सरल नहीं था यह काम 5
काव्य संग्रह
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
34 तीर के निशान वे बने
तीर के निशान वे बने
सर वे जो कमान न बने
जो अनोखी राह को चुने
भीड़ के समान न बने
जाने कैसी कोशिशें थीं कि
कोई भी निदान न बने
आंधियां ही ऐसी कुछ चलीं
फिर कोई वितान न तने
शांति की जो बात कर रहे
ओठ रक्त पान से सने
जकड़े रहे बंधनों में जो
पर न आसमान में तने
तेरा ही गुणगान हे प्रभु
खंजरों की शान न बने
बच्चे डरे मां ए जा छिपे
मेरी ये पहिचान न बने
मनमस्त हो के झूमे न जब तक
धीर जैसा गान न बने
तर्क सारे मोथरे हुए
भावुकों के कान न सुने
35 दिन जश्ने आजादी का
दिन जश्ने आजादी का और बन्द है मैखाना
बदलो जी इसे बदलो कानून यह पुराना
उनसे जो कहे कुछ भी है जुर्म बड़ा भारी
मर्दों पर सब पाबन्दी आजाद है जनाना
जिसने दिखाये हमको सपने सुनहरे कल के
उनको ही आज हमसे नजरें पड़ी चुराना
हिन्दू हैं हम न मुस्लिम हम हैं बस पीने वाले
मंदिर व मस्जिदों से तो वैर है पुराना
दुख से भरे जहॉं में कुछ पल तो चैन के हों
हो साथ पीने वाले को हाथ में पैमाना
सुनते चुनाव आया खुश किस्मती हमारी
अब कंठ तृप्त होंगे खुल जाएगा मैखाना
आजादी अधूरी है पीने पर लगी बंदिश
कभी तो स्वतंत्र होगा हर मोड़ पर मैखाना
मेरा सलाम यारो न जाने कब मिले फिर
दुनिया है तो लगा ही रहता है आना जाना
36 सरस्वती लगता लक्ष्मी के हाथ बिकानी है
सरस्वती लगता लक्ष्मी के हाथ बिकानी है
धन्ना सेठों की शिक्षा पर अब निगरानी है
प्रतिमा लगन समर्पण को अब पूंछे न कोई
निर्धन नौजवान के सारे सपने ही खोए
छोड़ सुरक्षित कोटा सब असुरक्षा के मारे
लक्ष्मण रेखा खींच रहे हैं धन के मतवारे
प्रगति और विकास की ये बस नई कहानी है
किसने ये षडयंत्र रचा किसकी मनमानी है
पुनिया राई भराे सम्हाले रमसईया बोरा
पकरे हाथ डुकरिया घिसटे ले मोड़ी मौड़ा
कातिक चैत छोड़ने परतई अपने घर गोंड़ा
रेल मोटरों में न भईया भीड़ समानी है
हर बस अड्डे स्टेशन की यही कहानी है
हरिणा कश्यप से बापू अब रावण से भाई
रामकथा तो सुनी मगर मन में न गुन पाई
ताड़काएं धमकाती फिरती सूपनखा छलती
राजनीति में केवल खर दूषण की ही चलती
कहने में कुछ कोर कसर सुनने में खामी है
इस युग में क्यों प्रभाहीन हुई राम कहानी
जो गर्दन सीधी हो उसको कुछ छोटा कर दो
अपने रंग का चश्मा सबकी आंखों पर रखदो
फिर भी जो न समझे उनको ढंग से समझादो
राह वही जो हम बतलाते बांकी सब अनजानी है
37 कभी कभी तो मुस्कराईयें
इन तेवरों से अपना तो दामन छुड़ाइये
हरदम नहीं तो कभी कभी तो मुस्कराईयें
नाराजगी शिकायतें रूठना ये सब सही
ये दूरियां कुछ कम करें नजदीक आइये
बांसती हवा सा भी थोड़ा गुनगुनाइए
कब तक हम से आप यूं नजरें चुराएंगे
अपने ही दिल में झांकिये और हम को पाइए
इस जंग खोर दुनिया में राहत के चार पल
कुछ मेरे दिल की सुनिए कुछ अपनी सुनाइए
होंठों से दिल की बात को रोकेंगे कब तलक
खोलेंगी आंखें राज कहां तक छिपाइए
कैसे भी चाहे प्यास बुझा लीजिए अपनी
सागर को जब भी पाइए लबरेज पाइए
38 भैया बस रोटी की बातें
अच्छी लगती मुझको केवल भैया बस रोटी की बातें
बाकी लगती मुझको केवल खोटी खोटी खोटी बातें
भूखे प्यासे नंगे बच्चे
मन के सच्चे अकल के कच्चे
अनपढ़ मूरख भूखे नंगे
मिल कर जब करते दंगे
समझाने पर भी जब उनकी
नहीं अकल में कुछ घुस पाती
बड़ी बड़ी तब हो जाती है
उनकी छोटी छोटी बातें
वह होटल में खटता कल्लू
सुबह शाम को पिसता कल्लू
घर के आगे नीम तले वह
भूरे पिल्ले में कर पाए
पूंछ पकड़ कर झूमा झटकी
कान खींच कर मीठी बातें
लिये बाल्टी धूम रही है
कब से देखो धनिया बाई
हैंडपम्प खाली चिल्लाएं(
नल ने बून्द नहीं टपकाई
सूखा कंठ व जलती आंखें
धीरज छोड़ रही है सांसें
पुनिया की वह खींचे चोटी
लखना को दे मारे लाते
वे जाने कब कर पाएंगे
दूर ये छोटी छोटी बातें
चन्दन चर्चित भारी चेहरे
पीत रेशमी वस्त्र सुनहरे
धर्म और दर्शन की प्रतिदिन
करे व्याख्या पैठे गहरे
भाग्य जन्म व कर्म नियंता
धर्म और मुक्ति की चिंता
स्वर्ग और देवों की बातें
भारी भारी पोथे खोले
कैसी मीठी मीठी बातें
ऐसे मैं भद्दी लगती है
पानी व रोटी की बातें
बिन रोटी झूठी आजादी
लाती वह केवल बदबादी
आडंबर व पहिने खादी
हर बस्ती में नेहरू गांधी
जाने क्यों झूठी लगती है
उनकी मीठी मीठी बातें
39 सूखी नदिया
सूखी नदियां जब वर्षा में योवन फिर से यौवन पाती है
तेज तेज बहने लगती है भूल किनारे जाती है
पीपल बरगद आम नीम सब बौने लगने लगते हैं
जिसको भी वह छू देती है साथ बहा ले जाती है
भारी उछल कूंद करती है हरदम शोर मचाती है
गर्जन तर्जन कितना करती लगता है धमकाती है
चांदी की पाजेंब पहिन कर कभी चांदनी रातों में
बीणा के तारों पर जैसे मधुरिम गीत सुनाती है
पुल सड़कें मंदिर चौबारे सभी समा वह लेती है
कभी दिखाती कभी छुपाती कैसे खेल खिलाती है
सहमी सहमी सूखी नदियां बच्चे खेला करते हैं
दो बूंदों के पड़ते ही अब कैसी तो इतराती है
हर ऑंगन को गीत सुनाती हर सांकल खड़काती है
पिया के घर जाती बेटी सी सबसे मिलकर जाती है
40घन घन बोल टेलीफोन
घन घन बोला टेलीफोन
मैं हूं लोरी बोलो कौन
अच्छा बोल रहे हैं पापा
मत खोए अब अपना आपा
सो रही है शैतान चकोरी
मॉं के दूध की बड़़ी चटोरी
अभी मचा देगी वह हल्ला
मम्मा पड़ेगी मुझ पर चिल्ला
बना रही है किचिन में खाना
मुझको भी स्कूल है जाना
कभी बाद में करना फोन
आप अभी तो साधो मौन
घन घन बोल टेलीफोन
41 अच्छे बच्चे वो कहलाते
कौआ बोला कॉंव कॉंव
छोड़ो बिस्तर बाहर आओ
उठो जल्दी हुआ सवेरा
सूरज ने किरणों को बिखेरा
बिल्ली बोली म्याऊ म्याऊ
बात राज की तुम्हें बताऊ
समय पर जो स्कूल है जाते
अच्छे बच्चे वो कहलाते
42 ठंडी हवा चली
कल धूप थी शाम से ठंडी हवा चली
रजाई के अंदर ओ मेरी तो यार दम निकली
उजेला हो गया कभी का मन नहीं होता
बिस्तर छोड़ने के नाम से हुई हालत पतली
हाथ पॉंव समेत पड़ा हूँ बिस्तर में
न हाथ मूँह धोए न कुल्ला किया चाय पीली
घड़ी के दोनों कॉंटे परस्पर मिल बैठे
धुंध कुछ कम हुई छत पर जरा सी धूप खिली
नन्ही चकोरी में बहुत ही हिम्मत है
सुबह से दौड़ती फिरती वो मुझसे आन मिली
सबसे बड़ी सजा तो इस सर्दी में मिली लोरी को
इस कड़कड़ाती ठंड में तैयार हो स्कूल चली
43 आजादी है आजादी है
आजादी है आजादी है
जिसका भी कोई कनेक्शन है
फिर नहीं कोई भी क्वेश्चन है
इन्टरव्यू बस फॉरमल होगा
मानो कि श्योर सिलेक्शन है
लेने देने की सबको ही
आजादी है आजादी है
मित्रों सबको आजादी है
आजादी है आजादी है
नेताजी को आजादी है
हर अफसर को आजादी है
उनके भी चमचों पंखों को
सब करने की आजादी है
बाबू हो या चपरासी हो
या कोई खास दलाली हो
इन सबको रेट बताने की
वरना काम लटकाने की
आजादी है आजादी है
शहर में लूट मचाने की
अपराधी को भी पटाने की
यदि फिर भी कोई नहीं माने
थाने तक में धमकाने की
आजादी है आजादी है
पाबंदी यहॉं जवानों पर
आवाज उठाने वालों पर
प्यार के कुछ परवानों पर
मेहनत करने वालों पर
बेवजह और बेवख्त यहॉं
कानून बताने वालों पर
छिनते खेत उजड़ती बस्ती
सपनों को बचाने वालों पर
गांधी की दुहाई देते जो
लेनिन की राह पर चलते हैं
समझाया जाता है उन्हें बहुत
लेकिन वे कुछ न समझते हैं
ऐसे सिरफिरे जवानों पर
लाजिम है कि पाबंदी है
बाकी सबको आजादी है
आजादी है आजादी है
तूफान मचाने वालों पर
ऑंख दिखाने वालों पर
सर उठा ले चलाने वालों पर
नेताजी की उज्जबल छवि पर
अफसर की कार्य कुशलता पर
प्रश्न उठाने वालों पर
मजबूरी है पाबंदी है
पाबंदी है...............................
प्रजातंत्र बचाने के खातिर
देश चलाने के खातिर
भारत की देश विदेशों में
छवि सुगढ़ बनाने के खातिर
मित्रों यह बहुत जरूरी है
कि इन सब पर पाबंदी हो
बाकी सबको आजादी है
आजादी है आजादी है
44 अपने मन की बात।।
तुम तो कह लेते हो सबसे अपने मन की बात
हम तो कह न पाए किसी से अपने मन की बात
हंगामा हो गया शहर में कल फिर बीती रात
जाने किस ने कह दी किससे अपने मन की बात
चली चौक में लाठी गोली रही जरा सी बात
कुछ मजूर बोले मालिक से अपने मन की बात
अम्मा जी रूठी रूठी हैं चाचा हैं नाराज
बिटिया बोल गई भूले से अपने मन की बात
मिले राह में चलते चलते पल दो पल की बात
कहते कहते रह गए तुमसे अपने मन की बात
दिन को तो बहला देता हूं नींद चुराती रात
जब मैं अपने से कहता हूं अपने मन की बात
धरती रही डोलती दिन भर अम्बर सारी रात
कह बैठा था जब मैं उनसे अपने मन की बात
तुम स्वतंत्र ठोकर खाकर भी नहीं समझते बात
कह देते हो चाहे जिससे अपने मन की बात।।
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