सोच - कुछ अनकही बातें अपनों के साथ - 1 निखिल ठाकुर द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सोच - कुछ अनकही बातें अपनों के साथ - 1

1. रिश्ते
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कभी -कभी मन बहुत व्यथित हो जाता है रिश्तों की बिगड़ती तकदीर को ...समझ ही नहीं आता है कि क्या करना सही होता है ..क्या नहीं करना ।
बस हम सब जिन्दगी की रेस में दौड़ते-दौड़ते इतने आगे निकल जाते हैं कि जिससे कुछ रिश्ते हमसे दूर होते जाते है।
चाहे कितनी भी कोशिस ना कर लें हम पर रिश्तों को कभी भी सही तरीके समझ ही नहीं पायेंगे।कई बार परिस्थिति और हालात भी ऐसे होते है कि जिनकी वजह से हम कुछ भी नहीं कर पाते है।चाहकर भी टूटते हुये रिश्तों को सम्भाल नहीं पाते है।चाह करके भी उन्हें टूटने से रोक ही नहीं पाते है हम..क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे होते हैं हमारे सामने कि जिसमें हम कुछ कर ही नहीं सकते है और दूर होने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं होता है ।
जब एक बार ये दूरियां बढ़ जाती है तो लाख कोशिसें करने के बाद भी इन दूरियों को मिटा पाना नामुकिन होता है और दिल के सारे अरमान व ख्बाब टूट कर बिखर जाते है।
व्यक्ति चाहे जितनी भी कोशिस कर लें अपनों रिश्तों को सम्भालने की ...पर आखिर में उसकी वफा पर ही सवाल उठा दिये जाते है ।उसकी कमियों को गिनाया जाता है..उसकी कमजोरियों को बताया जाता है।उसने कभी भी अगर कोई बुरी बात कही हो या बुरा बर्ताव किया हो तो उसे बताया जाता है।
ये सब बाते हर रिश्ते में ही तो लागू होती है।चाहे वो प्यार हो या दोस्ती,घर-परिवार अथवा पति-पत्नि का रिश्ता हो। जब भी किसी रिश्ते में लड़ाई -झगड़े होते हैं तो हम फिर एक -दूसरे की बुराई करने लगते है।एक-दूसरे के नकारात्मक पहलु को बताने लगते है।एक-दूसरे के बारे में उल्टी-सीधी बाते करने लगते है।
कभी भी हमने शांति से बात को सुलझाने का प्रयास ही नहीं किया। कभी भी एक-दूसरे को समझाने का प्रयास ही नहीं किया ।
आखिर ऐसा क्यों! हां मानता हूं मैं कि गुस्से में व्यक्ति बहुत कुछ बोल देता है और कुछ ऐसी बाते भी बोलता है जो कि दिल को बहुत चुभती है।वो बातें दिल में बहुत गहरा प्रभाव भी छोड़ती है। पर क्या यूं ही रिश्तों को टूटते हुये देखता रहना समझदारी है क्या?
कमियां तो सभी में होती है पर कभी हमने उन कमियों को खोजने का प्रयास किया और उन्हें खोजकर दूर करने का प्रयास किया।
कभी -भी नहीं ..और हाँ शायद हमने अपने कमियों को ढूंढने की कोशिस ही नहीं की।
पता है एक रिश्ते में दरार कब आती है जब हम ..एक-दूसरे को सही से समझ नहीं पाते हैं ।जब हम एक-दूसरी की भावनाओं की कद्र ही नहीं करते है।जब हम खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने की भुल करते है।जब हम अपने रिश्तों के लिए सही तरीके से सीरियस होते ही नहीं।जब हम एक-दूसरों को अहमियत देना बंद कर देते है।एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र ही नहीं करते है।तो हर रिश्तों में दरार आ जाती है और जब एक बार यह दरार रिश्तों के बीच आ जाती है तो धीरे-धीरे विश्ववास खत्म होने लगता है और जब विश्वास पूरी तरह से खत्म हो जाता है तो दूरियां बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।फिर चाहकर भी इन दूरियों को मिटा पाना असंभव होता है और जब हम इन दूरियों को मिटाने की कोशिस करते है तो उस व्यक्ति का विश्वास ही हम पर से खत्म हो चुका होता है और दोबारा विश्वास ही नहीं कर पाता है।फिर चाहे हम लाख बदल जाये।
अपने रिश्तों की अहमियत को समझों और उसे संजोकर रखो।यकीन मानिये अगर आप अपने रिश्ते के प्रति सीरियस हो तो आपके रिश्तों में कभी दरार नहीं आयेगी।
वो कहते हैं ना कि-
कभी- कभी कुछ बातों को यूं ही हंसते हुये टाल देना चाहिये !जिन्दगी खुबसूरत बनने लगी फिर!!
याद रखिये इंसानी रूप हमें एक ही बार मिला मरने के बाद क्या पता कि हमें दूबारा यह इंसानी रूप मिले ।तो इस तरह से अपने रिश्तों को बर्बाद ना करें ।बाद में पछतावा करने से अच्छा है कि हम समय के साथ वक्त की निजाकत को समझे और अपने रिश्तों में प्यार की मीठी चाशनी ड़ालकर उसे सही से निभाने की कोशिस करें।
और हां एक रिश्ता हमारा और आपका भी जो अनजाने से प्यार का है ....आप सब मेरी पुस्तकों को पढ़ते है और अपना प्यार मुझे देते है उसके लिए में दिल से आभारी हूं आप सबका ।आप सबका साथ और प्यार यूं ही हमेशा बना रहे मेरे साथ इसके लिए मैं हमेशा कोशिस करूंगा कि कुछ अच्छा लिखूं जो आपके दिल को अच्छा लगे और आप सबका साथ और प्यार यूं ही मिलता रहें।