Gaanv Ki Lok kahaniyaan - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

गाँव की लोक कहानियां - 2 - राक्षस का भाई भाक्षस

गतांक से आगें:-

जब वे दोनों अर्थात साहूकार का लड़का और ब्रह्माण का लड़का विश्राम करने के बाद उठते है तो फिर वे दोनों शहर के तरफ जाने वाले रास्ते में आगे बढ़ते हुये अपनी यात्रा को शुरू कर देते है।

कुछ दूरी तक चलने पर उन दोंनों को रास्ते में एक नगाड़ा मिलता है तो ब्राह्मण का लड़का उसे भी उठाकर अपने पास रख लेता है। इसी तरह से रास्ते पर चलते हुुये उन्हें साहींकांटा(शाही कांटा),जमूरा आदि समान मिलता है जिन्हें ब्राह्मण का लड़का उठाकर अपने पास रख लेता है।

अब वे सभी समान को साथ में रखकर आगे चलते रहते है और संध्याकाल का समय भी हो चुका था और सूर्यास्त हो गया था। आसमान में संध्याकाल के मध्यम प्रकाश फैला हुआ था तो वे दोनों चलते-चलते एक गाँव में पहुंचे और अब अंधेरा भी हो गया था।

पर उन्हें यह पता ही नहीं था कि वह गाँव राक्षसों का गाँव है। इस समय गाँव में बजुर्ग दानव स्त्री-पुरूष और बच्चे थे और जवान राक्षस शिकार की तलाश में जंगलों में गये हुये थे। साहूकार और ब्राह्मण का लड़का गाँव के बजुर्गों को देखकर उनसे कहते है कि हम दोनों शहर में काम करने के लिए घर से निकले हुये है पर अब अंधेरा भी हो गया है तो क्या हम दोनों को आज रात गुजारने के लिए यहां पे जगह मिलेगा।

वे दानव उन दोनों को देखकर बहुत ही खुश हो जाते हैं..होते भी क्यों नहीं। आज तो उनका शिकार खुद ही उनके पास चलकर आया है। दानवों ने उन्हें रहने के लिए हाँ कर दिया और उनका अतिथि के रूप में बेहतर तरीके से स्वागत किया। उनके पाँव धोयें,जलपान आदि कराकर उन्हें एक खुबा (अतिथि को रहने के लिए विशेष कमरा ) में ठहराया और बढ़िया से बढ़िया लजीज पकवान,फल, दूध आदि उन्हें रात्रि के भोजन में दिया। इतना अच्छा स्वागत देखकर साहूकार का लड़का बेहद ही खुश हो जाता है।पर उन्हें क्या पता था कि मुर्गे को हलाल करने से पहले उसको अच्छे खिलाया पिलाया जा रहा है।

थकान होने के कारण साहूकार के लड़के को जल्दी से नींद आ जाती है। परंतु ब्राह्मण के लड़के को नींद नहीं आ रही थी। उसे शंका होने लगी थी कि बिना कुछ पैसे लिये हमें इतना सत्कार दिया जा रहा है।कुछ तो कुछ गडबड़ी जरूर है।

तो ब्राह्मण का लड़का कमरे से बाहर निकल जाता है ताजी हवा में कुछ देर के लिए घुमने के लिए...तो उसकी नजर आपस में बातचीत कर रहें दानवों के झुंंड़ पर पढ़ती है तो वह चुपके से उनकी बातें सुनने के लिए एक दीवार के पीछे छुप जाता है और उनकी बातें सुनने लगता है।

वे दानव आपस में एक-दूसरे से कह रहे थे कि आज तो हमें खाने में मनुष्य के मांस से बना पकवान मिलेगा।उन दो मनुष्य को मारकर उनके मांस को पकाकर खायेंगे आज। आज तो बहुत खुशी का दिन है...आज हमारा शिकार खुद ही हमारे पास चलकर आया है।

ये बातें सुनकर ब्राह्मण का लड़का हैरान हो जाता है और सोचने लगता है कि यहां पे तो हम दोनों आ गये है ..पर हमारा जीविि बचना तो मुश्किल ही है।ये दानव तो हमें मारकर अपना भोजन बना लेंगे। हम तो यहां आकर बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गये । अब आगे खाई तो पीछे कुआं जैसी स्थिति हो गई है।

साहूकार का लड़का इन सब बातों से अनजान था और वह तो चैन के साथ मखमली गद्दे पर सो रहा था और आज बहुत खुश भी था वह क्योंकि उन दोनों की खातेदारी सभी दानवों ने अच्छे से की थी।स्वादिष्ट पकवानाादि भी दिये थे।

क्रमश:- शेष अगले एपिसोड़ में लिखूंगा और इस रोचक कहानी को पढ़ने के लिए जुडे रहिये मेरे साथ यानि निखिल ठाकुर जी के साथ और मुझे फोलो जरूर करें जिससे मेरी कहानियों के नये-नये एपिसोड़ की अपडेट की नोटिफिकेशन आप सबको मिलती रहें और आप कहानी के लुत्फ को उठा सके।

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