प्यार के इन्द्रधुनष - 30 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के इन्द्रधुनष - 30

- 30 -

रात को अनिता ने सोचा था कि सुबह अस्पताल में डॉ. वर्मा को अपने निर्णय से अवगत कराऊँगी, किन्तु उसे प्रतीक्षा करनी भारी लग रही थी। इसलिए उसने नित्यकर्म से निवृत्त होते ही फ़ोन पर डॉ. वर्मा को विमल से विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। यह सुनते ही डॉ. वर्मा ने कहा - ‘अनिता, कांग्रेचूलेशन्स एण्ड गुड लक्क। मैं अभी विमल को फ़ोन करती हूँ। बाक़ी जैसा उसके पेरेंट्स चाहेंगे, उसके अनुसार आगे का प्रोग्राम बना लेंगे।’

अनिता से बात समाप्त करते ही डॉ. वर्मा ने विमल को फ़ोन मिलाया और उसे बधाई देते हुए कहा - ‘विमल, मुँह मीठा तो तुम कराओगे ही, बिचौलिये का नेग भी देना पड़ेगा।’

‘डॉ. साहब, यह भी कोई कहने की बात है! लेकिन बिचौलिए का नहीं, बहन का नेग। आपने जो मेरे लिए सोचा और किया है, वह एक बहन ही अपने भाई के लिये कर सकती है। मैं उम्र भर आपका ऋणी रहूँगा।’

विमल द्वारा ‘बहन’ शब्द के प्रयोग से डॉ. वर्मा द्रवित हो उठी, क्योंकि यह शब्द विमल के मुख से उच्चरित अवश्य हुआ था, लेकिन निकला उसके दिल की गहराइयों से था, ऐसा उसे लगा।कुछ क्षणों के लिए वह गई। कोई जवाब न पाकर विमल ने ही ‘हैलो-हैलो’ करते हुए पूछा - ‘डॉ. साहब, क्या हुआ, नेटवर्क चला गया था क्या?’

डॉ. वर्मा ने भर्राए हुए स्वर में कहा - ‘विमल, नेटवर्क नहीं गया था, बल्कि कहीं गहरे जुड़ गया है। जब बहन बना रहे हो तो अब भूलकर भी मुझे ‘डॉ. साहब’ कहकर मत बुलाना।’

‘दीदी....!’

‘हाँ, यह भी चलेगा यदि नाम न लेना चाहो। अंकल-आंटी जी से बात करा दो।’

विमल के माता-पिता से बात करते हुए उसने उन्हें बधाई देने के बाद कहा, क्योंकि अनिता का तो कोई अपना है नहीं, इसलिए जल्दी-से-जल्दी सगाई की रस्म कर लेनी चाहिए। उत्तर में शामलाल ने कहा - ‘वृंदा बेटे, हम भी यही चाहते हैं। हमें किसी रिश्तेदार को तो बुलाना नहीं, लेकिन मनमोहन का होना बहुत ज़रूरी है। तुम या विमल उससे बात कर लो, जिस दिन वह आ सकता हो, उस दिन सारी रस्में एक साथ निपटाकर बहू घर ले आएँगे।

‘अंकल जी, मनमोहन की कोचिंग क्लास तो दस बजे शुरू होती है, अभी तो वह घर पर ही होगा। मैं उससे बात करके आपको बताती हूँ।’

डॉ. वर्मा अति उत्साहित थी, क्योंकि विमल और अनिता का रिश्ता करवाने जैसे पुण्य-कर्म का फल उसे तुरन्त मिल गया था - विमल के साथ भाई-बहन का रिश्ता जुड़ गया था। उसने तुरन्त मनमोहन का नम्बर मिलाया। काफ़ी देर तक रिंग जाती रही, लेकिन उत्तर नहीं मिला। डॉ. वर्मा ने सोचा, हो सकता है कि वह बाथरूम में हो। अत: उसने वासु को चाय बनाने के लिए कहा। बेड पर कंबल में पैर लिपटाकर जब वह चाय की चुस्कियाँ ले रही थी, तभी मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी और साथ ही स्क्रीन पर मनमोहन और स्पन्दन की फ़ोटो आ गई। चाय का कप साइड टेबल पर रखकर उसने मोबाइल उठाया और स्वाइप करते ही आवाज़ आई - ‘गुड मॉर्निंग वृंदा, आज सुबह-सुबह कैसे याद किया?

चहकते हुए डॉ. वर्मा बोली - ‘मनु डियर, तुम्हें बधाई देने के लिए?’

‘बधाई, लेकिन किस बात की?’

‘मैंने जो काम हाथ में लिया था यानी विमल के विवाह का, उसमें सफल हो गई हूँ। तुम एक दिन के लिए कब आ सकते हो, क्योंकि अंकल जी ने कहा कि तुम्हारे आने पर ही यह शुभ कार्य सम्पन्न होगा।’

‘वृंदा, पहले तो तुम्हें बहुत-बहुत बधाई इस अनुपम उपलब्धि पर। …. शनिवार रात तक मैं आ सकता हूँ। जो भी करना हो, संडे को किया जा सकता है।’

‘ठीक है, तुम आ जाओ। यहाँ मैं सारी तैयारी करवा दूँगी। रखती हूँ, अंकल जी व अनिता को भी सूचित करना है।’

.......

दो सप्ताह पूर्व एक-दूसरे से पूर्णतया अपरिचित विमल और अनिता। डॉ. वर्मा बनी सेतु। इस छोटी-सी अवधि में विवाह पूर्व विमल और अनिता केवल दो बार मिले - प्रथम बार डॉ. वर्मा के केबिन में, दूसरी बार अनिता के घर लंच पर। बहुत-सी बातें मोबाइल पर ही हुईं। अन्त में कुछ घंटों के अत्यन्त सादे समारोह में अग्नि के फेरे तथा माता-पिता का आशीर्वाद लेकर विमल और अनिता बन गए जीवन-भर के साथी, जिसके साक्षी रहे डॉ. वर्मा, मनमोहन और रेनु। इस प्रकार सम्पन्न हुआ चट मँगनी पट विवाह। विवाह के उपरान्त मनमोहन ने डॉ. वर्मा से कहा - ‘वृंदा, मुझे बहुत प्रसन्नता है कि तुम्हारे प्रयास से विमल एक बार फिर से जीवन जीने के लिए तैयार हुआ है वरना तो वह कई सालों से बस समय काट रहा था।’

‘मनु, इस सम्बन्ध से मुझे भी लाभ हुआ है, विमल के रूप में भाई मिल गया है और अनिता मेरी भाभी बन गई है। जीवन में हरेक रिश्ते की एक ख़ुशबू होती है। भाई-भाभी पाकर मैं भी बहुत प्रसन्न हूँ। ..... मनु, पिछली दीवाली स्पन्दन की पहली दीवाली थी, लेकिन मना नहीं पाए थे, क्योंकि जीजा जी की मृत्यु हुए कुछ दिन ही हुए थे, लेकिन इस बार दीवाली धूमधाम से मनाएँगे।’

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