नागमणि का अद्भुत रहस्य (भाग - 1) सिद्धार्थ रंजन श्रीवास्तव द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आभासी दुनिया को अलविदा

                रजनी की शादी हुए अभी डेढ़-दो साल ही गुजरे थे। वह...

  • सुरासुर - 2

    "क्या मैं मर गया पर मुझे तो कोई दर्द महसूस नहीं हुआ मैं जिंद...

  • हमराज - 2

         ज़ेबा तो उस जल्दबाजी में भूल ही गयी थी के बादल भी उसका...

  • मुझे भी वायरल होना है

      **मुझे भी वायरल होना है**   मैं परेशान, थका-हारा देवाधिदेव...

  • सक्स

    एक छोटीसी कहानि है जो हमने कविता मे पिरोई है,कहानी उनपे है ज...

श्रेणी
शेयर करे

नागमणि का अद्भुत रहस्य (भाग - 1)

"सहारा अपने देश का, आज ख़ुद बेसहारा हूँ,
दोष किसे अब दू इसका, अपने लालच का मारा हूँ।।
-"उर्वी"🖋️

ये एक एक शब्द इस कहानी को सार्थक करते है।
ये कहानी है एक ऐसे आर्मी ऑफिसर की जो आदिवासी जाति से सम्बन्ध रखता था और अपनी मेहनत से उसने भारतीय आर्मी से जुड़ कर देश की सेवा करने का फैसला कर लिया था।

रंजीत का सपना बचपन से देश के लिए कुछ कर गुजरने का था। गरीबी और भूख से लड़ने के बाद भी रंजीत के सपने कभी कमजोर नहीं पड़े। रंजीत का गाँव जंगल से काफ़ी करीब था और शहर से कोसों दूर जहाँ आज भी सुविधा का आभाव था। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि आदिवासी समुदाय आज भी मुख्य धारा से जुड़ना नहीं चाहता था।

दस गावों को मिला कर वहाँ एक मात्र स्कूल था जिसमे मुश्किल से 15 बच्चे ही पढ़ा करते थे, उन बच्चों मे ही रंजीत भी एक था। रंजीत का दिमाग़ बाकी बच्चों की अपेक्षा तेज़ था इस वजह से प्रधानाचार्य जी रंजीत को बहुत मानते थे। उन्होंने ही रंजीत को अच्छी शिक्षा दी और देश की सेवा के लिए प्रेरित किया था।

रंजीत के माता पिता बचपन मे ही गुजर गए थे और उसका पालन पोषण उसके समुदाय के मुखिया के परिवार ने किया था। प्रधानाचार्य जी ने रंजीत को आगे बढ़ने मे बहुत सहायता की और रंजीत उनकी मदद से शहर जाकर पढ़ने लगा। पूरे आदिवासी समुदाय के इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ था कोई व्यक्ति शहर गया हो। रंजीत ने शहर मे खूब मन लगा कर पढ़ाई की और आर्मी मे जाने की तैयारी मे जुट गया।

सभी मुसीबतों और बधाओं से लड़ते हुए आखिर वो दिन आ ही गया जब रंजीत का सिलेक्शन आर्मी मे हो गया। रंजीत को ट्रेनिंग के लिए सैन्य युद्ध अभ्यास में भाग लेने के लिए टीम के साथ रूस भेजा गया। रंजीत इस बात से काफ़ी ख़ुश था, हो भी क्यूँ ना जिसके पूरे समुदाय में किसी ने शहर की शक्ल तक ना देखी हो उस समुदाय का लड़का आज दूसरे देश मे जा कर युद्ध अभ्यास करने वाला था।

रंजीत ने अपनी रूस की यात्रा के दौरान कई दोस्त बनाये जो की उसकी यूनिट के थे। एक महीने तक चले इस अभ्यास मे रंजीत ने बहुत कुछ सीखा, यहाँ तक की उसने कई भाषाओं को भी अपने अंदर आत्मसात कर लिया। ये रंजीत की खासियत थी की वह कोई भी चीज बाकी यूनिट मेंबर की अपेक्षा जल्दी सीख लेता था और इसी वजह से वो सबका चहेता भी बन गया।

भारत वापस आने के बाद उसकी पोस्टिंग आसाम के जंगल एरिया मे कर दी गयी जो की नक्सलवादियों से पीड़ित क्षेत्र था। रंजीत को इस लिए यहाँ पोस्ट किया गया था क्यूंकि वो जंगल मे रहना और उनसे बचाव अच्छी तरह जानता था। रंजीत के यूनिट का एक दोस्त पारस की भी पोस्टिंग उसी जंगल मे थी।

उनका बेस कैम्प जंगल मे ही एक ख़ुफ़िया जगह बनाया हुआ था जो की एक गाँव के पास था, इस गाँव के लोग आर्मी की पूरी सहायता करते थे क्यूंकि वो नक्सलवाद से बहुत परेशान थे। रंजीत अक्सर ड्यूटी से फ्री समय मे गाँव वाले के पास मिलने चला जाता था क्यूंकि उसे वहाँ अपने गाँव जैसा सुकून मिलता था।

रंजीत अक्सर उन गाँव वालों के साथ भोजन करता था, कभी कभी गाँव के बुजुर्गों के साथ बैठ कर जंगल की ढेरों कहानियाँ सुना करता था। कभी वो उसे भूत- प्रेत की कहानियाँ सुनाते, कभी किसी नक्सल सरगना की कहानी की कैसे वो नक्सल वादी बन गया और कभी कभी नागमणि जैसी चीज का दिखना। रंजीत ने ऐसी भूत- प्रेत और नागमणि की बहुत सी कहानियाँ अपने बचपन मे भी बहुत सुनी थी लेकिन कभी किसी ने इन सब की खास पुष्टि नहीं की थी।

नक्सल सरगना के बारे मे मिलने वाली जानकारी अक्सर उसके काम आ जाति थी इसलिए रंजीत गाँव वाले के पास बैठ कर अक्सर कहानियाँ सुना करता था। कैंप पर आकर वो सारी कहानी पारस को सुनाता तो उसे डर लगने लगता, पारस ने अपनी ज़िन्दगी मे ऐसा भयावह जंगल नहीं देखा था। कुछ दिन बीतने के बाद पारस का डर जंगल के प्रति और बढ़ता गया और उसने किसी तरह अपनी ड्यूटी जंगल से हटवा कर दूसरे शहर मे करवा लिया।

इधर रंजीत का प्यार जंगल के लिए और बढ़ता जा रहा था, वैसे भी जंगल रंजीत का पहला प्यार था इन्ही के बीच रह कर तो उसने जीना सीखा था। यूँ तो कैंप के सभी कैडेट को अपनी ड्यूटी के अनुसार हमेशा चौकन्ना रहना पड़ता था और कुछ की ड्यूटी तो कैंप के आस पास पेड़ो की शाखाओं पर भी होती थी लेकिन एक आध छिट पुट घटनाओ को छोड़ कर कैंप और आस पास के गाँव मे शांति ही रहती थी। शायद इसका एक कारण कैंप के बारे मे नक्सलियों को इसकी जानकारी ना होना भी था।

लेकिन कहते है ना किस्मत हमेशा एक सी नहीं होती, शायद अब इन गाँव वालों की भी किस्मत उनसे रूठने वाली थी। फरवरी का महीना था और ठण्ड अब भी अपने शबाब पर थी, उस रात रंजीत की ड्यूटी कैंप से कुछ दूर पेड़ की शाखा पर थी ताकि वो जंगल से आने वाली हर एक चीज को अपनी पैनी नज़र से बच कर जाने ना दें।
लेकिन उस रात जो होना था उसकी रंजीत ने कभी कल्पना भी ना की होगी।

नक्सलियों ने सबसे पहले निशाना उन मासूम गाँव वालों को बनाया, रातों रात घर मे घुस कर उन गाँव वालों को मौत के घाट उतार दिया गया। उन दरिंदों ने किसी की उम्र का ख्याल न किया और सबकी गर्दनो को अपने तेज़ हथियारों से काट डाला, उनकी गलती सिर्फ इतनी थी की वो इन नक्सलियों का साथ देने के बजाय आर्मी वालों का साथ दें रहे थे।

उनका एक दल आर्मी कैंप को पीछे से आकर घेर चूका था और इस बात की भनक अभी तक आर्मी वालों को नहीं लगी थी क्योंकि कहते है जंगल मे शेर और इन नक्सलवादियों के चलने की कोई आहट नहीं होती। नक्सलियों के अचानक इस हमले के लिए शायद कोई भी तैयार न था।

ताबड़तोड़ कैंप पे गोलियां बरसनी शुरू हो चूकी थी और जवाब मे कैंप से भी कुछ गोलियां चली पर कुछ ही देर मे कैम्प से गोलियों की आवाज़ आनी बंद हो गयी। सब कुछ इतना जल्दी हुआ की रंजीत कुछ भी समझ ना सका, ख़ुद पर काबू पाते हुए रंजीत चुप चाप पेड़ से निचे उतरा और कैंप की तरफ बढ़ने लगा।

रंजीत ने अपनी गन पीठ पर टांग ली और एक धारदार खंजर हाथ मे ले लिया, उसे यह तो समझ आ चूका था की इनसे इस समय गन से मुक़ाबला करना अपनी मौत बुलाने जैसा है क्योंकि अगर उसने अकेले गन का इस्तेमाल किया तो दूसरी तरफ से जाने कितनी गने आग उगलने को बेताब बैठी थी। रंजीत ने छद्म युद्ध करना ही सही समझा और दबे पाँव वो कैंप की तरफ बढ़ता रहा।

उसने रास्ते मे मिलने वाले कई नक्सलियों को अब तक मौत के घाट उतार दिया था और अब वो कैंप के काफ़ी नज़दीक पहुँच चूका था जहाँ उसे एक व्यक्ति बाकी नक्सलियों को निर्देश देता हुआ दिखा। रंजीत अब तक ये समझ चूका था कि यही इस ग्रुप का लीडर है, रंजीत ने उसकी जान लेने का फैसला कर लिया था।

रंजीत दबे पाँव उस लीडर की तरफ बढ़ने लगा अब उसके और लीडर के बीच ज्यादा फासला नहीं बचा था। उसने अपने हथियार को हाथों मे मजबूती से पकड़ लिया और हाथ हवा मे ऐसे लहरा रहा था की अब बस ये खंज़र उस लीडर के सीने के आर पार ही करना रह गया हो। रंजीत अब उसके ठीक पीछे पहुँच चूका था और उस लीडर को इस बात की ज़रा भी भनक नहीं थी। रंजीत ने ज्यों ही हाथ घुमा कर उस लीडर पर खंज़र का वार करना चाहा उसके सिर के पीछे कोई भारी चीज टकराई और उसके होश उड़ने लगे।

रंजीत के हाथ से खंज़र छूट चूका था और दर्द के मारे रंजीत को सब धुंधला दिखना शुरू हो गया था। होश खोने से पहले उसने पलट कर देखा तो एक काला सा दानव नुमा इंसान हाथ मे दूनाली उल्टा लिए खड़ा उसकी तरफ लाल सुर्ख आँखों से देख रहा था। रंजीत को अब समझ आ गया था की यह दैत्य नुमा इंसान इन्ही नक्सलीयों मे से एक है और इसी ने बन्दुक के पिछले हिस्से से उसके सिर पर जोरदार वार किया था।

कुछ ही सेकंड मे रंजीत की आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वो अपने होशो हवाश खो चूका था। जब रंजीत की आँख खुली तो ख़ुद को एक कुर्सी से मजबूती से बंधा हुआ एक बंद कमरे मे पाया, पूरे कमरे मे एक अजीब सी गन्ध आ रहीं थी। रंजीत को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की वो इस समय कहाँ है लेकिन एक चीज उसे बखूबी समझ आ चुकी थी की उन नक्सलियों ने उसे बंदी बना लिया था।

लेकिन क्यूँ? क्या चाहते थे वो रंजीत से? वो चाहते तो रंजीत को उसी समय मार सकते थे। कैम्प के सारे कैडेट को मार दिया सिर्फ उसे ही यहाँ बंदी क्यूँ बना कर रखा है या फिर यहाँ कोई और भी बंदी है उसकी तरह?

To be continued....