बद्री विशाल सबके हैं - 4 डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बद्री विशाल सबके हैं - 4

बद्री विशाल सबके हैं 4

कहानी

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

भीड़ ज्‍यादा नहीं थी सर्दी का समय था अत:कम लोग थे ।वे तनाव में आ गए । पंडा जी अतिव्‍यस्‍त थे थोड़ा समय मिलते ही डा. साहब के करीब आए धीरे से बोले –‘रिलेक्‍स डोन्‍ट बी टेन्‍स ।‘ वे थोड़ा सहज हुए ।पर संकोच में थे ।तब तक पंडा जी का बेटा उनसे बोला –‘सर डोन्‍ट बॉदर यहां कोई किसी को नहीं देखता सब अपने में डूबे हुए हैं ।आराम से खड़े हों हाथ जोड़ लें भगवान के दर्शन करें ।‘

तब तक डा. शैलजा अहमद ने डा. साहब को बुलाया दोनो नानी को दोनों बाजू से पकड़ कर रेलिगं के पास ले गए पंडा जी ने उन्‍हें बुलाया था वे उन्‍हें पकडें खड़े थे । नईमा दूर खड़ी थी तो पंडा जी का बेटा उसके पास आया धीरे से फुसफुसाते बोला-‘ मेरे लिए भी दुआ करें ।नईमा आंख बन्‍द किए ही हाथ जोड़े मन्‍द स्‍वर में बोली आप की दुआ तो पंडा जी कबूल करें गे फिर पंडा जी से यह मदिर ही नहीं हो सकता है बस्‍ती भी छूट जाए ।‘

पंडा जी का बेटा -'I am still ready(मैं तब भी तैयार) ।‘नईमा –‘रिश्‍तेदार शुभाकांक्षी मित्र सब किनाराकशी कर लेंगे सोच लेना पंडा जी से पूंछ लेना इतनी जल्‍दी फैसला नहीं । पंडा जी का बेटा –‘ मैने सोच लिया

तुम बताओ ।‘ नईमा –‘ मैने एम. बी. बी. एस. कर लिया है । प्री. पी. जी. का टेस्‍ट दे दिया है रिजल्‍ट का वेट कर रही हूं किसी न किसी विषय में हो ही ज ाएगा फिर दो ढाई साल का समय लगेगा कोर्स पूरा होने में तब तक यदि जोश बाकी रहे तो I will wait you ,welcome you (मैं आपकी प्रतीक्षा करूंगी स्‍वागत करूंगी) वरना कोई बात नहीं अच्‍छी तरह सोच लें टाईम है मजाक नहीं आप भगवान के मंदिर में खड़े हैं हो सकता है तब तक मन बदल जाए ।‘

तब तक पटेल साहब की थाली भगवान को चढ़ा दी गई थी श्रीमती पटेल प्रसाद ले रहीं थीं पटेल साहब ने देखा पंडा जी का बेटा नईमा से बात कर रहा है तो वे उसके निकट जल्‍दी तेज चलते आए बोले –‘क्‍या कह रहा था ?परेशान तो नहीं कर रहा था ? ‘

नईमा –‘नहीं अंकल He was quite sober but enthusiastic proposing me again and again।‘( वह विनम्र है पर अतिउत्‍साही है मेरे को बार बार प्रस्‍तावित कर रहा था कुछ सुन ही नहीं रहा)।‘

पटेल साहब –‘लड़कों में कुछ बचपन से ही प्रवृत्ति होती है जो चीज पसंद आ गई उस पर अधिकार होना न मिले तो तोड़ -फोड़ करना तुम उसे पसंद आ गई हो तो वह किसी भी तरह पाना चाहता है ।‘ नईमा –‘नहीं अंकल होती नहीं है अपने लाड़ के लल्‍ले में मां बाप भर देते हें लड़की को दबा कर रखते हैं तुम लड़की हो तुम्‍हें दूसरे घर जाना है उसे बार- बार धमकाया जाता है ।अब अंकल मान लो मैं उससे शादी कर लूं तो पंडा जी का मंदिर छूटा तो उसका कारण मैं, दस लाख का दहेज का नुकसान तो कारण मैं, सामाजिक बदनामी तो कारण मैं, लड़का तो भोला भाला था, लड़की ने फंसा लिया, फिर राजा बेटा आज्ञाकारी श्रवण कुमार बन जाएगा, कहेगा ‘मैं मां बाप को नहीं छोड़ सकता सुननी पड़ेगी ‘ मैं काहे को झेलूं ।‘ पटेल साहब –‘अरे नईमा बेटे तुमने तो बहुत सारी कल्‍पना कर डाली ।‘नईमा –‘ नहीं अंकल यह कल्‍पना नहीं है I under went such humiliation and hatred ( मैं इन उपेक्षा और घृणा से गुजरी हूं) मैंने मां को सुनते झेलते देखा है वह तो डॉक्‍टर होने के कारण व सरकारी नौकरी से अलग रहती हैं सेल्‍फ डिपेन्‍ड है तो कम है और स्‍टाफ की आंटींज को देखा है बार बार कलह होती है ।आखिर सहना दबना झेलना सब औरत को ही पड़ता है । ‘

पटेल साहब –‘–मैने भी ये सब सहा है। मेरी मां को भी पिताजी भगा कर लाए थे(दादी बार बार इसी वाक्‍य का प्रयोग करतीं थीं ) ।वे उनकी पसंद थीं, राम जाने कहां से, पर उन्‍हें पसंद थी। वे घर ले आए, तब उनके पिता जी नहीं थे, उनकी (मेरी दादी )मां ने दोनों का स्‍वागत गालियों से किया। वह(उनकी मां) आशंकित हो उठी थी। पिता जी तो मां(मेरी मां ) को लेकर गायब हो गए ,फिर मोर्चा पिता जी के मामा ने संभाला, दुश्‍मन लड़ने आए ,जान से मारने की धमकियां ,उन्‍हें ढूंढ रहे थे। पंचायतें हुई, वे लोग धमकाए गए, समझौता हुआ ,मामला ठंडा पड़ा, वे दुश्‍मन शान्‍त तो हो गए पर उन्‍होंने हार नहीं मानी। मेरी दादी जैसा आप कह रहीं हैं ,इस सबका देाष मां को ही देतीं थीं ,मां घर का काम करतीं, खेत पर भी पिता जी के साथ जातीं ,गांय भैंस की देख भाल करतीं ,हां जैसा आप कह रहीं हैं मेरे पिता जी आप के अनुसार राजा बेटे नहीं थे, वे अपनी मां से बहस तो करते ही, गांव में भी मुकाबला करते, मां को कभी अकेला नहीं छोड़ा । ‘

जब तक अन्‍य सब लोग मंदिर के दर्शन कर के आ गए तो पटेल साहब चुप हो गए सारा ग्रुप अपने ठहरने के स्‍थान पहुंचा अपना मंदिर से लाया प्रसाद आदि अपने -अपने बैग आदि में रखा और प्रसाद भी माला आदि जो बाहर दूकानों से खरीद लिया था अब सब लोग भेाजन की तैयारी में लग गए पंडा जी का बेटा लंच लेकर आ गया था सबने भोजन किया वह बार बार नईमा को देख रहा था वह मुस्‍करा रही थी पर कोई बात नहीं हुई।सब ने आराम किया शाम को फिर एक बार घूमने निकले अन्‍य देवी देवताओं के दर्शन किए शाम को आरती में शामिल हुए लौट कर पुन: रात्रि भोजन किया अब सब आराम कर रहे थे पर नईमा पटेल साहब के पास पहुंची श्रीमती पटेल मुस्‍करा गईं –‘लली! आगे की सुनने आईं हो, मेरे अनुभव भी इनकी माता जी के साथ सुनना ,वे पटेल साहब की ओर देख कर मुस्‍करा उठीं,वे भी बहुत मधुर हैं । ‘

तब तक और लोग भी उनके पास खिसक आए । पटेल साहब नईमा की ओर उन्‍मुख होकर बोले तो नईम बेटे! आराम से बैठो, थोड़ी लम्‍बी है, बोर तो नहीं होगी ,थकी होगी, जब कहोगी मैं बीच में रोक दूंगा ।‘

नईमा –‘ नहीं अंकल कोई थकान नहीं है आपने जिज्ञासा जगा दी है, पूरा सुन कर जाऊंगी ।

‘पटेल साहब –‘ हां तो सुनो ।वैसे तो मैं बता चुका हूं दादी का व्‍यवहार मां से कैसा था पर एक घटना ने सारी बात बदल दी पिता जी को खतरा रहता था इसलिए उन्‍होंने बंदूक का लाईसेस ले लिया था ,एक बंदूक भी खरीद ली थी, वे बहुत सोशल हो गए थे , दूसरों के झगड़े निपटाना, वकीलों के चक्‍कर काटना, जामानत कराना, तहसील थाने जाना, पंचायतें करना अस्‍पताल जाना शादी तय कराना बैंक जाना लोगों को कर्जा दिलाना जो कर्जा लेकर किश्‍त नहीं चुका पाए उनके साथ दौड़ धूप करना सरकारी मदद राहत दिलवाना ,उन्‍हें मजा आने लगा, सारी खेती व गाय- भैंस मां देखती, उन्‍होंने दादी को भी आराम दे दिया उन्‍होंने(मां ने ) एम. बी. ए. तो नहीं किया था पर वे बहुत अच्‍छी मैनेजर थीं मौन काम में लगी रहतीं कम बोलतीं नौकर मजदूर पड़ौसी सब को सम्‍हाल लेतीं कूल रहती मुस्‍करातीं रहतीं ।अब पिताजी का प्रभाव बढ़ा, तो प्रतियोगिता भी बढ़ी, पहले के प्रभाव शील जलने लगे, दोस्‍तों के साथ दुश्‍मनी भी बढ़ी । हां तो एक दिन क्‍या हुआ कि पिताजी कहीं से आ रहे थे अकेले रात देर हो गई थी कि घर के सामने थोड़ी ही दूर उन्‍हें सात- आठ लोगों ने घेर लिया जाने कबसे छिपे थे ,वे उन्‍हें धमका रहे थे ,आशंका थी कि शायद मारपीट करें वे लाठी व कुल्‍हाड़ा लिए थे मां ने सामने आवाज सुनी तो पौर के ऊपर कमरे (अटारी)की खिड़की से झांका पिता जी सहसा घेरे से छूट कर भागे वे दुश्‍मन पीछे- पीछे थे मां ने सहसा बंदूक उठाई और एक हवाई फायर कर दिया और जोर से चिल्‍लाईं-‘ अगली गोली छाती पर लगेगी ,लौट जाओ ।‘उनकी आवाज का बिजली जैसा असर हुआ भीड़ रूक गई व लौट गई मैं तब सात या आठ साल का रहा होऊंगा। मां ने दादी से कहा –‘जल्‍दी सामने के किवाड़ खोलो।‘ मुझे अच्‍छी तरह याद है, दादी के हाथ कांप रहे थे,मैं भी बहुत डरा घबड़ाया था मैने व दादी ने मिल कर सांकल खोंली। सांकल थोड़ी टाईट थी या हमें लगी कह नहीं सकता देर में खुली । पिता जी अंदर आए किवाड़ लगा लिये वे हांफ रहे थे पसीने- पसीने थे उन्‍हें आंगन में खाट पर बिठाया मां फौरन पानी लाई उन्‍हें पिलाया वे लेट गए ।मां तब भी कूल थी मुझसे कह रही थी दादा पर पंखा झलो ।पिता जी से सांन्‍त्‍वना के स्‍वर में बोलीं –‘ शान्‍त हो जाओ, अब कछू न हुए ।‘ फिर तो दादी ने मां को गले से लगा लिया ,वे रो रहीं थीं और कह रहीं थीं-‘ तू तो दूसरी सावित्री है ,साक्षात देवी, कुल तारनी, जानें क्‍या क्‍या।‘ ,पहली बार दादी के मुंह से मां के लिये आर्शीवचन मैने सुने, केवल घर में ही नहीं दो चार दिनों में तो पूरे गांव व क्षेत्र में मां की बहादुरी के चर्चे गूंजने लगे। वर्षों लोग कहते रहे। उनका सम्‍मान बढ़ गया , अब कोई उन्‍हें भगी- भगाई नहीं कहता था । मेरे प्रति भी लोगों की उपेक्षा कम हुई । पिता जी का प्रभाव बढ़ा सम्‍मान बढ़ा सम्‍पर्क बढ़ा तो समृद्धि भी बढ़ी उन्‍होने थोड़ी और ज्‍यादा जमीन खरीद ली उन्‍हें नदी से बजरी के ठेके में शेयर मिला उनकी टीम के लड़के काम करने लगे पत्‍थर निकालने का काम में ठेकेदार उनका ध्‍यान रखते उनकी टीम के सदस्‍य जोड़े जाते उनका ट्रेक्‍टर जब फ्री होता तो ढुलाई करता फिर उनके दो तीन ट्रेक्‍टर हो गए वे पटेल बन गए । मेरे दो बहने थीं उन्‍हें पढ़ने भेजा गया दादी तो विरोध कर रहीं थीं पर वे कॉलेज तक पढ़ीं बड़े किसानों से नहीं मध्‍यम वर्गीय शासकीय सेवकों से ब्‍याही गईं एक बहिन तो स्‍वयं यू. डी .टी. है।

मैं ग्‍वालियर में डा. अहमद का क्‍लास फेलो था इंटर में हम दोनो साथ साथ पढ़ते थे उनका मेडिकल में एडमीशन हो गया मैंने पुलिस में भर्ती का टेस्‍ट दिया मैं सिलेक्‍ट हो गया प्रशिक्षण में जाने को ही था कि फौज का विज्ञापन दिखा मैंने उसमें भी भर दिया आर्मी अफसर में मैं चयन कर लिया गया दो वर्ष के प्रशिक्षण के बाद मैं सेकिन्‍ड लेफटी नेन्‍ट बन गया और मुरार में ही ड्यूटी पर आ गया वहीं अब्‍बा(डा. अहमद के पिता जी ) थे परिचय और गाढ़ा हो गया । अब मेरी शादी की बात चली इनके (अपनी पत्‍नी की ओर इशारा करते हुए ) पिता जी तब पुलिस में सब इंसपेक्‍टर थे उन्‍होंने मुझे पसंद किया और मेरी शादी हो गई । मेरी नौकरी के लगभग दो तीन साल हुए होंगे एक दिन मैं अपने गांव गया था कि रात के आठ – नौ बजे पिता जी को चार पांच लोग घेरे खड़े थे एक बंदूक की नाल पिता जी के सीने पर अड़ाए था वे जोर जोर से बात कर रहे थे –‘अभी उड़ा देंगे राम का नाम लो मान रये के नईं बोलो।‘ दूसरा बोला-‘ लगै डुकरा में होगी सो देखी जाएगी।‘ मैं दौड़ कर अपने कमरे में गया जहां पिता जी की बंदूक टंगी थी ली और दरवाजे पर आया निशाना साधकर जो बंदूक लिये था उस पर गोली चला दी उसके सिर में लगी दूसरे पर भी फायर कर दिया वह भी नीचे गिर गया फायर उसने भी किया पर निशाना चूक गया पिताजी के कंधे में गोली लगी वे गिर पड़े । मामला था कि एक विधवा की जो उस बंदूक वाले की भाभी थी दस बीघा जमीन पर कब्‍जा किये था पिता जी ने उस महिला से जमीन खरीद ली थी वे कह रहे थे कब्‍जा तुम नहीं कर पाओगे हमें दे दो यही धमका रहे थे । मां ने कहा मैं सब कर लूंगी मोटर साईकिल से अभी ग्‍वालियर निकल जाओ बाकी मैं देख लूंगी उन्‍होंने मुझे फौरन बीस हजार रूपए जो घर में थे मुझे दिए मोटर साईकिल से मैं चल दिया मां ने अपने समर्थक/शुभचिंतक बुलाए जीप से वे पुलिस स्‍टेशन पहुंची रिपोर्ट दर्ज कराई। विरोधी भी गए, वे दोनो पूरे गांव को परेशान किए थे,। अत: बहुत से लोग उनके विरोधी थे ।थाने में भी कई केस उनके खिलाफ दर्ज थे ।पिता जी की डाक्‍टरी जांच हुई वे इ्लाज के लिए ग्‍वालियर भेजे गए वे भी गिरफतार किए गए ।एक्‍ पड़ोस के श्री कांत अपनी छत पर थे उन्‍होंने पिता जी को धमकाने व व सीने पर बंदूक रखने की वीडियो फिल्‍म अपनी छत से बना ली थी जो बाद में बताई ।मैं सीधे अब्‍बा के पास पहंचा उन्‍हें सारी बात सच बता दी उन्‍होने कहा-‘ बात तो बुरी हुई सोचेंगे, यहीं रूको, बाहर मत निकलना,।‘ घर में ही रहना अपनी पत्‍नी(अम्‍मी) को बुलाया उन्‍हें बताया-‘ ये बेड रूम में सोएंगे अपन ड्र्ाईंग रूम में।‘ दो दिन बाद अब्‍बा बोले –‘तुम मुसलमान बन जाओ।‘, मैं उनका मुंह देखने लगा, वे बोले –‘घबडा़ओ नहीं, मैं परमानेन्‍ट मुसलमान बनने को नहीं कह रहा, टेम्‍परेरी मुसलमान, कुछ दिन के लिए ,नकली मुसलमान।‘ मैं हंस पड़ा दांत निकल आए तो अब्‍बा बोले कल से ट्रेनिंग शुरू मेरे साथ नमाज पढ़ना हैं में उनके साथ सुबह शाम नमाज पढ़ता उन्‍होने विस्‍तार से समझाया क्‍या क्‍या क्‍यों करते हैं प्रदर्शन किया । फिर छोटे भाई सुहैल ने मुझे हिन्‍दी में लिख कर दिया क्‍या बोलना है मैने याद कर लिया। एक दिन अब्‍बा बोले –‘मेरा और आपका रिजर्वेशन टिक्टि बन गया है।‘ हम एक दूसरे स्‍टेशन एक बंद कार से गए व उस स्‍टेशन से ट्रेन में बैठे ।अब्‍बा ने मेरा नया नामकरण किया बशीर खान अब्‍बा कार में बताते रहे-‘ तुम मेरे भतीजे हो, मेरे ममेरे भाई नसीर खान के बेटे हो , सब बातें रट लो, ये सब मैं तुम्‍हें कागज पर लिख कर नहीं दे सकता , तुम एक आर्मी मैन हो ,गम्‍भीरता समझते हो।‘ हम फर्रूखाबाद जिले के अब्‍बा के गांव पहुंचे। यहां पुलिस मेरे रिश्‍ते दारो को पकड़ रही थी, बंद कर रही थे ,मेरे घर की निगरानी की जा रही थी, मेरे दुश्‍मन भी पता लगा रहे थे, कुछ हमदर्द बन मां से पूंछने आते,। वहां हमे साजिद भाई से मिलवाया गया वे वकील थे पास के कस्‍बे में कोर्ट में प्रेक्टिस करते थे साथ ही खेती देखते थे वे अब्‍बा के बड़े भाई के बेटे थे मैं उनके साथ प्रत्‍येक शुक्रवार जुमा की नमाज पढ़ने कस्‍बे की मस्जिद जाता ट्रेक्‍टर पर अनाज बेचने मंडी जाता फालतू समय में किशोरो नौजवानों को जूडो कराते की ट्रेनिगं देने लगा दौड़ कूद भी शामिल हो गए कुछ लड़कियां भी आने लगीं एक बार मोहल्‍ले की लड़की को कुछ लड़कों ने गलत हरकत कर दी बिरो ध किया तो दूसरे दिन पांच छ:लड़के लाठी- डंडे लेकर शक्ति प्रदर्शन को आ गया मैं निकल रहा था एक व्‍यक्ति तलवार लिये था लड़की के भाई को घेर कर धमका रहे थे मैने हस्‍तक्षेप किया तो हावी होने लगे तलवार लहराई तो मैने उसकी कलाई पर चोट की तो छूट कर गिर गई उन दोनों को उत्‍साह भरा वे डंडा लेकर व कराते के दांव से भिड़ गए मैं भी साथ था वे लोग भाग गए हमारे मोहल्‍ले में लड़की पहली बार लड़ी थी सब वाह वाह कर उठे । पर साजिद भाई नाराज थे कहीं उन्‍होने रिपोर्ट की तो क्‍या होगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । साजिद भाई बोले-‘ यू आर अंडर वाच, सावधान रहो ,तुम बार बार बेवकूफी करते हेा।‘ मेरे से सीखने वालों की संख्‍या बढ़ गई एक बार अपने शिष्‍यों का ग्रुप लेकर जिले में गया हमारे लड़के लड़कियों ने बढि़या प्रदर्शन ि‍कया तभी वहां दशहरे का समय था निशाने बाजी की प्रतियोगिता हो रही थी जो एक मुश्किल निशाना लगा नहीं पा रहे थे मुझे भी मौका दिया निशाना लग गया।पुरूस्‍कार के लिये मेरा नाम पुकारा गया मंच पर पुरूस्‍कार बांटने वाले कोई रिटायर्ड फौजी थे। मैं उनके सामने पहुंचा तो बोले –‘चाल ढाल से तो आर्मी मेन लगते हो। हाईट वेट से भी फिट हो, करते क्‍या हो?’ जब कहा –‘एक किसान।‘ तो कन्‍धे उचकाने लगे, उनकी निगाहें देर तक घूरती रहीं । मेरे लड़कों ने मुझे उठा लिया प्रत्रकारों ने फोटो खींची लोकल अखबारों में छपी। साजिद भाई ने मुझे बहुत डांट पिलाई –‘खैर करो, यहां छपी, कहीं किसी ने देख ली तो सारी पोल पट्टी खुल जाती, सारी मेहनत पर पानी फिर जाता।‘ मैने कान पकड़े ठीक जुताई के समय ड्रा्ईवर बीमार हो गयाा तो मैने उनकी जमीन जोती बुवाई कर वाई उनकी परती पड़ी जमीन भी जोत दी।गंगा किनारे थी उसमें तीन ट्राली तरबूज व खरबूज हुए खूब खाए पर बांटना पड़े खत्‍म ही नहीं हो रहे थे ।