बरखा बहार आई - (अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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बरखा बहार आई - (अन्तिम भाग)

मैं ये सोच ही रही थी कि मेरे पति ने मुझे झापड़ क्यों मारा? तभी मेरे पति ने मेरे बाल पकडे़ और मुझे खड़ा करके पूछा....
तूने माँ को क्यों बताया कि रात मैं घर नहीं लौटा।
उन्होंने पूछा था तो मैंने हाँ में सिर हिलाकर बता दिया,मैने कहा ।।
तो उन्होंने मुझे जोर का धक्का दिया तो एक बार फिर से मैं जमीन पर गिर पड़ी और वें फिर से बाहर चले गए,तो ये थी मेरे पति वीरेन्द्र से मेरी पहली मुलाकात।।
फिर ये सिलसिला ऐसे ही लगातार जारी रहने लगा,वें रात रातभर घर से गायब रहते और कभी लौटते तो नशे में बिल्कुल धुत्त,तो कभी मारते तो कभी पीटते,फिर कभी कभी वो बिना भावों का शुष्क सा मिलन ,जो मुझे अंदर तक तोड़ देता था,मेरी आत्मा कराह उठती थी,मैं मन ही मन चीखती चिल्लाती,लेकिन मेरी पुकार सुनने कोई ना आता,मैं पल मर मर रही थी,जीती भी तो किसके लिए ऐसा कौन था जो मुझे समझता।।
कभी कभी ससुर जी जरूर मेरा दुख भाँप जातें,मेरे चेहरे पर लगें चोट के निशान देखकर वो केवल शर्मिंदगी से अपना चेहरा छुपा लेते कि शायद ये कहना चाहते हो कि मुझे माँफ कर दे बेटा! मैने ऐसी संस्कारहीन औलाद पैदा की है।।
कभी कभी मुझे मायके भी छोड़ आया जाता,मेरा वहाँ भी दिल ना लगता था,माँ कभी ये ना पूछती कि बेटी तू अपने ससुराल में खुश है या नहीं,पापा को तो मैं हमेशा खटकती थी कुरूप जो थी,मेरी पढ़ाई भी छूट गई,मैं बारहवीं भी पास ना कर पाई क्योंकि मेरे पति नहीं चाहते कि मैं आगें पढ़ू इसलिए बारहवीं के इम्तिहान ना देने दिए।।
जिन्दगी यूँ ही चल रही थी कि मुझे पता चला कि मैं माँ बनने वाली हूँ,हर औरत को सुनकर ये खुशी होती है लेकिन मैं दुखी थी कि जिस होने वाले बच्चे का बाप उसकी माँ की कद्र ना करता हो तो उसकी कैसे करेगा?
ससुर ने जी खूब दौलत कमाई थी,गाँव में खूब जमीन जायदाद थी इकलौता बेटा माँ के सानिध्य में रहकर बिगड़ गया था,आवारा और गुण्डे लोगों के साथ उसकी दोस्ती थी,माँ का साथ पाकर बेटा बिगड़ गया था फिर भी माँ को अपने लाड़ले पर बहुत गर्व था।।
गर्भ के दो ही महीने हुए थे कि मेरी तबियत खराब रहने लगी,डाक्टर को दिखाया तो बोली कि आपको आराम की जरूरत है ,कम उम्र में माँ बनने पर ऐसा ही होता है,घर के कोई भी काम करना आपकी सेहद को नुकसान पहुँचा सकता हैं और बच्चे को भी ,तो ये सुनकर सासू माँ ने एक पन्द्रह सोलह साल की लड़की को काम पर रख लिया।।
मेरी सेहद मे कोई सुधार नहीं हो रहा था क्योंकि शायद मैं ही नहीं चाहती थी कि मैं ठीक हो जाऊँ,मेरा मन छलनी था,मेरी मनोदशा बिगड़ी थी ,मैं कैसे ठीक हो सकती थी भला,डाक्टर के मना करने पर भी मेरा पति मेरे करीब आता था वो भी मेरी मर्जी के बिना,सो मैं सोचती थी कि ऐसी जिन्दगी से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।।
फिर एक दिन शायद मेरी हताशा और निराशा देखकर मेरे गर्भ मे पल रहा जीव स्वतः ही मुझे छोड़कर अपनी दुनिया में वापस लौट गया,मैने राहत की साँस ली,कि चलो अच्छा हुआ उसे मुक्ति मिली,मैं असहाय माँ कैसे उसकी रक्षा कर पाती शायद उसने भी यही सोचा होगा इसलिए चला गया,मन में सोचा मुझे भी संग ले जाता तो कितना अच्छा होता तेरी माँ को भी मुक्ति मिल जाती तेरी तरह, लेकिन तू भी और लोंगों की तरह निर्मोही निकला रे! तू भी नहीं समझा अपनी माँ का दर्द,अकेले ही चला गया।।
जब मेरी तबियत में सुधार ना हुआ तो सासू माँ ने चुक्खो को काम से नहीं हटाया,चुक्खो बेचारी बहुत अच्छी थी,पन्द्रह सोलह साल की थी लेकिन काम बहुत करती थी,सासू माँ उसे दिनभर काम पर लगाए रहतीं थीं,देखने में सुन्दर भी थी ,उसकी भाषा में सुन्दर को चोखी कहते थे इसलिए उसके सुन्दर होने पर उसका ये नाम पड़ गया,चुक्खो।।
वो मेरा बहुत ख्याल रखती और मुझसे बातें करके मेरा मन बहलाती रहती,उससे बात करके मुझे भी बहुत अच्छा लगता था,उसकी हँसी दिनभर पूरे घर में गूँजती रहती थी।।
लेकिन मेरी सासू माँ उसे बात बात पर टोकतीं और कहतीं कि ....
नौकरानी है औकात में रहा कर ,ये तेरा हँसना बोलना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है।।
सासू माँ की बात सुनकर वो बेचारी चुप हो जाती,लेकिन उनके जाने के बाद फिर वैसी की वैसी हो जाती थी और हँसने लगती बोलने लगती,वो रहती थी घर में तो मैं भी खुश हो जाया करती थी ,मुझे उसके रहने पर अच्छा लगता था,मैं उसके आने का रोज ही इन्तजार करती।।
मेरे पति वीरेन्द्र जब कभी घर में होते तो बेचारी चुक्खो मेरे पास ही बैठी रहती,घर के और काम ना करती,कहती मुझे साहब से डर लगता है,उनकी निगाहें अच्छी नहीं,मैं उसकी बात को अनदेखा कर देती,लेकिन मैं ये भूल जाती थी कि मेरा पति एक नम्बर का आवारा किस्म का इन्सान है,उसकी संगत भी तो अच्छी नहीं थी,वो आएँ दिन दूसरों औरतों के पास भी जाता रहता था।।
मुझे तो कभी कभी अपने माँ-बाप की पसंद पर अफसोस होता कि कैसे उम्रदराज और बदचलन इन्सान के साथ उन्होंने मुझे बाँध दिया,मैं सुन्दर नहीं थी तो क्या ये सजा चुनी थी उन्होंने मेरे लिए? इतना ही अखर रही थी तो किसी कुएंँ में धकेल देते या जहर देकर मार देते लेकिन ऐसे जल्लाद के साथ उन्होंने मुझे ब्याह दिया।।
फिर एक दिन मेरे पति वीरेन्द्र ने चुक्खो को अकेला पाकर उसे बाँहों में जकड़ लिया,ये सब मेरी सासू माँ ने देखा तो उन्होंने वीरेन्द्र को मना किया,माँ की बात वीरेन्द्र ने मान ली और चुक्खो से कहा कि मुझे ये बात कभी भी पता ना चलें,लेकिन चुक्खो ने मुझे सब कुछ रोते हुए बताया और मैं मूरख चुपचाप उस अन्याय को सुनकर चुप्पी लगा गई,ऐसी ओछी हरकत के लिए मुझे वीरेन्द्र को लताड़ना चाहिए था,लेकिन मैने ऐसा कुछ नहीं किया।।
एक दोपहर मैं सोई हुई थी,सास-ससुर कहीं गए हुए थे,चुक्खो अपना काम कर रही थी,तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो चुक्खो ने मुझे बिना जगाए चुपचाप दरवाजा खोल दिया,वीरेन्द्र कहीं से लौटकर आया था और नशे में था,चुक्खो को देखते ही उसकी लार टपकने लगी,उसने चुक्खो से कहा....
एक गिलास ठण्डा पानी लेकर बैठक वाले कमरें में आओ।।
चुक्खो ने कहा...
मैं भाभी को जगा देती हूँ,वो सो रही हैं।।
उसे जगाने की क्या जरूरत है? तू एक गिलास पानी मुझे नहीं दे सकती,वीरेन्द्र बोला।।
चुक्खो बोली,लाती हूँ।।
और जैसे ही चुक्खो पानी लेकर पहुँची वीरेन्द्र ने झट से उसका मुँह बंद करके दरवाजा बंद कर लिया और उसके साथ जोर जबरदस्ती शुरू कर दी,मुझे बिल्कुल कुछ भी पता नहीं चला,वो चुक्खो के साथ कुकृत्य करता रहा और मैं सोती रही,जब मैं जागी तो बहुत देर हो चुकी थी।।
मुझे कुछ आवाज आई तो मैं उस तरफ गई ,बैठक की खिड़की से देखा तो चुक्खो अस्त-ब्यस्त पड़ी थी और उसके मुँह पर कपड़ा बँधा था जिससे वो चीख नहीं पा रही थी,लेकिन उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रह रहे थे,वीरेन्द्र ने मुझे नहीं देखा कि मैने खिड़की से सब देख लिया है,मैं देखते ही सब समझ गई और रसोई की ओर भागकर गई,तेज धार वाला हँसिया उठाया और जैसे ही वीरेन्द्र ने दरवाजा खोला तो उस हँसिए से मैने उसकी गरदन पर वार कर दिया,गरदन तो नहीं कटी लेकिन बची भी नहीं।।
वीरेन्द्र की गरदन से खून की पिचकारी बह चली,मैने डाक्टर को नहीं बुलाया उसे वहीं तड़पने दिया,चुक्खो से कहा कि तू जल्दी से घर भाग जा,वो चली गई और इधर वीरेन्द्र ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया,सास-ससुर आएं,बेटे की हालत देखकर माँ चीख पड़ी,मुझसे पूछा ये कैसे हुआ?
मैने सारी सच्चाई बता दी,सास ने फौरन पुलिस बुलाई और मुझे जेल जाना पड़ा,दूसरे दिन ससुर जी मुझसे मिलने जेल आए और खबर दी कि रात को चुक्खो ने फाँसी लगा ली,मैं ये सुनकर वहीं धम्म से जमीन पर बैठ गई,बहुत कष्ट हुआ मुझे ये सुनकर,फिर ससुर जी बोले...
तू घबरा मत बेटी! मैं तेरे साथ हूँ,तूने कुछ भी गलत नहीं किया,एक पापी को उसके पाप की सजा दी है,उनकी बातों से मुझे तसल्ली मिली।।
लेकिन सासू माँ मुझसे मिलने कभी जेल नहीं आईं,मैं उनके इकलौते बेटे की कातिल जो थी।।
माँ पापा भी मुझे जेल में मिलने आएं,वैसे ऐसा कह सकते हैं कि मुझे जलील करने आएं और माँ बोलीं.....
कलंकनी! तूने हमारे खानदान में जन्म लेकर हमारे खानदान पर दाग लगा दिया,अपने सुहाग की ही हत्या कर दी,तुझे शरम नहीं आई ऐसा करते हुए,तेरे हाथ नहीं काँपें,कलेजा नहीं फटा,हम तेरा मुँह भी नहीं देखना चाहते,आज के बाद तू हमारे लिए मर गई,अपनी मनहूस सूरत फिर कभी मत दिखाना हमें।।
और इतना कहकर दोनों चले गए,वैसे मुझे उनसे आशा भी यही थी,जब अच्छा कर रही थी,तब भी उनके लिए बुरी थी और अब तो बुरा किया था तो उनके लिए अच्छी कैसे हो सकती थी? अब पाँच साल होने को आएं,जेल में बंद हूँ,कोई भी वकील मेरा केस लड़ने को तैयार नहीं।।
तो लीला जीजी! अब सुन ली मेरी राम कहानी,नयनतारा बोली।।
हाँ! सुन ली,बहुत ही दर्द झेला है तूने,एक बात तो बता तेरी शादी को कितने साल हुए? लीला ने पूछा।।
यही कोई हो गए होगें लगभग सात साल से ऊपर,नयनतारा बोली।।
तो अभी तेरी उम्र क्या होगी? लीला ने पूछा।।
साढ़े सत्रह में शादी हो गई थी,जोड़ा जाए तो मेरी उम्र यही कोई चौबीस- पच्चीस ही होगी,नयनतारा बोली।।
मतलब तूने इतनी सी उम्र में इतने दुख झेल लिए,लीला बोली।।
बस,जीजी! जिन्दगी है,ऐसे ही चलती रहती है,हमारे अनुसार थोड़े ही चलती हैं,नयनतारा बोली।।
तभी एक लेडी हवलदार उनकी कोठरी में आकर बोली...
तुम मे से नयनतारा कौन हैं? जेलर साहब केस के सिलसिले में कुछ बात करना चाहते हैं।।
क्या होगा बात करके जब कोई वकील मेरा केस लेने को तैयार नहीं? नयनतारा बोली।।
तब भी मिल लो उनसे ,उन्होंने कहा है,लेडी हवलदार बोली....
ठीक है चलो और इतना कहकर नयनतारा जेलर साहब के पास पहुँची....
नयनतारा! तुम्हारे लिए खुशखबरी है,जेलर साहब बोले।।
वो क्या है साहब? नयनतारा ने पूछा।।
तुम्हारा केस मेरे एक जान-पहचान के वकील लेने को तैयार हो गए हैं,बाहर बैठे हैं,कहो तो बुलाऊँ,जेलर साहब बोले।।
मेरा केस बहुत पेचीदा है साहब! वो भी सुन लेंगें तो इनकार कर देंगें,नयनतारा बोली।।
एक बार मिलने में क्या हर्ज है? देखो तो ऐसी बारिश में भी तुमसे मिलने आ गए,जेलर साहब बोले।।
तो फिर अन्दर बुला लीजिए,नयनतारा बोली।।
और जेलर साहब ने आवाज़ दी.....
वकील साहब! ज़रा अन्दर तशरीफ़ ले आइए।।
वकील साहब! जैसे ही भीतर दाखिल हुए तो उन्होंने नयनतारा को देखा तो हैरान रह गए और बोल पड़े...
नयनतारा! तुम वो भी इतने दिनों बाद।।
नयनतारा भी हैरान थी अपने पुराने दोस्त आशीष को देखकर।।
दोनों ने एकदूसरे को देखा तो दोनों की आँखें भर आईं,मौके की नजाकत को देखते हुए जेलर साहब बोले....
लगता है आप लोगों को अकेले में बात करने की जरुरत है और उन्होंने कुछ देर के लिए दोनों को अकेला छोड़ दिया।।
दोनों ने जीभर के बातें की नयनतारा ने अपनी कहानी आशीष को सुनाई और आशीष बहुत दुखी हुआ उसकी कहानी सुनकर फिर नयनतारा ने पूछा.....
और तुम्हारी जिन्दगी में क्या चल रहा है?शादी की तुमने।।
बस,यही वकालत चल रही है और शादी तो वैसे भी मैं जिन्दगी भर करने वाला नहीं था,आशीष बोला।।
लेकिन क्यों? शादी क्यों नहीं करने वाले थे? नयनतारा ने पूछा।।
क्योंकि कोई थी जिसे मैं पसंद करता था लेकिन उसके मेरी जिन्दगी से चले जाने के बाद मैने शादी ना करने का फैसला लिया,आशीष बोला।।
कौन थी वो,नयनतारा ने पूछा।।
तुम्हें तो सब मालूम है,ऐसा ही वो बारिश का दिन था जब वो मुझे हमेशा के लिए छोड़कर चली गई थी,आशीष बोला।।
तुम सच में मुझे चाहने लगे थे,नयनतारा ने पूछा।।
मेरी आँखों में तो देखती कभी,आशीष बोला।।
लेकिन अब तो सबकुछ बिगड़ गया है,मैं तुम्हारे काबिल नहीं रही,एक खूनी हूँ,अब तो तुम मुझे अपना दोस्त बनाना भी पसंद नहीं करोगे,नयनतारा बोली।।
कुछ नहीं बिगड़ा है नयनतारा ! हम अब भी एक हो सकते हैं,मुझे तुम्हारी पिछली जिन्दगी से कोई लेना देना नहीं है,मैं अभी भी तुम्हें अपनाने को तैयार हूँ,आशीष बोला।।
लेकिन ऐसा कैसे होगा? मैं जेल में हूँ,नयनतारा बोली।।
मैं तुम्हें छुड़ाने की पुरजोर कोशिश करूँगा और वैसे भी तुम निर्दोष हो और तुम्हारी कहानी सुनने के बाद मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारी जगह कोई और भी संवेदनशील इंसान होता तो ऐसा ही करता,आशीष बोला।।
ऐसे ही दोनों के बीच बातचीत चलती रही और दोनों एक निष्कर्ष पर भी पहुँच गए।।
आशीष ने नयनतारा का केस लड़ा ,नयनतारा के ससुर ने नयनतारा के पक्ष में गवाही दी,जिससे नयनतारा को केवल दो महीनों की ही सजा हुई और कुछ दिनों बाद वो जेल से बाइज्जत बरी हो गई,लीला भी खुश थी नयनतारा की रिहाई से,वो जेल से बाहर निकली तो आशीष उसका इन्तजार कर रहा था,तभी उस दिन की तरह तेज बारिश शुरू हो गई और आज इतने दिनों बाद फिर आशीष ने नयनतारा के माथे को चूमा,दोनों आज फिर मिल गए थे आज फिर से नयनतारा की जिन्दगी में बरखा बहार आई थी।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....