नागमणि का अद्भुत रहस्य (भाग - 3) सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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नागमणि का अद्भुत रहस्य (भाग - 3)

हिरवा और कोलवा ने बताया की इस जंगल में कई लोगों ने नागमणि देखें जाने का दावा किया है और संदीपन को उसी नागमणि की तलाश है। इंटरनेशनल मार्किट में उस नागमणि की कीमत तक तय कर चूका था संदीपन, बस बाकी था तो उस नागमणि का हासिल करना।

यह बात सुन कर रंजीत को अंदर ही अंदर बहुत हसी आयी, नागमणि जैसी कोई चीज भी होती है क्या। ये संदीपन का फितूर है और कुछ नहीं, जब कुछ समय में उसे कुछ हासिल नहीं होगा तब उसकी हालत देखने लायक होगी।

पर अकेले में रंजीत में दिमाग़ में यह जरूर आता की क्या सच में नागमणि होती है? आखिर कैसी दिखती है नागमणि? या सिर्फ ये सब एक अफवाह है और लोगों का भ्रम?

रंजीत को तो इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था की भविष्य में उसके साथ क्या होने वाला है।

अब आगे....

रंजीत धीरे धीरे उन सबके साथ घुल मिल गया और कुछ ही दिनों में संदीपन का विश्वास भी जीत लेता है। रंजीत को अब तक उस ठिकाने के बारे में काफ़ी कुछ पता चल चूका होता है। एक दिन संदीपन ने रंजीत को ख़ुद बुला कर उसे हथियारों के सुरक्षित स्थान की जानकारी देता है और उसे उनकी निगरानी का भार सौंप देता है।

अब तो मानो रंजीत के मन की मुराद पूरी हो गयी हो, जिस चीज का रंजीत को इंतजार था वो इतनी जल्दी मिल जायेगा ये सोचा नहीं था। रंजीत अब अपनी योजना बनाने में लग गया, धीरे धीरे उसने उस ठिकाने के चारों तरफ लैंड माइंस बिछा दिया बस जरुरत थीं उन्हें कनेक्ट करने की। अंदर भी उसने कुछ ऐसे घातक टाइम बॉम्ब लगाएं जो अकेले पूरा गाँव उडाने में सक्षम थे। अब उसे इंतज़ार था सही वक़्त का जब वो अपने इस प्लान को अंजाम दें सके।

रंजीत को इसके लिए भी ज्यादा इंतजार नही करना पड़ा, शायद किस्मत हर कदम पर उसका साथ दें रहीं थी। एक शाम संदीपन ने रंजीत को बुलवा भेजा और उसे एक काम सौंपा।

"रंजीत मैंने तुम्हे यहाँ इसलिए बुलाया है क्यूंकि एक बहुत ही विश्वास वाला और उससे भी ज्यादा जरुरी जोखिम भरा काम है जिसको तुम्हे करना है।" संदीपन ने रंजीत से कहा
"जी बताइये क्या काम है वो।" रंजीत ने उत्सुकता से पूछा
"खबर मिली है की तिकोरा गाँव के कुछ दूर गाँव वालों नागमणि जैसी कोई चमक देखी थीं। हो सकता है वो नागमणि ही हो या फिर मिलिट्री फ़ोर्स की कोई चाल, तुम्हे जाके सिर्फ वहाँ पता लगाना है की वहाँ क्या है। उसके बाद आगे क्या करना है हम देख लेंगे।" संदीपन ने गंभीरता से कहा
"ठीक है मैं कल सुबह ही जाकर देखता हूँ।" रंजीत की बात पूरी होने से पहले ही संदीपन ने बीच में रोक दिया
"कल सुबह नहीं आज रात, हिरवा और कोलवा तुम्हारे साथ ही जायेंगे और तुम्हे उस गाँव तक ले जायेंगे।" संदीपन ने सख्त लहज़े में कहा
"जी।" रंजीत ने सिर निचे झुका कर सिर्फ यही एक शब्द कहा
"ठीक है, अंधेरा होते ही तुम तीनों यहाँ से निकल जाना।" संदीपन ने कहा और रंजीत को जाने का इशारा किया

रंजीत वहाँ से चुप चाप बाहर आ गया जहाँ हिरवा और कोलवा पहले से ही उसके इंतजार में खड़े थे।

"कब चलना है?" दोनों ने एक साथ पूछा
"अंधेरा होते ही।" रंजीत ने जवाब दिया, "लेकिन उससे पहले तुम दोनों को कुछ सामान इकठ्ठा करने होगें।" रंजीत ने कहा
"कौन सा सामान।" एक बार फिर दोनों ने एक ही सवाल एक साथ किया
"दो हाथ का पतला बांस, कमल फूल की डंडी, एक मजबूत रस्सी और कुछ दादूर (मेंढक, Frog) ये सामान तुम दोनों जल्दी से इकठ्ठा कर लो मैं तब तक यहाँ सब तैयार कर लेता हूँ।" रंजीत ने कहा

रंजीत जानता था की तालाब और बांस की कोठी दोनों विपरीत दिशाओं में है और अगर दोनों अलग अलग दिशाओं में नहीं गए तो समय से वापस नहीं आ सकते।

"लेकिन इन सब सामानो की क्या जरुरत है?" हिरवा ने सवाल किया
"अभी बताने का समय नहीं है, समय कम है और काम ज्यादा।" रंजीत ने जल्दी दिखाते हुए कहा
"हिरवा तू तालाब की तरफ जा और वहाँ से कमल की डंडी और दादूर लेकर आ, मैं जाकर बांस लेकर आता हूँ।" कोलवा ने कहा
"ठीक है।" हिरवा भी वक़्त की नज़ाकत को समझ चूका था क्यूंकि संदीपन का ख़ुद आदेश था रंजीत के साथ इन दोनों को जाने का तो उसकी सहायता के लिए मना भी नहीं कर सकते थे।

हिरवा और कोलवा दोनों अपने अपने गंत्वय की ओर चल देते है।

रंजीत अपनी चाल कामयाब होते देख मुस्कुरा देता है, दरअसल उसे इन में से किसी भी चीज की जरुरत नहीं थीं। उसने यह चीजें इसलिए मंगाई थीं ताकि दोनों अलग अलग दिशा में चले जाये और रंजीत को इस ठिकाने को उड़ाने का अपना प्लान पूरा करने का समय मिल सके।

इधर रंजीत बाकी बचा काम निपटा देता है, अब बस इंतजार होता है तो उस सही समय का जब सारे टाइम बॉम्ब एक साथ फटने वाले थे और ये पूरा इलाका शमशान में तब्दील हो जाना था।

अंधेरा होने से पहले हिरवा और कोलवा दोनों रंजीत द्वारा बताये सामान लेकर वापस आ जाते है और फिर तीनों यहाँ से तिकोरा गाँव के लिए निकल जाते है। रंजीत ने अपने पास सिर्फ अपना खंजर ही रखा हुआ था क्यूंकि हिरवा और कोलवा के लिए उसे इससे ज्यादा किसी हथियार की जरुरत भी ना थीं।

वहाँ से जाते हुए रंजीत ने एक बार पलट कर उस ठिकाने को देखा, उसकी आँखों में खंडहर में तब्दील ठिकाने का दृश्य स्वप्न की भांति तैर गया। रंजीत को अब इस बात की तसल्ली थी की उसने अपने साथियों और उन मासूम गांव वालों का बदला ले लिया। अभी उस ठिकाने से तकरीबन 2 किलोमीटर दूर ही आएं होंगे की एक के बाद एक भयंकर धमाके की गूंज सुनाई दी।

हिरवा और कोलवा को समझते देर ना लगी की ये धमाके उनके ठिकाने पर ही हुए है, जब तक वो दोनों सम्भलते रंजीत ने खंजर निकाला और बिजली की चपलता से उन दोनों को गंभीर रूप से घायल कर दिया।

दोनों ज़मीन पर पड़े कराह रहे थे और रंजीत हाथ में खंजर लिए खड़ा मुस्कुरा रहा था। इस समय हिरवा और कोलवा को रंजीत किसी काल के सामान प्रतीत हो रहा था।

"आह्ह.. क्यूँ किया तुमने ऐसा?" हिरवा ने कराहती हुई आवाज़ में सवाल किया
"बदला।" रंजीत ने मुस्कान और चौड़ी करते हुए कहा
"मुझे तुझपर कभी भी विश्वास नहीं था, लेकिन मैं अपने भाई कोलवा की वजह से धोखा खा गया।" हिरवा ने कहकर गर्दन कोलवा को तरफ घुमाई लेकिन कोलवा बिलकुल निढाल हो चूका था शायद उसने शरीर पहले ही छोड़ दिया।
"कोलवा...." हिरवा के मुँह से अनायास ही चीख़ निकल गयी, "मुझे मौत दे दे रंजीत क्यूंकि अगर मैं बच गया तो फिर तू.."

हिरवा के अल्फाज़ भी ना पूरे होने दिए रंजीत ने उससे पहले ही उसके गले पर अपना धारदार खंजर फेर चूका था।
हिरवा के गले से खून की धार बह चली थी और इसे देख रंजीत के दिल को और ठंडक पहुँची।
अब तक संदीपन के ठिकाने से धमाकों का शोर बंद हो चूका था, रंजीत ने यह मान लिया था कि उसका दुश्मन पूरी तरह नष्ट हो चूका है और उसने अपना बदला पूरा कर लिया है।

सही भी था, इतने धमाकों के बाद वहाँ सिर्फ लाश के चीथड़े नोंचने जंगली जानवर ही बच सकते है जो की नक्सलियों की चित्कार सुन कर वहाँ इकठ्ठा हो गए होंगे।

इस मुसीबत से पार पाने के बाद रंजीत आगे चल पड़ा लेकिन इस घने और सुनसान जंगल में वो भी अँधेरी रात में कोई रास्ता सूझना बड़ा कठिन काम था। रंजीत ने उसी तरफ बढ़ना जारी रखा जिस ओर के लिए ये तीनों बढे थे यानि तिकोरा गाँव की ओर।

रंजीत को नहीं पाता था वहाँ क्या था, सच में वहाँ कुछ ऐसा देखा गया था जैसा संदीपन ने बताया था? अगर वहाँ मणि जैसा कुछ ना भी हो और मिलिट्री फ़ोर्स भी हो तो भी रंजीत को फायदा ही होना था। यह सोच कर रंजीत तिकोरा गाँव की तरफ ही बढ़ता रहा।

रंजीत की यह सोच बिलकुल सही थी की उसने दुश्मनों को पूरी तरह नष्ट कर दिया है, लेकिन उसके साथ आगे क्या होना है उसे जरा भी भान नहीं था। सच भी था, आगे जो होने वाला था उनसे रंजीत की कोई दुश्मनी नहीं थी लेकिन फिर भी रंजीत ने ख़ुद उनसे दुश्मनी मोल ले ली।


To be continued....


-"अदम्य"❤