मैं चोर नही हूँ (अंतिम किश्त) Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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मैं चोर नही हूँ (अंतिम किश्त)

चम्पा ने दो टूक शब्दों में अपना फैसला सुना दिया था।
जयराम ने चम्पा को समझाना चाहा।पर व्यर्थ।चम्पा कोरे आश्वासन पर समर्पण के लिए तैयार नही थी।
जयराम की समझ मे चम्पा का व्यहार नही आया था।सुहागरात को औरत पहली बार पति से मिलन के लिए उत्सुक रहती है।लेकिन चम्पा अपनी मांग को लेकर ज़िद्द पर अड़ गयी।चम्पा का मानना था कि अगर वह आज समर्पण कर देगी तो फिर अपनी मांग कभी पूरी नही करा पाएगी।इसलिए उसने समर्पण से पहले शर्त रख दी थी।
सुहागरात का सपना हर औरत और आदमी देखता है।क्योंकि सुहागरात हर औरत मर्द की ज़िंदगी मे सिर्फ एक बार आती है।इस रात को शादी के बाद पहली बार पति और पत्नी का मिलन होता है और वे एक दूसरे के हो जाते है।लेकिन इस रात को जयराम और चम्पा का शारीरिक मिलन नही हो पाया।एक छत के नीचे रहकर भी उनके बीच की दूरी नही मिटी।दो दिन बाद चम्पा विदा होकर मैके चली गयी।
जयराम का ख्याल था।कुछ दिनों बाद चम्पा गहनों वाली बात भूल जाएगी।इसलिए एक सप्ताह बाद जयराम खुशी खुशी चम्पा को लेने ससुराल पहुंचा था।लेकिन चम्पा ने उसके साथ आने से साफ इंकार कर दिया था।जयराम ने पत्नी को समझाना चाहा तो वह बोली,"कैसे मर्द हो जो पत्नी की छोटी सी इच्छा भी पूरी नही कर सकते।"
जयराम अकेला लौट आया।दोस्तो से वह कब तक छिपाता।सच्चाई जानने के बाद दोस्तो ने उसका खूब मज़ाक उड़ाया।सारे गांव में यह बात फेल गयी कि चम्पा ने बिना गहने लिए उसके साथ आने से मना कर दिया है।लोग उसे देखकर तरह तरह की बाते करते थे।इसलिए उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।वह घर मे पड़ा सोचता रहता।अब तक वह फालतू घूमता था लेकिन अब उसे कुछ करना होगा।जब रेस्ट में रामदेव घर आया तब वह बोला,"भैया मैं काम करना चाहता हूँ।"
भाई की इच्छा जानकर रामदेव खुश हुआ था।जब वह ड्यूटी पर था।उसने स्टेशन मास्टर नारंग से अपने भाई को नौकरी पर रखने की प्रार्थना की थी।नारंग ने जयराम को अस्थायी पानी वालो में रख लिया था।आसलपुर स्टेशन पर कम ही ट्रेने रुकती थी।जयराम का काम था।ट्रेन आने के समय यात्रियों को पानी पिलाना और स्टेशन पर सफाई का काम करना।स्टेशन मास्टर के घर भी उसे काम करना पड़ता था।वह स्टेशन मास्टर के घर पर छोटे मोटे काम करने के साथ बाजार से सब्जी व अन्य सामान लाने का काम भी करता था।
एक दिन वह बाजार गया तो सुनार की दुकान पर जा पहुंचा।उसने सोने का भाव मालूम किया।चार हज़ार रुपये था।इसका सीधा सा मतलब था।चम्पा की फरमाईस पूरी करने के लिए कम से कम पन्द्रह हज़ार रु चाहिए।वह अस्थायी था।उसे हज़ार रु भी पूरे तनखाह नही मिलती थी।फिर महीने का खर्च।जैसे तैसे हर महीने सौ दो सौ रु बचा सकता था।इसका मतलब था।चम्पा की इच्छा पूरी करने में पांच सात साल लग जाएंगे।
जयराम रात दिन चंपा के ख्यालो मे डूबा रहता।चम्पा उसकी पत्नी का जवान जिस्म उसे ललचाता रहता।शादी के बाद वह जिस्म उसका था लेकिन अभी भी उसे नही मिला था।चम्पा और उसके जिस्म के बीच गहनों की दीवार थी।धीरे धीरे समय बीत रहा था।
राखी का त्यौहार आने पर माताजी(स्टेशन मास्टर की पत्नी)अपने भाई के पास अजमेर चली गई थी।राखी के दिन जयराम ड्यूटी पर आया था।ट्रेने निकलने के बाद स्टेशन मास्टर उसे क़वाटर की चाबी देते हुए बोले,"नल आ रहे होंगे।पानी भर आना और चाय बना लाओ।"
जयराम ने पहले पानी भरा फिर झाड़ू लगाने लगा।वह कमरे में आया तो चोंक पड़ा।माताजी का बक्सा बिना ताले के रखा था।लाख कोशिश करने पर भी वह अपने को बक्सा खोलने से रोक नही पाया।बक्से में दस दस के नए नोट रखे थे।और देखने पर एक पोटली नज़र आयी।उसमे सोने का हार और चुडिया रखी थी।गहने देखते ही चम्पा याद आ गयी और एक आवाज आई दिल से,"जयराम इन्हें रख लो"।
उसके ज़मीर ने उसे धिक्कारा,"स्टेशन मास्टर ने तुम्हे नौकरी पर रखा।माताजी तुम पर विश्वास करती है ।उन्ही के साथ धोखा?"
तब ही दिल से आवाज आयी,"आज मौका चूक गए तो चम्पा को पाना मुश्किल है।"
वह सोच में पड़ गया।एक तरफ चम्पा थी।दूसरी तरफ उसका जमीर।एक तरफ उसका ईमान था दूसरी तरफ चम्पा का जवान जिस्म
ईमान और हुस्न की लड़ाई में जीत हुस्न की हुई।
जयराम ने गहने चुरा लिए।गहने तो चुरा लिए लेकिन दिल मे चोर बैठा था।वह बड़े बाबू पर नज़र रखने लगा।दो दिन बाद माताजी भी लौट आयी।कोई प्रतिक्रिया नही तब वह दो दिन की छुट्टी लेकर ससुराल चला गया।
गहने पाकर चम्पा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।वह जयराम की हो गयी लेकिन सुबह ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया।
जयराम ने साथियो को देख"मैं चोर नही हूँ।लेकिन औरत कज जिद्द ने मुझे चोर बना दिया।"