प्यार के इन्द्रधुनष - 22 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार के इन्द्रधुनष - 22

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आज प्रातः चिड़ियों की हृदय-विमोहक चहचहाहट सुनकर जैसे ही डॉ. वर्मा की आँख खुली, वह बेड पर ही आलथी-पालथी मारकर बैठ गई और सोचने लगी - आज स्पन्दन एक वर्ष की हो गई है। चाहे रेनु की कोख से उसने जन्म लिया है और वे ही उसे पाल-पोस रहे हैं, फिर भी मुझे एक माँ के सुख की अनुभूति होती है जब-जब वह मेरी ओर आँखें फैलाकर देखती है या मेरी छाती से लगी होती है। रोती हुई स्पन्दन मेरी छाती से लगकर तुरन्त चुप हो जाती है। ज़रूरी तो नहीं कि कोख से जायी सन्तान के लिए ही ममता जाग्रत हो! कवि दिनकर ने उचित ही कहा है -

केवल भ्रूण वहन, केवल प्रजनन मातृत्व नहीं है

माता वही, पालती है जो शिशु को हृदय लगाकर।

ठीक है कि अभी साल-दो साल स्पन्दन को रेनु ही पालेगी, किन्तु उसके बाद तो उसे मेरे पास ही रहना है। जब हमारे अन्तस् में पालतू जानवरों के लिए ममत्व जाग सकता है तो पराई कोख से जायी सन्तान के लिये यदि मेरे मन में अपनत्व की भावना पैदा हुई है, तो क्या ऐसा होना अस्वाभाविक माना जायेगा? हमारे पौराणिक आख्यानों में वर्णित यशोदा का कृष्ण के प्रति ममत्व अद्वितीय उदाहरण है। स्पन्दन तो फिर भी मेरे ‘अपने’ मनु की सन्तान है। मुझे कितनी प्रसन्नता हुई थी जब कल शाम मनु ने स्पन्दन का जन्मदिन मेरे साथ मनाने की बात तुरन्त मान ली थी। स्पन्दन के आने से मनु के जीवन में रवानगी आई है। मान सकती हूँ कि मेरे प्यार भरे आग्रह का सम्मान करते हुए उसने एम.ए. करने तथा कंपीटिशन की तैयारी आरम्भ की है। मेरे लिए इससे अधिक प्रसन्नता की बात और क्या होगी कि मनु ने आई.ए.एस. का प्री-लिम भी पास कर लिया है। सफलता की सीढ़ी के प्रथम पायदान पर उसके पाँव पड़ गए हैं तो मंज़िल भी अवश्य उसके क़दम चूमेगी। आज पहली बार मेरे घर में ख़ुशियाँ मनाने का अवसर आया है। आज मैं छुट्टी ले लेती हूँ ताकि स्पन्दन का जन्मदिन मनाने के लिए घर को थोड़ा-बहुत सजा सकूँ।

स्नानादि तथा नाश्ता करने के पश्चात् डॉ. वर्मा स्वयं बाज़ार गई। जाने से पूर्व वासु को घर की अच्छी तरह से साफ़-सफ़ाई करने का निर्देश दिया। बाज़ार से जन्मदिन का केक, जोकर कैप्स, बेल-बूटे, रंग-बिरंगे ग़ुब्बारे, हैप्पी बर्थडे की झालर तथा लाइटों की लड़ियाँ खरीदीं। स्पन्दन के लिए नई ड्रेस, बालों को सजाने के लिये रिबन, हेयरबैंड, क्लिप, लाइट और सीटी वाले जूते आदि कई कुछ ख़रीदा।

घर आकर वासु की सहायता से सारी साज-सज्जा को अंजाम दिया। शाम होने से पहले बगीचे में कूलर, कुर्सियाँ और टेबल रखवाया। बगीचे में पेड़-पौधों पर लाइटों की लड़ियाँ टँगवाईं।

जब शाम को मनमोहन रेनु और स्पन्दन को लेकर पहुँचा तो डॉ. वर्मा बगीचे में बैठी उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। उनके आते ही उसने रेनु की गोद से स्पन्दन को लेकर चूमा, छाती से लगाया। मनमोहन ने पूछा - ‘वृंदा, यहीं बैठना है?’

‘अरे नहीं। यहाँ तो डिनर करेंगे। मेरी स्पन्दन का बर्थडे तो अन्दर मनाएँगे।’

जब वे अन्दर आए तो घर की, विशेषकर ड्राइंगरूम की साज-सज्जा देखकर रेनु तो दंग रह गई। मनमोहन ने प्रशंसा करते हुए कहा - ‘वृंदा, स्पन्दन का बर्थडे मनाने के लिए तुमने बहुत मेहनत की है। यह बर्थडे हमेशा याद रहेगा। तुम्हें बहुत-बहुत बधाई एवं धन्यवाद।’

‘स्पन्दन के बर्थडे की तुम दोनों को भी बहुत-बहुत बधाई।’

रेनु चाहे स्पन्दन को तैयार करके लाई थी, फिर भी डॉ. वर्मा उन्हें बैठने के लिये कहकर स्पन्दन को अपने बेडरूम में ले गई। जब काफ़ी देर तक डॉ. वर्मा बेडरूम से नहीं निकली तो रेनु वहीं पहुँच गई। स्पन्दन को नई ड्रेस में सजी-धजी देखकर शर्मिंदगी-सी महसूस करते हुए रेनु ने बेचारगी के से स्वर में कहा - ‘दीदी, मैं तो इसे तैयार करके लाई थी!’

डॉ. वर्मा ने महसूस किया कि रेनु आहत महसूस कर रही है, सो उसे सहज महसूस करवाने के लिए पूछा - ‘रेनु, तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा?’

‘नहीं दीदी, ऐसी तो कोई बात नहीं।’

‘बुरा न मानना। आज स्पन्दन के बर्थडे पर मैं स्वयं उसे तैयार करने के आनन्द की अनुभूति करना चाहती थी। सो, मैंने कर लिया। अगर तुम्हें पसन्द न हो तो तुम पहले वाली ड्रेस पहना सकती हो।’

डॉ. वर्मा द्वारा स्पन्दन को नए सिरे से तैयार करना रेनु को अच्छा तो नहीं लगा था, लेकिन उसकी अंतिम बात ने उसके मनोमालिन्य को दूर कर दिया। उसे कहना पड़ा - ‘दीदी, गुड्डू आपकी बेटी है। आपकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है। अब चलें?’

‘रेनु, तुम स्पन्दन को लेकर चलो, मैं पाँच मिनट में आई।’

स्पन्दन को नई ड्रेस में देखकर मनमोहन मन-ही-मन प्रसन्न हुआ, लेकिन रेनु की भावनाओं को ठेस न पहुँचे, यह सोचकर उसने कोई कमेंट नहीं किया।

डॉ. वर्मा जब ड्राइंगरूम में आई तो उसका रूप भी देखने लायक़ था। आज पहली बार उसके माथे पर सजी बिन्दी देखकर मनमोहन मन-ही-मन सोचने लगा, स्त्री के हर शृंगार-उपादान का अपना महत्त्व होता है। केवल बिन्दी लगाने से ही वृंदा के मुखमंडल की शोभा द्विगुणित हो गई थी। मनमोहन ने तो नहीं, रेनु ने ज़रूर उसकी साड़ी के बहाने डॉ. वर्मा की तारीफ़ की।

अँधेरा होने लगा था। डॉ. वर्मा ने लाइटें जलाईं और वासु को सब सामान लाने के लिए कहा। जब सब कुछ टेबल पर सजा दिया गया तो डॉ. वर्मा ने अपना टेबलेट वासु को पकड़ाते हुए उसे समझाया कि कैसे क्लिक करना है।

तदुपरान्त डॉ. वर्मा ने स्पन्दन को अपनी गोद में लेकर उसके हाथ में छुरी देकर तथा उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ते हुए केक काटा और ‘हैप्पी बर्थडे टू स्पन्दन’ की चेंटिंग के बीच केक का छोटा-सा टुकड़ा स्पन्दन के मुँह में लगाया और सभी को हैरान करते हुए वह भी फटाफट चट कर गई। डॉ. वर्मा ने रेनु को गले लगाकर बधाई दी। मनमोहन और रेनु ने डॉ. वर्मा को शानदार आयोजन के लिए बधाई दी। फिर चाय-नाश्ते का दौर चला। घर-परिवार की बातें हुईं। इसी बीच डॉ. वर्मा ने मनमोहन को कहा - ‘मनु, आजतक तुमने मेरी हर सलाह मानी है। आज एक सलाह और देना चाहती हूँ।’

‘वृंदा, जब तुम जानती हो कि मैं तुम्हारी सलाह हमेशा मानता हूँ तो आज भूमिका क्यों, बेझिझक कहो जो तुम्हारे मन में है।’

‘मनु, तुमने प्री-लिम क्लीयर कर लिया है। फ़ाइनल एग्ज़ाम पूरी तैयारी के साथ देने के लिए तुम्हें तीन महीने की कोचिंग के लिए दिल्ली जाना चाहिए।’

‘वृंदा, तुमने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं भी छुट्टियाँ अप्लाई करने की सोच रहा था। यक़ीं न हो तो रेनु से पूछ लो।’

‘रेनु से क्यों पूछूँगी? तुम्हें क्या आज से जाना है? ....मनु, आज तुम लोग यहीं रुकना। स्पन्दन को मैं अपने साथ सुलाऊँगी।’

‘तुम्हारी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है। लेकिन, हम तो रात को बदलने के लिए कपड़े वग़ैरह तो हमारे पास हैं नहीं।’

‘उसकी चिंता मत करो। रेनु को मैं नाइटी दे दूँगी, तुम्हारे लिए वासु मार्किट से नाइट-सूट ले आएगा।’

मनमोहन ने रेनु की ओर देखा। रेनु का मुखमंडल प्रसन्नता से दमक रहा था। उसने कहा - ‘दीदी की बात को टालना मेरे वश में तो है नहीं। बाक़ी जैसा आप ठीक समझें।’

‘मनु, रेनु का भी मन है मेरे पास रुकने का। अब ‘हाँ’ कह दो।’

‘जब दो बहनें एक तरफ़ हों तो मुझ बेचारे की कहाँ हिम्मत है कि उनकी बात न मानूँ! ..... लेकिन, मार्किट से कुछ मँगवाने की ज़रूरत नहीं। मैं दस मिनट में अपने कपड़े घर से ले आऊँगा।’

हँसी-ख़ुशी के इस माहौल में स्पन्दन भी एकाएक खिलखिला उठी। उसे खिलखिलाते देख कर मनमोहन ने टिप्पणी की - ‘देखो, दो-दो मम्मियों को खुश देखकर स्पन्दन भी कितनी खुश हो रही है!’

मनमोहन द्वारा डॉ. वर्मा को स्पन्दन की मम्मी कहना उसे बहुत अच्छा लगा। अब वह निःसंकोच स्पन्दन से स्वयं को मम्मी बुलवा सकेगी जब भी वह अच्छी तरह बोलने लगेगी। इस प्रकार प्रफुल्लित मन से उसने स्पन्दन को गोद में उठाया और मनमोहन को फ़ोटो क्लिक करने के लिए कहा। फिर वासु को बुलाकर ग्रुप फ़ोटो खिंचवाया, जिसमें डॉ. वर्मा और रेनु मनमोहन के अग़ल-बग़ल खड़ी थीं।

जब वासु टेबलेट वापस पकड़ाकर रसोई की तरफ़ चला गया तो मनमोहन ने टेबलेट खोलकर अंतिम फ़ोटो देखते हुए कहा - ‘वृंदा, यह हमारी परफ़ेक्ट फ़ोटो है। गुड्डू और रेनु ने जहाँ मेरे जीवन को परिपूर्ण किया है, वहीं तुम मेरे जीवन की प्रेरणा बनी हो।’

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