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सारांश की माँ इंदु बहुत चुस्त निकलीं, उन्हें अपने पुत्र के विवाह की बड़ी शीघ्रता थी | उन्होंने पुत्र से बात करने के दूसरे दिन ही समिधा के पिता तथा श्रीमती सूद से बात करके उन्हें बता दिया था कि वे अपने बेटे सारांश के लिए उनकी बेटी का हाथ माँगना चाहती हैं |
इंदु ने पहले श्रीमती सूद से बात की, उन्हें बताया कि वे जानती हैं कि समिधा अपनी माँ के समान ही उन्हें आदर देती है | अत: वे समिधा के पिता से आसानी से बात कर सकेंगी | श्रीमती सूद को बहुत आश्चर्य हुआ, उनका इस प्रकार आदर देना अच्छा भी लगा लेकिन बिना कुछ जाने-बूझे वे दूसरे की लड़की के बारे में कैसे कोई निर्णय ले सकती थीं ? निर्णय लेना तो बहुत दूर की बात थी, सोच भी कैसे सकती थीं ? उन्होंने इंदु से कहा कि उन्हें समिधा के पिता से बात करनी चाहिए यदि वे उन्हें बीच में लाना पसंद करेंगे तभी उनकी सलाह का कुछ मोल है अन्यथा –वे पिता हैं समिधा के, जो सोचेंगे अपनी बिटिया के हित के लिए, उसके भविष्य के लिए सोचेंगे | उनकी बेटी के बारे में उनसे अच्छा कौन सोच सकता है ? फिर भी वे यदि उससे कुछ पूछेंगे, तब वे उन्हें कुछ सलाह दे सकेंगी|
बिना आगे-पीछे की बात जाने-समझे वे कैसे समिधा के पिता से बात शुरू कर सकती थीं ? वे उस स्त्री के विषय में कुछ भी तो नहीं जानती थीं | यह बहुत नाज़ुक मामला था, इसमें बिना जाने-पहचाने कैसे अपनी नाक घुसाई जा सकती थी ? श्रीमती सूद ने कई लड़कियों के जीवन बर्बाद होते हुए देखे थे, किसीका भी जीवन इतना सस्ता नहीं होता कि बिना पूछे—परखे, बिना देखे-भाले उसे क़ुरबान कर दिया जाए |
इंदु को श्रीमती सूद का सुझाव ठीक लगा । उन्होंने तुरंत ही समिधा के पिता को फ़ोन लगाकर अपने पुत्र के लिए समिधा का हाथ माँग लिया | समिधा के पिता घबरा उठे, उनके लिए इस प्रकार बेबाकी से रिश्ते की बात करना उन्हें असमंजस में डाल गया | दौड़ते-भागते से वे श्रीमती सूद के पास पहुँचे और इंदु के फ़ोन के बारे में इतने ताबड़तोड़ तरीके से सारी बातें बताईं कि वे मुस्कुरा पड़ीं |
“यह तो बहुत शुभ सूचना है भाई साहब !”उन्होंने देखा सुम्मी के पिता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं | उन्होंने उन्हें ढाढ़स देने का प्रयास किया |
“क्यों परेशान हो रहे हैं ? सारांश की मम्मी इंदु का फ़ोन मेरे पास आ चुका है | बहुत समझदार महिला लग रही थीं, बंबई बुला रही थीं | वे इलाहाबाद से वहीं आ जाएँगी| ”
सुम्मी के पिता अवाक थे, अचरज में पड़े थे जैसे कोई सपना देख रहे हों | उनकी ज़िंदगी में अचानक ही ऐसी चीज़ें क्यों होने लगती हैं जिन पर विश्वास करना सरल नहीं होता ! अजीब सी शंकाओं ने उनके मस्तिष्क में हलचल मचा दी | बौखलाहट उनके चेहरे से गर्मी के पसीने की भाँति टपकने लगी | कहाँ भेज दिया इकलौती बिटिया को, ज़रूर चक्कर में पड़ गई होगी |
“हर पेड़ में काँटे नहीं होते भाई साहब ! बड़, पीपल, नीम छाया देने के साथ हमारे स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं | क्यों इतनी जल्दी निर्णय पर पहुँचने लगते हैं ?
“पर—समिधा से कैसे पहचान हुई होगी उनकी ? किसी चक्कर में न पड़ जाए---” वे बड़बड़ाए |
“यार—कभी तो पॉज़िटिव सोच लिया करो | हम साथ चलेंगे न आपके –ऐसे ही अपनी बिटिया दे देंगे क्या?”सुम्मी के पापा के आने से पहले ये पति-पत्नी यही बात कर रहे थे | उन्हें परेशान देखकर सूद साहब ने उनकी परेशानी के घाव पर तसल्ली का मरहम लगाया |
“मुझे लगता है, सुम्मी से बात करूँ ?”समिधा के पिता की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था | उन्हें कुछ सूझ ही नहीं रहा था, दिमाग जैसे एक कोरा कागज़ बन गया था | सो, श्रीमती एवं श्री सूद ने उस पर जो लिखा, वह उस पर लिखा गया |
तय हुआ सुम्मी से कुछ बात नहीं की जाएगी | दूसरी बार जब इंदु जी का फ़ोन आया सुम्मी के पिता ने उनसे बंबई में मिलने का दिन निश्चित कर लिया | वे अचानक वहाँ पहुँचकर अपनी बेटी की वास्तविकता जानना चाहते थे | श्रीमती एवं श्री सूद का उनके साथ जाना निश्चित हुआ और तय किए हुए दिन वे तीनों बंबई पहुँच गए |
सारांश ने समिधा को आश्वस्त किया था कि वह चिंता न करे उसकी मम्मी स्वयं उसके पिता से उनके रिश्ते के बारे में बात कर लेंगी | समिधा को सारांश की बात पर पूरा विश्वास था परंतु उसको स्वप्न में भी यह गुमान न था कि सारांश की माँ इतनी जल्दी यह सब कार्यक्रम निश्चित कर देंगी | अचानक एक दिन सुबह अपने पिता, सूद आँटी व अंकल को देखकर वह चौंक उठी |
आंतरिक प्रसन्नता के बावजूद वह पापा से नज़रें मिलाने से बचती रही | बॉस भाभी यानि निबेदिता ने बिना किसी से पूछे नाश्ता तैयार कर दिया और सबको अपने घर ले आईं | निबेदिता भाभी और रोज़ी दो लोग ही तो उसके राज़दार थे | इस समय समिधा को रोज़ी की ज़रूरत महसूस हो रही थी | रोज़ी व जैक्सन को बंधन में बांधने के उन्हें केवल जैक्सन के माता-पिता की प्रतीक्षा थी | अत: वे दोनों अपनी नई गृहस्थी को सजाने के सपनों को साकार करने में व्यस्त थे | रोज़ी बहुत कम समय के लिए समिधा से मिल पाती | समिधा उससे अपनी बातें बहुत कम साझा कर पाती थी | उसे आजकल अपना काम और जैक्सन से ही फुर्सत नहीं मिल पाती थी |
प्रेम –हिंडोले में झूलती दोनों सखियाँ किसी दूसरे संसार में ही विचरण कर रही थीं जो बहुत रोमांचक था, बहुत कोमल था, बहुत नाज़ुक था | एक निबेदिता भाभी ही थीं जिनसे समिधा अपनी बातें साझा कर पाती थी | सारांश बॉस पति-पत्नी से मिल चुका था |
नाश्ता करते हुए निबेदिता भाभी ने सूद आँटी से सारांश व उसके परिवार के बारे में बहुत कुछ बता दिया था |
पहले इंदु ने रेलगाड़ी से आने का कार्यक्रम बनाया था फिर न जाने क्यों उन्होंने सारांश को हवाईजहाज़ से आने की सूचना दी | उड़ान लगभग दस बजे बंबई पहुँचने वाली थी | जब सारांश हवाईअड्डे गया, उसके मन के झरोखे से माँ के साथ पापा के होने की एक नन्ही सी किरण झाँक रही थी | मन में पापा को देखने की एक छुईमुई सी कुलबुलाहट थी | माँ को अकेले देखकर उसके दिल को हर बार की भाँति फिर एक धक्का लगा |
सारांश के मन में एक छोटी सी आशा छिपी हुई थी, शायद पापा उसके जीवन के इतने बड़े निर्णय के समय तो उसके साथ होंगे | उसने माँ से कुछ नहीं पूछा, बस उनके गले लिपटकर एक लंबी साँस खींची |
‘तुम्हारी ज़िंदगी की यही सच्चाई है बेटा’इंदु ने मन में सोचा | वह अपने लाड़ले बेटे कीउस लंबी साँस से उद्विग्न हो उठी, उसकी आँखों में मजबूरी के आँसू सिमट आए | इंदु ने बहुत देर तक बेटे को अपने सीने से चिपकाए रखा जैसे शब्दों के अभाव में कोई नन्हा शिशु अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर पाता, वह चोट लगने पर चीखकर रोने और फिर सुबकने लगता है और माँ उसे पुचकारकर सोचती है कि उसके नन्हे बच्चे को न जाने कितनी और क्या पीड़ा होगी?जिसे वह बोल न पाने के कारण व्यक्त कर पाने में असमर्थ है !
इंदु ने बेटे की उस लंबी श्वांस में चोट खाए हुए उसी नन्हें बच्चे की सुबकी सुनी, वह बेटे की इस श्वांस का अर्थ बखूबी समझती थी | उसके भीतर ‘आह’ घुटकर रह गई | सारांश के पास अपनी व्यथा व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं थे और इंदु के पास उसे सांत्वना देने के लिए शब्दों का अकाल था | मूक वेदना से दोनों माँ-बेटे का अंतर आहत था |
कुछ देर में ही इंदु समिधा से मिलने के लिए व्यग्र होने लगी|
“पर माँ, मैंने तो अभी समिधा को बताया भी नहीं कि आप किस समय उससे मिलेंगी !”सारांश ने माँ से कहा |
“क्या फ़र्क पड़ता है, तुम मुझे समिधा के घर ले चलो न !”इंदु ने भी बेटे को नहीं बताया था कि वह समिधा के पिता से मिलने का समय सुनिश्चित कर चुकी है | माँ के मन में समिधा से मिलने की कुलबुलाहट सारांश ने फ़ोन पर उनकी उत्सुक आवाज़ से महसूस की थी लेकिन ?
“पर माँ---“
“नहीं सारांश, मैं अधिक समय यहाँ नहीं रुक सकूँगी | जो काम करना ही है, उसमें देर क्यों?”सारांश ने माँ के भीतर की व्याकुलता भाँपी | शायद माँ भी पापा से अपने साथ आने की अपेक्षा कर रही होंगी | उन्हें उससे अधिक पापा कि चिंता है, वह कुछ खिन्न सा होने लगा |
समिधा से मिलने के लिए माँ की उद्विग्नता देखकर सारांश उन्हें लेकर समिधा के क्वार्टर पर आ पहुँचा | वहाँ पर समिधा के पिता तथा और कुछ लोगों को देखकर उसे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई | माँ ने उसे बिना बताए ही सबको निमंत्रित कर लिया था | उसने माँ की ओर देखा, वे मुस्कुरा रही थीं | समिधा आँखें नीची किए उसे प्रश्नवाचक दृष्टि से घूर रही थी| सारांश स्वयं इस कार्यक्रम से अनभिज्ञ था, समिधा को वह क्या बताता ?