मेरे दोनो बच्चो को
बचपन
निर्दोष, मासूम ये तो पुराने शब्द है।
तुझे तो चालाक होना है।
आखिर तु ईक्कीसवी सदी का बच्चा है,
तुझे बचपन को "बायपास " करके सीधा बडा होना है।
तीतलीयो पंछीओ की तरफ ध्यान मत दे,
कहां तुझे उनकी तरह गाना, रंग बटोरना है।
उतना शीख के क्या करेगा तुझे तो आखिर
धरती पर ही अपना घोसला संजोना है।
तु इक्कीसवी सदी का बच्चा है,,,
पढाई थोडी कम कर चलेगा
हर हाल मे तुझे खुश होना है,
अरे ये तो लोगो को बोलने की बाते है,
मन की बात बताऊ,तुझे तो
हर हाल मे अव्वल होना है।
तु इक्कीसवी सदी का बच्चा है।
लुक्काछुपी, जुला जुल के क्या करेगा,
उसमे तो वक्त बर्बाद होना है,
मेरी पसंद के क्लासीस जा
अगर तुझे आबाद होना है।
अरे हाँ, सुन रविवार को " फनस्ट्रीट " ले जाऊगी
तेरे साथ "सेल्फी" भी खीचवाऊगी
भई तुझे सोशल मिडिया मे भी तो फेमस होना है।
तु इक्कीसवी सदी का बच्चा है।
तु ऐसे खुशी और गम मे चिल्ला नही सकता
तुझे चुपचाप ही रोना है।
अपनी हँसी की आवाज बुलंद मत् कर
हमे दुसरो की नजर मे संस्कारी भी तो होना है।
तु ईक्कीसवी सदी का बच्चा है।
मोरल साइन्स स्कूल मे ही सीखना,
असल जिंदगी मे थोडी काम आएगी
यहाँ तो सो जुठ बोलकर ये तेरी माँ ही,
तुझे सच का पाठ पढाएगी।
क्या करे आज-कल सच के साथ कौन होता है।
सच तो यहाँ रजाई ओढ के सोता है।
बडा हो के तो तुझे बडो की तरह
गलत के सामने भी चुप होना है।
तु इक्कीसवी सदी का बच्चा है।
वह गाँव
ता उम्र खडा था जो छत बनकर,
धुल सा पैरो में लिपटकर।
छोड, आए सपनो के शहर,
अब शहर मे आता है वह सपना बनकर।
शायद मेरे साथ आया था छुपकर,
यादो का टुकडा बनकर।
मेरे अंदर पनपा है ,
वह पुरा शहर बनकर।
मुस्कुराता है वह रोशनी का दिया बनकर,
बाल्कनी के तुलसी मे,
आंगन सा,
कांक्रीट के जंगल मे,
नीम के पेड सा,
तो कभी खिडकी से दीखते टुकडे मे,
बडा सा आसमान बनकर।
फेक्टरी से उठते धुए मे,
चुल्हे की भाप सा,
महोरा ओढे मुजमे,
बेनकाब सा,
तो कभी बारीश की बुंदो मे,
नदिया बनकर।
वापसी मे वही मीला,
चुपचाप खडा,
खुश है,
फिर से गाँव बनकर।
" स्पृहा" चाँदनी अग्रावत
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हर एक नारी के लिए
नारी
ना मै अबला नारी, नाही बैचारी।
ना ही जांसी की रानी हूं।
दिक्कत सिर्फ इतनी है कि मै
उम्मीद से कम आज्ञाकारी हूं।
मै आज की नारी हूं।
क्या पहनूंगी,कहा जाऊंगी।
अपना वक्त कैसे बिताऊंगी।
ये सब चिंता छोड़ दो
मै खुद अपनी ज़िम्मेदारी हूं।
हा दिक्कत सिर्फ इतनी है,,,,,,,
मै आजकी नारी हूं
मेरे लिए कहानी लिखने की परेशानी ना उठाओ,
मैंने खुदके बुने कुछ किस्से है,जो
मेरी असल ज़िंदगी के हिस्से है।
ना आपकी तारीफ की मोहताज हूं।
मै खुद अपनी शान हूं।
हां दिक्कत सिर्फ इतनी है,,,,,
मै आजाकी ना री हूं।
चांद तरोकी मुझे अब जरूरत नहीं,
मैने खुद जिए कुछ सपने है,
जो बिल्कुल मेरे अपने है।
आगे बढ़ने के लिए मुझे सीढ़ियों की जरूरत नहीं ।
मै खुद अपना मकाम हूं।,,
मै आजकी नारी हूं।
हा दिक्कत सिर्फ इतनी है।,,,,,,
आत्मविश्वास मेरा उंचा है।
आत्मसम्मान मेरा अछूता है।इतनी तो अहंकारी हूं।
जब वजूद पे मेरे सवाल होता है,
ज़मीर मेरा चूरचूर होता है।
इसीलिए याद रखना,धरती हूं प्रलयकारी हूं।
हा दिक्कत सिर्फ इतनी है,उम्मीद से कम आज्ञाकारी हूं
मै अाजकी नारी हूं
हा दिक्कत सिर्फ इतनी है।,,,,
" स्पृहा" चाँदनी अग्रावत
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एक हकीक़त से जुडा सपना
सुकून
एक मुद्दत के बाद मीला है इतना इतमीनान,
मौत, सोचा है तेरा नाम बदलकर सुकून कर दु।
पता नही था माँ की गोद सी शांति
दो गज जमीन मे मिलेगी,
जब साँस ही नही तो लगता है
चेन की दो साँस भर लू।
जिंदगी भर दुसरो के लिए जिए
कफन मे ही सही खुद के नाम दो पल कर लू,
मझार पे मेरी ना रखना फूल कोइ
अपनी थोडी खुशबु महसूस कर लू।
सुबह जब खुली ऑंख ये मंझर देखकर ,
खुल गई आँख ये सोचकर,
आज तक सिर्फ साँस ली,
क्यू न आज से साँस मे थोडा जीवन भर लू।
" स्पृहा" चाँदनी अग्रावत