीर,दाल मखनी,मटन कोरमा,चिकन कोरमा,बिरयानी क्या चाहिये?"

"साहब सिर्फ रोटी चाहिए" पवन ने कहा।

"सिर्फ रोटी? ठीक है कितनी चाहिए?"

"छः दे दीजिये साहब"।

"सोनू छः रोटी पैक कर"।

थोड़ी देर बाद रोटी आ गई,"हाँ भई ला चौबीस रुपये हो गए तेरे।"

"चौ....चौ....चौबीस साहब मेरे पास अभी सिर्फ दस रुपये हैं बाकी मैं कल दे जाऊँगा,बच्चे भूखे बैठे हैं साहब मैं कल दे जाऊँगा पक्का"।

"अबे बच्चे भूखे बैठे हैं तो पैदा क्यों किये थे क्या मैं रोटी खिलाऊंगा उन्हें चल निकल यहाँ से"। इतना कह कर उसने पवन को धक्का ही दिया था तभी पवन को एक आदमी ने थाम लिया।

"क्या बदतमीज़ी है ये!क्या यही इंसानियत बाकी है तुम में"।

उसने रेस्टॉरेंट के मालिक को हड़काया और पवन को बहुत सारा खाना उसने लेकर दे दिया।

"साहब देवता अगर हैं इस दुनिया में तो वो आप ही हैं आपके पैर छूने का मन करता है"।

"उठो नौजवान तुम्हें मेरे पैर पकड़ने की ज़रूरत नहीं ये खाना तो तुम्हारी किस्मत में ऊपर वाले ने लिखा है आओ तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूं अपनी कार में"।

धप से कार का दरवाज़ा बंद हुआ और घुरररर करके कार चल पड़ी,थोड़ी देर में उस आदमी ने कार एक बस्ती के बाहर रोकी जहाँ काफी कीचड़,गंदगी और झुग्गी-झोपड़ियाँ थी।

धप से पवन ने कार का दरवाज़ा बंद किया और खिड़की से उस आदमी को धन्यवाद किया उस आदमी ने पवन को एक कार्ड दिया जिसपर उसका पता लिखा था और कहा किसी भी तरह की परेशानी हो मेरे इस पाते पर आ जाना।

घुर्रर्ररर...करके कार चली गई बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी,पवन तेज़ी से खाना लेकर भागा और अपनी झुग्गी में पहुँचा।

"शालिनी देखो! देखो मैं तुम सबके लिए खाना ले आया!"

ये देख बच्चे अपने पिता से जा लिपटे और फिर परिवार ने मिलकर खाना खाया,शालिनी कभी छोटी सी मन्नू को एक निवाला खिलाती,कभी पिंकू को तो कभी अपने पति पवन को और पवन शालिनी को।

फिर बारिश बंद हो गई,शालिनी ने झुग्गी में भरा बारिश का पानी बाहर किया और बच्चों को सुलाया फिर पवन ने सारा किस्सा शालिनी को सुनाया और दोनों परमात्मा का धन्यावाद करके लेट गए,शालिनी का हाथ पवन के सीने पर गया।

"हे भगवान आपका बदन तो जल रहा है बुखार से"।

"अरे कुछ नही सारा दिन बारिश में गीला होने की वजह से थोड़ा बुखार हो गया है सुबह तक ठीक हो जाएगा तुम सो जाओ शालिनी"।

किररर....किररर...करते झिंगर और रोते हुए कुत्तों की आवाज़ों ने शालिनी की नींद खोली वह उठी और उसने थोड़ा पानी पिया,पानी पीने के बाद उसने पवन का बुखार उतर गया या नही ये देखने के लिए उसने सोते हुए पवन का हाथ पकड़ा उसका बदन ठंडा पड़ा था और शरीर मे कोई हरकत भी नही थी शालिनी ने उसे जगाने का प्रयास किया,परन्तु वो नही उठा।

भला मृत भी कभी जागा करते हैं अपने पति की मृत्य देख वो फूट-फूट कर रोने लगी,माँ के रोने की आवाज़ सुन मन्नू और पिंकू भी जाग गए।

थोड़ी देर बाद जब मन्नू के बाबा नही उठे तो मन्नू अपने बाबा के सीने पर लेट गई और एक ही लफ्ज़ बार-बार अपने मुख से निकालती रही "बाबा....बाबा....

पिंकू थोड़ा बड़ा था तो उसे जीवन-मृत्यु का ज्ञान था वे बस अपने बाबा को देख सिसकियां भर कर रोता रहा।

थोड़ी देर बाद सुबह आस-पड़ोस के लोग झुग्गी में आ गए और सब अपनी सामाजिक दिखावटी सान्त्वना देकर चले गए।

अब रात हो चुकी थी किसी ने भी कुछ खाया नही था
शालिनी को तो जैसे होश ही नही था,वो बस अपने पति के शव के पास बैठकर अपनी ही किसी स्मरण की दुनिया मे मुग्ध थी।

तभी पिंकू का ध्यान गया अपनी बहन पर,मन्नू को भूख लगी थी और भूख की वजह से उसके शरीर में अब शक्ति न के बराबर थी बस भूख की बिलबिलाहट से मन्नू की बंद आँखों से सिर्फ आँसू बहते दिख रहे थे।

पिंकू ने अपनी माँ को हिलाया और कहा "माँ मन्नू कुछ बोल नही रही"।

तभी शालिनी पवन की मौत के सदमे से बाहर आई और उसने मन्नू को अपनी गोद मे लिया और कहा-
"मन्नू! ओ बेटा मन्नू तू मत चली जाना बेटा वरना मैं इस से ज़्यादा नही झेल पाऊँगी, देख तुझे भूख लगी है ना मैं तेरे लिए खाना लेकर आती हूँ, पिंकू मैं आती हूँ बेटा अपनी बहन का ध्यान रखना।"

अपनी बेटी को भूख से मरता देख वो रोती हुई पड़ोसियों के पास भागी लेकिन पड़ोसी एक से एक बहाने करते और कुछ पड़ोसी उसे वासना की नज़र से देख कर उसका फायदा उठाने की कोशिश करते।

वो रोती हुई बिलखती हुई वापस अपनी झुग्गी में आई और आते ही उसने मन्नू की तरफ देखा उसकी हालत अब और नाज़ुक हो चली थी।

तभी उसे अपने पति की कल रात वाली बात याद आई पवन ने शालिनी को बताया था कि एक साहब मिले थे उन्होंने ही खाना खरीद कर दिया था और उसे एक कार्ड दिया था और कहा था कभी किसी मदद की ज़रूरत हो तो इस पतेे पर आ जाना।

शालिनी ने अपने पति की जेब से उस आदमी का कार्ड निकाला,उस पर लिखा था "डॉक्टर शर्मा" उसने पता देखा वो पास वाली कॉलोनी का ही था वो तुरन्त उस आदमी को ढूंढने निकल गई और अब मन्नू को भोजन के साथ चिकित्सा की भी आवश्यकता थी।

समय हाथ से निकला जा रहा था,मन्नू की हालत गंभीर हो चली थी,इधर शालिनी अपने दोनों बच्चों को झुग्गी में अकेला छोड़कर,उस आदमी को ढूंढती हुई उसके दरवाज़े पर जा पहुँची थी।

ठक! ठक! ठक!

उसने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटा और फिर डॉक्टर ने दरवाज़ा खोला।

"अरे भाई सब्र नाम की चीज़ है या नही" उसने अपना चश्मा ठीक करते हुए बोला।

डॉक्टर ने देखा उसके दरवाज़े पर एक युवती खड़ी है।

"डॉक्टर साहब मैं पवन की पत्नी हूँ जिनकी मदद आपने कल रात की थी और उन्हें ये कार्ड दिया था"।

"अच्छा-अच्छा! अच्छा-अच्छा याद आया कल रात मैंने उसे कार में भी छोड़ा था।बताओ क्या हुआ?"

"वो साहब मेरी बच्ची बीमार है उसकी हालत बहुत खराब है आप चलिए मेरे साथ हमारी मदद कीजिये"।

फिर डॉक्टर ने दोनों हाथ शालिनी के कंधों पर रखे और उसे ऊपर से नीचे तक निहारा और कहा "देखो तुम घबराओ नही तुम्हारी बच्ची को कुछ नही होगा बस दिक्कत है एक ही बात की।

शालिनी ने रोते हुए पूछा "क.. क...कैसी दिक्कत साहब?"

"भई हमारी फीस की,देखो बुरा मत मानना, लेकिन हम दिन-रात अगर लोंगो की मदद ही करते रहे तो हमारे परिवार को कौन संभालेगा और वैसे भी काम को निजी जिंदगी से मैं अलग ही रखता हूँ।"

ये सुनकर शालिनी ने डॉक्टर के पैर पकड़ लिए "साहब ऐसा मत कहिये मेरी बच्ची मर जायेगी, मेरे पास पैसे नही है लेकिन आप देवता हैं आप उसे बचा लीजिये।"

"ओह! आई एम सॉरी...तो तुम्हारे पास पैसे नही है और बच्ची के पास शायद वक़्त भी कम होगा,क्या करें अच्छा कोई ज़ेवर या गिरवी रखने की कोई चीज़ है तुम्हारे पास"।

शालिनी ने रोते हुए चेहरे से आँसू पोंछे "अच्छा साहब मैं समझ गई,आप अच्छी तरह जानते हैं कि मुझ गरीब के पास खाने के पैसे नही तो ज़ेवर कहाँ से आयेंगे,आप मेरे साथ नीच हरकत करना चाहते हैं।

"देखो जो चाहे वो समझो तुम्हारे पास फीस के पैसे नही है और तुम्हारी बच्ची की तबियत नाज़ुक है!क्या करना है तुम सोच लो"। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा।

शालिनी बहुत बड़े संकट में थी उसे निर्णय करना था,वो अपनी अस्मिता को बचाये या मासूम मन्नू को।

उसने ह्रदय पर पत्थर रखकर अपनी अस्मिता को दांव पर लगाना उचित समझा थोड़ी देर बाद जब डॉक्टर ने अपनी तृष्णा मिटा ली,वो शालिनी के साथ उसकी झुग्गी में गया और मन्नू की चिकित्सा की।

जैसे ही मन्नू को होश आया शालिनी ने उसे सीने से लगा लिया और सांस भर के रोने लगी।

पवन को मरे हुए दूसरा दिन हो गया था शव झुग्गी में ही पड़ा था और शालिनी के पास पैसे नही थे की पवन का अंतिम संस्कार कर सके और न ही कोई रिश्तेदार था।

लेकिन उसके देवर और देवरानी थे लेकिन वो गुजरात मे रहते थे,पूरे परिवार का भूख से बुरा हाल हुए जा रहा था,पड़ोस की बूढ़ी महिला को तरस आ ही गया,वो आ कर परिवार को कुछ खाने के लिए दे गई।

4 दिन ऐसे ही कट गए पवन के शव से अब दुर्गंध आने लगी थी,जो आस-पड़ोस के लोगों को परेशान कर रही थी।

कुछ देर बाद मुँह पर कपड़ा ढक कर कुछ पड़ोसी झुग्गी में आये
"अरे भाई,इसकी लाश का कुछ करो ये तो इसका अंतिम संस्कार कर नही पाएगी खुद बीमार हो कर मरेंगे लेकिन इनके साथ हमारे परिवार वाले भी मरेंगे।"

उस व्यक्ति की बात का दूसरे व्यक्ति ने उत्तर दिया-

"भाई कौन करेगा इसका अंतिम संस्कार?है किसी के पास इतने पैसे मेरी बात मानो इसकी लाश को यमुना में फेंक दो।"

शालिनी ये बातें सुनकर परेशान हो गई उसने विरोध किया पर उसकी एक न चली उसने कहा कि मेरे देवर-देवरानी को सूचित कर दो वो जल्द ही आ जाएंगे।

लेकिन पड़ोसियों का मानना था,की जब तक इसके देवर-देवरानी आएंगे तब तक तो शव में से और भयंकर दुर्गंध आने लगेगी।

और उन लोगों ने पवन के शव को घसीटना शुरू कर दिया शालिनी ने जैसे ही उन्हें रोकने का प्रयास किया उन लोगों ने उसके साथ हिंसा की और उसे बुरी तरह मारा अपनी माँ के साथ ये दुर्व्यवहार देख पिंकू ने भी विरोध किया पर उसे भी पीटा गया।

4 साल की मन्नू रोने लगी पर वो निर्दयी न माने वो पवन के शव को ले गये पिंकू सिसकियां भरता हुआ बाबा-बाबा चिल्लाता रह गया।

बहुत दुखद व्यथा थी कि पवन का अंतिम संस्कार भी न हो सका,उसका शव यमुना में लीन हो चुका था,
इधर,रात हो चली थी परिवार फिर भूख से व्याकुल हो रहा था।

आज वो बूढ़ी महिला खाना ले कर नही आई थी,
थोड़ी देर बाद वो महिला आ गई लेकिन इस बार खाली हाथ।

"बेटा मुझे माफ़ कर दियो,मैं तुम लोगों के लिए खाना नही लायी,मेरे बहु-बेटे मेरी इस बात से मुझसे नाराज़ हैं उन्होंने मुझसे कहा है कि हम मज़दूर इंसान हैं,अगर समाज सेवा करनी है तो अपना सामान उठाओ और करती फिरो सबकी सेवा यहाँ रहना है तो हमारी मर्ज़ी के मुताबिक रहना पड़ेगा"। ये कह कर वो बूढ़ी मुँह पर हाथ रखे रोती हुई वहाँ से चली गई।

रात हो गई थी मन्नू की हालत भूख से खराब होने लगी थी,शालिनी भी पेट पकड़े बैठी थी,ये सब देख पिंकू ने एक कटोरा उठाया और पड़ोस में बँधी एक बकरी के पास जा पहुँचा।

उसने बकरी का कुछ दूध निथार लिया और वापस झुग्गी में आ गया उसने थोड़ा दूध अपनी बहन मन्नू को पिला दिया और थोड़ा अपनी माँ को।

दूध अब थोड़ा बचा था तो पिंकू ने उसमें पानी मिला कर बचा हुआ दूध पी लिया,अचानक ही उसके घर में एक आदमी चिल्लाता हुआ अंदर आया।

"हराम के पिल्ले! मेरी बकरी का दूध निकाल कर कैसे मज़े से पी रहा है सुअर।"

"भैय्या,उसे माफ कर दो बच्चा है हम भूख से तड़प रहे थे तो इस से देखा न गया,लेकिन अब ऐसा नही होगा।"शालिनी ने क्षमा याचना दी।

"तू चुप हो डायन तू अब यही काम तो कराएगी इससे चोरी-चकारी इसको तो सबक सिखाना पड़ेगा"।

उस आदमी के हाथ में एक लकड़ी की छड़ थी वह उस छड़ से पिंकू को पीटने लगा,पिंकू कराहता रहा दर्द से पर उस आदमी ने अपनी पूरी भड़ास निकाल कर ही दम लिया साथ ही पिंकू का बचाव करते समय शालिनी को भी कुछ चोटें आयीं।

उसकी माँ पिंकू को गले से लगाए फूट-फूट कर रोयी,छोटी सी मन्नू नन्हें पैरों से चल कर अपने भाई के पास आई और टूटे-फूटे लफ़्ज़ों से बोलने लगी-

"भैय्या तोत लगी"। उसने तुतलाते हुए कहा।

"जैसे-तैसे वो रात भी कट गई शालिनी यहाँ-वहाँ जीवन यापन करने के लिए काम की तलाश करने लगी,उसे पास की एक अमीर कॉलोनी में झाड़ू-बर्तन का काम मिल गया"।

अब खाने का इंतज़ाम उस घर का काम करके हो जाता था 2 दिन अच्छे बीते।

तीसरे दिन उस घर की मालकिन ने शालिनी को रोका-

"रुक जा ओ शालिनी आज तू घर थोड़ी देर में चली जाना में ज़रा पार्टी में जा रही हूँ और तेरे साहब आ जायेंगे तो उनको खाना खिला कर चली जाना।"

ये सुनकर शालिनी ने जवाब दिया-

"मैंम साहब,बच्चे घर पर अकेले हैं अगर आपको बुरा न लगे तो में आधे घंटे के लिए चली जाती हूँ बच्चों को खाना खिला कर मैं वापस आ जाऊँगी"।

"चल ठीक है तू अपने बच्चों को खाना खिला कर जल्दी वापस आ जा।"

शालिनी घर वापस आयी उसने दोनों बच्चों को खाना खिलाया और मन्नू को सुला दिया और पिंकू से कहा आज मैं थोड़ी देर से आऊँगी तू मन्नू का ध्यान रखना।

शालिनी अपनी मालकिन के घर वापस चली आयी और मालकिन के पति के लिए खाना तैयार करने लगी अब शाम के आठ बज चुके थे मालिक भी ऑफिस से आ गया था और नहा-धोकर टेबल पर आ बैठा।

शालिनी उसके लिए खाना लेकर आई,उसने शालिनी की ओर देखा-

"अरे तू कौन है रज्जो कहाँ है?"मालिक ने सवाल किया।

"साहब में नयी नौकरानी हूँ, रज्जो को मालकिन ने निकाल दिया था पिछले 3-4 दिन से मैं ही काम पर आ रही हूँ।"

फिर मालिक ने खाना खाया और बैडरूम में चला गया।
शालिनी घर वापस जाने की तैयारी कर रही थी तभी मालिक ने आवाज़ लगा कर शालिनी को बैडरूम में बुलाया।

"सुन ज़रा मेरे पैर दबा दे बहुत दर्द कर रहें हैं"।

शालिनी को ये थोड़ा अजीब लगा वो हिचकने लगी-

"साहब मैं पैर कैसे.....। इतना कह कर वो रुक गई।

मालिक को गुस्सा आ गया उसने फोन उठाया और अपनी पत्नी को फोन करने का नाटक करने लगा,

"अरे कौन बदतमीज़ नौकरानी रखी है तुमने!मेरे पैर दबाने से मना कर रही है,इसे अभी निकाल रहा हूँ मैं काम से तुम कोई दूसरी नौकरानी ढूंढ लो"।

इतने में ही शालिनी ने काम से निकाले जाने की बात सुनकर घबरा कर कहा-

"नही-नही साहब,आप मुझे मत निकालिये लाइये मैं दबा देती हूँ आपके पैर"।

"हाँ अब आयी न तू लाइन पे,चल शुरू हो जा,लेकिन उससे पहले मैं ज़रा पजामा उतार लूं"।

और मालिक ने अपना पजामा उतारा और एक कपड़ा लपेट कर बिस्तर पर लेट गया,शालिनी ने पैर दबाना शुरू कर दिया।

"थोड़ा ऊपर से दबाना,अरे और ऊपर से दबा अरे थोड़ा ऊपर ले।"

फिर मालिक ने शालिनी का हाथ पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया।

शालिनी ने विरोध किया पर मालिक तो जैसे वासना में अँधा हो चुका था उसने उस पर दया नही की,
शालिनी ने कहा वो मालकिन से कह देगी।

"अरे कुछ यकीन नही करेगी तेरी बात का वो,तेरे जैसी कई नौकरानी आयीं सबने यही कहा बाद में,मैंने अपनी पत्नी से कह दिया कि ये नौकरानी चोरी कर रही थी जब मैंने इसे पकड़ा तो मुझ पर आरोप लगाने लगी"।

शालिनी ने रोते हुए कहा "मैं पुलिस में शिकायत करूंगी।"

अरे पगली! मैं पुलिस में ही तो हूँ!

और उस नीच आदमी ने शालिनी को नही छोड़ा,थोड़ी देर बाद लड़खड़ाती हुई शालिनी अधमरी सी हालत में वहाँ से निकली और यमुना किनारे जा पहुँची और यमुना में डूब कर अपनी जान दे दी।

पिंकू अपनी माँ का इंतज़ार करने लगा था जब रात काफी हो गई उसने मन्नू को गोद मे उठाया और अपनी माँ को ढूंढने निकल पड़ा और ढूंढते हुए उस घर तक जा पहुँचा जहाँ उसकी माँ काम करती थी,उसने दरवाज़ा खटखटाया।

"अरे कौन है तू?"

"साहब मेरी माँ यहाँ काम करती है वो अभी तक घर नही आई,क्या माँ यहीं है।"

उस आदमी को ये सुनकर थोड़ी घबराहट हुई।

"नही बेटा वो तो कब की चली गई तू घर जा आती होगी तेरी माँ"।

पिंकू घर वापस आ गया और पता नही कब इंतेज़ार करते-करते उसे नींद आ गई,सुबह उसकी आँख खुली तो उसने देखा उसकी माँ अभी तक नही लौटी।

उसने आस-पड़ोस की सहायता लेनी चाही,पर लोगों ने कहा कि शायद इसकी माँ परेशान हो कर किसी के साथ भाग गई लोग उसकी माँ पर लालछन लगाने लगे।

पिंकू माँ को याद करते-करते रोने लगा फिर उसने अपने आप को संभाला और मन्नू की तरफ देखा उसने मन्नू को बचा हुआ खाना खिलाया और दोनों सो गए।

घर अकेला देख कुछ लोगों की नीयत खराब होने लगी झुग्गी पर कब्ज़ा करने के इरादे से पिंकू के घर एक आदमी आया।

और जबरन घर पर कब्ज़ा करने लगा पिंकू ने उसका विरोध करने की कोशिश की तो उसे पीट कर धक्के मार कर झुग्गी से बाहर कर दिया।

जब पड़ोस के कुछ लोगों ने उस आदमी को रोकने की कोशिश की तो उस आदमी ने झूठी कहानी बनाई,

"अरे इसके बाप ने मुझसे कर्ज़ा लिया था तुम लोग लौटा दो मैं चला जाऊँगा।"

ये बात सुनकर पड़ोसी भी पीछे हट गए।

पिंकू अपनी छोटी बहन को पीठ पर लादे और हाथ मे एक छोटी पोटली लिये सड़कों पर घूम रहा था।

तभी पीठ पर बैठी मन्नू तुतला कर बोली-

"भैय्या,माँ आ दायेगी।"

ये सुनकर पिंकू रोने लगा और उसने अपनी बहन को दिलासा देने के लिये कहा "हाँ माँ आ जायेगी"।

पिंकू घूमते-घूमते परेशान हो गया उसने देखा कुछ भिखारी सड़क पर कपड़ा बिछाये भीख मांग रहे हैं और लोग उन्हें पैसे देकर जा रहे हैं।

भूख से परेशान पिंकू और मन्नू के पास अब बस यही रास्ता बचा था,उसने भी पोटली खोली और एक कपड़ा निकाल कर वहीं बैठ गया।

थोड़ी देर में पिंकू के पास एक कार आ कर रुकी,कार की खिड़की खुली और खिड़की में से कार में बैठे आदमी ने उसे सौ रुपये दिए और कहा "छुट्टे करके मुझे वापस कर,बाकी 10 रुपये तू रख ले।"

पिंकू ने सौ रुपये लिए और मन्नू को कपड़े पर बैठाया और पड़ोस के भिखारियों से पैसे छुट्टे कराने लगा,इतने में कार से आदमी उतरा और उसने मन्नू को गोद में उठाया और वापस कार में बैठने लगा।

पिंकू ने उसे ये करते हुए देख लिया वो उसे रोकने लगा,उस आदमी ने पिंकू को एक थप्पड़ लगा कर धक्का दे कर उसे गिरा दिया।

और मन्नू को कार में बैठाकर कर,कार चालू कर भागने लगा,पिंकू तुरन्त उठा और कार के पीछे भागने लगा,कार के पीछे बैठी मन्नू अपने भाई की तरफ देख कर कार के पिछले शीशे से ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर अपने भाई को पुकार रही थी।

पिंकू और तेज़ भागा उसने भागते हुए एक पत्थर उठाया और सीधा कार की तरफ फेंका भाग्य से वो पत्थर कार का शीशा तोड़ता हुआ सीधे उस आदमी के सिर पर लगा और उस आदमी का कार से संतुलन बिगड़ने लगा और कार एक सड़क किनारे एक पेड़ से टकराई इतने में लोग वहाँ इकट्ठे हो गए।
लोगों ने उस आदमी को बाहर निकाला और पीटना शुरू किया,पिंकू भी अपनी बहन की तरफ दौड़ने लगा,भागते हुए उसने पिछे से आ रही गाड़ी की तरफ ध्यान नही दिया और कार से टकरा जाने के बाद वो सीधा अपनी बहन के पास जा गिरा।

लोगों का ध्यान उस अपहरणकर्ता से हट कर घायल पिंकू की ओर गया लोग पिंकू को संभालने लगे,इतने में जिस कार ड्राइवर ने टक्कर मारी थी वो बाहर निकला और उसने अपहरण करता को अपनी कार में बिठाया और उसे लेकर रफू-चक्कर हो गया।

लोग समझ गए ये दोनों मिले हुए थे,बच्ची के अपरहण में असफल होने के बाद अपने साथी को बचाने के लिए दूसरे आदमी ने जान-बूझकर इस लड़के को अपनी गाड़ी से उड़ाया है।

मन्नू ज़ोर-ज़ोर से रो कर भैय्या-भैय्या चिल्ला रही थी,तभी वहाँ एक-दो आदमियों ने दोनों को अस्पताल ले जाने का निर्णय किया।

अगले दिन जब पिंकू की आँख खुली तो उसने अपने आपको अस्पताल में पाया और अपनी बहन को एक नर्स की गोद में।

पिंकू ने उठने के लिये ज़ोर लगाया तो उसने देखा उसका एक पैर उठ नही पा रहा है,तब उसे पता लगा कि दुर्घटना में उसका एक पैर टूट गया है।

और डॉक्टर्स कि बातें सुनने के बाद उसे ये ज्ञात हुआ
की उसका पैर सदैव के लिए अपंग हो गया है और वो अब एक अपाहिज है।

ये देख वो काफी निराश हुआ,लेकिन हिम्मत नही है हारी उसने नर्स से अपनी बहन को उसके पास लाने के लिए कहा।

और मन्नू उसके पास आई और तुतला कर बोली-

"भैय्या,तोत लगी।"

ये सुनकर पिंकू ने जवाब दिया "नही मन्नू नही लगी"।

फिर उन दोनों को अनाथ आश्रम भेज दिया गया जहाँ दोनो को भोजन,शिक्षा और एक अच्छा जीवन मिला पर माता-पिता का प्यार नही।

लेकिन बड़े होकर पिंकू ने अपनी बहन की हर ज़िम्मेदारी माता-पिता की तरह निभाई और उसे पढ़ा-लिखा कर उसकी शादी कर दी।


इसी के साथ कहानी समाप्त करते हुए अजय चौधरी ने एक लंबी सांस ली और अपने सामने बैठे लोगों को देखा जिनकी आँखे नम हो चुकी थी।

"तो मित्रों आज की इस कहानी से अवश्य ही आप सबको कोई न कोई सीख मिली होगी,वो सीख क्या है ये आप सब जानें मुझे तो बस आप तक ये सत्य-घटना पहुँचानी थी,इसी के साथ मैं अजय चौधरी आपका पसंदीदा पत्रकार आपसे विदा लेता है नमस्कार"।

इतना कह कर डेस्क के पीछे से निकल कर अजय सामने आया,उसके हाथ में एक छड़ी थी,जो हाथ से बँधी हुई थी और उसका एक पैर दूसरे पैर से पतला और छोटा था वो धीरे-धीरे एक-दो लोगों का सहारा लेते हुए सीढ़ियां उतरने लगा।

जी हाँ आप सही सोच रहे हैं,पत्रकार अजय चौधरी ही बचपन का पिंकू है।

उसके जीवन से हमें भी कठिन परिस्तिथियों और यातनाओं से युद्ध करने की सीख लेनी चाहिये।



कहानी समाप्त।
सीखना शुरू.....