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ख़ामोश प्यार

अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ते हुए अमित के पांव कांप रहे थे। कमरे में पहुंचते ही वह अपने पिता राकेश की हालत देखकर दुःखी हो गया। अपने भाई को आता देख सुमित की डबडबाई आंखें छलक पड़ीं और वह बोल उठा, "भैया जल्दी करो, पापा की सांसें रुक रही हैं।"


अमित की बहन शिवांगी और पत्नी गीता भी वहीं खड़े अपने आंसू पोंछ रहे थे। अमित अपने पिता के पास बैठ गया, उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला पापा। राकेश ने आंखें खोलीं और अमित की तरफ़ देखकर बोले, "अमित शिवांगी का ख़्याल रखना और उसकी शादी बहुत अच्छे लड़के से.... " कहते हुए राकेश नें अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर लीं। पूरे परिवार के सामने उन्होंने अंतिम सांसें लीं।

अमित के विवाह को अभी महीना भी पूरा नहीं हुआ था। राकेश ने अपनी पत्नी के ना होने की वजह से अमित की शादी जल्दी करवा दी थी, ताकि शिवांगी को घर में कोई साथी मिल जाए तथा अमित और गीता के प्यार को मुकाम मिल जाए। अमित और गीता के प्यार के चर्चे पूरे कॉलेज में थे ही और इसीलिए राकेश ने उनका विवाह जल्दी कर दिया था।


तेरह दिन हो गए राकेश के गुजर जाने को, अब सभी को नित्य की ज़िंदगी में वापस जाना था। अब तक सुमित और शिवांगी अपने कॉलेज नहीं गए थे। कॉलेज के लड़के आंखें बिछाए, देखते रहते कि चांद कब आएगा। इस बार अमावस कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई थी। शिवांगी की गैर हाज़िरी सारे लड़कों को खल रही थी। शिवांगी की खूबसूरती ऐसी थी कि जहां से निकल जाए, लोग रुक कर एक पल उसे निहार ही लेते थे। कॉलेज के लड़के तो केवल दूर से ही शिवांगी का दीदार कर पाते थे। दो भाइयों की पनाह में रहने वाली शिवांगी, हमेशा अपने दोनों भाइयों के संरक्षण में ही आती जाती थी। किसी में हिम्मत नहीं थी कि शिवांगी को कुछ बोले या बात करने की कोशिश भी कर सके।


शिवांगी के पिता ने दुनिया छोड़ने से पहले शिवांगी से कहा था, "बेटा जहां अमित कहे वहीं शादी करना। तुम बेहद खूबसूरत हो बेटा, तुम्हारी खूबसूरती की वजह से बहुत लड़के पीछे आएंगे। तुम किसी गलत इंसान के जाल में ना फंस जाओ इसीलिए तुम्हारे लिए सही लड़का तो अमित ही चुनेगा।"


अपने पिता की बातों को शिवांगी ने दिल से लगा लिया, अपने पिता को वचन भी दिया और दृढ़ निश्चय कर लिया कि जहां अमित भैया बोलेंगे, वहीं शादी करूंगी। इसीलिए शिवांगी ने हमेशा अपने आप को प्यार के बंधन से दूर ही रखा।


अमित के बचपन का दोस्त था विवेक, दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे और साथ साथ ही घूमते फिरते थे। विवेक का घर कुछ ही दूरी पर था, वह अक्सर ही अमित के घर आया करता था। अमित का स्वभाव जानते हुए वह कभी भी शिवांगी से बात नहीं करता था।


अमित ने ना जाने कितने लड़के देखे पर उसे स्वयं, उनमें कोई ना कोई कमी नज़र आ ही जाती थी। देखते देखते शिवांगी की पढाई पूरी हो गई। विवेक बचपन से शिवांगी को पसंद करता था, किन्तु अपने दिल में कभी प्यार का ख़्याल भी नहीं लाया था। आखिर अमित उसका जिगरी यार जो था किंतु शिवांगी को एक नज़र देखता ज़रुर था। वह जानता था कि शिवांगी अमित की पसंद के लड़के से ही शादी करेगी और अमित से वह कभी यह बात बोल ही नहीं सकता था। वह डरता था कि मेरा यार कभी रुठ गया तो।


कुछ दिनों से विवेक अमित के घर नहीं आया था वह किसी काम से शहर से बाहर गया था। शिवांगी को विवेक के घर ना आने से कुछ बेचैनी सी होने लगी। ना जाने क्यों वह ना चाहते हुए भी बार बार विवेक को याद करने लगी। शिवांगी खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि उसे यह क्या हो रहा है। वह समझ रही थी कि उसका दिल विवेक से प्यार करने लगा है लेकिन अपने पापा को दिया वचन उसे याद था। शिवांगी ने अपने दिल की आवाज़ सुनकर भी उसे दबाये रखना ही ठीक समझा।


पंद्रह दिनों के बाद विवेक वापस आ गया, घर आते ही सबसे पहले वह अमित से मिलने आया। दरवाज़े पर बेल बजते ही शिवांगी ने दौड़कर दरवाज़ा खोला और विवेक को देखकर वह इतनी अधिक ख़ुश हो गई कि उसकी वह ख़ुशी विवेक से भी नहीं छुप सकी और आज ना चाहते हुए भी शिवांगी अपनी आंखों को रोक ना पाई। वह कहते हैं ना कि आंखें सब कुछ बोलती हैं और शिवांगी की आंखों में विवेक को वह दिखाई दे गया, जिसकी वह कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था किंतु चाहता अवश्य था। विवेक से नज़रें मिलने के बाद शिवांगी अपनी पलकों को झुकाकर वहां से जाने लगी, तभी अमित की आवाज़ आई, "आ गया विवेक, चल आ जा बैठ।"


"शिवांगी जरा चाय बना लाओ ।"


"हां भैया, लाती हूं," बोल कर शिवांगी रसोई में चली गई। शिवांगी बार बार उस बीते लम्हे को अपने अंदर समेटे जा रही थी। वह उस लम्हे को जीना चाह रही थी। शायद वह उसकी ज़िंदगी का सबसे यादगार लम्हा था। तभी चाय उफनने लगी, पीछे से गीता की आवाज़ आई, "अरे शिवांगी क्या सोच रही हो, चाय उफन रही है।"


"अरे कुछ नहीं भाभी," कहते हुए शिवांगी ने चाय को प्याले में निकाला और हॉल तक पहुंचते पहुंचते 20 - 25 सेकंड में ही उसका दिल विवेक के लिए धड़कने लगा। चाय ले जाकर उसने विवेक की तरफ़ ट्रे बढ़ाया और एक बार फ़िर वही आंखें विवेक को निहारने लगीं। विवेक को फ़िर से उन आंखों में वही दिखा जो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था लेकिन चाहता ज़रुर था।


अब तो यह सिलसिला चलने लगा दोनों एक दूसरे देखते किंतु कोई कुछ नहीं कह पाता, एक के सामने भाई का प्यार था तो दूसरे के सामने जिगरी दोस्त की यारी थी। महीनों इसी तरह गुज़र गए लेकिन सिलसिला वहीं का वहीं अटका हुआ था। अपनी निगाहें चार करने के अलावा वह आगे बढ़ ही नहीं पाए थे।


शिवांगी के जीवन में बदलाव को उसकी भाभी गीता महसूस कर रही थी। समझ रही थी कुछ तो है, लेकिन क्या ? एक जवान लड़की की बेचैनी, दूसरी जवान लड़की ज़रुर समझती है। गीता ने कई बार कोशिश करी शिवांगी से पूछने की, लेकिन शिवांगी ने कभी नहीं स्वीकारा। उसने दिल का राज़ दिल में रखना ही बेहतर समझा।


देखते देखते ख़ामोश प्यार के तीन साल गुज़र गए, लेकिन इन तीन सालों में गीता काफी कुछ समझ गई थी। इसी बीच अमित ने किसी लड़के को शिवांगी के लिए पसंद कर लिया।


"गीता कल एक लड़का आने वाला है शिवांगी को देखने। मैं और विवेक उसे लेने एयरपोर्ट चले जाएंगे, सुमित तुम्हारी मदद कर देगा।"


शिवांगी ने यह सुना तो उसके पैरों नीचे से ज़मीन ही खिसक गई, लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाई। गीता ने अमित से कहा, "अरे एक बार शिवांगी से तो पूछ लो लड़के को बुलाने से पहले।"


"अरे कैसी बात करती हो गीता, शिवांगी के लायक लड़का बड़ी मुश्किल से मिला है, उसे ज़रुर पसंद आएगा, बाकी सब तो मैं देख ही लूंगा।"


इसी बीच विवेक भी आ गया और शिवांगी चाय लेकर आई। आज शिवांगी की आंखों में वह चमक नहीं थी, वह ख़ामोश थी। विवेक को चाय देते समय आज उसकी आंखें जब विवेक से मिलीं तो उसमें आंसू थे, निराशा थी और उन्हीं आंसुओं का एक मोती चाय देते वक़्त विवेक की चाय की प्याली में टप से गिरा। जिसकी वज़ह से चाय की कुछ बूंदें विवेक के चेहरे पर चली गईं। शिवांगी का वह आंसू विवेक के दिल को चीर गया। तभी अमित ने आकर कहा, "विवेक कल एक बजे एयरपोर्ट चलना है, तुझे बताया था ना शिवांगी को देखने लड़का आ रहा है।"


विवेक ने कहा, "हां हां चलेंगे ना अमित, तू टेंशन मत कर।"


गीता ने आज शिवांगी को विवेक को चाय देते समय सब देख लिया था और अब वह सब कुछ साफ साफ जान गई थी। गीता देख रही थी एक सच्चा प्यार कितना ताकतवर होता है। उसने सोच लिया था कि वह रात को अमित से इस बारे में बात करेगी।


रात में खाने के पश्चात अमित जब कमरे में आया तब गीता ने अमित से कहा, "अमित मुझे तुमसे बहुत ज़रुरी बात करनी है।"

लेकिन अमित ने बहुत थक गया हूं, कल बात करेंगे कह कर करवट ली और खर्राटे लेने लगा। गीता कुछ भी ना कह सकी, अब वह सुबह का इंतज़ार कर रही थी और सोच रही थी शिवांगी अपने भाइयों से कितना प्यार करती है। इतना बड़ा त्याग तो कोई भी नहीं करता और विवेक, विवेक तो दोस्त है लेकिन वह भी जानता है कि अमित शिवांगी के लिए दुनिया का सबसे अच्छा लड़का चाहता है। इसीलिए वह भी अपने अरमानों को, अपने प्यार को मार रहा है। उन दोनों की तकलीफ़ मैं समझ सकती हूं, दोनों ने आज तक बात भी नहीं की है। ऐसा ख़ामोश प्यार शायद ही किसी ने किया होगा।

गीता रात भर सोचती रही कैसे बात शुरु करे अमित से ? लेकिन अमित सुबह उठकर इतना व्यस्त हो गया कि उसने सुबह भी गीता की बात नहीं सुनी। आज तो अमित को ऐसा लग रहा था कि मानो आज शिवांगी का रिश्ता तय हो ही जाएगा।


एक बजने को आ गया, विवेक भी तैयार होकर आ गया और अमित भी विश्वास और उत्साह के साथ तैयार था, एयरपोर्ट जाने के लिए। गीता चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। जाते जाते अमित ने कहा, "गीता, शिवांगी को तैयार रहने को बोलो और हां गुलाबी साड़ी पहनाना उसे। हम लोग अभी आते हैं।"


गीता ने कोई जवाब नहीं दिया।


तीन बजे तक विवेक, अमित और साहिल घर आ गए। सुमित ने साहिल का स्वागत कर उसे अंदर आदर पूर्वक बुला कर बिठाया।


इधर गीता ने शिवांगी से कहा, "शिवांगी तुम्हारे दिल में जो भी है आज कह दो, तुम्हारी ज़िंदगी का सवाल है। शिवांगी कह दो ना ?"


"नहीं भाभी, कुछ भी तो नहीं। अमित भैया मेरे लिए जो करेंगे वही सबसे अच्छा होगा।"


गीता गुस्से में बोली, "शिवांगी तुम बिल्कुल पागल हो, लेकिन मैं तीन ज़िंदगी बर्बाद नहीं होने दूंगी।"


साहिल के सामने शिवांगी जैसे ही आई, साहिल की आंखें चकाचौंध हो गईं। गुलाबी साड़ी में लिपटी शिवांगी कोई अप्सरा लग रही थी। इतनी खूबसूरत लड़की साहिल ने कभी नहीं देखी थी। गीता भी वहीं खड़े होकर विवेक की तरफ़ देख रही थी जो केवल ऊपर से ही ख़ुश दिखाई दे रहा था, यह वह जानती थी।

साहिल ने अमित से पूछा, "क्या मैं शिवांगी से अकेले में बात कर सकता हूं।"

अमित ने हां कह दिया।


फिर साहिल और शिवांगी कमरे में अकेले ही थे। साहिल ने जितना पूछा शिवांगी ने उतना ही जवाब दिया। तभी साहिल ने पूछा, "शिवांगी तुम्हें कुछ नहीं जानना मेरे बारे में ?"


शिवांगी का जवाब था, "मेरे भैया यदि आपके बारे में जानते हैं तो मेरे लिए उतना ही काफी है।"


इतने में गीता भी वहां आकर बैठ गई और बोली, "अरे शिवांगी रसोई में जो मिठाई की प्लेट रखी है वह तुम्हें ही लानी चाहिए, जाओ ले आओ।"


"जी भाभी," कह कर शिवांगी वहां से उठी, एक गहरी लम्बी सांस ली और रसोई में चली गई।


गीता मौके की तलाश में ही थी, उसने साहिल से विनती करी कि वह इस शादी के लिए मना कर दे।


"साहिल मैं तुम्हें ज़्यादा अभी कुछ नहीं बता सकती। वक़्त नहीं है लेकिन तुम्हें फ़ोन करके अवश्य ही बताऊंगी। तुम अमित को मना कर दो। इसी में तुम्हारी, शिवांगी की और हमारे दोनों परिवारों की भलाई है। "


साहिल बहुत ही समझदार लड़का था, बातों की गहराई उसकी समझ में आ गई और उसने गीता से कहा, "भाभी जी मैं इतना ख़राब और स्वार्थी इंसान नहीं कि अपने लिए दो परिवारों की ज़िंदगी और खास तौर पर शिवांगी की ज़िंदगी बिगाड़ दूं। आप चिंता ना करें, मैं अमित को मना कर दूंगा। लेकिन शिवांगी के लिए ना कहने का कारण कहां से लाऊं ? भाभी जी वह इंसान बेहद ख़ुश नसीब होगा जिससे शिवांगी का विवाह होगा, लेकिन अफ़सोस वह मैं नहीं हूं।"


तभी गीता बाहर चली गई और अमित से कहा उन लोगों की बातचीत हो गई। अब शिवांगी अंदर चली गई है। ठीक है अमित ने कहा और तब तक साहिल भी बैठक में आ गया।


बातों बातों में अमित ने पूछा, "साहिल, फिर तारीख़ कब की निकलवा लूं ?"


"अरे अमित भैया मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए, मैं जाकर आपको फ़ोन लगाऊंगा।"


अमित थोड़ा हैरान हो गया लेकिन कुछ भी बोल ना सका और विवेक के साथ साहिल को वापस एयरपोर्ट छोड़ने चला गया । साहिल को छोड़ कर अमित बहुत ही भारी कदमों से घर में आया। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर साहिल ने अभी टाल क्यों दिया। गीता के पास आकर अमित उदास होकर बैठ गया।


रात के खाने के बाद गीता और अमित अपने कमरे में गए तब गीता ने कहा, "अमित जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है।"


"क्या, क्या मतलब है तुम्हारा ? इतना अच्छा लड़का हाथ से निकल रहा है और तुम ऐसा बोल रही हो।"


"क्यों क्या वही एक अच्छा लड़का है, अमित ? तुम्हारे पास के अच्छे लोग क्या तुम्हें दिखाई नहीं देते ?"


"क्या मतलब है तुम्हारा, गीता ?"


"अमित इतने सालों से तुम्हें कभी भी विवेक क्यों दिखाई नहीं दिया ? क्या कमी है उसमें, सर्व गुण संपन्न है और.... "


"और क्या गीता ? ये क्या बोल रही हो ? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो ?"


"हां मैं सोच सकती हूं अमित, क्योंकि मैं शिवांगी की भाभी हूं, उसे प्यार करती हूं और एक स्त्री भी हूं जो इंसान के अंदर तक झांक लेती है। आंखों का प्यार देख लेती है जो तुम कभी नहीं देख पाए। हां अमित, हमारे घर में वर्षों से एक ऐसा प्यार पल रहा है, जिसमें त्याग है, गहराई है, ठहराव है, समर्पण है, विश्वास है, मान है, सम्मान है, पवित्रता है। प्यार है केवल अपने लिए नहीं सबके लिए। शक्ति है, सब कुछ छुपा जाने की, यहां तक कि एक ख़ामोशी है जो उनके बीच कभी भी बातचीत में तब्दील नहीं हुई। उन दोनों ने हमेशा सिर्फ़ तुम्हें चाहा, स्वयं को नहीं। क्यों अभी तक विवेक ने उसके लिए आए हर रिश्ते को मना कर दिया ? क्यों आज शिवांगी उदास दिखाई दे रही थी, कभी सोचा तुमने ? नहीं ना, लेकिन अब सोचो। अमित, विवेक और शिवांगी ने कभी नहीं कहा, ना ही कहेंगे, ना ही आपस में इकरार किया। यह प्यार कितना अलग है अमित, और इतने अनोखे प्यार को हमें सम्मान देना ही चाहिए।"


गीता की बातें सुनकर अमित अवाक रह गया और उसकी रूह कांप गई। उसने अपने दोस्त की वफ़ादारी और बहन के प्यार का सम्मान करते हुए उनके ख़ामोश बेमिसाल प्यार को रिश्ते में बदल देने का निश्चय कर लिया।


दूसरे दिन जब विवेक आया तब शिवांगी दरवाज़ा खोलने नहीं गई। विवेक भी बहुत उदास था लेकिन अमित बहुत ख़ुश था। अमित ने शिवांगी को बुला कर विवेक और शिवांगी को अपने गले से लगाया और फिर दोनों का हाथ पकड़ कर हमेशा के लिए एक कर दिया। इस तरह अमित ने आज एक ख़ामोश प्यार को आवाज़ दे दी।

-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

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