अनजान रीश्ता - 60 Heena katariya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनजान रीश्ता - 60

पारुल अविनाश के पीछे भाग रही थी । अविनाश गुस्से में होटल से बाहर जा रहा था । की तभी पारुल उसका हाथ थामते हुए उससे दूसरी और ले जाने की कोशिश करती है। अविनाश बस अपनी जगह पर खड़े होते हुए पारुल और उसने अविनाश का हाथ थामा है वह देख रहा था ।

पारुल: ( गिड़गिड़ाते हुए ) प्लीज... ।
अविनाश: ( बिना कुछ कहे पारुल जिस दिशा में ले जा रही थी जा रहा था । उसका ध्यान तो पारुल ने उसका हाथ थामा था वही पर था । मानो वह गुस्सा सब कुछ भूल गया था । ) ।

पारुल अविनाश को दूसरी ओर होटल के गार्डन एरिया में ले जाती है । जहां पर चलपहल नहीं थी । वह नहीं चाहती थी की कोई उससे अविनाश के साथ देखे ।

पारुल: ( सुकून की सांस लेते हुए अविनाश की ओर देखती है तो उसके चहेरे पे एक मुस्कुराहट थी और वह कहीं और देख रहा था । जब पारुल देखती है तो उससे समझ आता है की उसने अविनाश का हाथ थामा हुआ था !! ) ( मन में ही कहती है !! गॉड! मैं ही ऐसी बेवकूफी क्यों करती हूं!! ) ( अविनाश का हाथ छोड़ते हुए ) तो.. प्लीज मेरी बात सुनो..!?।
अविनाश: ( पारुल के हाथ छोड़ते ही उसकी मुस्कुराहट मानो जैसे गायब ही हो गई थी । वह खुद को संभालते हुए पारुल की ओर देखते हुए कहता है । ) हअ!!? ( आईब्रो! ऊपर करते हुए )।
पारुल: प्लीज यार !! देखो तुम्हे जो भी नफरत है मुझसे है तो !!।
अविनाश: तो!!?।
पारुल: तो!! प्लीज इसमें सभी लोग को मत घसीटो!! प्लीज!! यार इतनी नफरत भी अच्छी नहीं है !! ।
अविनाश: ( हंसते हुए ) हाहाहाहाहा.... तुम ये बात कहने के लिए मेरे पीछे आई हो!? .. सीरियसली.. तुम्हे क्या लग रहा है मैं मजाक के मूड में हूं!? या फिर हम दोनो छोटे बच्चे है की खेल रहे है !! ? तुम्हे पता भी है मैं कितना सीरियस हुं तुम्हारे बारे में!! ( पारुल को कमर से कसकर पकड़ते हुए अपनी ओर खींचता है! जिस वजह से पारुल उसकी और आश्चर्य में देखती है ) और!! जब मैं बात करूं और कोई इधर उधर देखे ये पसंद नहीं!! ।
पारुल: ( अपने हाथ अविनाश सीने पर रखते हुए खुद को अविनाश से दूर करने की कोशिश कर रही थी । ) प्लीज... कोई... आ जाएगा... तो...

अविनाश: ( पारुल की बात काटते हुए ) क्या.. कहेगा यहीं..!ना! ?। ( पारुल से पूछते हुए )।


पारुल: ( सिर्फ हां में सिर हिलाते हुए इधर उधर देख रही थी । ) ।


अविनाश: ( पारुल के चहेरे को अपनी ओर करते हुए ) पहली बात आई डोंट केयर!!! जिससे देखना है देखे!! और दूसरी बात अब.. तो... ( पारुल की आंखों में देखते हुए ) तुम मेरी मंगेतर हो तो अब कैसा डर!! ।


पारुल: ( अविनाश की बात सुनकर मानो उसके चहेरे का रंग उड़ गया था । वह अविनाश की आंखों में देख रही थी मानो जैसे अपने सवालों के जवाब ढूंढ रही थी । ) अवि...।


अविनाश: ( पारुल की नजरें उस पर असर कर रही थी ! वह पारुल को अपने से दूर करते हुए कहता है ! ) जो भी हो रहा है उसकी शुरुआत तुमने ही की थी । मैने नहीं मैं अपनी दुनिया में व्यस्त था । वो तुम हो जिसने फिर से मेरी जिंदगी तबाह करने के लिए दस्तक दी है । पर... इसबार मैं अतीत वाला पागल अविनाश नहीं हुं जो तुम्हारी खुशी के लिए खुद को चौंट पहुंचाएगा!! वह तो कब का मर गया!! अब अगर मुझे खरोच भी आई तो दर्द तुम्हे भी महसूस करवाऊंगा!! एंड बिलीव मि.. मेरी चौंट से दुगना दर्द पहुंचाऊंगा तुम्हे!!! ।


पारुल: ( अविनाश के चहेरे को देखे जा रही थी !! मानो यह वह अविनाश है ही नही जिससे वह बचपन में जानती थी । जो उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर जाता था !! यह अविनाश तो जैसे उसका उल्टा ही रूप है !! ) ....।


अविनाश: क्या हुआ सांप सूंघ गया!! या तुम्हे यकीन नहीं हो रहा की मैं इस बार तुम्हारे जाल में क्यों नहीं फंसा!! .. हाहहाहाहा... यूं नो वोट.. तुमने अभी दर्द महसूस किया ही कहां है!! जब कोई अपना तुम्हे चौंट पहुंचाएगा तब पता चलेगा!! खैर!! काफी सेंटीमेंटल बाते हो गई !! तो... हो गया तुम्हारा तो अब मैं जाऊं.. । ( पीछे की और मुड़ता है जाने के लिए .. ) ।


पारुल: ( अविनाश का हाथ पकड़ते हुए ) ... तुम... कब.. से... बाते छुपाने लगे..।


अविनाश: ( अपने चहेरे पे जो भी हावभाव थे उससे दूर करते हुए.. सख्त चहेरा बनाते हुए ) क्या.. मतलब..!? ।


पारुल: नफरत.. तो समझ आ रही है.. ये दर्द .. ये क्यों छुपा रहे हो.. इसकी क्या वजह है.. ।


अविनाश: ( समझ नहीं पा रहा था की क्या कहे! क्योंकि पारुल आज भी उसके दिल की बात समझ रही थी !! । ) पहली बात तुम्हारा इससे कोई लेना देना नहीं है और दूसरी बात.. मेरी लाईफ में दखल ना ही दो तो बेहतर है। ( पारुल के हाथ को अपने हाथ पर हटाते हुए ) ।


पारुल: ( फिर से अविनाश का हाथ थामते हुए ) वाऊं!! मतलब तुम किसी की भी जिंदगी में दखलंदाजी करो वह चलेगा लेकिन!! जब कोई इंसान पूछे तो मिस्टर.. अविनाश खन्ना को गुस्सा आ जाता है.. ।


अविनाश: ( गुस्से और आश्चर्य में सोच रहा था.. ! क्या ये लड़की पागल हो गई है या ये अभी तक नहीं बदली.. खुद की लाइफ में तहस नहस करने वाला हुं और यहां मेरी परवाह कर रही है !! ) अच्छा!! और किस हक से तुम मुझे ये सवाल पूछ रही हो!! ।


पारुल: किस हक से!!? ( अविनाश की बात दोहराते हुए ) ।


अविनाश: ( मुस्कुराते हुए ) हां..!? ।


पारुल: ( सोचते हुए ) क्योंकि.. ।


अविनाश: क्योंकि ( आइब्रो ऊपर करते हुए ) .. ।


पारुल: मैं और तुम यानी की हम दोनों ( उंगली से संकेत करते हुए ) एक दूसरे से नफ़रत करते है इसलिए... ।


अविनाश: ( आश्चर्य में पारुल की ओर देखे जा रहा था ) हाहाहाहाहा... आआहहाहा... सच में नफरत... ।


पारुल: ( अविनाश सच में हंस रहा था !! इतने समय में पहली बार वह सच में खुल के हंस रहा था अब तक तो वह सिर्फ गुस्से या दर्द में ही हंसते हुए देखा था । लेकिन अभी मानो जैसे वह अतीत वाला गोलू था जो दिल खोल के अपने दिल की बात करता था । मुस्कुराते हुए ) यप देखो इंसान के दिल में दो ही रीशते पनपते है या तो प्यार या नफरत.. तो अब प्यार तो हम करते नहीं तो रही नफरत.. तो प्यार के बाद नफरत का रीश्ता सबसे मजबूत होता है ।


अविनाश: ( पारुल की यह बात मानो उससे पसंद नहीं आई !! उसके चहेरे के भाव तुरंत बदल जाते है । वह मुस्कुराना छोड़ कर कुछ सोच में डूब जाता है और फिर कहता है !! । ) ( पारुल का हाथ पकड़ते हुए ) स्वीटहार्ट.. कुछ रीश्ते अनजान होते है ... जिसको ना ही तुम प्यार का नाम दे सकते हो और ना ही नफरत का.. और हमारा रीश्ता बिलकुल वैसा ही है... अनजान रीश्ता... समझी.!।


पारुल: ( अविनाश के हाथ में से हाथ छुड़ाते हुए ) अनजान रीश्ता!!! ? ।


अविनाश: यप!! ।


पारुल: पर... इस..


अविनाश: ( पारुल कुछ बोले उससे पहले ही अपने करीब कर लेता है और !! पारुल के होठ पर उंगली रखते हुए उससे चुप करवा देता है और उसके करीब आता है मानो जैसे वह उससे किस करने वाला हो !! )...।


पारुल: ( अविनाश को इतना करीब पाकर मानो उसका दिल जोरो से धड़क रहा था । वह बोलने की कोशिश कर रही थी लेकिन अविनाश ने उंगली से उसके होठ को रोक रखा था तभी आवाज आती है । )


" हाहाहाहा... ये देखो आजकल के लड़के लड़कियां...


अरे छोड़ो ललिता क्यों परेशान हो रही हो ये उमर है इन लोगो के हंसने खेलने की और मुझे तो ये कपल लग रहे है ।


क्या जी!! आप भी बिलकुल बिगड़ गए है ।


हां तो मैंने कौनसा तुम्हे शादी से पहले डेट पे लेके नही गया !!! ।


आप भी!!


हाहाहाहाहा... ।"


यह कहते हुए अंकल आंटी पार्किंग की ओर चले जाते है। अविनाश पारुल से दूर जाते हुए गहरी सांस लेते हुए खुद को संभालता है दूसरी ओर पारुल का भी यही हाल था । उसका दिल भी धक...धक... जोरो से धड़क रहा था.. । मानो दोनो जानकर भी अपने इस रीश्ते को अनजान बना रहे थे । या सच में दोनों अपने इस रीश्ते से अनजान थे ।