जु़र्म - 2 Pragati Gupta द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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जु़र्म - 2

2.

मां की लगातार आवाज़ें जब व्यस्त अनुष्का तक पहुंची, वो घबराकर दौड़ती हुई अपरा के कमरे में पहुंच गई| और आते ही बोली...

“आप कब से मुझे पुकार रही थी माँ?... सॉरी... मैं आपकी आवाज़ सुन नहीं पाई| मैं अपने कामों में इतना खो हुई थी कि कब बारिश शुरू हुई, आभास भी नहीं हुआ| सॉरी मम्मा अब मैं आ गई हूं न, आप बिल्कुल परेशान मत होइए|”

बेटी का बार-बार सॉरी बोलना और बच्चों के जैसे समझाना अपरा को कचोट रहा था| उसको मन ही मन आत्मग्लानि हो रही थी| ताउम्र बच्चों का संबल बनने वाली, खुद बेटी के सामने खौफ़ से कांप रही थी| उसका जोर अपने भावों पर नहीं था| अपरा ने कांपती हुई उंगलियों से अनुष्का को छुआ...

“तू तो जानती ही है तेज बारिश में मेरा जी बहुत घबराता है| कितनी बार कहा है जब भी बारिश हो, तुम या तेजस मेरे कमरे में आ जाया करो| मन थोड़ा जल्दी शांत हो जाता है| इतनी मूसलाधार बारिश जयपुर में कम ही होती थी बेटा|”

“तेजस जब पानी लेने रसोई में आया था, मैंने ही उसको बोला था एक बार आपको देखता आए| आप तल्लीनता से नॉवेल पढ़ रही हैं, उसने ही मुझे बताया| गलती हमारी है माँ... मुझे ही कुछ सोचना चाहिए था| अगर मेरे ऑफिस का काम खत्म नहीं हुआ था, तो आपको बताकर जाना चाहिए था|”

अनुष्का के पास आ जाने और बातों की दिशा बदलने से अपरा धीमे-धीमे शांत हो रही थी| अपरा के सामान्य होते ही अनुष्का ने लेपटॉप पर अपना काम शुरू किया ही था कि हल्की हुई बारिश, वापस तेज हो गई| ज्यों ही अपरा ने पुनः दूजहना शुरू किया, अनुष्का सब काम छोड़कर मां की रॉकिंग चेयर के पास ज़मीन पर जाकर बैठ गई| और मां की गोद में सिर रख लिया| और हौले-हौले माँ के हाथों को पकड़कर सहलाने लगी|

काफी देर तक अपरा के पैर पर अनुष्का अपना सिर रखकर बैठी रही और उसने लेटे-लेटे ही मां से बहुत प्यार से पूछा...

“माँ! आपने कभी अपने डर के बारे में डॉक्टर से कन्सल्ट किया?”

तुम्हारे पापा ने खुद ही एक डॉक्टर ने कंसल्ट किया था| डॉक्टर ने सारी हिस्ट्री लेने के बाद कहा था....

‘अपरा के साथ बारिश के मौसम में ही यह फेज आता है| बाकी कभी नहीं होता| ऐसे काफ़ी मरीज़ होते हैं जो पानी,विभिन्न आवाजों या चीज़ों से डरते हैं| डरने की कई और भी वज़ह होती है| आप चाहे तो हम काउन्सलिंग के कुछ सेशन कर लेते हैं| डर की वज़ह पता चलने पर कैसे ट्रीट करना है?... यह बाद में तय करेंगे| बचपन में घटित हुआ डर भी खौंफ देता है। आप सब भी मेरे साथ मिलकर कोशिश करेंगे तो वह अपने भय से निकल जाएंगी|’

“फिर क्या हुआ माँ?”

“तुम्हारे पापा के बहुत कहने पर भी मैं अपने डर को साझा करने के लिए तैयार नहीं कर पाई| दरअसल मैं साझा नहीं करना चाहती थी|”

बेटी की प्रश्न भरी आँखों से देखकर अपरा खुद को, बताने से नहीं रोक पाई| न जाने क्यों उसके मन में विश्वास था, आज की पीढ़ी उसकी बातों को शायद गलत न समझे?...

“बेटा! मेरे मन इस बात को लेकर बहुत डरा हुआ था| तुम्हारे पापा की क्या प्रतिक्रिया होगी? कहीं मेरी सुखी गृहस्थी में आग न लग जाए?... इन सब बातों से मैं बहुत डरती थी| तुम्हारे पापा न सिर्फ़ मुझे बहुत प्यार करते थे बल्कि मेरा संबल भी थे| उन्हें मेरे इस डर का शादी के कुछ समय बाद ही पता चल गया था| मगर उन्होंने कभी दबाब नहीं डाला| न ही अपने बच्चों के सामने इस बात को गलत तरीक़े से उठाया| तुम दोनों को सिर्फ़ यही पता था कि मुझे बारिश अच्छी नहीं लगती| तुमने कभी पूछा होगा तो तुम्हारे पापा ने ही शायद कुछ बताया होगा? मैंने इस बारे में जानने की कोशिश कभी नहीं की|”

“ओह! आज मैं समझी आप क्यों बारिश होने पर खूब सारे काम अपने लिए फैला लेती थी| खुद को बिजी रखने के लिए तेज़ आवाज़ में टीवी चला लेती थी या हमें अपने कमरे में गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित करती थी| इस बीच बारिश का मौसम निकल जाता|”

अनुष्का ने अपरा के पैरों को प्यार से सहलाते हुए आगे कहा...

“मां! अब आपकी बेटी बहुत बड़ी हो गई है| आप चाहे तो अपनी बेटी के साथ सब कुछ साझा कर सकती हैं| पहले पापा थे, वह आपको देख लेते थे| जाने से पहले पापा मुझे बोल कर गए थे...

“आपका ख्याल रखूँ| और आपसे मौक़ा देखकर वज़ह भी जानने की कोशिश करुँ ताकि आप सामान्य महसूस कर सकें| पापा को लगता था हम दोनों के व्यस्त हो जाने के बाद आप अकेली कैसे सब हैन्डल करेंगी? पापा ने भी जाने से पहले हमसे प्रॉमिस लिया था कि हम दोनों में से कोई उनका यह छोटा-सा काम कर दें| ताकि आपका मन शांत हो जाए| बताइए न मम्मा आपके परेशान होने की वज़ह क्या है? मां! आप जब अपने डर की वज़ह साझा करेंगी, इस डर से निकलना शुरू हो जाएंगी|”

अनुष्का के बालों में अपरा उंगलियों की गति बातों के साथ घट-बढ़ रही थी| उसकी एक-एक उंगली का कंपन अनुष्का महसूस कर रही थी। माँ को असमंजस की स्थिति में देख उसने अनायास ही हठ पकड़ ली और मां की आंखों में झांकते हुए कहा...

“जैसे हर माँ अपने बच्चे की परेशानियाँ और खुशियाँ जानना चाहती है| और उसके अच्छे-बुरे में साथ रहती हैं, हम भी आपके साथ रहेंगे| आप कहे तो थोड़ी देर के लिए तेजस को भी बुला लेती हूँ| मैं जानती हूँ वो भी आपको बहुत प्यार करता है| जिस तरह आप हमारी हर बात में हौसला बनी है, हम भी बनने की कोशिश करेंगे माँ|”

अपनी बेटी की बातें सुनकर अपरा की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई| और वह सुबकते हुए बोली...

“बड़ी हो गई हो और बहुत प्यारी भी| तेजस के इम्तहान शुरू होने वाले हैं उसे मत बुलाओ| अपनी मां की कहानी को सुनना चाहती हो?... जो बीस-इक्कीस की उम्र में बहुत समझदार होते हुए भी नासमझी कर बैठी| जिसकी सज़ा आज तक भुगत रही है| तुम्हारे पापा से साझा नहीं कर पाई, क्योंकि हिम्मत ही नहीं हुई|”

अनुष्का लगातार अपरा की ओर देख रही थी| मां की बातें उसके हाथों के रोंगटे खड़े कर रही थी| अपरा को अनायास ही अपनी बेटी का चेहरा देखकर महसूस हुआ कि अनुष्का न सिर्फ असमंजस में है बल्कि वह मां को पूरी तरह सुनने के लिए तैयार भी है| तभी वह लगातार मां के घुटने पर अपना सिर रखकर अपने हाथों से मां के हाथों को सहला रही है|