स्त्री.... - (भाग-29) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्त्री.... - (भाग-29)

स्त्री.......(भाग-29)

उन लोगों के जाने के बाद मैं ऊपर चली गयी....तारा भी मेरे पीछे पीछे ऊपर आ गयी। मैं जब तक कपड़े बदल कर आयी, पानी का गिलास टेबल पर रखा था और तारा चाय बना रही थी......मैं तब तक आँखे बंद करके लेट गयी। तारा की आवाज से आँखे खोली तो वो चाय वे कर खड़ी थी...। "तुमने अपने लिए चाय नहीं बनायी तारा"? ट्रे में एक कप देख कर मैंने पूछा तो बोली, "नहीं दीदी अभी नीचे के लिए बनाऊँगी तब पी लूँगी....जाओ इस चाय को दो कप में कर दो, बाद में तुम दोबारा पी लेना। वो जल्दी से दो कप में ले आयी...."। क्या बात है दीदी? आज पता नहीं चल रहा कि आप खुश हो या उदास!! "तारा आज तुझे थैंक्यू बोलने का दिल कर रहा है, तेरी कही एक बात ने मुझे बचा लिया, इसलिए खुश हूँ"!! "क्या हुआ दीदी मैंने ऐसा क्या किया? आप कौनसी बात के लिए थैंक्यू बोल रही हो"।
वो सब छोड़ो और मेरी बात को सुन, आज विपिन जी की माताजी ने मुझे बुलाया था ये बताने को कि विपिन जी मुझसे शादी करना चाहते हैं! फिर आपने क्या कहा! तुमने कहा था ना कि सोच समझ कर आगे बढना चाहिए और एक जैसा काम नहीं होना चाहिए पति पत्नी का तो बस मैंने मना कर दिया। वैसे भी उनकी माताजी अपने बेटे की बात रखने के लिए एक तलाकशुदा को बहु बनाने को तैयार हो गयी थी, वरना तो मैं पसंद नहीं हूँ उनको बहु के रोल में.....।"अच्छा किया आपने, वो पूरी जिंदगी आपको सुनाती रहती यही बात....फिर विपिन साहब जिस तरीके से बात करते हैं, वो देखने में तो अच्छा लगता है, पर आप गौर करोगे तो कुछ बनावटी सा लगता है। वो आपसे अपने मतलब के लिए ही शादी करना चाहते हैं, मुझे ऐसा लगता है दीदी"। तारा की बातें सुन कर मुझे अहसास हुआ कि अनपढ़ तारा कितनी ज्यादा पढी लिखी है, जो चेहरों को भाषा भी पढ़ लेती है......मैं अभी भी कच्ची ही निकली, जो बहुत समय बाद किसी आदमी का मुझसे बातें करना, इससे अपी तारीफ सुन कर इतनी खुश हो गयी कि बाकी बाते अनदेखी हो गयी....क्या इसमें कामिनी का हाथ था ? विपिन जी की तरफ आकर्षित हो गयी और मेरे अंदर सोए हुए भाव जागने लगे तो क्या मैं अभी तक 12-13 साल की चंचल अल्हड़ सी लड़की हूँ ,एकदम बहती नदी सी......इतना कुछ हो जाने के बाद भी मैं 1-2 मुलाकातों में ही मुग्ध हो गयी, जैसे कई सवाल मुझे कचोट रहे थे....पर सच तो सच है और सच ही तो रहेगा। जिसको जो नहीं मिलता वो उसको ही पाने की ललक रखता है। तारा तो अपनी बात कह कर चली गयी थी, पर मैं वहीं बैठी रह गयी अपने आप को धिक्कारती हुई। जैसे हम स्त्रियाँ सामने वाले पुरूष की नजरे पहचान लेते हैं तो क्या विपिन जी को भी मेरी नजरों में कुछ ऐसा दिखा होगा ? अब जो भी था, पर खत्म अच्छे से हुआ.....कामिनी से तो मुझे कभी कोई उम्मीद भी नहीं थी, इसलिए अगर उसने कुछ कहा हो तो कुछ नया नहीं होगा मेरे लिए.....शाम से रात हो गयी और मैं अपनी जिंदगी के समीकरण में ही उलझी लेटी रही, पर ज्यादा देर तक ऐसा भी नहीं हो पाया.....एक अनजान नं से मोबाइल पर फोन आया तो थोडा हिचकते हुए फोन उठाया......"मेरे हैलो बोलते ही आवाज आयी जानकी दीदी पहचाना मैं कौन बोल रहा हूँ"? "नहीं मैंने नहीं पहचाना ....कौन बोल रहा है"? "क्या दीदी एक ही तो भाई हूँ, फिर भी नहीं पहचाना"? "अरे राजन! क्या हाल है? कैसा है? कहाँ से बोल रहा है"? अरे दीदी रूको तो,सवालों की झड़ी लगा दी आपने दीदी। "मैं ठीक हूँ , मेरी पोस्टिंग हरियाणा में हुई है। अगले महीने जॉइन करना है तो 15 दिन हैं मेरे पास तो मैं, माँ और पिताजी आ रहे हैं आपसे मिलने...कोशिश करूँगा कि छाया को भी ले आऊँ"....."ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई है.....कब आ रहे हो"! बस रविवार पहुँच जाएँगें......आप बताओ सब कैसे है? सब ठीक है भाई, अब बाकी बातों आ जाओ फिर करेंगे। राजन से बातें करके तो मन खुश हो गया। बहुत दिनों बाद हम सब मिलेंगे। कुछ पलों में मेरा मूड क्या बदला घर भी नाचता सा दिख रहा था मुझे......! कुछ ही देर की थी ये खुशी क्योंकि अगले पल मेरे तलाक की बात सुन कर सब कितने दुखी होंगे ये सोच कर मन सिहर उठा। काफी दिनों तक छुपाए सच के बाहर आने का टाइम शायद हो गया था....। मेरा परिवार आ रहा है सिर्फ 5 दिन ही रह गए हैं। कुछ तैयारियाँ तो करनी पडेंगी
राजन साथ होगा तो वो माँ पिताजी और छाया को शहर घूमा देगा......मेरा मन कर रहा था कि मैं उनके लिए वो सब कुछ करके रखूँ,जो शायद वो अपने बेटे से उम्मीद लगा कर बैठे होंगे....राजन तो सब करेगा ही, पर जानकी भी बेटे से कम नहीं, पिताजी अक्सर कहा करते थे जब मैं छोटी थी और लड़को के साथ खेलने की जिद करती थी...। मैं सुनील भैया को फोन करने का सोच ही रही थी कि भैया खुद ही आ गए...."भाभी आज क्या बात हुई आप लोगों के बीच"? पैर छूते हुए उन्होंने पूछा...."क्यों क्या हुआ भैया? आप सीधा ऑफिस से आ रहे हैं शायद"? "हाँ भाभी, मै किसी काम से इस तरफ आया था तो सोचा आपसे मिल लूँ, कामिनी का शाम को फोन आया था मेरे पास वो रो रही थी कि जानकी भाभी के सामने मेरी इंसल्ट हो गयी ,वो क्या सोचेंगी मेरे बारे में तो मैंने उसे कहा कि काम में हूँ तो आ कर बात करता हूँ। अब यहाँ से फ्री हुआ तो सोचा पहले आप से बात जान लूँ पूरी, कामिनी की बात सुनने से पहले"। तारा पानी दे कर मेरे इशारा करने पर चाय बनाने चली गयी और मैंने उन्हें होटल में जो हुआ वो भी बताया और जो विपिन जी की डिजाइनर के साथ मुलाकात थी वो सब बता दिया.....।
चाय पीते हुए भैया बोले, "अच्छा ये बात है तो आपने बिल्कुल ठीक किया, पर इसमें कामिनी का हाथ नहीं है भाभी।
आपके डिवोर्स होने का कारण उन्होंने मुझसे पूछा था तो मैंने उन्हें बस वही बोला जो भाई साहब ने कहा था। कामिनी को लग रहा है कि आप को लगेगा कि उसने जानबूझ कर ऐसा किया है। भाभी उसकी साइड नहीं ले रहा हूँ,पर काफी बदल गयी है वो"....."भैया मुझे कामिनी से कोई शिकायत नहीं है न चाची जी से, जो भी वहाँ बात हुई उससे मुझे न तो कोई तकलीफ हुई न ही बुरा लगा....इसलिए कामिनी को कहिएगा कि वो चिंता न करे, वो मेरे लिए एक छोटी बहन जैसी है और हमेशा रहेगी"। थैंक्यू भाभी, आपने मेरी चिंता ही दूर कर दी"। सुनील भैया मेरे मायके से सब आ रहे हैं मुझसे मिलने, आप सबसे मिलने तो अगले हफ्ते थोड़ा टाइम निकालना पड़ेगा उन सब के लिए.....हाँ भाभी जरूर, आप बता देना हम आ जाएँगे और आप कहो तो रेलवे स्टेशन खुद चला जाऊँ या आप जाओगी? कार के साथ ड्राइवर आपके पास भेज दूँगा.....भैया वो मैं आपको बता दूँगी, आप बैठिए खाना खा कर जाना। नहीं भाभी मैं जाता हूँ, कामिनी इंतजार कर रही होगी....रो रही थी तो उसका मूड भी ठीक करना पड़ेगा कह कर मुस्कराते हुए भैया सीढियाँ उतर गए।
जब हम बहुत खुश होते हैं तो समय बिताना मुश्किल लगता है, उस दिन ऐसा लग रहा था कि 6 दिन कब बीतेंगे! उस दिन ऐसा लग रहा था कि आज का दिन कभी खत्म ही नहीं होगा....इतना लंबा दिन कभी नहीं लगा था। नीचे का काम समझा कर मैं ऊपर आ गयी, अनिता तो शाम को चली जाती है और मुकेश दोपहर को आता है, तो रात को तारा उसे खाना खिला कर ही भेजती है। रात को कारीगर सब आराम से काम करते रहते हैं। तारा की जब आँख खुलती है तो वो नीचे देख आती है और कभी कभार मैं भी चली जाती हूँ....सब काम निपटा कर बिस्तर पर लेटी तो नींद का दूर दूर तक नामोनिशान न था। तारा तो झट से सो जाती है तो सोच रही थी कि क्या करूँ...मेरा फोन एक बार दोबारा बज गया। फोन विपिन जी का था, एक बार तो सोचा बजने दो नहीं उठाती, पर फिर सोचा नींद तो वैसे भी नहीं आ रही, उठा कर देखती हूँ,अब क्या कहते हैं महाशय?
मेरी हैलो सुन इधर से भी आवाज आयी हैलो जानकी जी, आप तो मुझे पसंद करती हैं न ,फिर माँ के सामने आपने शादी के लिए मना क्योंं किया ? विपिन जी मैंने तो आपको कभी नहीं कहा कि मैं आपको पसंद करती हूँ, फिर आपको ऐसा क्यों लगा? अगर मैं आपको पसंद नहीं था तो मुझसे रोज बातें क्यों करती थी? विपिन जी पहली बात ये कि आप मुझे फोन करते थे, मैंने कभी खुद से बातें करने के लिए फोन नहीं किया। दूसरी बात, आपने मेरे साथ दोस्त की तरह बात की तो मुझे अच्छा लगा क्योंकि काफी सालों से मुझे दोस्त की कमी लग रही थी। आप तो विदेश में रह कर आए हैं, फिर आपकी इतनी छोटी सोच कि लड़का और लड़की दोस्त की तरह बात भी नहीं करते, सोचा नहीं था। तीसरी बात आप कामिनी और सुनील भैया के रिश्तेदार हैं तो उस लिहाज से आपसे बात करने में मुझे कोई बुराई नजर नहीं आयी। फिर आपकी माताजी भी नहीं चाहती कि आप मुझसे शादी करें तो फिर बात वहीं खत्म हो गयी, अब आप मेरी किस बात से नाराज हैं? आप ये बताइए।
जानकी जी माँ को तो मैं समझा लेता, तुम मुझे बहुत अच्छी लगी.....हम साथ में मिल कर काम करते तो कितना अच्छा रहता, एक जैसा प्रोफेशन हो तो इससे अच्छी कोई बात ही नही। उनकी बात सुन कर मेरी हँसी छूट गयी तारा की बात सोच कर....विपिन जी एक प्रोफेशन तो रोशनी जी और आपका भी है, दोस्त है आपकी और सबसे ऊपर ये कि आप दोनों का स्टेटस भी मैच करता है।आपका और मेरा कुछ ऐसा मैच नहीं है, फिर मैं नहीं फिर से बेमेल शादी नहीं करना चाहती...आप को अपने स्टोर के लिए जो कुछ चाहिए होगा हमारे यहाँ से वो आप हमेशा ले सकते हैं....यही ठीक रहेगा हमारे लिए। "ठीक है जानकी जी थैंक्यू", कह कर फोन काट दिया
क्रमश:
स्वरचित और मौलिक
सीमा बी.