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प्लेटफार्म पर खड़ी औरत (भाग 1)

वह साहित्य का शौकीन कभी नही रहा।उपन्यास और मैगज़ीन को वह छूता तक नही था।कभी कभी समाचारों के लिए अखबार पर सरसरी नज़र जरूर डाल लेता था।
साहित्य से चाहे उसे एलर्जी हो पर एक साहित्यकार से बड़ा लगाव था।अंग्रेजी के विदेशी साहित्यकार जान किट्स का वह प्रशंसक था।
ब्यूटी इज जॉय फ़ॉर एवर-किट्स के इन शब्दों का वह कायल था।सचमुच उसे सुंदरता से बहुत प्रेम था।पाकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ ईश्वर की अनुपम देन नारी के मद का वह पुजारी था।
औरत से उसे जन्म से ही आकर्षण था।बचपन मे हमउम्र लड़कियों के साथ खेलना उसकी आदत थीं।जब वह बड़ा हुआ तो अपने साथ पढ़ने वाली लड़कियों में रुचि लेने लगा।कॉलेज के दिनों में नव योवनाओ से उसके अफेयर्स थे।वह अपना ज्यादा से ज्यादा समय नवयुवतियों के साथ गुज़ारता।खुद भी शायद उस पर मेहरबान था।कॉलेज की पढ़ाई पूरी करते ही उसे कानपुर की एक दवा कम्पनी में एम आर की नौकरी मिल गयी।उसका काम कम्पनी की बनी दवाइयों का प्रचार करना और आर्डर लेना था।इस काम के लिए उसे दूसरे शहरों में भी जाना पड़ता था।इस तरह काम के सिलसिले में जगह जगह जाने पर वह नये नये लोगो के सम्पर्क में भी आता था।
अब तक वह अनेको औरतो के सम्पर्क में भी आ चुका था।उनसे संपर्क भी जोड़ चुका था।हर दिन उसका किसी नई औरत के साथ गुज़ारता।उसने सेकड़ो औरतो की सुंदरता को देखा ही नही उनके सूंदर शरीर का उपभोग भी किया था।अब। तो उसकी हॉबी हो गयी थी सफर में सूंदर साथी की तलाश करके उसके साथ दोस्ती करना।
वह लखनऊ से दिल्ली जा रहा था।जब वह टिकट लेकर प्लेटफॉर्म पर। आया तो सबसे पहले उसने ट्रेन के इन्तजार में खड़े यात्रियों पर सरसरी नज़र डाली थी।प्लेटफॉर्म पर काफी भीड़ थी।यह पता करना मुश्किल था कितने लोग ट्रेन से जाने वाले थे और कितने उन्हें सी ऑफ करने के लिए आये थे।वह लोगो के बीच मे से रास्ता बनाकर वहाँ खड़ी औरतो को देखता आगे बढ़ने लगा।वह अंतिम छोर पर आया तो उसकी नज़र खम्बे के पास खड़ी युवती पर नज़र पड़ी थी।
इकहरा बदन,गोरा रंग,तराशे नैंन, बिखरे बालो की कुछ लटे उसके गोरे गालो को छू रही थी।।वह उदास,खोयी खोयी नज़रो से इधर उधर देख रही थी।प्लेटफॉर्म पर उस समय जितनी भी औरते मौजूद थी।उनमे से वह सबसे ज्यादा सुंदर थी।उसने अपने सफर को रंगीन बनाने के लिए उससे दोस्ती करने का सोचा।वह उससे कुछ दूरी पर जाकर खड़ा हो गया।
मौसम बेहद सुहाना था।मार्च के महीने का स्वछ खुला आकाश।शाम के छः बज चुके थे।अंधेरे की परतें आकाश से धरती पर उतरना शुरू हो चुकी थी।स्टेशन की लाइट जल चुकी थी।हवा बिल्कुल नही चल रही थी।वह जिस जगह खड़ा था।वहां उस युवती और उसके अलावा कोई नही था।
वह युवती कभी कलाई में बंधी घड़ी में समय देखती तो कभी खोयी खोयी निगाहों से भीड़ की तरफ ऐसे देखने लगती मानो उसे किसी का इन्तजार है। वह उस युवती कक निहारने लगा। दांयी तरफ देखने के बाद ज्यों ही उसने बांयीं तरफ गर्दन घुमाई दोनो की आंखे चार हुई थी।उसे युवती से बात करने का यह उपयुक्त अवसर लगा।और वह तुरुन्त युवती से बोला,"आप कहाँ जा रही है?"

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