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प्लेटफॉर्म पर खड़ी औरत (भाग 2)

"""दिल्ली,"उदास नज़रो से उसकी तरफ देखते हुए रुंधी सी आवाज में बोली,"शायद आज नही जा पाऊंगी।"
"क्यो?उस युवती की तरफ आश्चर्य से देखते हुए वह बोला,"आप जाने के लिए ही आयी है फिर क्यों नही जा पाएंगी?क्या कोई काम याद आ गया।"
"जी नही,"उसकी आवाज से निराशा झलक रही थी,"देख नही रहे कितनी भीड़ है।मुझ अकेली औरत को कैसे जगह मिलेगी।"
" ओ हो इतनी सी भीड़ देखकर आप घबरा गयीं।आप चिंता मत करे।मैं भी दिल्ली जा रहा हूं।मैं आपको लेकर चलूंगा।"
"शुक्रिया।"
कुछ ही देर बाद स्पीकरों पर उद्धघोसना हुई-दिल्ली जाने वाली ट्रेन कुछ ही देर में प्लेटफॉर्म पर प्रवेध करने वाली है।
"अपना टिकट मुझे दीजिये।"
अपना बैग उसके सुटकेश के पास रखते हुए बोला,"आप यहीं खड़ी रहना।मैं जगह का जुगाड़ करके आता हूँ।"
ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकते ही हलचल मच गई।ट्रेन से लोग चढ़ने और उतरने लगे।रेलपेल शुरू हो गयी थी।वह खड़ी खड़ी इस मारामारी को देखने लगी।वह रोज यात्रा करता रहता था।इसलिये जानता था भीड़ में भी कैसे जगह बनाई जाती है।
"दिल्ली,टिकट के साथ उसने पचास रुपये का नोट कंडक्टर को पकड़ा दिया था।कंडक्टर नोट जेब के हवाले करते हुए बोला," जगह तो नही है।आप एस 1 में सीट नंबर 1 और 2 पर चले जाएं।आपका नाम
"नरेश
और कन्डेक्टर ने चार्ट में मिस्टरर और मिसेज नरेश लिख दिया
एक औरत जिसका वह नाम नही जानता था।उस अपरिचित औरत से कन्डेक्टर ने उसका रिश्ता जोड़ दिया था।
"अब कोई चिंता की बात नही।जगह मिल गयी है।अब आप इसी ट्रेन से दिल्ली जाएंगी"वह उसके पास जाकर बोला।
"थैंक्स,"उसके होठों पर मधुर मुस्कराहट तेर गयी,"आप न होते तो मैं इस ट्रेन से नही जा पाती।"
"चलिए ट्रेन छूटने का समय ही गया।"वह अपना बैग लेकर उसका सूटकेश उठाने के लिए झुका तो वह बोली,"आप रहने दीजिए,"।
"मर्द के होते औरत वजन उठाये यह शोभा नही देता"उसने उसका हाथ हटाते हुए कहा
"आप मुझे।। मै कैसे आपका शुक्रिया अदा करूं?"वह झिझकते हुए बोली।
"फॉर्मेलिटी की ज़रूरत नही है।चलिए वरना ट्रेन निकल जायेगी।
और वे अपनी सीट पर आ बैठे थे।प्लेटफॉर्म चाय,सब्जी पूड़ी की आवाजों से गूंज रहा था।उनके सामने वाली सीट पर एक अधेड़ उम्र का जोड़ा बैठा था।एक ट्राली वाला आइस क्रीम बेचता हुआ आया तो उसने दो कप ले लिए थे।
"लीजिये,"उसने एक कप युवती की तरफ बढ़ाया था।युवती ने उसकी तरफ देखा।फिर कप ले लिया था।
इंजन की सिटी की आवाज के साथ ट्रेन प्लेटफॉर्म से सरकने लगी।वह युवती खिड़की के पास बैठी थी।धीरे धीरे ट्रेन ने गति पकड़ ली।दौड़ती ट्रेन से वह बाहर का दृश्य देख रही थी।बाहर सब पूरी तरह अंधेरा घिर आया था।दौड़ती ट्रेन से आती हवा उसके बालो से खेलने लगी थी।
वह सामने वाली सीट की तरफ देखने लगा।अधेड़ जोड़ा धीरे धीरे खुसर पुसर कर रहा था।आगे वाले केबिन से किसी आदमी के जोर जोर से बोलने की आवाज आ रही थी।वह कोई किस्सा सुना रहा था।कुछ देर बाद किसी औरत के खिलखिलाने की आवाज आयी।अकेले बैठे हुए बोरियत होने लगी तो वह युवती के पास सरकते हुए बोला,"आपका नाम तो मैने पूछा ही नही।"
"माया"
"क्या करती है आप?"
"मैं दिल्ली में एक कम्पनी में पी ए हूँ।'
"मेरा नाम नरेश है।मैं एम आर हूँ।,नरेश ने अपने बारे में उस युवती को बताया था।

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