अनजान रीश्ता - 66 Heena katariya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजान रीश्ता - 66

पारुल ऐसे ही रेस्टोरेंट में इंतजार कर रही थी। आधे घंटे से वह यहां अकेले अविनाश का इंतजार कर रही थी । पारुल का गुस्सा तो मानो जैसे आसमान छु रहा था । वह जानती थी यह इंसान भरोसे के लायक तो बिल्कुल नही है। पता नहीं क्या सोचकर वह यहां आई थी। ( गघी! बिलकुल इडियट हो तुम खुद को ही मन में कोश रही थी। ) फिर एक बार अपनी वॉच में समय देखते हुए रेस्टोरेंट से बाहर देख रही थी। की कही अविनाश का अता पता हो लेकिन बाहर एक परिंदा भी नही दिख रहा था । ऊपर से बिना नाश्ता किए ही वह यहां चली आई और पर्स भी साथ लाना भूल गई थी । तो कुछ खाना मंगवा भी नही सकती । मन ही मन सोचती है ( भगवान यार सारी बुरी चीज़े मेरे साथ ही क्यों होती है । कुछ उस अविनाश जैसे इंसान को भी दे दिया करो यार! प्लीज थोड़ी सी दया कर लो मुझ पर प्लीज.... वह ऐसे ही रेस्टोरेंट की छत को देख रही थी । की तभी किसी के हंसने की आवाज आती है । ) वह पीछे मुड़कर देखती है तो अविनाश हंस रहा था । पारुल का चहेरा गुस्से और शर्म की वजह से लाल हो जाता है ।


अविनाश: ( सामने वाली सीट पर बैठते हुए ) तो यूं छत की ओर क्यों घूरे जा रही थी ।


पारुल: ( गुस्से में अविनाश की ओर देखती तो है पर उसकी आंखे बस अविनाश के लुक को ही निहार रही थी। सफेद शर्ट, ब्लू कोर्ट, बालो का स्टाईल मानो जैसे वह किसी मैगजीन में से निकल कर सीधा यहां पर आया हो । )..।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) देख लो!!! जी भर के देख लो आखिरकार हक बनता है तुम्हारा!! ( धीरे से ) वैसे चाहो तो तस्वीर भी ले सकती हो ज्यादा सहूलियत होगी नहीं !? ।


पारुल: ( कंट्रोल पारुल कंट्रोल तुम इतनी कब से बेशर्म हो गई और वो भी इससे बंदर को घूर घूर के देख रही हो,,,छी छी... मन ही मन बात कर रही थी। ) अहमम!! सॉरी... वो में कुछ सोच रही थी ।( इधर उधर देखते हुए )।


अविनाश: हां हां चलो मान लेते है ( ताना मारते हुए ) ।


पारुल: ( गुस्से को काबू में करते हुए ) जिस बात के लिए हम मिले है उस पर बात करे प्लीज! ।


अविनाश: ( टेबल पर हाथ रखते हुए ) फाइन पर मुझे जोरों की भूख लगी है तो पहले कुछ ऑर्डर करे! । ( वैटर को बुलाते हुए ) एकस्कयुजमी!! ।


पारुल: ( मना करतीं उससे पहले ही अविनाश वैटर को बुला चुका था । अब उससे कैसे समझाए की पैसे नही है। )।


अविनाश: ( ऑर्डर देते हुए पारुल की ओर देखता है । ) क्या!! तुम कुछ ऑर्डर क्यों नहीं कर रही!! ? ।


पारुल: अमम!!! मुझे भूख नहीं लगी!!! ( तभी पारुल के पेट में से गुड़गुड़ की आवाज आती है । ) ( पारुल शर्म के मारे लाल टमाटर जैसी हो जाती है उससे समझ नहीं आ रहा था क्या करे!! ? ) ।


अविनाश: (खाने का ऑर्डर देने के बाद पारुल की ओर आश्चर्य में देखते हुए कहता है । ) पर तुम्हारा पेट को कुछ और ही बात बयां कर रहा है !! ।


पारुल: ( पारुल शर्म के कारण यही सोच रही थी की काश वह यहां से गायब हो जाए ! ) ( इधर उधर देखते हुए ) वो... मैं... वो मैं... ।


अविनाश: ( जोर जोर से हंसते हुए ) हाहाहाहाहा.... हाहाहा..... ओह गॉड जब तुम्हे जूठ बोलना आता नहीं तो कोशिश क्यों करती हो!? ।


पारुल: ( गुस्से में कर्कश नजरो से अविनाश की ओर देखते हुए ) हो गया मजाक मिल गई शांती!! ( अविनाश की ओर उंगली करते हुए ) ये सब ना तुम्हारी गलती है तुम्हारी वजह से मैं घर से जल्दी जल्दी निकली और तो और कब से भूखे मर रही हूं!! और तुम हो की यहां मेरा ही मजाक उड़ा रहे हो!! ।


अविनाश: ( सीरियस होते हुए ) हां तो तुम खाना मंगवा सकती थी किसने रोका है तुम्हें!!? ।


पारुल: गधे कहीं के में अपना पर्स घर पर भूल गई हूं और इस पर्स में एक फूटी कोड़ी नहीं है । तुम क्या चाहते हो की खाना खाने के बाद में उनके बर्तन साफ करू!! हां वैसे भी तुम तो मेरा बुरा चाहोगे !! ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए पारुल की ओर देखे जा रहा था और कुछ नहीं बोलता !! । ) ।


पारुल: ( अविनाश की ओर देखते हुए ) क्या! अब ऐसे क्या देख रहे हो! इसमें कोन सी मुस्कुराने वाली बात है भला!?।


अविनाश: कुछ नहीं!! ? ( रेस्टोरेंट से बाहर देखते हुवे) ।


पारुल: ( खुद को शांत करते हुए ) तो!!? ।


अविनाश: क्या!? ।


पारुल: मतलब तुमने सोचा की क्या करोगे!!? जो रायता तुमने फैलाया है उस बारे में!?।


अविनाश: ( उसकी आंखे डार्क ब्लैक हो गई थी मानो जैसे यह वह अविनाश है ही नहीं जो थोड़ी देर पहले आया था। वह कुछ बोलने ही वाला था की वैटर खाना टेबल पर परोसने के लिए खड़ा होता है । जिससे वह उससे सिर को हां में हिलाते जवाब देता है ) ।


पारुल: ( वैटर के आते ही मानो उसने चैन की सांस ली हो । वह जानती थी की अविनाश कुछ उल्टा सीधा ही बोलने वाला था । वह और कुछ नहीं कहती और बस रेस्टोरेंट के बाहर आते जाते लोगों को काच में से देखने लगती है । ) ।


अविनाश: क्या!? ( आइब्रो ऊपर करते हुए ) ... ।


पारुल: ( अविनाश की ओर मुड़ते हुए) क्या!?।


अविनाश: ( अपने शर्ट की स्लीव को मोड़ते हुए ) ऐसे बुत की तरह क्या बैठी हो खाना शुरू करो!? ।


पारुल: ( अविनाश को देख रही थी क्या कर रहा है स्लीव के ऊपर लुढ़काने की वजह से उसका ये लुक और भी जच रहा था । ) ( मन ही मन.... वाउ पारुल व्यास क्या बात है!! तुम यहां उस पर डोरे डालने आई हो या अपनी प्रोब्लम के लिए ) ( सिर को ना में हिलाते हुए ) वो... मैं.... नही खा सकती.... ।


अविनाश: ( खाना प्लेट में परोसते हुए ) वो भला क्यों!?।


पारुल: ( गुस्से में ) क्या मतलब क्यों!? पैसे नहीं है मेरे पास बताया तो था मैंने पहले ही!? ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) ( खाने की थाली पारुल की ओर रखते हुए ) तो!? ।


पारुल: ( खाने की प्लेट देखकर मानो उसका मन डगमगा रहा था.. मानो कह रहा था खा लो! प्लीज खा लो! कितना टेस्टी दिख रहा है!! एक बार टेस्ट को कर लो प्लीज!) क्या मतलब तो!?... बिना पैसे के मैं कैसे खा सकती हूं! और...।


अविनाश: ( खुद के लिए प्लेट में खाना परोसते हुए ) और...!? ।


पारुल: और... मैं अपने दोस्त और सेम के अलावा जो पराए लोग है उनके पैसे पे मैं क्यों खाऊं!? स्पेश्यली अनजान लोगों के ।


अविनाश: ( अविनाश जिस चम्मच से खुद को परोस रहा था मानो उसका हाथ जम सा गया था... उसने चम्मच इतनी जोर से पकड़ा हुआ था जिस वजह से उसके हाथों की सारी नसे दिख रही थी । ) हो गया तुम्हारा नाऊ लेट्स स्टार्ट... आई एम हंगरी... । ( खाना खाते हुए ) ।


पारुल: ( आश्चर्य में अविनाश की ओर देखते हुए ) तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना! ? ।


अविनाश: ( खाना खाते हुए मुस्कुरा रहा था ... । )... ।


पारुल: नहीं मतलब उल्टा सीधा सोचों उससे पहले ही बता दूं आज ना तो तुम मुझ पर गुस्सा कर रहे हो ना ही... राक्षस वाली शकल .. तो इसी वजह से पूछ रही हूं..!।


अविनाश: अगर तुमने खाना शुरू नहीं किया तो डेफिनेटली तुम मेरा वोह रूप जरूर देखोगी जो तुमने पार्क में देखा था ... । अब तुम पर निर्भर है क्या करना चाहती हो... । चुपचाप खाना खाओगी या मुझे कोई और तरीका अपनाना पड़ेगा... एंड बिलीव मि मुझे कोई एतराज़ नहीं है वैसा करने में ( पारुल के चहेरे की ओर देखते हुए फिर उसके होठों पे नज़र जाती है जिससे वह मुस्कुराहट के साथ बाहर की ओर देखने लगता है । ) ।


पारुल: ( होठों को अपने हाथो से ढकते हुए ) बेशर्म जाहिल इंसान... शयतान के चेले लगते हो!! लोगो को डराने धमकाने के अलावा और कुछ आता भी है या नहीं!।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) तीन तक मैं गिनती करूंगा अगर तुमने खाना खाया तो ठीक नहीं खाया तो मेरे लिए अच्छा है ! । ( वह गिनना शुरू करता है ) एक.....


पारुल: ( खा ले यार खा ले अपना इगो रख साइड में एक और मुसीबत नहीं चाहिए और वैसे भी क्या ही पता ये पागल आदमी क्या करेगा!!? । ) ( निवाला लेते हुए खाना शुरू करती है । ) ... ।


अविनाश: गुड गर्ल... ।


पारुल: ( गुस्से में दांत भिसते हुए खाना खा रही थी ! पर उससे भूख भी लगी थी तो खुशी भी मिल रही थी ... की कम से कम खाना मिला तो सही! ) ( वह चुपचाप खाना खा रही थी। ) ।


अविनाश: ( पारुल को खाना खाते हुए देख रहा था । इडियट बिल्कुल इडियट ही रहेगी ! ) ( पारुल की ओर टीसू पेपर रखते हुए ) क्या... यार ! ? ।


पारुल: ( आंखों से सवाल करते हुए अविनाश की ओर देखती है !? ) ।


अविनाश: मेरी ओर क्या देख रही हो साफ करो यहां ( अपने चेहरे पे उंगली रखते हुए ) खाना लगा हुआ है ।


पारुल: ओह!!। ( टीसू लेते हुए साफ करती है ) ।


अविनाश: सो आर यू डन! ।


पारुल: ( सिर को हां में हिलाते हुए ) ।


अविनाश: ओके धेन! लेट्स गो!! । ( खड़े होते हुए ) ।


पारुल: ( अपनी जगह पर ही बैठी थी ) कहां!? ।


अविनाश: वहीं जहां पर हमे जाना है!।


पारुल: क्या!? ।


अविनाश: ( पारुल की ओर जुकते हुए ) जिस काम के लिए हम मिले है आज!? ।


पारुल: तो... तो... कहीं और जा.. ने की क्या जरूरत है.. .। वह बात तो यहीं भी हो सकती है ! ।
अविनाश: वहीं तो वह बात यहां नहीं हो सकती और तुम अभी भी बच्चों की तरह खाती हो (पारुल के होठ के ऊपर खाना साफ करते हुए !! फिर अंगूठे को अपने मुंह में टेस्ट करते हुए ) ।
पारुल: ( आंखे आश्चर्य से बड़ी हो गई थी ) बेशरम इंसान धक्का देते हुए !! ( खड़ी हो जाती है ! ) ।
अविनाश: ( सीधा खड़े होते हुए ) इसमें बेशरामो वाली क्या बात है मैं तो सिर्फ खाना चख रहा था ...। आई मस्ट सेय काफी टेस्टी है ।
पारुल: ( शर्म के मारे पूरा चेहरा लाल हो चुका था । वह बात को और आगे नहीं बड़ाना चाहती थी । क्योंकि वह जानती थी यह एक नंबर का घटिया इंसान हैं। ) ।

पारुल और अविनाश दोनों ही ... पार्किंग लान मैं पहुंचते है अविनाश गाड़ी की ओर आगे बढ़ता है की... तभी पारुल कार की विपरीत दिशा में आगे बढ़ती है । तो अविनाश उसकी और आगे बढ़ते हुए हाथ पकड़कर कहता है ।

अविनाश: कहां जा रही हो!? कार इस तरफ़ है !।
पारुल: ( अविनाश की ओर फिर उसने पारुल का हाथ पकड़ा था उस ओर देखते हुए ) ( अपना हाथ छुड़ाते हुए ) घर और कहां..!?।
अविनाश: और किसने कहां तुम अभी घर जा सकती हो!? ।
पारुल: इसमें किसीने कहने की क्या जरूरत है ।
अविनाश: बिलकुल है!.. । मैं कह रहा हूं तुम नहीं जा सकती ..! ।
पारुल: वो भला क्यों!? एंड तुम होते कौन हो मुझे रोकने वाले!!?।
अविनाश: ( पारुल के दोनो हाथो को कंधे से पकड़ते हुए गाड़ी की और धक्का देते हुए ) मैं.... वेल तुम अच्छी तरह से जानती हो.. मैं क्या लगता हूं तुम्हारा ... या फिर मुझे जताने की जरूरत है... ।
पारुल: ( अविनाश को धक्का दे रही थी... लेकिन अविनाश पारुल के दोनो हाथ अपने सीने पे जमा देता है। ) छोड़ो मेरे हाथ घटिया आदमी!! और ना ही तुम मेरे कुछ लगते हो ना में तुम्हारी!! ।
अविनाश: तुतुतूतु.... टू बेड प्रिंसेज... बिकोज मेरे लिए तो तुम बहोत कुछ हो... या फिर यूं कहुं ( फिर से उसकी आंखो का रंग बदल जाता है । वह और भी गहरी हो जाती है। मानो जैसे सारा अंधेरा अविनाश की आंखों में समाया हुआ है। ) होने वाली वाईफी.... ।
पारुल: ( पारुल के हाथ जहां थे वहीं पर जम जाते है। वह मानो पत्थर की तरह खड़ी थी । उसकी आंखे पलके जपकाना भूल गई थी। उसके कानो में अभी भी अविनाश के ही शब्द गूंज रहे थे । ) क्या.... क... या... मतलब है तुम्हारा....!? ।
अविनाश: वहीं जो तुमने अभी सुना....।
पारुल: ( आंखों में से आंसू गिरते हुए ) नहीं ये नहीं हो सकता... प्लीज ( हाथ जोड़ते हुए ) ऐसा मत करो.... क्यों मेरी जिंदगी बर्बाद करने पे तुले हो... यार... मैने तुम्हारा बिगाड़ा ही क्या है.... । ( अविनाश का कॉलर पकड़ते हुए ) ।
अविनाश: ( पारुल के हाथ पकड़ते हुए अपने कॉलर से हटाते हुए ) क्योंकि.... तुमने इस खेल की शुरुआत की थी तो... ( तभी अविनाश के गाल पर एक जोरदार तमाचा पड़ता है जिससे उसका चहेरा दूसरी और मुड़ जाता है । )
पारुल: मजाक लग रहा है तुम्हे मेरी जिंदगी क्या कोई खेल है जो तुम कभी भी खिलवाड़ कर सकते हो!! । लिस्टन एंड लिस्टन वेरी केयरफुली... मैं सिर्फ और सिर्फ सेम से शादी करूंगी चाहे जो भी हो .... ।
अविनाश: ( अपना चहेरा पारुल की ओर करते हुए ...उसकी आंखों में गुस्सा साफ साफ झलक रहा था। पारुल के उंगलियों के निशान उसके चहेरे पे छपे हुए थे । उसकी आंखे मानो लावा उगल रही थी । ) हाहाहाहाहा.... आहा हाहाहाहा..... तुम्हे लगता है तुम फैसले लेने के लिए आजाद हो... बिलकुल भी नहीं... । ( पारुल के दोनो हाथो कोहनी से पकड़ते हुए ) नाऊ यू लिस्टन एंड वेरी केयरफुली.... ।
पारुल: ( अविनाश का यह रूप देखकर मानो डर सी गई थी । जैसे यह अविनाश नहीं कोई शयतान उसके सामने खड़ा हो...! अविनाश उससे दर्द पहुंचा रहा था लेकिन पारुल के मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी । ) ।
अविनाश: दो... दिन... दो दिनों के अंदर तुम खुद चलकर आओगी मेरे पास....। बिलीव मि इसके लिए मुझे सारी दुनिया को जलाना पड़े में वह भी करुंगा । और तुम अच्छी तरह जानती हो ये बात... की मैं कभी हारता नहीं... । बि रेडी मिसेज खन्ना बनने के लिए।
पारुल: ( मानो उसका दिमाग सुनन... पड़ गया था । सोचने समझने शक्ति खतम हो गई थी। वह जैसे जम सी गई थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था । किसको दोष दे किसको ना दे उससे समझ नहीं आ रहा था । ) ।

अविनाश पारुल के लिए कार का दरवाजा खोलते हुए दूसरी और चला जाता है । पारुल मानो जैसे बुत सी बन गई थी। जैसे वह कोई रोबोट हो बिना कुछ कहे वह कार में बैठ जाती है । अविनाश कार का स्टार्ट करते हुए कहता है कि वह उससे सीधा घर छोड़ रहा है । अब जब सारी बाते हो गई है तो अब कोई फायदा नहीं है कही और जाने का । पारुल कुछ जवाब नहीं दे पाती । और कार के बहार देखते हुए मानों उसके आंखों से आंसू गंगा जमना की तरह बह रहे थे । अविनाश भी यह जानता था कि वह रो रही है । जिस वजह से उसने कार का हैंडल कुछ ज्यादा ही टाईट पकड़ा था । जब पारुल के घर से थोड़े दुर वह कार रोकता है तो पारुल जैसे ही दरवाजा खोलती है वह पीछे से उसका हाथ थाम लेता है । आई... वह कुछ कहना चाहता था लेकिन मानो उसकी जुबान जम सी गई थी । इसी लिए वह फिर पारुल का हाथ छोड़ देता है । पारुल बिना पीछे मुड़े अपने घर की ओर भागते हुए चली जाती है । अविनाश कार में ही अपना हाथ हैंडल पर पटकते हुए चिल्लाता है। फ***क .... । फिर वही से एयरपोर्ट की ओर निकल जाता है ।