बात कही साल पुरानी है,जब मेरी नई नौकरी नागपुर में लगी थी।में एक सेल्समैन था और मुझे बहुत दूर Tour करना पड़ता था। मार्च महीने के दिन थे,दोपहर का वक्त था और तेज गर्मी से मेरा बुरा हाल था और बुरा हो इन इलेक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट वालों का।कामबख्तो ने उसी दिन बिजली काट रखी थी।एक तो बड़ी मुश्किल से एक छुट्टी मिलती हैं और इनको इसी दिन पावरकट करनी थी मेरा दिमाग बहुत खराब था।
तभी अचानक मेरे फोन की घंटी बजी मेरा दिमाग ओर खराब हो गयाा। एक तो उमस से भरी गर्म हवााएं खिड़की से आकर हालत खराब किए जा रही थी और ऊपर से ढेर सारा काम।ऊपर से मार्च महीने का टाारगेट भी अभी incomplete था।टारगेट चेसिंग करते हुए एक सेल्समैन की जिंदगी कितनी बेकार हो सकती है यह तो कोई मुझसे आकर पूछेे।आज उन सभी को भी
गालियां देने कि मन कर रहा था जिन्होंने मुझे MBA में Marketing रखने को कहा था, Marketing तो तब भी ठीक था पर सेल्समैन की जोब ही क्यूं ली ओर किसी भी Department Choose कर लिया होता। खैर कुछ भी हो Traveling करना मुझे बहुत पसंद था इसीलिए एक वजह यह भी थी कि मेने सेल्समैन की जोब ली थी।काम के साथ साथ नयी जगह के बारे में जानने और घूमने का मजा ही अलग है।
मै उन सब बातों से बाहर आया। फोन की घंटी अभी भी लगातार बज रही थी,मुझे पक्का यकीन था कि यह जरूर बॉस काा फोन होगा मुझेेेे जरूर कोई ना कोई काम दे रहा होगाा।
खेर बड़े ही अनमने मन से फोन उठाया और कहा 'हेलो राजेश फ्रॉम सेफ्टी प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड।'
उधर सेेे बॉस की आवाज आई 'राजेश तुम आज के आज ही पठालगांव में जाकर वहा के स्टील प्लांट में परचेज मेेेेनेजर से मिलो, मेंं फैक्स भेज रहा हूं सारी डिटेल्स उसीी मेंं हैं।
मैंने मिमियाते हुए कहाा, सर बहुत काम हैै अगले हफ्ते चला जाऊंं?
बॉस नेेेे बहुत प्यार से कहा,नो डियर अगले हफ्ते कोई और काम दूंगा go get it done and report me soon।
फोन कट गया और मेरा दिमाग ओर खराब हो गया
कुछ दोस्तों को फोन किया तो पता चला कि पठालगांव जाने का एक ही रास्ता है और वह रास्ता है।ट्रेन से मुझे रायपुर के पास दूर्ग जाना होगा और दुर्ग से एक पैसेंजर ट्रेन आती है,जो रात को पठालगांव पहुंचाती है।
मैं सोच ही रहा था कि तभी फैक्स आ गया उसमें उस स्टील कंपनी की सारी डिटेल्स थी और उस परचेज मेनेजर की भी डिटेल्स दी गई थी। साथ ही उस कंपनी की जरूरत की इंस्ट्रक्शन की डिटेल्स भी दी गई थी पढ़कर लगा कि यह तो हंड्रेड परसेंट सेल है। इससे मेरा ईस month काटारगेट पूरा हो जाता। ख़ुशी की बात थी।
मैंने जाने का फैसला कर लिया और समय देखा तो दोपहर के 12:00 बजे थे,रेलवे स्टेशन में फोन करके ट्रेंस की बारे में पता किया तो एक ट्रेन थोड़ी ही देर बाद थी,जो मुझे दुर्ग शाम 5:00 बजे तक पहुंचा दे सकती थी,फिर वहां से शाम को 7:00 बजे दूसरी गाड़ी। मतलब मुझे अभी ही निकलना होगा यह सोचकर सारी पैकिंग कर ली और मैं स्टेशन निकल पड़ा।
स्टेशन जाकर देखा तो इतनी भीड़ थी कि पूछो मत।लगता था कि सभी को बस कहीं ना कहीं हमेशा जाना होता है। ऐसी पब्लिक प्लेस में ही आकर पता चलता है कि हमारी जनसंख्या कितनी बढ़ती जा रही है। खैर मेरी ट्रेन जो नागपुर से दुर्ग जा रही थी,वह प्लेटफार्म पर आ चुकी थी। टिकट लेकर मैं बैठ गया थोड़ी देर बाद टिकट कलेक्टर बाबू आए तो उन्हें खुशामद करके एक रिजर्वेशन की बर्थ ले ली और उस पर पसर कर सो गया। यह सोच कर कि क्या पता रात को नींद मिले या नहीं?थोड़ी देर बाद ही किसी ने उठाया कि बाबू जी आपका स्टेशन आ गया।बाहर देखा तो दुर्ग स्टेशन का बोर्ड लगा था।
मैं बाहर आया और थोड़ी पूछताछ की तो पता चला कि दुर्ग से पठालगांव जानेवाली गाड़ी शाम 7:00 बजे निकलेगी। मैंने घड़ी देखी करीब डेढ़ घंटे का समय था। मैंने सोचा कि पता नहीं रात को वहां पठालगाव में मुझे कुछ खाने को मिलेगा या नहीं? अभी ही कुछ खा पी लेता हूं। स्टेशन के बाहर एक ढाबा था उसी में बैठकर दाल रोटी खा ली और एक गिलास लस्सी पी ली। पेट भर गया और रात के लिए टिफिन बनवा लिया।साथ ही एक हम थम्सअप की बोतल भी ले ली।उसे आधा पी लिया और उसने वाईन मिला दी।थम्सअप में वाईन मिलाकर सफर करना हर एक सेल्समैन की निशानी है,यह कॉकटेल सेल्समैन के पास हमेशा ही रहती है,अब मैं अगली यात्रा के लिए तैयार था।
पठालगांव की टिकट लेकर प्लेटफार्म पर जाकर बैठा।ट्रेन को आने में समय था, सोचा एक किताब खरीद लूं। मुझे कहानीयां पढ़ने का शोख था और वैसे भी पूरा टाइम में घुसे रहने से अच्छा है कि किताब पढ़ ली जाए। वहां बुक स्टॉल पर देखा तो नई वाली मनोहर कहानियां थी और ब्रॉम स्टोकर की काउंट डाकुला थी।दोनों किताबें ले ली, उस वक्त में यह दोनों किताबे बड़ी चलती थी। ड्रैकुला मैंने पढ़ी नहीं थी पर यारों ने बड़ी तारीफ की थी,इसीलिए उसे भी ले लिया और मनोहर कहानियां उस वक्त हर एक सेल्समैन के लिए बड़ा टाइमपास किया करती थी।
थोड़ी ही देर में हर स्टेशन की तरह स्टेशन पर भी लोगों की भीड़ जमने लगी चारों तरफ खाने-पीने के ठेले और लोगों की भीड़,फिर धीरे-धीरे चलती हुई पैसेंजर ट्रेन आई।जिसको जहां जगह मिली वहां सवार हो गया। मैं भी एक डिब्बे में चढ़ गया और खिड़कीवाली जगह ले ली। पूरी ट्रेन लोगों खाने पीने की चीजों और अलग-अलग आवाजों से भर गई।
ट्रेन शुरू हुई और हर जगह रुकती हुई अपने मुकाम पर चल पड़ी। मैंने अपनी थम्सअप की बोतल निकाल कर उसे धीरे-धीरे पीना शुरू किया और अपनी मनोहर कहानियां पढ़ने के लिए निकाली। आज की मनोहर कहानियां का विषय भूत प्रेत के बारे में था।मुझे ऐसी फिल्में और कहानियां बहुत पसंद आती थी। थोड़ी कहानियां पढ़ कर देखा तो रात हो चली थी, ट्रेन पता नहीं कहां रुकी थी पर बहुत मुसाफिरों को नींद के झोंके आ रहे थे। कुछ तो सो ही गए थे तो कुछ बातों में मशगूल थे।
मैंने घड़ी देखी तो रात के 10:00 बज रहे थे। मैंने बैग में से अपना टिफिन निकाला और खाना शुरू किया। खाने के बाद थम्सअप निकाली, साथ ही मैं अपनी किताब ड्रैकुला भी निकाली और उसे पढ़ना शुरू किया। यह एक जबरदस्त नोवेल। था मैंने घड़ी देखी तो रात के 1:30 बज रहे थे।मुसाफिरों से पता चला कि ट्रेन लेट है इसीलिए 2:00 बजे पहुंचाएगी। मैं पहली बार पठालगांव जा रहा था। ईस गांव बारे में मैंने कभी सुना भी नहीं था और गांव का नाम भी अजीब था, मुझे लगा एसी जगह जिसका नाम शायद ही किसी ने सुना हो ऐसी जगह में भी कोई कंपनी अपनी Branch खोल सकती है। कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था, पर मैंने गौर नहीं किया।
करीब 2:15 पर मेरा स्टेशन आया,मैं उतरा तो अजीब सा सन्नाटा था।कुछ लोग मेरे साथ उतरे और बाहर की ओर चल दिए। मैंने सोचा अब किसी होटल में जाकर रात काट लेता हूं और सुबह स्टील प्लांट जाकर काम पूरा कर लूंगा।स्टेशन पर एक टीटी दिखा उससे पूछा कि कोई होटल होगा आसपास? उसने हंसते हुए कहा कि साहब यह छोटी सी जगह है, यहां कौन सा होटल मिलेगा,आप तो वही वेटिंग रूम में जाकर रात गुजार लो और कल जहां जाना हो वहां चले जाना।
मैंने सोचा वेटिंग रूम में रात को जागने से बेहतर है कि मैं एक कोशिश कर ही लो होटल ढूंढने की, रात भर नींद आ जाए तो दूसरे दिन का काम कुछ बेहतर होता है।मैं स्टेशन के बाहर पहुंचा देखा तो मरघट जैसा सन्नाटा था। कुछ दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी।दिन में गर्मी का मौसम अब कुछ सर्ज लग रहा था,कुछ तेज हवाएं भी रह रह कर बह रही थी। कहीं कोई नहीं दिख रहा था, उसने अंधेरे में एक छोटा सा लाइट था लैंप पोस्ट का, जो एक बीमार सी पीली रोशनी बिखेर रहा था।
मैंने कुछ दूर देखने की कोशिश की। तभी थोड़ी दूर पर मुझे एक तांगा वाला नजर आया। मैं दौड़ कर उसके पास पहुंचा।वह एक बहुत ही पुराना तांगा था, उसके साथ एक मरियल सा घोडा बंधा हुआ था उसके साथ, जो कि यह भी नहीं रहा था और तांगा वाला पूरी तरह से कंबल में बंद होकर मूर्ति की तरह बैठा हुआ था। मुझे उस पूरे माहौल में ड्रैकुला की याद आ गई, उसने भी कहानी की नायिका को लेने के लिए कुछ ऐसा ही तांगा भेजा था। एक सिरहन सी दौड़ गई मेरे शरीर में।
मैंने हिम्मत करके उस तांगे वाले से पूछा भैया आस पास कोई होटल हो तो वहां मुझे पहुंचा दोगे क्या? तांगे वाले ने अपने चेहरे पर से कंबल हटाया। वह एक अजीब सा चेहरा था, या तो कहूं चेहरा पूरा सफेद था।उसकी दाढ़ी बहुत ही अजीब थी, उसकी दाढ़ी और चेहरे में फर्क करना मुश्किल था क्योंकि दोनों इतने सफेद थे कि घुल-मिल जाते थे। उसका ऐसा चेहरा देखकर मैं असहज हो उठा। उसे देखकर मुझे एक अजीब सी गंध आने लगी,मुझे पता नहीं वो गंद कहां की थी, पर वह कुछ जानी पहचानी सी गंध थी। उसने एक धीमी आवाज में कहा ।यहां कोई होटल अभी नहीं मिलेगा बाबूजी आप वेटिंग रूम में ही आराम कर लो, कल आप यही तैयार हो जाना,मैं आपको स्टील प्लांट छोड़ दूंगा। मैंने एकदम चकित होकर पूछा तुम्हें कैसे पता कि मैं स्टील प्लांट जाऊंगा? उसने अजीब सी हंसी हंसते हुए कहा यहां सब प्लांट जाने के लिए ही हाथ है। उसकी हंसी उस सूमसान रात में बियाबान जगह में बहुत भयानक सी लगी। मैंने कहा ठीक है यही रुकता हूं। मेरी बात सुनकर उसकी आंखों में चमक सी आ गई।मैं पलट कर स्टेशन की तरफ चल पड़ा, मैंने उस डरावने माहौल में अपने मन को समझाया राजेश यह सब यहां के माहौल और तेरी किताबों का असर है शांत रहे।मैं हमेशा एक सेल्समैन की हैसियत से सफर करता हूं लेकिन उस रात का सफर कुछ अलग ही था.....
मैंने स्टेशन के अंदर जाते हुए पीछे पलट कर देखा तो अब वह तांगा वाला कहीं नजर नहीं आ रहा था।मुझे एक बहुत बड़ा झटका लगा, मैंने अपने मन में ही कहा कमाल है मुझे उसकी जाने की कोई आवाज सुनाई भी नहीं दी और ना ही घोड़े के कोई टाप। मैंने सोचा शायद थम्सअप और वाईन कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है।
मैंने धीरे-धीरे स्टेशन पर गौर किया, पर पूरा का पूरा ही स्टेशन अब सूमसान था।दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था।प्लेटफार्म के अंतिम छोर पर एक बोर्ड लगा था और उस पर लिखा था वेटिंग रूम।मैं उस रूम की तरफ गया। वह एक गंदा कमरा था,अंदर एक पीला सा बल्ब था जो कभी कभी चालू बंद हो रहा था। उस रूम में एक बूढ़ा-बूढ़ी बैठे थे और साथ में दो बच्चे थे,उन दो बच्चों की उम्र देखने में मुझसे कम लग रही थी। मुझे आया देखकर बूढ़े ने मेरी तरफ देखा और उसके दोनों बच्चों और बुड्ढे ने बूढ़ी की तरफ देखा।
उस बूढ़े ने बूढ़ी से धीमी आवाज में कुछ कहा और फिर मुझसे कहा बाबूजी यहां बैठिए।मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था और वह फिर तेज गंध मुझे आने लगी। मैंने फिर ट्राई करने की कोशिश की कि वह गंध कहां की है ,पर कुछ याद नहीं आया। मैंने चारों की तरफ देखा तो चारों कंबल में खुद को ढंके हुए थे। किसी का भी चेहरा उस रूम की रोशनी में साफ दिख नहीं रहा था ।
माहौल में अचानक ठंड सी लग रही थी, मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था कि मार्च महीने में ठंड! मैंने उस बूढ़े से पूछा यहां का मौसम कुछ अजीब है, मार्च महीने में भी ठंड लग रही है। बूढ़े ने
खरखराती हुई आवाज में कहा बाबूजी यह जगह चारों तरफ से पहाड़ियों से गिरी हुई है इसलिए यह ठंड महसूस होती है, आप कहां से आ रहे हो?
मैंने कहा मैं नागपुर से आ रहा हूं। बूढ़ा चुप हो गया थोड़ी देर रुककर फिर मुझसे कहा स्टील प्लांट जाने के लिए आए हो ना?
मैं चौक गया और तभी पहली बार मैंने उस बूढ़े का चेहरा देखा। बूढ़े का चेहरा अजीब सा सफेद रंग का था और उस पर बहुत सी जूरीया थी।
मैंने थोड़ा सहमते हुए कहा आपको कैसे मालूम कि मैं यहां किस लिए आया हूं? उस बूढ़े ने भी उस तांगे वाले की तरह ही जवाब दिया कि यहां सब उसी के लिए आते हैं।
मैंने फिर उनसे कहा कि आप लोग कौन है और कहां जाओगे?यह सुनकर चारों ने एक साथ मुझे देखा उन चारों की आंख में एक अजीब सी चमक थी। उन चारों की आंखें भी उस तांगे वाले की तरह ही दिख रही थी।
बूढ़े ने कहा हम तो यहीं के हैं बेटा हम कहां जाएंगे।मुझे फिर वह बहुत तेज गंध आने लगी मुझे लगा कि मैं अब यहां रुका तो बेहोश हो जाऊंगा।
मैं असहज हो रहा था इसलिए मैंने बैग में से बचा हुआ कॉकटेल भी पी लिया। सिगरेट का एक पैकेट निकाल कर बाहर जाने की कोशिश की पर लगा मुझे अब नींद आ रही थी। मैंने उस बूढ़े से पूछा आपके पास माचिस है? यह सुनकर चारों एकदम से डर गए। यह देख कर मुझे बहुत अजीब लगा।
उस बूढ़े ने कहा नहीं नहीं हमारे पास माचिस नहीं है,हम माचिस नहीं रखते।उन चारों का बर्ताव माचिस मांगने पर बहुत अजीब सा था।पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मैं रूम से बाहर निकल गया। अब मुझे कुछ ठीक लग रहा था और उस वेटिंग रूम के अंदर कुछ घुटन सी भी महसूस हो रही थी और यहां कोई गंध भी नहीं आ रही थी,मैंने घड़ी देखी करीब 3:30 बज रहे थे। मैंने थोड़ा बेग टटोला तो एक पुरानी माचिस मिल गई। मैंने सिगरेट को जलाया और उसे पीने लगा। तभी मेरी नज़र दूर प्लेटफार्म के अंतिम छोर पर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे कोई साया मुझे कुछ सूचित कर रहा हो, मैं एकदम से डर गया,अब मन में एक अनजाना सा डर सता रहा था क्योंकि जब से मैं यहां पर इया तब से कुछ ना कुछ अजीब घट रहा था, ऐसा मुझे पहले कभी महसूस नहीं हुआ, पर फिर मन को समझा लिया और सिगरेट पीने लगा।वह चारों वेटिंग रूम के दरवाजे पर खड़े होकर मुझे देख रहे थे।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था,नींद के झोंके भी आ रहे थे और मेरी आंखें भी रह-रहकर मूंद जाती थी।थोड़ी दूर देखा तो प्लेटफार्म पर एक बेंच थी, मैंने सोचा वहां जाकर आराम कर लेता हूं,यही सोचकर मैं उस ओर बढ़ने लगा।
सिगरेट पीते हुए मैं प्लेटफार्म पर चल रहा था, पर पता नहीं क्यों अचानक से मेरे हाथ पैर ठंडे पड़ने लगे थे और ठीक से महसूस ही नहीं हो रहे थे। जैसे वह किसी के वश में हो और वहां तक खून नहीं पहुंच रहा हो। मैं ठीक से खड़ा नहीं रह पा रहा था और मेरी आंखों के सामने अंधेरा भी छा रहा था, मेरी सांसे भी अब तेज़ चलने लगी थी और मैं कुछ सोचने की हालत में नहीं था कि तभी किसी ने पीछे से आकर मेरा कंधा पकड़ लिया और मुझे जोर से पीछे की तरफ खींचा और चिल्लाया मरना है क्या? मैंने देखा तो एक ट्रेन आ रही थी और मैं प्लेटफार्म के बिल्कुल किनारे पर खड़ा था। अचानक मुझे लगा कि कोई मेरे पास खड़ा है और मुझे धक्का देना चाहता है, पर स्टेशन मास्टर की वजह से मैं बच गया। उसने कहा कि वहां बेंच पर जाकर सो जाओ।मैंने उसकी बात मानकर स्टेशन की उस बेंच पर जाकर लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा।अब मुझे बहुत डर लग रहा था।करवट बदली तो देखा वह बूढ़ा मेरे पास खड़ा है, मैं उठ गया और कहा क्या बात है क्या चाहते हो? मुझे लगने लगा था कि वह चारों लुटेरों की टोली है,जो मुझसे मेरा बैग छीना चाहती है।
मुझे बूढ़े ने कहा यहां मत सोओ बेटा वाह वेटिंग रूम में जाकर आराम से सो जाओ।मैंने कहा कि मैं यही सो जाऊंगा और अगर तुम उधर से नहीं गए तो मैं स्टेशन मास्टर से तुम्हारी शिकायत करूंगा।
यह सुनकर वह बूढ़ा मुस्कुराने लगा उसकी मुस्कुराहट कुछ अजीब सी थी मेरे शरीर में फिर एक कपकापी सी दौड़ गई और वह बूढ़ा चला गया, उसके जाते ही मैं कब गहरी नींद में चला गया मुझे खुद पता नहीं चला। कुछ देर बाद किसी गाड़ी की आवाज ने मुझे उठा दिया देखा। तो सुबह हो चुकी थी रात के बारे में सोचा तो हंसी सी आ गई।मैंने अपने आप से कहा मैं ख्वामखाह ही डर रहा था।लगता है उस किताबों का असर कुछ ज्यादा ही हो गया था। मैंने समय देखा तो सुबह के 7:00 बज रहे थे, मैंने सोचा वेटिंग रूम में जाकर तैयार हो जाता हूं और स्टील प्लांट जाकर वहां का काम खत्म करके शाम की गाड़ी से वापस चला जाऊंगा। 1 दिन के होटल के पैसे बचेंगे और इस अजीब सी भूतहा जगह से पीछा भी छूटेगा।
वापस वेटिंग रूम में जाकर देखा तो बहुत से लोगों से भरा हुआ था। पहली बार इतनी भीड़ देखकर मुझे अच्छा लग रहा था।उस बूढ़े को देखने की इच्छा हुई,पर वह नहीं दिखा।मैं तैयार होकर बाहर निकला सोचा चाय नाश्ता करके स्टील प्लांट चला जाऊंगा। चाय वाले से चाय के लिए कहा है कि तभी पीछे से आवाज आई हमें चाय नहीं पिलाओगे बाबूजी? यह सुनकर मुझे जोर का झटका लगा,पीछे मुड़कर देखा तो वही बूढ़ा और वह तीनों खड़े थे।
उस बूढ़े ने कहा थोड़ी देर पहले मुझे याद कर रहे थे ना बाबूजी?अब मुझे दिन की रोशनी में भी एक अजीब सा डर लगने लगा था। अचानक वह गंद मुझे आने लगी।मैंने बुड्ढे से नजर हटा कर उन तीनों की तरफ देखा,तभी मुझे एक जोर का झटका लगा उस पुराने लैंप पोस्ट के पास वह तांगेवाला भी खड़ा था। जो मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था और उसके पास वह तीनों भी खड़े थे।
मैंने फिर गौर से बूढ़े की और देखा, मुझे लगा बेचारा बहुत ही गरीब है कुछ मदद कर देनी चाहिए इसीलिए मैंने पूछा कुछ पैसे चाहिए बाबा?
बुढ़े ने कहा नहीं सिर्फ चाय पिला दो तुम मेरे बेटे की उम्र के हो इसलिए तुमसे मांग रहा हूं।यह सुनकर मुझे दया आ गई और मैंने चाय वाले से कहा भाई इनको भी चाय पिला दो। चाय वाले ने मुझे गौर से देखा और पूछा इनको बाबूजी?
मैंने सोचा यह चाय वाला ऐसे क्यों बात कर रहा है उसको यह आदमी नहीं दिख रहा क्या? इसलिए मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मुझे मेरी आंखों पर यकीन नहीं हुआ, मेरे पास ना ही वह बूढ़ा और ना ही सामने तांगेवाला खड़ा था। वह सभी गायब थे। मैंने चारों और देखा और उन्हें ढूंढने की कोशिश की पर वह नहीं मिले, अब मुझे बहुत डर लग रहा था और डर की वजह से बहुत पसीना आ रहा था।।
अचानक देखा तो स्टेशन के गेट पर मेरा एक पुराना दोस्त आ रहा था। मैंने उसे आवाज दी oyyy उमेश इधर आ मैं राजेश।मेरी आवाज सुनकर उसने मेरी तरफ देखा और मेरे पास आकर कुछ यहां कैसे बे? मैंने कहा या स्टील प्लांट में परचेज मैनेजर से मिलने आया हूं। उसने बोला यह तो बहुत अच्छी बात है, मेरे साथ चल मैं भी वहीं जा रहा हूं,उसकी बात सुनकर मुझे बड़ी राहत मिली और मैं उसके साथ चल दिया।
उमेश से मेरी बिजनेस की दोस्ती थी,हम अलग अलग कंपनी में काम करते थे और अक्सर हम एक ही कस्टमर के पास मिलते थे और अपने अपने products sell करने के लिए लड़ते थे,पर आज बहुत अच्छा लग रहा था। हम दोनों प्लांट गए और अपना अपना काम पूरा कर दिया। मुझे और उमेश हम दोनों को आर्डर मिल गया, हमने सोचा कि रात की गाड़ी से वापस चले जाते हैं।उसे रायपुर जाना था और मैं भी गाड़ी बदलकर नागपुर चला जाऊंगा। हम दोनों को ओर्डर मिल गए थे और हम दोनों का ईस month का टारगेट भी पूरा हो चुका था,इसलिए हमने सोचा कि मार्च के इस आखिरी दिन को सेलिब्रेट कर ले। हम एक छोटे से ढाबे पर जाकर खाने पीने में लग गए उसके बाद वहा घूमने लगे। इन सभी काम में रात कब पड़ गई पता नहीं चला। रात के करीब 12:00 बजे हमारी ट्रेन थी, इसलिए हम 11:00 बजे स्टेशन पर पहुंच गए। हम ने टिकट ले ली और ट्रेन का इंतजार करने लगे। हम थोड़ी देर वहीं बैठे रहे, फिर वही खेल और फिर वही मामला मुझे फिर से वही गंध आने लगी।
मैंने पलट कर देखा तो वही बूढ़ा अपने परिवार के साथ थोड़ी दूर मेरे पीछे खड़ा था मैं डर गया और अपनी बाईं तरफ देखा तो मेरा दोस्त बैठे-बैठे ही सो गया था। मैंने उस बूढ़े की तरफ देखा वह एक अजीब सी हसी हंस रहा था और मुझे कहने लगा जा रहे हो बाबूजी? हमारे साथ थोड़ा समय और बीता लेते।
अब मुझे गुस्सा आने लगा था और इसलिए मैंने कहा देखो अगर तुम्हें कुछ पैसे चाहिए तो मैं दे देता हूं, पर मेरा पीछा छोड़ो।
बूढ़े ने कहा हमें पैसे नहीं चाहिए बाबू जी।
मैंने अकड़ते हुए कहा तो फिर क्या चाहिए?कल से मुझे परेशान कर रहे हो,जल्दी से बोलो मैं आपको दे देता हूं और यहां से जाओ।
बूढ़े ने अजीब सी हंसी हंसते हुए का हमें आप चाहिए।उसकी बात सुनकर मुझे एक बड़ा सा झटका लगा, मुझे लगा यह बूढ़ा कहीं पागल तो नहीं हो गया है,कैसी बातें कर रहा है?
इसीलिए मैंने उससे पूछा क्या मतलब है आपका?
उस बूढ़े की आंखें अब नम हो गई थी,उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।मेरा बड़ा बेटे की कुछ वक्त पहले एक्सीडेंट में मौत हो गई थी, वह बिल्कुल आप ही की उम्र का था, यह कहकर वह बूढ़ा रोने लगा।
मुझे अब यहां का माहौल बहुत ही अजीब लग रहा था, एक तो वह गंध आ रही थी ऊपर से यह बूढ़ा। मुझे यहां अब बहुत डर लगने लगा था ,ऊपर से मेरा सिर दर्द भी बहुत कर रहा था पर फिर भी उस बूढ़े के रोने की वजह से मैं उसके साथ जाकर बैठ गया। रोते हुए उस बूढ़े ने मेरा हाथ पकड़ा। उसके हाथ पकड़ते ही मेरे शरीर में एक अजीब सी कपकपी दौड़ गई।उसका हाथ बहुत ठंडा था और ऊपर से बहुत सफेद भी,जैसे उसके हाथ में खून ही ना हो ,तभी मुझे लगा कि मेरे पीछे से कोई गुजरा हो इसलिए मैंने बाय तरफ पलटते हुए पीछे की तरफ देखा पर वहां कुछ नहीं था। अचानक से मेरी आंखों के सामने फिर अंधेरा छाने लगा और बहुत अजीब सी अजीब सी आवाजें कानों में गूंजने लगी। जैसे कोई रो रहा हो,मेरा सिर दर्द की वजह से फट रहा था तभी ट्रेन की आने की आवाज आई।
ट्रेन की आवाज सुनकर में होश में आया और देखा तो मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरा दोस्त उमेश खड़ा था। मैंने आसपास देखा तो वह बूढ़ा और बच्चे कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे,मैंने ज्यादा ना सोचते हुए, उमेश के साथ ट्रेन में चल गया।रायपुर आने पर उमेश उतर गया। मुझे वहां से दूसरी ट्रेन पकड़नी थी, दूसरी ट्रेन आतें ही में अपनी सीट लेकर बैठ गया।थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी और मैं खिड़की के बाहर देखते हुए उस बूढ़े के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरी नजर मेरे सामने बैठे आदमी के अखबार पर पड़ी, मैंने उनसे अख़बार लिया और देखा तो एक पल के लिए दिल धड़कना भूल गया। उसमें लिखा था कि एक हिंदू परिवार एक तांगे में बैठकर मंदिर के दर्शन के लिए जा रहा था और एक्सीडेंट में हम की जान चली गई। उस एक्सीडेंट में बूढ़ा-बूढ़ी और उनके तीनों बेटों की मौत हो गई। नीचे उनकी तस्वीर थी। मैंने उनके बड़े बेटे की तस्वीर देखी तो दंग रह गया। उसके बड़े लड़के की लाश अभी भी नहीं मिली थी और वह लड़का हुबहू मेरी तरह दिखता था। ऊपर से सबसे चौंकाने वाली बात यह थी की उस तस्वीर में वही बूढ़ा बूढ़ी और तांगेवाला दिखाए गए थे, साथ ही वह दोनों लड़कों की भी तस्वीर थी।
मैं पत्थर सा बनकर रह गया,मैंने अपने आप से पूछा तो क्या मैंने कुछ आत्माओं के साथ रात काटी थी? मुझे अब सब कुछ समझ में आने लगा था वह तभी अचानक से मेरे दिमाग में याद आ गया की वो गंध स्मशान में चल रही लाशों की होती है और इंसान की मौत के बाद उसका शरीर बिल्कुल सफेद और ठंडा पड़ जाता है,उन सभी के चेहरे भी उन्हीं लोगों जैसे थे, शायद वो सबके सब मर चुके थे मेरा दिमाग फिर भी पता नहीं क्यों इस बात को मानने से इंकार कर रहा था।अब समझ में आ रहा था कि माचिस मांगने पर वह सभी डर क्यों गए थे।
ट्रेन तेजी से भाग रही थी और मेरी हालत और खराब हो रही थी।मुझे बहुत पसीना आने लगा था,मेरी हालत देखकर किसी ने मुझे पानी पिलाया। तभी एक भिखारी उसके परिवार के साथ भीख मांगने आया, मेरी नजर उसके अपर पड़ी तो वहीं सब मुझे दिखाई दिए। उस बूढ़े ने हंसते हुए कहा आप याद करें और हम ना आएं, हमारे साथ नहीं चलोगे बाबूजी ईतना कहकर वह सब मुस्कुराने लगे।उन सभी को देखकर मेरे हाथ पैरों ने काम करना जैसे बंद ही कर दिया था, मेरी सांसे अब फूलने लगी थी और दिल की धड़कनें भी बहुत तेज चलने लगी थी, मेरे मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी।मै नीचे गिर पड़ा सभी ने मुझे उठाया पर मेरा ध्यान अभी भी उस परिवार पर ही था।वह सभी चलते हुए ट्रेन के दरवाजे तक पहुंच गए। बूढ़ा ने मेरी ओर देखते हुए एक डरावने तरीके से मुस्कुराया। उसकी आंखें अब पूरी काली पड़ गई थी, उसके शरीर पर अब कई जगह घाव उभरने लगे थे, उसका शरीर अब धीरे धीरे काला पड़ रहा था, जैसे वह जल गया हो।
मुझे अब सांस लेने में बहुत तकलीफ़ हो रही थी, चेहरा पूरा लाल पड़ गया था, शरीर अब धीरे धीरे ठंडा पड़ने लगा था। तभी उस बूढ़े के साथ खड़े एक लड़के ने मेरी ओर देखते हुए कहा पिताजी अब तो भैया हमारे साथ चलेंगे ना? तभी उस बूढ़े ने हंसते हुए कहा क्यों नहीं तुम्हारे भैया को हम साथ लेकर ही जाएंगे।उन सभी आदमी मे से एक बोला इनको जल्दी ही अस्पताल पहुंचाना होगा ईनकी हालत बहुत खराब है, तभी दूसरे आदमी ने कहा इसका कोई फायदा नहीं अब बहुत देर हो चुकी है He is no more....
There is no more happy ending......😈
दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी जरुर बताना और अगर आपको कहानी पसंद आई हो तो मैं एसी दूसरी कहानी भी लिखूं या नहीं इसके बारे में जरूर बताना और Hotel Haunted को इतना सारा प्यार देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
Thanks to all of you