सरल नहीं था यह काम - 1 डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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सरल नहीं था यह काम - 1

सरल नहीं था यह काम 1

काव्‍य संग्रह

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

सवित्री सेवा आश्रम तहसील रोड़

डबरा (जिला-ग्‍वालियर) मध्‍यप्रदेश

9617392373

1 तनी बंदूकों के साए

तनी बंदूकों के साए हों, भय के अंधियारे छाए हों

घड़ी-घड़ी आशंकाएं हों, चीत्‍कार करती दिशाएं हों

ऐसे में मैंने बच्‍चों को

चलते देखा हंसते देखा, गाते देखा

झण्‍डों को लहराते देखा

नारे कई लगाते देखा

नारे कई लगाते देखा

मुझे लगा कि भगत सिंह इनमें जिंदा है

मेरे देश के ही थे सिपाही उनको घेरे

डरपाते धमकाते उन पर आंख तरेरे

और विकास के नारों के ही साथ आए उन नेता जी को

देश धर्म की कसमें खाते नफरत की बदबू फैलाते

खाली हाथों नौजवान लगते थे हिंसक

देश धर्म को इनसे संकट

शांति देश को देना चाही मरघट जैसी

कर दी सबकी ऐसी तैसी

बहुओं के सर से वस्‍त्रों का हुआ अपहरण

कई दुशासन एक साथ मिल करते नर्तन

वादों से टहलाते देखा

स्‍वयं को ही झुठलाते देखा

तब सवाल करते बच्‍चों को

उनसे आंख मिलाते देखा

हंसते देखा गाते देखा

उनको गोली खाते देखा

सर पर लाठी खाते देखा

आगे कदम बढ़ाते देखा

लाल खून से रंगी हुई थी सारी सड़कें

देश वासियों के दिल धड़के

उनको जन गण गाते देखा

लगा कि उनमें भगत सिंह अब भी जिंदा है

नहीं किसी को करना अब कोई चिंता है

मेरा देश उनमें जिंदा है

बोल रहे थे वे सब इन्‍कलाब के नारे

एक नहीं सारे के सारे

उनमें ही है देश धड़कता

इन सपनों में भारत बसता

हक के खातिर लड़ते देखा

सच के खातिर मरते देखा

सूरज नया उगाते देखा

हाथों को लहराते देखा

सपनों को सच होते देखा

भारत नया बनाते देखा

हंसते देखा गाते देखा

हमने देखा तुमने देखा

मुझे लगा कि भगत सिंह उनमें जिंदा है

उनकी चिंता ही तो हम सब की चिंता है।

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2 लौटे तुम

लौटे तुम समझा मुझे सोया हुआ

मैं था तुम्‍हारी याद में खोया हुआ

खारे जल से गया सींचा लग गया

दिल में चाहत को तेरी बोया हुआ

साफ कागज देख मत हैरान जो

खत तो था पर अश्‍क में धोया हुआ

तुम मिले मुझको तो कुछ ऐसा लगा

मिल गया मेरा खुदा खोया हुआ

बोझ से दोहरे हुए जाते हैं वो

अपने कंधों पर हूँ मैं ढोया हुआ

रास्‍ता अब किससे हम पूंछे स्‍वतंत्र

हर कोई दिखता यहॉं है खोया हुआ

3 मेरे दिल में उनकी चाहत खूब थी

मेरे दिल में उनकी चाहत खूब थी

उनकी बातों में बनावट खूब थी

जिंदगी में रह गये अरमा अधूरे क्‍या हुआ

मौत के जलसे की दाबत खूब थी

सोच कर ही लोग दुबले हो गये

उनके आने की भी आहट खूब‍ थी

दूर सब अपने पराये हो गये

फैसले के वक्‍त दिल में कसम साहट खूब थी

4 जब भी अफसर दौरा आए

जब भी अफसर दौरा आए

सबको सरपट दौड़ा आए

भारी भरकम लम्‍बी गाड़ी

बैठी हो बस एक सवारी

अक्‍सर रहता मुंह लटकाए

कभी-कभी धीमे मुस्‍काए

जब भी अफसर दौरा आए

सबको सरपट दौड़ा जाए

भीड़ जुटी हो चारों ओर

कुछ है चुप कुछ करते शोर

नमस्‍कार या गुड मॉर्निंग का

क्षण क्षण में जयकारा आए

जब भी अफसर दौरा आए

सबको सरपट दौड़ा जाए

कुछ सोते से गये उठाए

कुछ घर जाते गये लौटाए

हरकारे सब ओर दौड़ कर

बिस्‍तर से रोगी ले आए

जब भी अफसर दौरा आए

सबको सरपट दौड़ा जाए

सारा चक्‍का जाम हो गया

कोने-कोने नाम हो गया

जो था जहॉं वहीं से दौड़ा

ज्‍यों पैरों में पर उग आए

जब भी अफसर दौड़ा आए

कुछ थे साथी हिम्‍मत वाले

कुछ थे साहब के मत वाले

वाकी वहॉं उपस्थित ऐसे

जैसे घर में बैठे ठाले

ओरों की मैं बात कहूँ क्‍या

पर स्‍वतंत्र हरदम घबराए

जब अफसर दौरा आए

5 अपनो देश पियारों

एक सदी आगे ले जाने अपनो देश पियारों

काल रे‍डुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

पुनुआ खों कुर्ता बन जैड़े

मंटोला खों फरिया

मोय पैर बे साफा नईया

घरवारी खों घंघरिया

घरै तेल मट्टी कौ नइंया

ऊ पै जो अंधियारौ

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

नहर तबई सूखी रह जातई

जब पानी की बिरयां

बिजली दो घंटा भर आवै

सूखी रह जाएं किरियां

महंगाई की मार परी है

कैसे परै उबारौ

काल रेडुआ पै कै रओ नेता दिल्‍ली बारौ

ग्‍यारा पास करै मनसुख खॉं

बारा बरसें हो गई

गई हिरानी मिली न सरसुत

जाने कॉं पै बिक गयी

हम खॉं लग रओ संझा हो रई

वे कै रये भ्‍सारौ

काल रेडुआ पै कै रओं तो नेता दिल्‍ली बारौ

चोर पकरवे जो बैठे हैं बे ई बता रये रास्‍ता

हैंसा हमें देत जइओ तुम

खुलन न दें हें बस्‍ता

आँखन देखी झूठ बना दई

ऐसो चक्‍कर डारौ

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

धरती राम सिंह जू दाबैं

और दिखावें ऑंखें

दौरत दौरत कोट कचहरी

दादा छोड़ी सांसें

धन धरती को सबै बराबर

कब हू है बटवारो

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

सब ई हते गांधी के चेला

त्‍यागी और तपस्‍वी

पढ़ें लिखें औ ज्ञानी ध्‍यानी

सगरे गुनी मनस्‍वी

सोच समझ के काम करे सब

आगें देस बढ्ा बे

जाने का कैसो भओ भैया

हो गया बंटा ढारो

काल रेडुआ पै कै रओ तो नेता दिल्‍ली बारौ

6 यूं तो हजार बार देखा

यूं तो हजार बार देखा

मुड़ मुड़ के बार बार देखा

जब भी मिली उनसे नजरें

लगता था पहली बार देखा

6 उनके मरने की खबर

उनके मरने की खबर छापी न थी अखबार में

और उनका जन्‍म दिन बदला न था त्‍यौहारों में

देवता ऐसे भी इस दुनिया में कई आए स्‍वतंत्र

जिनके जाने पर भी न जाना जिन्‍हें संसार ने

7 भुंसारौ हूं है जरूर

हाथन खों सूझे न हाथ

अंधरिया है रात

कछू कही नहीं जात

धना पक्‍की है बात

कै भुन्‍सारौ हू है जरूर

ऑंखन न सूझे तौ हाथन थथोलो

धरती पै पॉंव तुम धरौ पोलो पोलो

लठिया पकर लो हाथ

ज पक्‍की है बात

भुंसारौ हूं है जरूर

मन में तुम गाओ

चाए जोर ई चिल्‍लाओं

हिल मिल कै काटने है रात

जा पक्‍की है बात

कै भुंसारो हू है जरूर

चोरन की बातन पै कान न धरियो

ऑंखन से निदियॉं की बातें न करियो

धरलो-धरलो पqटरिया पै हाथ

ज पक्‍की है बात

भुंसारी हू है जरूर

बोलें लड़ैया तो नेक उ न डरियों

कुत्‍तन के डर सें न रस्‍ता से हटियों

गेंवड़े जे जादां चिल्‍लात

जा पक्‍की है बात

भुंसारो हू है जरूर

8 नया सूरज

आओ मिलकर हम नया सूरज उगाएं दोस्‍तों

छोड़ दे मिल राग नव नव गीत गांए दोस्‍तों

इन अंधेरों से घिरी हुई तंग दीवारों के पार

हम उजालों की नई खिड़की बनाएं दोस्‍तों

दैन्‍य अत्‍याचार दुख किस्‍मत के लिखे लेख हैं।

आओ मिल आगे बढ़े इनको मिटाएं दोस्‍तों

आज मिल कर तोड़ दें अज्ञान भय की मूर्तियॉं

आस्‍था की एक नई बस्‍ती बसायें दोस्‍तो

सिर्फ तेरे या मेरे से ही नहीं बदलेगा कुछ

आओ हम हर हाथ में दीपक थमाएं दोस्‍तो

कौन कहता है हिमालय पार हो सकते नहीं

आओ मिल साहस करें कुछ डग बढ़ायें दोस्‍तों

9 खेली दिवाली

न पत्‍ते न पॉंसे न कौड़ी न गोली

, महज नम्‍बरों से ही खेली दिवाली

बचा सारा वेतन लगा दॉव पर था

रहे लेते हम रात सपने ख्‍याली

वो गाड़ी वेा बंगला वो रंगीन टी.वी.

न मानी वे रूठी हुई मौके वाली

़ न गुजिया न पापड़ न मठरी न मीठा

बासी कढ़ी से ही रोटी चबाली

न व्हिस्‍की न रम न ठहाके न यारां

चिढ़ाती रहीं चाय की फीकी प्‍याली

न कपड़े नये न खिलौने पटाखे

रही घूरती कुछ निगाहें सवाली

जगमग हवेली व चमचम दुकानें

थे हम भीड़ में पर रहीं जेब खाली

़ न वेतन बंटा पर था बोनस का वादा

खुशी में खुमारी में खेली दिवाली।

10 मेरे बॉस का कोई सानी नहीं है

दफ्तर में मेरे बॉस का कोई सानी नहीं है

काटै जिसे भी मॉंगता वह पानी नहीं है।

फाइलों के अम्‍बार मुलाजिम की शिकायत

जनता है परेशां उन्‍हें हैरानी नहीं है

कब चुस्‍त हों कब सुस्‍त हों कब नम्र कब कड़क

हर बात है बेमतलब सी बेमानी नहीं है

कैसा भी कठिन काम हो हो जाता है आसान

रिश्‍वत हो अगर रेट में बेर्इमानी नहीं है

पचपन में भी मौंजूद है बचपन की अदाएं

खूबी है उनकी ये कोई नादानी नहीं है।

आना हो जब आएं जब मर्जी हो चले जाएं

जन तंत्र है पूरा कोई निगरानी नहीं है।

सबसे अहम है ड्यूटी बस साहब को खुश रखें

सहमत सभी हैं कोई खींचातानी नहीं है।

दफतर में उतर आया है इक राम राज सा

सब ही है मस्‍त कोई परेशानी नहीं है।

दफतर में उतर आया है इक रामराज सा

सब ही है मस्‍त कोई परेशानी नहीं है।