मौत का खेल - भाग- 26 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मौत का खेल - भाग- 26

गंजू


धमकी का तुरंत असर हुआ और घबराहट में कार के एक्सीलेटर पर पांव का दबाव बढ़ गया और नतीजे में कार की स्पीड अचानक तेज हो गई।

“आराम से आराम से।” पीछे से गंभीर आवाज में कहा गया।

कार की रफ्तार सामान्य हो गई थी। चिकनी खोपड़ी वाले ने डरी हुई सी आवाज में पूछा, “क्कक्या चाहते हो?”

“कुछ सवालों के जवाब!” पीछे से कहा गया, “मैं जिधर कहता हूं... उधर चलते रहो।”

इसके बाद पीछे वाले आदमी ने उसकी जेबों की तलाशी ली। कोट की दाहिनी जेब से एक रिवाल्वर बरामद हुआ। उसने रिवाल्वर निकाल कर अपनी बाईं कोट की जेब में रख लिया। इसके बाद वह पीछे की सीट से आगे की सीट पर सरक आया। वह इंस्पेक्टर कुमार सोहराब था। उसने अपने बाएं हाथ में माउजर ले रखी थी। उसकी नाल चिकनी खोपड़ी वाले की तरफ ही थी। उसने तिरछी नजरों से पहले सोहराब को और फिर उसके बाद उसके हाथ में रखी हुई माउजर को देखा।

इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने उस की यह अदा देख ली थी। अलबत्ता उसकी निगाहें विंड स्क्रीन पर ही थीं। उसने बहुत गंभीर आवाज में कहा, “कोई होशियारी मत दिखाना। मेरा निशाना चूकता नहीं है। किसी को मार देना मेरे लिए उतना ही आसान है, जितना ट्रिगर दबाना। जैसा कहता हूं करते रहो। वरना जिंदा नहीं छोड़ूंगा।”

इसके बाद सोहराब ने माउजर को यूं ही गोद में पड़े रहने दिया। उसने जेब से सिगार निकाली और उसका कोना तोड़ते हुए कहा, “सिसली रोड पर गाड़ी ले लेना।”

सोहराब ने लाइटर से सिगार जलाया और आराम से कश लेने लगा। कुछ देर बाद उनकी कार शहर के बाहर पहुंच गई थी। अब वह सिसली रोड की तरफ जा रही थी।

सोहराब ने सिगार का कश लेते हुए कहा, “अब रफ्तार बढ़ा सकते हो।” सोहराब ने खिड़की खोलकर अपनी तरफ का बैक मिरर एडस्ट किया और पीछे की तरफ देखने लगा। वह लगातार पीछे नजर रख रहा था कि कहीं पीछा तो नहीं किया जा रहा है। आज वह दूसरी बार इस रोड पर जा रहा था। इस से पहले इसी रोड पर उसका पीछा किया गया था और फिर फायर भी हुआ था। यही वजह थी कि वह सतर्क था।

सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था। इधर ज्यादा लोग नहीं आते थे। इस तरफ पहाड़ों और जंगल में घूमने के लिए ही लोग ज्यादातर आते थे। इन दिनों सर्दी के दिन थे, इसलिए पिकनिक और घूमने फिरने का प्रोग्राम लोग जरा कम ही बना रहे थे।

कुछ दूर जाने के बाद पहाड़ियों का सिलसिला शुरू हो गया। दोनों तरफ ऊंचे-नीचे पहाड़ सर उठाए खड़े थे। कहीं-कहीं पर चट्टानें उभरी हुई थीं। कई पहाड़ियां नंगी थीं। यानी उन पर पेड़ नहीं थे। कुछ पहाड़ियों पर घास और ऊंचे-ऊंचे पेड़ उगे हुए थे। आसमान साफ था। कुछेक सफेद से बादल आवारगी में मशगूल थे। दिन ढलने लगा था। कुछ पंछी दाना दुनका चुगने के बाद वापस अपने बसेरे की तरफ लौट रहे थे।

कार अपनी रफ्तार से भागी चली जा रही थी। सोहराब ने एक बार फिर पीछे की तरफ देखा। सड़क पर दूर-दूर तक कोई दूसरी गाड़ी नजर नहीं आ रही थी। सोहराब चिकनी खोपड़ी वाले को पता समझाने लगा। कुछ वक्त गुजरने के साथ ही एक जगह पर सोहराब ने कार रुकवा दी। इसके बाद वह कार से उतर कर वहां से पैदल चलने लगे। सोहराब उस आदमी को वहीं ले जा रहा था, जहां से कुछ देर पहले वह लौटे थे।

सोहराब चिकनी खोपड़ी वाले को ले कर उसी जगह पर दोबारा पहुंच गया था, जहां पर लाश फेंकी गई थी। सोहराब ने उसकी तरफ तीखी नजरों से देखते हुए पूछा, “इस जगह को पहचानते हो?”

“नहीं... मैं यहां पहली बार आया हूं।” चिकनी खोपड़ी वाले ने कहा।

सोहराब उसे घूरने लगा और माउजर जेब से निकाल कर हाथ में ले ली। “तुम्हें यहीं मार कर चला जाऊंगा। सियार और भेड़िए लाश को खा जाएंगे। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुम कहां गुम हो गए।”

“मममैं... मैं सच कह रहा हूं।” चिकनी खोपड़ी वाले ने हकलाते हुए कहा।

“नाम क्या है तुम्हारा?” सोहराब ने पूछा।

“गंजू।” चिकनी खोपड़ी वाले ने जवाब दिया।

“अच्छा तो ब्रैंडिंग के लिए खोपड़ी चिकनी करा ली है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने मुस्कुराते हुए कहा।

सोहराब को मुस्कुराते देख कर उसके होंठों पर भी मुस्कान फैल गई। उसके बाद उसने कहा, “गजाधर नाम है। लोगों ने गंजू कर दिया।”

“सदर अस्पताल का क्या मामला है?” सोहराब ने सीधे मुद्दे पर आते हुए पूछा।

“पहले मुझे यह तो पता चले कि तुम कौन हो?” गंजू की हिम्मत बढ़ी गई थी।

“तुम्हारी ही बिरादरी का हूं। बस मुझे कैफे वाले आदमी से जरा पुराना हिसाब चुकता करना है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“कैसा हिसाब?” गंजू ने पूछा।

“उस हरामजादे ने मुझे एक लाश ठिकाने लगाने को कहा था। हरामखोर ने सिर्फ आधे ही पैसे दिए। वह लाश मैंने इसी जगह ला कर फेंक दी थी। बाद में वह यहां से गायब हो गई। तो उसने कहा कि तुम ने लाश जंगल में फेंकी ही नहीं। इस वजह से उसने मेरे ढाई लाख मार लिए हैं। एडवांस में ढाई लाख पहले दिए थे।” सोहराब ने उस की आंखों में देखते हुए कहा। वह अंदाजा लगाना चाहता था कि उसकी बातों का गंजू पर क्या असर होता है।

“है तो हरामी आदमी।” गंजू ने कहा।

“तुम उसका नाम जानते हो... या कोई पता ठिकाना?” सोहराब ने उससे पूछा।

“नहीं... उसने मुझे फोन करके उसी कैफे में बुलाया था और वहीं हमारी डील हुई थी। आज दूसरी बार मिला हूं।”

“क्या मामला था?” सोहराब ने पूछा।

“बहुत छोटा सा काम था।” गंजू ने कहा, “बस एक लाश को लाशघर से ऊपर छत तक पहुंचाना था। इस छोटे से काम के लिए पांच लाख रुपये मिले थे। मैंने काम करा दिया था।”

“तो अब क्या दिक्कत आ गई।” सोहराब ने फिर पूछा।

“दरअसल इस काम के लिए मैंने अपनी साली और अपने एक आदमी से मदद ली थी। काम होने के दूसरे ही दिन यह आदमी मेरी ससुराल पहुंचा और साली को जबरदस्ती सिंगापुर भेज दिया। कहा कि वहां तुम्हें एक ट्रेनिंग करनी है। घर वालों ने मना किया तो उसने कहा कि तुम्हारी बेटी ने गैरकानूनी काम किया है। उसे पुलिस तलाश रही है।” गंजू ने कुछ सोचते हुए कहा।

“और वह दूसरा आदमी?” इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे कुरेदा।

“वह आदमी भी तभी से लापता है। उसका फोन भी बंद है।” गंजू ने बताया।

तभी सोहराब को एक बात याद हो आई। उसने गंजू से पूछा, “उसने तुम्हें किस नंबर से फोन किया था... पहली बार। आज तुमने भी उसे फोन करके ही बुलाया होगा।”

“हां.. बिल्कुल।” गंजू ने तुंरत जवाब दिया।

“वह नंबर दो न फिर महाराज!” इंस्पेक्टर सोहराब ने अपनेपन के साथ कहा।

गंजू ने उसे नंबर बता दिया। सोहराब ने उस नंबर पर कॉल किया। बेल जाती रही, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। उसने दोबारा भी कोशिश की, लेकिन फोन पिक नहीं हुआ।

तभी दूर किसी सियार के रोने की आवाज आई। आवाज सुन कर सोहराब को अंदाजा हो गया कि अंधेरा होने वाला है। उसने गंजू से कहा, “चलो चलते हैं अब... अगर उस आदमी का फोन आए तो मुझे बता देना।” इसके बाद इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे अपना नंबर बता दिया। यह उसका प्राइवेट नंबर था। यह नंबर कहीं भी रजिस्टर नहीं था।

दोनों जंगल से वापस कार की तरफ चल दिए। सूरज डूब चुका था। शाम होते ही जंगल का महौला एक दम से बदल जाता है। झींगुरों ने मोर्चा संभाल लिया था। पेड़ों पर तमाम पंछी लौट आए थे। उनके पंख फड़फड़ाने की आवाज सुनाई दे रही थी।

गंजू ने कार की ड्राइविंग सीट संभाल ली और सोहराब उसके बगल में बैठ गया। गंजू ने कार स्टार्ट की और उसे आगे बढ़ा ले गया। कच्चे ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर कार धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। एक छोटे से सफर के बाद कार डामर रोड पर पहुंच गई और शहर की तरफ चल दी।

सोहराब ने गंजू की जेब से उसका फोन निकाल लिया। उसमें लॉक लगा हुआ था। गंजू से उसने लॉक खुलवाया और उसके फोन से गोल्डन कलर की टाई वाले को फोन मिला दिया। बेल जाती रही, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। उसने कई बार फोन मिलाया, लेकिन फोन नहीं उठा। इसके बाद सोहराब ने उसे फोन वापस कर दिया।

इसके बाद दोनों में कोई बात नहीं हुई।

कार शहर में दाखिल हो गई थी। कुछ देर बाद सोहराब ने गंजू से कार रोकने के लिए कहा और कार से उतर पड़ा। उसने जेब से निकाल कर उसे उसकी रिवाल्वर लौटा दी। गंजू ने जाते हुए उसे एक सैल्यूट मारा, मानो उसने सोहराब को अपना उस्ताद मान लिया हो। उसके बाद वह कार आगे बढ़ा ले गया।

सोहराब ने अपने मोबाइल से खुफिया महकमे को फोन मिलाया और गोल्डन कलर की टाई वाले आदमी का नंबर नोट कराते हुए कहा कि उसे इस नंबर की लोकेशन और डिटेल पात करके बता दी जाए। उसने एक टैक्सी रुकवाई और उससे सेवेन डार्क स्ट्रीट चलने के लिए कहा। इस रोड पर सोहराब की कोठी गुलमोहर विला थी। सोहराब गेट खोल कर पीछे की सीट पर बैठ गया और टैक्सी आगे बढ़ गई।


शरबतिया हाउस


राजेश शरबतिया के फार्म हाउस की सिर्फ सुबह ही नहीं शामें भी बहुत खूबसूरत होती थीं। सूरज अस्तांचल की तरफ बढ़ चला था और पेड़ों के साए लंबे हो गए थे। हवा थोड़ा सर्द हो गई थी। यहां राजधानी के मुकाबले वैसे भी टंप्रेचर थोड़ा नीचे ही होता था। हिरन झील में पानी पीने के लिए आ रहे थे। जलीय पंछी भी उड़ चले थे। हवा से पानी थर-थर कांप रहा था। शायद उसे भी सर्दी का एहसास हो रहा था। अचानक झील में एक बड़ी सी मछली उछली और हिरन डर कर भाग गए।

झील से कुछ दूरी पर राजेश शरबतिया, डॉ. दिनांक ठुकराल और डॉ. श्याम सुंदरम् बैठे हुए थे। तीनों के ही हाथ में रम के गिलास थे। शरबतिया के यहां की शराब बहुत स्पेशल हुआ करती थी। इस वक्त जिस रम का पैग इनके हाथों में था, उसका शुमार दुनिया की सबसे महंगी रम के तौर पर होता है। जे वेरी एंड नेफ्यू ब्रांड की इस रम की एक बोतल की कीमत 35 लाख रुपये से भी ज्यादा है।

दिनांक ठुकराल स्पेस साइंटिस्ट था और राजेश शरबतिया और वह कैंब्रिज में साथ-साथ पढ़े थे। यही वजह थी कि दोनों में गहरी दोस्ती थी। डॉ. श्याम सुंदरम देश का ही नहीं, एशिया का जानामान कार्डियोलॉजिस्ट था। शरबतिया का वह फैमिली डॉक्टर भी था। इस वजह से वह शरबतिया की हर महफिल में शामिल रहता था।

दिनांक ठुकराल ने एक हलका सा सिप लेते हुए शरबतिया से पूछा, “रायना नहीं दिख रही है आज कल... कहां बिजी है?”

“भाई वह तो ब्वायफ्रैंड वाली है। इन दिनों उसी के साथ मटरगश्ती करती घूम रही है।” शरबतिया ने एक बड़ा सा सिप लेते हुए कहा। मानो उसे यह बात कहते हुए बुरा फील हुआ हो।

“पति की मौत का कुछ दिन तो गम मना लेना चाहिए था!” डॉ. श्याम सुंदरम् ने कहा।

“उसे कब फिक्र है इन सब की।” शरबतिया ने कहा।

“डॉ. वीरानी की लाश का क्या रहा... कुछ पता चला?” डॉ. दिनांक ठुकराल ने पूछा।

“पुलिस एक लाश लेकर आई थी... लेकिन रायना ने उसे डॉ. वीरानी की लाश मानने से ही इनकार कर दिया।” शरबतिया ने बताया।

“उसे लाश लेकर तुरंत ही अंतिम संस्कार कर देना चाहिए... ताकि मामला खत्म हो।” दिनांक ठुकराल ने मशविरा दिया।

“वह बहुत शातिर है।” राजेश शरबतिया ने रम का सिप लेते हुए कहा, “वीरानी की मौत को स्वीकार करते ही... उसके पैर में कुछ दिनों के लिए ही सही बेड़ियां पड़ जाएंगी। वह एक आजाद पंछी बनी रहना चाहती है, ताकि किसी भी डाल पर फुदक सके।”


ब्लाइंड केस


इंस्पेक्टर सोहराब जब कोठी पर पहुंचा तो सार्जेंट सलीम लॉन में दौड़ लगा रहा था। उसने ट्रैक सूट पहन रखा था। वह वर्जिश का शौकीन था और बॉडी को हमेशा फिट रखता था। सोहराब वहीं लॉन में कुर्सी पर बैठ गया। तभी उसके पास एक फोन आया और वह दूसरी तरफ की बात ध्यान से सुनता रहा। सार्जेंट सलीम भी दौड़ पूरी करके उसके सामने आ कर बैठ गया।

“कॉफी पिलवाओ थक गया हूं।” सोहराब ने आंखें बंद करते हुए कहा।

“अबे झुनझुने... कॉफी और स्नैक्स ले आओ।” सार्जेंट सलीम ने वहीं बैठे-बैठे हांक लगाई।

“यह क्या बदतमीजी है।” सोहराब ने सीधे बैठते हुए कहा। “तुमसे कितनी बार कहा है कि नौकरों से तमीज से पेश आया करो।”

“जनाब झाना साहब... अगर आप को किसी तरह की दिक्कत दरपेश न आए तो बराएमेहरबानी कॉफी और स्नैक्स दे जाइए।” सार्जेंट सलीम ने दोबारा कहा।

सोहराब उसकी इस बात पर मुस्कुरा कर रह गया। सोहराब ने जेब से सिगार निकाला और उसे सुलगाते हुए कहा, “रिपोर्ट।”

सलीम ने गोल्डन कलर की टाई वाले का पीछा करने और उसके डाच दे कर निकल जाने की पूरी दास्तान सुना डाली। पूरी बात सुनने के बाद सोहराब ने कहा, “इसका मतलब यह हुआ कि उसे पीछा किए जाने का अंदाजा हो गया था।”

इसके बाद सोहराब ने अपनी पूरी रूदादा सुनाने के बाद कहा, “अजीब बात यह है कि गोल्डन कलर की टाई वाला न सिर्फ फोन करने के लिए बल्कि रिसीव करने के लिए भी पब्लिक बूथ का इस्तेमाल कर रहा था।”

“मैं समझा नहीं।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“उसने गंजू को पब्लिक बूथ से फोन किया था। इसके बाद आज जब गंजू ने उसे फोन मिलाया तो वह फोन भी रिसीव हुआ। यानी उसने बीच में पब्लिक बूथ के कनेक्शन को ट्रैप कर रखा था।”

झाना कॉफी और स्नैक्स लेकर आ गया। सार्जेंट सलीम कॉफी बनाने लगा। उसने सोहराब को मग पकड़ाने के बाद अपने लिए कॉफी बनाई। एक सिप लेने के बाद उसने कहा, “हम कब तक ऐसे भागते रहेंगे!”

“बर्खुर्दार! यह ब्लाइंड केस है। रात के अंधेरे में एक आदमी का कत्ल होता है। न कोई गवाह है और न कोई सबूत है। तकरीबन 70 लोग संदिग्ध हैं। सभी हाईप्रोफाइल लोग हैं। आप किसी से बिना सबूत पूछताछ तक नहीं कर सकते हैं।” सोहराब ने कहा।

सोहराब ने कॉफी का एक सिप लेने के बाद बात जारी रखी, “अहम बात यह भी है कि मरने वाले की किसी को भी फिक्र नहीं है। यहां तक कि उसकी खुद की बीवी तक को भी नहीं। कोई यह तक स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि वह लाश डॉ. वरुण वीरानी की है।”

“तो क्या इस केस की फाइल बंद होगी?” सलीम ने गंभीर आवाज में कहा।

“डॉ. वीरानी बहुत बड़े अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे। उनका कत्ल देश का बड़ा नुकसान है। कातिल को तो मैं सामने ला कर रहूंगा... और पूरी कोशिश करूंगा कि उसे सख्त सजा भी मिले।” यह शब्द बोलते हुए सोहराब का चेहरा लाल हो गया था। उसके चेहरे की यह कैफियत देख कर सलीम डर गया। आखिर सोहराब क्या करने वाला था? सलीम यह सोच कर परेशान हो गया।


*** * ***


क्या डॉ. वीरानी का कत्ल एक अनसुलझी पहेली बन जाएगा?
सोहराब आखिर क्या करने वाला था?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...