बद्री विशाल सबके हैं 3
कहानी
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
तब तक श्रीमती डा.माथुर अंदर आईं वे हाथ में एक डिब्बा लिए थीं वे डिब्बा आगे बढ़ाते बोलीं ईद मुबारक एक एक ले लें अहमद साहब बोले-‘ सब लोग लें ।‘तो मिसेज डा. माथुर ने कहा-‘ अभी नहाया नहीं है, हम सब यहां गर्म पानी के कुंड में नहाने जाएंगे ,फिर मंदिर जाएंगे तभी कुछ खाएंगे जो आप कर रहे वही समस्या मेरे साथ है ससुर साहब हैं फिर पिताजी- माता जी हैं, अभी माता जी साक्षात काली माई बन जाएंगी-‘ डाक्टर बन गईं तो धरम करम सब भूल गईं ?’,आप लें, व सब बच्चे लें ,थोड़ा मुंह जरूर मीठा कर लें सुन्नत अदा करें ।‘डा.अहमद संकोच से बोले –‘मैं कोई ज्यादा धार्मिक नहीं हूं ,अब वहां कहता ईद है, तो सबका प्रोग्राम बिगड़ जाता ,जैसे तैसे तो बना ,नईमा तो कह रही थी, पर उसे समझा दिया, अब यहां मसजिद न जाने कहां होगी? कितनी दूर होगी ? होगी भी कि नहीं ?अत: यहीं पढ़ ली बच्चे इमोशनल होते हैं, अब बेटी है, शादी तो पठानों में ही करना होगी। तो धर्म - रिवाज सिखाना पड़ते हैं वरना ससूराल में व्यंग्य कसेंगे, परेशानी होगी। सिखाते हैं ,तो वे मन पर असर भी करते हैं ।‘ तब तक पंडा जी का बेटा हॉल में घुसा डा. अहमद की आधी अधूरी बात सुन कर एक दम से बोला –‘ कोई जरूरी नहीं है।‘डा.अहमद व अन्य लोग उसकी बात सुन कर मुस्कराने लगे ।तो बोला -'It’s modern era (यह आधुनिक युग है) सर जी Now We should leave aside our cast religion superstition and Dogma etc...।‘(अब हमें जाति धर्म समप्रदाय के भेद भाव छोड़ देना चाहिये अंधविश्वास व तद्जनित अंहकार को भी) पटेल साहब ने ठहाका लगाया बोले-‘ तो बोलो जेन्टिलमेन ! पंडा जी से बात करें?’तो वह झेंप गया पर दम लगा कर रूक कर बोला –‘पंडा जी! की वे जानें, आपकी सर जी !आप, मैने अपने विचार बताए।‘ सब लोग जोर- जोर से हंसने लगे नईमा भी जो उसकी बातें ध्यान से सुन रही थी सहमत सी लग रही थी प्रभावित थी शर्मा कर बाहर चली गई । वह बोला –‘सर जी यह केवल मेरी बात नहीं हैं बहुत सारे लोग scientific attitude, temper ,Rational thinking, and humanitarian aproach (वैज्ञानिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक सोच तर्कसंगत विचार मानवीय संवेदना आदि )की बात करते हैं ,आप सब लोग बड़े हैं, मेरे से ज्यादा पढ़े लिखे अनुभवी हैं, मैं भावा वेश में शायद ज्यादा बोल गया मुझे माफ करें ।‘ वह चाय नाश्ते की पूंछने आया था पर डा.माथुर ने कहा हम सब लोग नहीं पियेंगे, हां कुछ वृद्ध व वरिष्ठ हैं जिन्हें सुबह लगती ही है तो चाय तो मंगवा दें पर नाश्ता बाद में ।‘सब ने हां कहा। वह चला गया ।वह थोड़ी देर में चाय लेकर आया । डा.अहमद ने पटेल साहब से अपनी पीड़ा साझा की-‘ अब कैसी भी मॅाडर्न फेमिली हो ,लड़की से तो एक्सपेक्ट करते हैं, मुसलमान वातावरण बदलने से ज्यादा िडफेंसिव हो गए हैं, ज्यादा ऑर्थोडॉक्स हो गए हैं।‘ –‘लम्बी लड़़की की अपनी समस्या है ,लम्बे लड़के तो कम लम्बी लड़की से शादी कर लेंगे, पर अपने से ज्यादा लम्बी लड़की से कम लम्बा लड़का तैयार नहीं होता ,अब लड़की पढ़ी लिखी हो तो और अगर लड़के से बेहतर जॅाब में है, तो बिल्कुल ही नहीं बहुत सारी बातें देखना पड़ती हैं।,’जाति बिरादरी के घेरे में तो आज कल बहुत मुश्किल हो गया है ।‘ पटेल साहब-‘ मेरी बेटी भी नईमा की हाईट की ही है, एम. टेक है ,बंगलौर में जॅाब में है, लड़का ढूंढने में बड़ी मुश्किल आई लड़का समान लम्बाई का मिलता तो पढ़ाई लिखाई की बात उठती कहीं, परिवार से मन नहीं भरता बहुत रूिढ़वादी होते अगर परिवार में सब कुछ ठीक होता तो वे बहुत घमंडी होते उनकी बहुत ज्यादा मांग होती नखरे होते हमें कुछ नहीं समझते इसी लिए तो ये (पत्नी की ओर इशारा करते हुए्)कहती थीं कि कि इतना मत पढ़ाओ लड़की की जात पर बेटी इंटेलीजेंट थी उसे पढ़ाई से रोकना उस पर अन्याय लगता था ।पर जो लड़का मिला बिटिया से दो इंच/ चार अंगुल कम है, वे तैयार हो गए मैने शादी कर दी, जॅाब दोनों का बराबर है संतुष्ट हैं । ‘ उनके शब्दों से तो लग रहा था कि वे संतुष्ट हैं पर चेहरा बता रहा था कि वे कहीं गहरे असंतुष्ट हैं रिश्ते में कोई कमी कोई कसर लगती थी ।
अब सब लोग स्नान के लिए गर्म पानी के कुंड पर पंहुचे डा.अहमद व नईमा ने नानी को पकड़कर कुंड में उतारा डुबकी लगवाई उन दोनो के कपड़े भी गीले हो गए अन्य सब लोगों ने भी स्नान किया डुबकियां लगाईं कपड़े बदले सब लोग गीले कपड़े लेकर फिर ठहरने के स्थान पर पहुंचे कपड़े सूखने डाले कुछ ने फिर से अच्छे कपड़े बदले अब सब लोग मंदिर की ओर चले वहां दुकानों से पूजा की थालियां लीं अहमद साहब ने भी दो पूजा की थालियां लीं एक नानी के लिए एक डा. श्रीमती शैलजा अहमद के लिए दोनो थालीं डा.शैलजा को थमा दीं । डा. साहब चुपके से डा.शैलजा अहमद से बोले –‘आप मां को लेकर मंदिर में चली जाना मैं व नईमा सीढि़यों के पास रूक जाएंगे आपका इन्तजार करेंगे ।वे जानबूझ कर ग्रुप से पीछे हो गए ,डा.साहिबा आगे चलीं थालियां लेकर सीढि़यां चढ़ रहीं थीं पीछे से नानी चढ़ीं वे बूढ़ी तो थीं ही थोड़ी मोटी भी थीं दो तीन सीढि़यों के बाद लड़खड़ा गईं डा.साहब लपक कर ऊपर चढ़े व अपनी सास के बाजू थाम लिया नईमा ने दौड़ कर दूसरा बाजू थाम लिया अब वे दोनों उन्हें पकड़ कर सीढि़यां चढ़ा रहे थे ।मंदिर के सिंह द्धार पर पहुंच कर थोड़ा रूके नानी हांफ गईं थीं तब तक एक अनजान ग्रुप के आठ-दस लोगों का रेला आया डा. साहब रूक न सके वे सास व नईमा के साथ अंदर धकेल दिए गए अब नानी फर्श पर बैठ गई डा. साहब ने इनहेलर बैग से निकाल तैयार किया व उन्हें सांस खींचने को कहा दो चार सांस खीचने के बाद वे थोड़ा ठीक थीं।अब नानी फर्श पर बैठ गईं उन्हों ने घुटनों के बल बैठ कर दोनों हाथ जोड़कर माथा जमीन से लगा कर भगवान को प्रणाम किया उनकी एक बड़ी इच्छा पूर्ण हो गई थी । डा. शैलजा ने एक थाली नईमा को दे दी व दूसरी थाली मां के हाथ से स्पर्श करा कर पंडा जी को देने आगे बढ़ी नईमा थाली लिए खड़ी थी तो पंडा जी के बेटे ने नईमा के हाथ से मुसकराते थाली ले ली और भगवान के पास खड़े मुख्य पुजारी जी को चढ़ाने को दे दी । अब डा. अहमद साहब को होश आया कि वे बद्री नाथ भगवान के सभा मंडप में खड़े हैं वे चारों तरफ देख रहे थे उनके ग्रुप के लोग रेलिगं के पास दर्शन कर रहे थे कुछ लोग प्रसाद की थाली पंडा जी को देने को व्यग्र थे कुछ लोग हाथ जोड़े आंखें बंद किये मन ही मन कोई धीरे -धीरे बोल कर कोई मंत्र या श्लोक दुहरा रहे थे बुदबुदा सा रहे थे । कोई अपनी कामना पूर्ति को गिड़गिड़ा रहे थे। कुछ लोग भगवान की मनोहर मूर्ति के अपलक दर्शन कर रहे थे कोई अपनी कामना पुर्ति होने पर धन्यवाद ज्ञापित करने आए थे बारबार माथा टेक रहे थे ।