प्यार के इन्द्रधुनष - 29 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के इन्द्रधुनष - 29

- 29-

अनीता को देखते ही विमल के हृदय की धड़कन तेज हो गई थी, लेकिन उसने अपनी मनोदशा का आभास डॉ. वर्मा या अनिता को नहीं लगने दिया। अस्पताल से लौटने के बाद से अनिता की छवि उसे आँखों के समक्ष डोलती-फिरती प्रतीत हो रही थी। उसको लग रहा था, यह समय बीतने में क्यों नहीं आ रहा। आख़िर रविवार की सुबह हुई। जब वह सैर को निकला तो अभी अँधेरा ही था। आकाश में बादल तो नहीं थे, किन्तु धुँध की वजह से दिखाई बहुत दूर तक नहीं देता था। शायद आम दिनों की अपेक्षा वह घर से काफ़ी पहले निकल लिया था।

स्नानादि से निवृत्त होकर वह दुकान का हिसाब-किताब करने बैठा। ग्यारह बजे तक उसने बही-खातों का काम निपटा दिया। तब उसने पिता जी को बताया कि मैं अनिता से मिलने जा रहा हूँ। तदुपरान्त उसने अनिता को सूचित किया कि मैं कुछ ही देर में पहुँच रहा हूँ। अनिता रसोई में व्यस्त थी, क्योंकि आज अचानक मेड ने छुट्टी कर ली थी। अत: उसने कहा - ‘विमल जी, माफ़ करना। आप आधा-एक घंटा रुककर आएँ तो अधिक अच्छा होगा, क्योंकि तब तक मैं फ़्री हो जाऊँगी वरना आप अकेले बैठे बोर होंगे।’

‘अनिता जी, इसमें माफ़ी वाली कौन-सी बात है! एक-दूसरे की सुविधा का ख़्याल रखना तो बहुत आवश्यक है। मैं आपके पास साढ़े बारह बजे तक पहुँचता हूँ।’

अनिता ने राहत की साँस ली। अब वह आराम से रसोई का काम विमल के आने से पहले निपटा सकती थी।

सुबह-शाम की ठंड के बावजूद दिन में गर्मी थी। इसलिए विमल के आने पर वे ड्राइंगरूम में ही बैठे। अनिता को आज विमल दो दिन पहले की अपेक्षा अधिक स्मार्ट लग रहा था, जबकि स्वयं उसने कोई फ़ॉर्मल ड्रेस न पहनकर जींस और टॉप ही पहना था। जब कुछ क्षणों बाद अनिता उठकर रसोई की तरफ़ जाने लगी तो विमल ने पूछा - ‘आप बिल्कुल अकेली हैं, कोई हेल्पर नहीं है?’

‘विमल जी, आज मेड बिना बताए छुट्टी कर गई। इसीलिए आपको देर से आने के लिए कहना पड़ा। लेकिन कोई बात नहीं, जो होता है, अच्छे के लिये ही होता है। अब हम अधिक फ़्री होकर बातचीत कर सकेंगे।’

‘सो तो है’, विमल कुछ कहने जा रहा था कि अनिता ने कहा - ‘आप बैठिए, मैं सूप ले आऊँ, फिर बैठकर बातें करेंगे’ कहते हुए वह उठकर रसोई की ओर चली गई।

सूप पीते हुए अनिता ने कहा - ‘विमल जी, मैंने आपकी पसन्द-नापसन्द पूछे बिना जो बनाया है, वही आपको खाना पड़ेगा। पता नहीं, आपको पसन्द आएगा या नहीं?’

विमल ने उसे इस दुविधा की स्थिति से उबारने के इरादे से कहा - ‘अनिता जी, सूप बहुत स्वादिष्ट बना है। जब शुरुआत इतनी बढ़िया है तो आगे भी खूब स्वादिष्ट खाने को मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।’

‘धन्यवाद। एक गृहिणी तो अपने बनाए खाने की प्रशंसा सुनकर ही तृप्त हो जाती है। …. जब आप कहेंगे, खाना लगा लूँगी।’

‘बात आपने सौ टके की है। कोई भी व्यक्ति अपने किए काम की प्रशंसा पाकर तृप्ति तो अनुभव करता ही है। ... खाने की मुझे कोई जल्दी नहीं। जैसे आपको ठीक लगे, कर लेना।’

‘विमल जी, डॉ. वर्मा ने मुझे बताया था कि आपका एक बेटा भी था। चाहे एक बार सब कुछ सेटल हो गया है, बड़ा होकर आपका बेटा तो आपकी पेरेंटहुड पर क्लेम तो कर ही सकता है।’

‘अनिता जी, डॉ. वर्मा ने शायद यह भी आपको बताया होगा कि वह बच्चा मेरा अंश नहीं है।’

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई। लेकिन, ऐसा मानने का कारण?’

‘बच्चे का जन्म विवाह के आठ महीने बाद हुआ, तब भी वह बिल्कुल स्वस्थ एवं नॉर्मल था। हमारा मानना है कि विवाह पूर्व वह लड़की प्रेगनेंट थी। इसीलिए उसकी मम्मी ने विवाह के लिए बहुत जल्दी की थी। उस समय तो हमें यह सब लड़की वालों की ओर से स्वाभाविक लगा था।’

‘आपकी धारणा तो अनुमान पर आधारित है। मान लो, लड़का बड़ा होकर आपकी पेरेंटहुड पर क्लेम करता है तो?’

‘तो डी.एन.ए. टेस्ट की फेसेलिटी तो उपलब्ध है ही, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी सिद्ध हो जाता है। वैसे ऐसी किसी आशंका की कोई सम्भावना है नहीं।’

अनिता के पास इस बिन्दु पर और कुछ कहने को था नहीं, अत: उसने उठते हुए कहा - ‘मैं खाना लगाती हूँ।’

‘मैं भी आपकी कुछ हेल्प करूँ, यदि आपको एतराज़ न हो?’

‘सब कुछ तैयार है। यदि कुछ करना बाक़ी होता तो आपकी हेल्प ज़रूर ले लेती।’

खाना खाने के बाद विमल ने धन्यवाद करते हुए विदा लेनी चाही तो अनिता ने कहा - ‘आज तो संडे है। जाने की तो जल्दी नहीं होनी चाहिए।’

विमल को अनिता का और रुकने के लिए किया गया आग्रह अच्छा लगा। फिर भी अपनी विवशता उसके सामने रखते हुए उसने कहा - ‘अनिता जी, दरअसल मुझे दोपहर में खाने के बाद सोने की आदत है। इसलिए जाना चाहता हूँ।’

अनिता ने बेतकल्लुफ़ होते हुए कहा - ‘आप घर में हैं, कहीं चौराहे पर नहीं। यहाँ भी सोने की व्यवस्था है। आप यहीं सो लीजिए। शाम की चाय के बाद चले जाना। ... सोने के लिए क्या लेंगे - कंबल या रज़ाई?’

विमल को अनिता का अनौपचारिक व्यवहार पसन्द आया। उसने उत्तर दिया - ‘अभी तो इतनी ठंड नहीं है, कंबल ही काफ़ी रहेगा।’

अनिता ने विमल को गेस्ट बेडरूम में पहुँचाकर कंबल दे दिया। विमल को लेटते ही नींद आ गई। जब वह उठा तो उसने देखा, अनिता अपने बेडरूम में टी.वी. देख रही थी। उसने पूछा - ‘आप दिन में नहीं सोती?’

‘विमल जी, मेरी पन्द्रह-पन्द्रह दिन की डे-नाइट ड्यूटी होती है। नाइट ड्यूटी वाले दिनों में तो दिन में सो लेती है, डे ड्यूटी में तो सोने का समय ही नहीं मिलता। बस वही रूटीन संडे का रहता है। ... अब चाय बनाऊँ?’

‘हाँ, बना लीजिए। फिर मैं चलूँगा।’

.......

सोमवार को ओ.पी.डी. से फ़्री होते ही डॉ. वर्मा ने अनिता को बुलवा लिया। उसके आने पर पूछा - ‘कैसी रही कल की मुलाक़ात?’

‘डॉ. साहब, वैसे तो सब ठीक है, लेकिन विमल जी के खर्राटे खलते हैं।’

डॉ. वर्मा को हैरानी हुई कि दिन के समय की मुलाक़ात में इसे विमल के खर्राटे लेने का कैसे पता चला। उसने रोमांटिक अंदाज़ में पूछा - ‘पहली मुलाक़ात में ही सोने की आदत का भी पता लगा लिया?’

अनिता समझ गई डॉ. वर्मा के मन में क्या चल रहा है। अत: डॉ. वर्मा के भ्रम को दूर करते हुए उसने स्पष्ट किया - ‘खाना खाते ही विमल जी ने घर जाने की बात कही तो मैंने पूछ लिया कि इतनी क्या जल्दी है? जवाब में उन्होंने कहा कि मुझे खाना खाते ही सोने की आदत है। मैंने कहा, यहीं सो लो, शाम को चले जाना। वे मान गए। गेस्टरूम में सोने पर भी इनके खर्राटों की आवाज़ मेरे रूम तक आती रही।’

डॉ. वर्मा ने देखा कि अनिता बात करते हुए निरन्तर विमल के लिए आदरसूचक सम्बोधनों का प्रयोग कर रही थी। इसलिए वह आश्वस्त थी कि सम्बन्ध यह सिरे चढ़ेगा अवश्य, फिर भी अनिता की ‘खर्राटे खलते हैं’ वाली बात को लेकर उसने पूछा - ‘अनिता, क्या खर्राटों की वजह से तुम मन नहीं बना पा रही हो?’

‘डॉ. साहब, डे ड्यूटी के दिनों में भी मेरी नींद डिस्टर्ब रहने लगी तो मेरी हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।’

‘अनिता, हर आदमी में कोई-न-कोई कमी तो होती ही है, परफ़ेक्ट तो कोई भी नहीं होता। दूसरे, खर्राटे तो शायद हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति मारता है। इसलिए मैं तो चाहती हूँ कि तुम यह रिश्ता स्वीकार कर लो। .... तुमने विमल से खर्राटों सम्बन्धी कोई बात की है?’

‘नहीं। मैंने उचित नहीं समझा।’

अनिता की दुविधा को दूर करने के लिए डॉ. वर्मा ने एक और तर्क रखा - ‘अनिता, संयोग कह लो कि विमल खाने के बाद तुम्हारे घर सो गया और उसके खर्राटों का तुम्हें पता चल गया। मान लो, ऐसा न हुआ होता और तुमने ‘हाँ’ कर दी होती और विवाह के बाद तुम्हारा विमल के खर्राटों से सामना होता तो क्या करती? क्या सिर्फ़ इसी आधार पर तुम उससे अलग होने का निर्णय ले सकती?’

‘डॉ. साहब, आपसे सहमत हूँ, लेकिन मुझे एक-दो दिन का समय चाहिए विचार करने के लिए ।’

‘ऐसे मामलों में जल्दबाज़ी में फ़ैसला करना भी नहीं चाहिए। टेक एज मच टाइम एज यू लाइक टू डिसाइड योर फ्यूचर।’

‘थैंक्यू डॉ. साहब’, कहकर अनिता उठकर अपनी ड्यूटी पर चली गई।

.......

घर आकर डॉ. वर्मा ने विमल को कॉल किया और कहा कि दुकान बन्द करने के बाद दस-पन्द्रह मिनट के लिए घर आना। इसके अतिरिक्त कोई बात नहीं की। विमल सोचने लगा, यदि अनिता की ‘हाँ’ होती तो डॉ. वर्मा सीधे बधाई देती और ‘ना’ होती तो शायद फ़ोन भी नहीं करती। घर बुलाने का क्या कारण हो सकता है, उसके कुछ समझ में नहीं आया।

पिता जी को बताकर कि डॉ. वर्मा ने बुलाया है, दुकान बन्द करने से आधा घंटा पहले ही वह डॉ. वर्मा के घर पहुँच गया। डॉ. वर्मा खाना खाने की तैयारी कर रही थी। उसने पूछा - ‘लगता है, सीधे दुकान से आ रहे हो?’

‘हाँ, दुकान बन्द करने के बाद आता तो लेट हो जाता।’

‘तो डिनर मेरे साथ ही कर लो।’

‘खाना तो मैं घर जाकर ही खाऊँगा, मम्मी इंतज़ार करेंगी। आप खाना खा लें, फिर जिस मक़सद से बुलाया है, बता देना।’

‘विमल, यदि तुमने घर जाकर ही खाना खाना है तो पहले बातचीत ही कर लेते हैं। तुम्हें अधिक लेट नहीं करूँगी’, कहकर डॉ. वर्मा ने पूछा - ‘विमल, नींद में तुम खर्राटे मारते हो?’

‘हाँ। स्वयं को तो पता नहीं चलता, लेकिन कोई पास हो तो उसे ज़रूर पता चल जाता है।’

‘विमल, तुम अनिता के घर लंच पर गए थे और शायद लंच करने के बाद तुम वहीं कुछ देर के लिए सो गये थे। अनिता को तुम्हारे खर्राटे दूसरे रूम में भी सुनते रहे। ... तुम्हारा वज़न तो नॉर्मल है, मोटे भी तुम नहीं हो। क्या तुम्हें साइनस की प्रॉब्लम है?’

‘हाँ डॉ. साहब, मुझे साइनस की प्रॉब्लम है और शायद खर्राटे आने की यही वजह है। मैं साइनस से छुटकारा पाने के लिए कुछ यौगिक क्रियाएँ करता हूँ। पहले से मुझे काफ़ी रिलीफ़ है।’

‘विमल, अनिता ने ‘हाँ’ सिर्फ़ तुम्हारे खर्राटों की वजह से नहीं की वरना वह तुम्हें जीवन-साथी बनाने के लिये तैयार है। मैंने तो उसे समझाया है कि यह कोई ऐसी बड़ी समस्या नहीं है कि बाक़ी के प्लस पॉइंट्स को माइनस कर दे। उसने दो-चार दिन का समय लिया है निर्णय करने के लिए। मुझे पूरी उम्मीद है कि उसकी ‘हाँ’ ही होगी। ..... विमल, मैं अनिता के बारे में तुम्हारी राय पूछना तो भूल ही गई। तुम्हें अनिता कैसी लगी?’

‘धन्यवाद डॉ. साहब। अनिता के साथ खुलकर विचार-विमर्श हुआ। लड़की इंटेलीजेंट है, लेकिन ईगो नहीं है। दु:खों से गुजरने के कारण परिपक्व है। यदि वह ‘हाँ’ करती है तो मुझे प्रसन्नता होगी।’ विमल ने अपनी स्थिति बहुत कम शब्दों में स्पष्ट कर दी।

‘विमल, तुम दोनों को एक-साथ जीवन में आगे बढ़ते हुए देखकर मुझे भी प्रसन्नता होगी।’

......

रात को बिस्तर पर लेटे हुए अनिता डॉ. वर्मा की बातों पर विचार करने लगी तो उसे डॉ. वर्मा द्वारा कही बातों में निहित अपना हित स्पष्ट रूप में दिखाई देने लगा। जब विमल खुले मन से उसे स्वीकार करने को तैयार है तो उसके खर्राटों को लेकर असमंजस में पड़ना कहाँ तक उचित है। यदि मैं स्वयं के जीवन की त्रुटियों की ओर ध्यान दूँ तो विमल के खर्राटे तो कुछ भी नहीं। यदि विमल के व्यक्तित्व का समग्रता में निष्पक्ष रूप से मूल्यांकन किया जाए तो फ़ैसला उसके हक़ में ही होगा। इसके अतिरिक्त डॉ. वर्मा विमल और मुझे जीवनसाथी के रूप में देखना चाहती हैं तो इसमें उनका कोई स्वार्थ तो है नहीं, वे तो हम लोगों को ख़ुश देखकर ख़ुश होना चाहती हैं। मैं कल सुबह ही उनसे मिलकर अपनी स्वीकृति दे दूँगी।

अपने निर्णय पर अनिता का मन तरंगित हो उठा। प्रसन्नता के अतिरेक में आँखों से नींद काफूर हो गयी। उसने मोबाइल उठाया। सदाबहार फ़िल्मी गीत सुनने लगी। एक से बढ़कर एक मन को गुदगुदाने वाले गीत सुनते हुए वह कल्पना-लोक में खो गई।

पर्वतीय वादियों में दिसम्बर की कड़कड़ाती ठंड। हनीमून के आनन्द से उपजी बेपनाह ऊर्जा। एक चुनौती, दूसरी पहली का अस्तित्व नकारती। दुनिया से बेख़बर, अपनी ही दुनिया में खोए दो जिस्म, इक जान। कोहरे की परत कभी उन्हें अपनी गिरफ़्त में ले दुनिया की नज़रों से ओझल कर देती है तो कभी उन्हें छूती हुई दूरी बना लेती है। पीठ पर बच्ची को उठाए और ऊपर से काफतान ओढ़े एक पहाड़ी अपनी झोंपड़ी की ओर जाते हुए गुनगुना रहा था - दु:ख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे, रंग जीवन में नया लायो रे, दु:ख भरे दिन बीते रे भैया, बीते रे भैया....। ... कल्पना में सुने गरीब पहाड़ी के मुख से उम्मीदों से भरपूर शब्दों को सुन अनिता यथार्थ में गुनगुनाने लगी - पंछी बनूँ, उड़ती फिरूँ मस्त गगन में .... रंग बहारों ने भरा मेरे जीवन में ... ।

सुनहरे ख़्यालों में खोयी अनिता तकिया बाँहों में जकड़ सोने का प्रयास करने लगी।

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