मैं चोर नही हूँ - (पार्ट2) Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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मैं चोर नही हूँ - (पार्ट2)

आगे की पढ़ाई के लिए उसके गांव में स्कूल नही था।उसे जोबनेर के स्कूल में भर्ती करा दिया गया।जोबनेर उसके गांव से दो मील दूर था।वह गांव के लड़कों के साथ स्कूल जाने लगा।
वह गन्दे लड़को की सगत मेंं पड़ गया ।उसका पढ़आई से ज्यादा ध्यान खेल में रहनेे लगा।जिसकी वजह से वह पढ़ाई में पिछड़ने लगा।आठवी क्लास तक तो वह जैसे तैसे पास होता रहा लेेेकीन नवी क्लास में आकर अटक गया।जब वह लगातार दो साल तक फेल हुआ।तब उसकेे कारनामे सामने आए।उसका मन पढ़ाई में न देख कर उसका स्कूल छुड़ा दीया गया।
स्कूल जाना बंद हो गया लेकिन उससे कोई फायदा नही हुआ।बड़ा भाई राम देव आसलपुर स्टेशन पर रेलवे में पॉइंट्समैन था।वह सप्ताह में एक दिन रेस्ट में गांव आता था।इसलिये उसे रोकने टोकने वाला कोई नही था।जयराम सुबह से रात तक गांव में आवरागर्दी करता रहता।
रामदेव जब घर आता तब उसकी पत्नी और माँ जयराम की शिकायत करते।रामदेव की समझ मे नही आता।वह क्या करे?काफी दिनों तक सोच विचार करने के बाद रामदेव ने अपने छोटे भाई जयराम के पैरों में बेडियां डालने का निश्चय किया।
और रामदेव,जयराम के लिए रिश्ता ढूढने में लग गया।रिश्तेदारी में और मित्रों स उसने रिश्ते के लिए कहा।और आखिर उसे भाई के लिए रिश्ता मिल ही गया।रिश्ता मिलने के बाद उसने देर नही की।सगाई और फिर शादी।
चंपा को बचपन से ही गहनों का शौक था।गांव में जब भी बिसाती सामान बेचने के लिए आता।वह भी जिद्द करती।हाथ धोकर माँ के पीछे पड़ जाती।माँ को बेटी कक जिद्द पूरी करनी ही पड़ती।चंपा नकली गहने पहनकर खूब खुश होती।अपने गहने वह गांव में सब को दिखाती फिरती।
जब वह बड़ी और समझदार हुई तब किसी सहेली की या गांव की किसी लड़की की शादी होते देखती,तो उसके दिल मे भी उमंगे उठती।ससुराल से आये गहनों को देखकर वह मधुर सपनो में खो जाती,"उसके सपनो का राजकुमार घोड़ी पर चढ़कर आएगा।उसे गहनों से लादकर अपने साथ ले जाएगा।"
सपने बन्द आंखों का भरम होते है।सच नही होते।आंखे खुलने पर रेत के महल की तरह ढह जाते है।ऐसा ही चंपा के साथ हुआ था।उसे अपने मायके की तरह ससुराल भी गरीब मिली थी।इसलिए उसकी गहनों की साध पूरी नही हुई।
सुहागरात के बारे में सहेलियों ने उसे अपने अनुभव बताये थे।उसे यह भी बताया था की उस रात वह पति से जो चाहे पति से मांग सकती है।और उसने भी मन मे एक निश्चय कर लिया था।
सुहागरात को दोस्तो से विदा लेकर वह देर रात घर पहुंचा था।सब सो चुके थे लेकिन भाभी जग रही थी।वह जयराम को देखते ही बोली,"आज की रात भी इतनी देर से आये हो?"
जयराम कुछ नही बोला तब भाभी बोली,"ऊपर कमरे में चले जाओ।"
जयराम कमरे में पहुंचा था।कमरे में दिया जल रहा था।चंपा घूंघट निकाले सुहागसेज पर बैठी थीं।जयराम उसके पास जा बैठा।हाथ बढ़ाकर उसने चंपा का घूंघट उठाया।चंपा ने शर्माकर अपना मुंह घुटनो के बीच छिपा लिया था।
"पति से शर्म कैसी?"जयराम,चंपा का चेहरा ऊपर करते हुए बोला,"अति सुंदर।"
सूंदर पत्नी के सुंदर जिस्म को उसने आगोश में लेना चाहा लेकिन चंपा छिटक कर दूर हो गयी।उसने दो तीन बार प्रयास किया लेकिन चंपा पास नही आयी तब जयराम बोला,"क्या बात है?जो बदन को छूने भी नही दे रही?"
"पहले मुँह दिखायी।"
"ओह भूल गया,"गलती का एहसास होने पर जयराम ने माफी मांगते हुए उसकी जेब मे जो नोट थे।निकाल कर दे दिए।
"क्या करूँगी इनका?"चंपा ने ऐसे देखा मानो उसके लिए बेकार हो।
"फिर क्या चाहिए?"जयराम,चंपा का हाथ पकड़कर बोला,"हुक्म करो।आसमान से तारे भी तोड़ लाऊंगा।"
"तारो का क्या करूँगी,"चंपा,जयराम का हाथ अलग करते हुए बोली,"मुझे सोने का हार चाहिए।गहने चाहिए।"
"बस इतनी सी बात।वह भी ला दूंगा।"जयराम ने प्यार से कहा और चंपा की तरफ हाथ बढ़ाया
"जब गहने ला दोगे।तभी अपना तन तुम्हे छूने दूंगी।"
(शेष अंतिम भाग में)