नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 68 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 68

68

भाग्यवश बहादुर को एक नेपाली लड़का मिल गया था जिसे उसने कैंटीन का काम बढ़ जाने के कारण सारांश से पूछकर अपने पास रख लिया था | बातों-बातों में बहादुर ने उसकी जन्मपत्री पढ़ डाली थी और नेपाल के उसके खानदान का पता चलते ही वह उस पर लट्टू हो गया था | उसका नाम विजय था और वह नेपाल के राजा के किसी कर्मचारी के दूर के रिश्तेदार का नाते-रिश्ते में कुछ लगता था | वह यहाँ पर बचपन से ही अपने फूफा के पास पढ़ने आ गया था और अब बी. ए में था| उसे अपने अध्ययन का खर्चा निकालने के लिए काम की तलाश थी | 

विजय से मिलने के बाद गुजरात की भूमि पर बहादुर को अपने देश की खुशबू आने लगी थी और वह खुली आँखों से विजय में अपने देश को देखने लगा था | बहादुर बहुत भावुक हो उठा था, उसे लगा कि यदि चंदा का संबंध विजय के साथ जुड़ जाएगा तो उसका परिवार भी कहीं न कहीं अपने देश की मिट्टी से जुड़ जाएगा | सारांश चाहता था कि चंदा अपनी पढ़ाई जारी रखे, उसने विजय के बारे में अपने किसी कर्मचारी के माध्यम से पता चलाया था और विजय के द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को सही जानकार संतुष्ट हो गया था | सारांश ने इस शर्त पर विजय तथा चंदा के विवाह की आज्ञा दी कि विजय उसका अध्ययन नहीं रोकेगा और बिना देरी किए चंदा का विवाह विजय के साथ कर दिया गया | 

समिधा के दोनों बच्चे अब अपनी माँ के साथ सुमित्रा की निगरानी में पल रहे थे | कुछ वर्षों में सारांश की योग्यता तथा श्रम ने उसकी ऑफिस की इतनी उन्नति की कि बम्बई में उसके मुख्य ऑफिस के उत्कृष्ट ऑफिसों में उसका नाम सम्मिलित हो गया | सारांश की लगातार प्रगति होती गई | अब उसे माह में दो-तीन बार कंपनी के काम से बंबई जाना पड़ता और साल में चार-पाँच बार अन्य देशों के दौरे भी करने पड़ते थे| सुमित्रा ने बिना कुछ बोले-कहे सारे घर का उत्तरदायित्व अपने हाथों में ले लिया था | इस स्थिति में समिधा की अध्ययन की ललक ने फिर से उसके मनोमस्तिष्क में हलचल मचानी शुरू कर दी | सारांश को उसके अध्ययन पर कभी कोई एतराज़ ही नहीं था अत: समिधा का अध्ययन फिर से आरंभ हो गया था | 

समिधा ने फिर अँग्रेज़ी साहित्य में एम.ए में प्रवेश ले लिया और बहुत अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हुई | जब वह दूरदर्शन छोड़कर आई थी तब तब से उसके मन में दूरदर्शन छोड़ने की कुलबुलाहट तो थी ही अत : जब दूरदर्शन का शुभारंभ हुआ तब पूर्व में दूरदर्शन में दी गई सेवा उसके काम आई और उसके लिए दूरदर्शन में स्क्रिप्ट राइटिंग का द्वार खुल गया | गुजराती भाषा होने के कारण अभी दूरदर्शन में हिन्दी के कार्यक्रम कम ही होते थे परंतु जब हिन्दी से संबंधित कार्यक्रम होता था, उसे बुलाया जाने लगा था | इस प्रकार से उसके जीवन की गति उसके मन की ओर चलने लगी | साथ ही उसने पुरातन व आधुनिक नाटकों के समांतर लेखन पर शोध–कार्य के लिए विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया | उसके जीवन में ‘जहाँ चाह-वहाँ राह‘ वाला फॉर्मूला फलीभूत हुआ और उसे जीवन में एक सुंदर मोड़ मिल गया | जीवन में घटित दुर्घटनाओं की संवेदनाओं ने उसे गद्य और पद्य से गहरे जोड़ दिया | उसे आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों में शिरकत करने के अवसर प्राप्त होने लगे, स्वाभाविक रूप से उसके क्षेत्र का दायरा भी बढ़ने लगाऔर अपने कार्य में उसे संतुष्टि व आनंद प्राप्त होने लगा | जीवन में दौड़ बढ़ने लगी और व्यस्तताओं ने भूत का दामन छुड़ाकर भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया| 

जीवन में गति का होना कितना महत्वपूर्ण है, एक बहाव –जिससे मनुष्य के मन में जीवित रहने का ।जीवन को आनंद से जीने का एक स्वाभाविक सुकून से भरा वातावरण सजा रहता है | जीवन का सुकून ज़िंदगी में आनंद बनाए रखता है | समिधा को अब कहावतें अचानक ही याद आती रहतीं | 

‘खाली दिमाग शैतान का घर’ सच ही तो है जब से उसने अपने मस्तिष्क को व्यस्त रखना शुरू किया था तब से वह बीती बातों के दलदल से निकल गई थी अन्यथा जब भी वह सारांश के साथ अथवा सुमित्रा के साथ बैठती, मन की पुरानी गुफ़ाओं में कैद होने लगती| अब सब व्यस्त थे ।जीवन जी रहे थे | 

यहाँ दूरदर्शन में उसे एक ऐसे मित्र मिले जिनके जीवन का अर्थ जीवन को वास्तविक अर्थ देना था, जीवन की सहजता को समझना था, वास्तविकता को स्वीकार करना था | वे अपने विचारों में बहुत स्पष्ट थे | उनके अनुसार मित्रता का माप-दंड धन, वैभव, ऐश्वर्य, जायदाद नहीं होता | मित्रता का पैमाना मानसिक स्तर तथा सोच पर आधारित होता है| दूरदर्शन के निदेशक सान्याल के जीवन में जितनी उठा-पटक हुई थीं उतनी संभवत: समुद्र की लहरों में ज्वार-भाटा के समय भी नहीं होती होगी | परंतु उन्होंने अपने जीवन को सप्रयास शांत, स्थिर, सहेजते हुए एक सहज गति दी थी | वे हर समय प्रसन्न-मुख रहते तथा दिवस में न जाने कितनी बार ईश्वर को धन्यवाद देते | 

शनै: शनै: समिधा की समीपता उनसे बढ़ती गई | वे अकेले रहते थे और यदा-कदा समिधा के घर आने लगे थे | समिधा ने गुजराती भाषा का अध्ययन भी कर लिया था, अब उसके पास पर्याप्त अनुवाद –कार्य आने लगा था | तात्पर्य यह कि समिधा घर के अतिरिक्त अपने मानसिक कार्यों में भी संलग्न हो गई थी | उसके शोध-प्रबंध की समाप्ति पर सबसे पहले सान्याल साहब ने आकर उसे हार्दिक बधाई दी थी| एक बड़ा सा रंग-बिरंगा पुष्प-गुच्छ समिधा के हाथों में थमाते हुए वे बोले थे –“तुम्हारा जीवन इन्हीं पुष्पों की भाँति रंग-बिरंगा, सुगन्धित व परिपूर्ण हो | तुम सदा व्यस्त रहो पर त्रस्त नहीं| ”और फिर कुछ ऐसे खिलखिलाए थे कि उनकी आँखों में पानी भर आया था | 

सान्याल जी सारांश के भी मित्र बन गए थे| उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि मानसिक रूप से पारदर्शी जीवन के प्रति सहज श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था | वे बहुत अच्छे पाठक, श्रोता, चिंतक थे और जीवन के आने और जाने दोनों को ही एक उत्सव मानते थे | अकेले रहने के कारण उनका आना-जाना अधिक घरों में नहीं था और सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि वे किसी अंधविश्वासी व मूर्ख मनुष्य को सहन नहीं कर पाते थे | उन्होंने अपने यौवन-काल में ही एक दुर्घटना में अपने परिवार को खो दिया था | एक बेटा था जिसका उन्होंने उसकी पसंद की लड़की से विवाह कर दिया था और स्वयं अपने बचे रहने का अफ़सोस न करते हुए अपने एकाकी जीवन को सुरों में कुछ इस प्रकार बाँध लिया था कि लोग उनसे मन से प्यार करने लगे थे | जिस महफ़िल में वे न होते, वह महफ़िल सूनी सी लगती | 

सान्याल के मित्रों का दायरा कम था परंतु उन्हें पसंद करने वालों का, उनसे सलाह-मशविरा लेने वालों का दायरा काफ़ी बड़ा था | अधिकांश लोग इस तथ्य से परिचित हो गए थे कि वे किसी को गलत सलाह दे ही नहीं सकते | सारांश व समिधा के बढ़ते हुए बच्चों से उनकी दोस्ती हो गई थी | लोगों को इस बात पर बहुत आश्चर्य होता था कि वे अपने एकाकी जीवन के व्यवसायिक व सामाजिक जीवन को इस खूबसूरती से कैसे संभाल सकते हैं ?स्वाभाविक था कि यदि कुछ लोग उनके हितैषी थे तो कुछ उनके विरोधी भी थे | 

सुमित्रा के साथ बच्चे बहुत घुल-मिल गए, अपने नाश्ते-खाने के लिए वे सुमित्रा से ही पूछते | जब सारांश के साथ समिधा की व्यस्तताएँ बढ़ने लगीं तब सारांश ने उसे काम का बोझ कम करने का मशविरा दिया | 

दूरदर्शन व अन्य लेखन के अतिरिक्त सान्याल साहब उसकी आवाज़ से प्रभावित होकर उसे मंच-संचालन के लिए भी आमंत्रित करते रहते | दूरदर्शन में एक आदिवासी कार्यक्रम प्रसारित होना था, उसके संचालन के लिए समिधा का चयन किया गया | यही समय था जब समिधा आदिवासियों के जीवन के बारे में एक पुस्तक का गुजराती से हिंदी में अनुवाद कर रही थी | कई आदिवासी झाबुआ का विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए बुलाए गए थे | आज के युग में भी आदिवासियों की स्थिति इतनी बेचारगी से भरी है कि उन्हें पेट भर भोजन भी प्राप्त नहीं है | यह जानकार बहुत व्यस्तता के उपरांत भी जब समिधा के पास इन आदिवासियों के सुधार के लिए एक कार्यक्रम बनाने की योजना का प्रस्ताव आया, वह उसे अस्वीकार न कर सकी | सुमित्रा की निगहबानी के कारण ही तो समिधा अपनी व्यस्तता के बावजूद भी इसमें सम्मिलित हो सकी थी |