नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 69 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 69

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झाबुआ की घटनाओं ने समिधा के जीवन में फिर से ऐसे कई अनुत्तरित प्रश्न खड़े कर दिए जिनके बारे में उसने सोचना छोड़ दिया था | अपने मित्र सान्याल के अचानक इस संसार से विलुप्त हो जाने पर समिधा के मन में उगे हुए उलझे प्रश्नों को सारांश के अतिरिक्त कोई समझने वाला नहीं था | वह बहुत व्यस्त रहने लगा था | समय इस द्रुत गति से भाग रहा था मानो सबको अपने पीछे भगाना ही उसका मकसद हो, होता भी यही है | बच्चे अपने में समर्थ होने लगे, सुमित्रा का उनका ध्यान रखना पर्याप्त था | उनका उच्च अध्ययन शुरू हो चुका था | 

जेलर तथा उनकी पत्नी मुक्ता ने समिधा से इतने आपसी व संवेदनपूर्ण संबंध बना लिए थे कि छोटी से छोटी घटना होने पर भी वे समिधा से ज़रूर साझा करते और समिधा सारांश व पुण्या से ज़रूर चर्चा करती व सलाह लेती | जेलर सतपाल व उनकी पत्नी की छटपटाहट उसे बेचैन करती | एक सिरे से ज़िंदगी की परेशानी छूटती है तो दूसरी ओर से वह गुसपैठ कर लेती है | सब जानते हैं कि ज़िंदगी एक सीधी, सपाट सड़क से नहीं गुज़रती | सबको उसके अनुसार ही चलना होता है | किंतु ज़िंदगी से कमोबेश शिकायत तो सबको ही रहती है | 

जेलर सतपाल वर्मा अपने परिवार, विशेषकर अपनी पत्नी मुक्ता को न तो समय दे पाया था और न ही उसे झाबुआ के भयभीत वातावरण से मुक्ति दिला पाया था | आदिवासियों के साथ रहते-रहते मुक्ता मानो उनका ही अंग बनकर रह गई थी| समय आदमी को किस रूप से किस रूप में ढाल देता है !मुक्ता उसी समय का प्रतिरूप हो गई थी | झाबुआ की योजना पर काम करते हुए समिधा मुक्ता की आँखों में उमड़ते हुए बेजुबान प्रश्नों में किस बुरी तरह घिर गई थी कि समिधा को सान्याल साहब से न जाने कितनी बार चर्चा करनी पड़ी थी | खैर---अब तो वे भी नहीं रहे थे | 

एक दिन अचानक समिधा के पास जेलर वर्मा का फ़ोन कुछ ऐसे आया जैसे कुछ सरगोशियाँ कर रहे हों | 

“हमारे विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ है दीदी, मैं मुक्ता को सरप्राइज़ देना चाहता हूँ | बच्चे नहीं आ पाएँगे, मैं मुक्ता को उस पूरे दिन ऐसे घुमाना चाहता हूँ जैसे वह पहले कभी नहीं घूम पाई | बिलकुल स्वतंत्र !खुले आकाश के नीचे और चाहता हूँ कि आप लोग व पुण्या जी हमारे शुभ स्वतंत्र दिन के साक्षी बनें | आप लोगों को देखकर मुक्ता को सबसे बड़ा तोहफ़ा मिल जाएगा –“वर्मा चाहते थे कि समिधा व पुण्या भी उनकी इस प्रसन्नता में सम्मिलित हों | सारांश के लिए व्यस्तता में से समय निकालना बहुत कठिन था | उसने समिधा से कहा कि वह पुण्या से मिलकर कार्यक्रम बना ले, सारांश ने गाड़ी व ड्राइवर का इंतज़ाम कर दिया था | समिधा ने बच्चों व सुमित्रा को भी सब निर्देश दे दिए और अगले दिन सुबह लगभग छह तथा सात के बीच निकलने का कार्यक्रम बन गया | रात में सब प्रसन्न-वदन सोए, सारांश को एक दिन के लिए बंबई जाना था परंतु सुमित्रा काकी के होते उन्हें बच्चों की चिंता नहीं होती थी| वैसे भी अब बच्चे इतने छोटे नहीं रहे थे | 

सारांश ने समिधा से कहा था कि रात को बारह बजे जब दिन बदलेगा वे मुक्ता व सतपाल वर्मा को बधाई देने के लिए फ़ोन पर बात करेंगे, मुक्ता को कितना अच्छा लगेगा ! सोते समय समिधा झाबुआ और अलीराजपुर के दिनों को याद करने लगी | मुक्ता का स्नेह समिधा व पुण्या को भूले नहीं भूलता था | दोनों देर रात तक विगत स्मृतियों में खोई रहीं | दोनों ने मुक्ता के लिए अपने पास रखी नई साड़ियों में से खूबसूरत सी साड़ियाँ निकालकर रख लीं थीं | इतना समय ही नहीं मिला सका था कि बाज़ार जाकर मुक्ता के लिए प्यारा सा तोहफ़ा खरीदा जा सके | मुक्ता के पास जाने के उत्साह ने समिधा व पुण्या की नींद उड़ा दी थी | समिधा, सारांश तथा पुण्या बारी-बारी से मुक्ता को शुभकामनाएँ देकर चौकाना चाहते थे और कल्पना में मुक्ता के खिले हुए प्रसन्नवदन मुख की कल्पना कर रहे थे |