बद्री विशाल सबके हैं - 6 डॉ स्वतन्त्र कुमार सक्सैना द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बद्री विशाल सबके हैं - 6

बद्री विशाल सबके हैं 6

कहानी

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

बिब्‍बो उसकी ओर घ्‍यान से देख रही थी । मुस्‍करा दी । तो धीरू सम्‍हल कर सोच कर बिब्‍बो और नईमा की ओर देखकर बोला –‘बाजी! इट विल बी म्‍यूचुअल, हम एक दूसरे का बोझ उठाएंगे, अब ठीक है, न, एम आई राईट ?’

सब लोग हंस पड़े ।

नईमा बोली-‘ लड़के असली मौके पर ऐसे ही लड़खड़ा जाते हैं।‘ बिब्‍बो -अरे यार घबड़ाओ नहीं जबरदस्‍ती गले नहीं पड़ंूगी।‘ और जोर से हंस दी ।

पंडा जी का बेटा (निखिल)बोला-‘ सब लड़के नहीं लड़़खड़ाते मैं वायदा करता हूं।‘

नईमा पीछे मुड़ी तो देखा वह पीछे आ रहा था नईमा-‘ तो आप पंडा जी से डिसकस करें, तभी तो बात आगे बढ़ेगी ।‘

पंडा जी का बेटा-‘ जा कर पूंछूंगा ।‘

नईमा –‘ still You are not sure ?बात करलें तभी तो बात आगे बढ़े।‘

नईमा-‘हां आप बात करेंगे ही तो सुनें, मैं अपना नाम व सरनेम नहीं बदलूंगी न ही धर्म छोड़ूंगी ।मेरी शुद्धि नहीं होगी । आप के घर रोज नमाज नहीं पढ़ूंगी, पर नमाज पढ़ने का अधिकार और अवसर सुरक्षित होंगे ।हां आपके घर नॉनवेज नहीं खाऊंगी आप के हर पूजा पाठ त्‍योहार में शामिल रहूंगी ,आप को भी कभी मुसलमान बनने या कलमा पढ़ने को नहीं कहूंगी ।‘

पंडा जी का बेटा (निखिल )-‘ तब तो .......।‘बीच में बिब्‍बो बोल उठी, मैं अपनी बात बताऊं-‘ आप जैसा ही एक बार एक टूरिस्‍ट जत्‍था आया था शायद एक आध साल पहले किसी बड़े शहर से थे बाबूजी मेरे पर फिसल गए बहुत मीठी- मीठी बातें करते थे फिल्‍मी डॉयलाग जो रट रखे थे मैं एज ए होस्‍ट गाईड सेवा कर रही थी। भैया भी साथ थे ।वे समझे बेवकूफ सी छोरी मेरे पर मर गई चलो घूम फिर रहे हैं ऐसे में इश्‍क भी फरमा लें अगर मान गई तो .......आनंद सागर में दो चार बार गोता मार लेंगे ।‘वायदा कर के गए छ: महीने बाद अपना हनीमून मनाने दुल्‍हन के साथ दहेज की कार में बैठ कर आए तब भी मेरे से प्‍यार का इजहार करने से नहीं चूके।‘ बोले-‘ शादी तो पैरेन्‍ट्स के कहने से करनी पड़ी ,पर प्‍यार तो तुम्‍हीं से करता हूं, कभी भुला नहीं पाऊंगा, बस हां कह दो ।‘हम लड़कियों को ऐसा माल समझते हें बस मुंह खोलो रसगुल्‍ले की तरह अंदर ।‘नईमा बिब्‍बो के साथ जोर से हंस पड़ी ।

पूरा ग्रुप उन्‍हें आश्‍चर्य से देखने लगा । पर दोनों लड़के समझ गए । शाम को वे सब लौटे थके किसी- किसी की जोर से सांस चल रही थी ,कोई लंगड़ा कर चल रहा था, पैर घसीट रहा था , पर बिब्‍बो फ्रेश थी । सब लोग बैठ गए तो वह धीरू को उसका बैग देने गई ,जो उसने धीरू के थक जाने पर ले लिया था। वह मोहक बॉय कह कर जाने लगी। पटेल साहब के पिताजी बरांडे में बैठे थे उन्‍हीं के पीछे धीरू एक खाली कुर्सी पर पैर पसारे लस्‍त पस्‍त बैठा था। वह दादा को प्रणाम कर के मुड़ी तो दादा उसकी पीठ देख रहे थे। एक दम से जैसे स्‍वयं से कह रहे हों बोले –‘ एस ई हिम्‍मत बारी और सुगढ़ धनवंती हती जाने ब में कितेक ताकत हती जैसई ज बिटिया है ।दिन भर चिरैया सी फुदकत रई पै नेकउ थकी नईंया ।‘

धीरू सुन रहा था जिज्ञासा रोक नहीं पाया पूछ ही बैठा-‘ बाबा! धनवंती कौन ?’

तब तक पटेल साहब आ रहे थे उन्‍हों ने वार्तालाप सुन लिया तो बोले मैं बताता हूं –‘धनवंती !मेरी मां तुम्‍हारी दादी पिताजी की पत्‍नी और .....प्रेमिका भी ।‘ रूक कर बोले-‘ मुझे भी बिब्‍बो को देख कर, अपनी मां याद आई ,वह भी इतनी ही फुर्तीली थीं,न जाने इस लड़की में कितनी इनर्जी भरी है? कितनी प्रबंध क्षमता है? कितने लोगों से बात करती है! जरा भी झुंझलाती नहीं, मुस्‍कराती रहती है, जबाब देती रहती है, अटकती नहीं, भटकती नहीं , रूकती नहीं । ‘

जब वे घर पहुंचे तो घीरू ने दो तीन जगह इंटर व्‍यू दे रखा था एप्‍लाई कर रखा था तो उनके आर्डर आ गए उनमें एक देहरा दून भी था वह चला गया सब लोग प्रसन्‍न थे जब पहली वेतन मिली लगभग देा महीने बाद तो वह घर आया मां को वेतन दी पर मां श्रीमती पटेल एक दिन टेबिल पर कुछ फोटो व परिवारों के जानकारी प्रस्‍ताव(BIODATA) के पत्र लिये बैठीं थीं। धीरू बेटे –‘बैठो, ये देखो, ये डी. आई . जी ; की बेटी एम. बी ए. है ,ये बहुत बड़ी पार्टी है,ये तुम्‍हारे नाना के दोस्‍त का परिवार है।‘ ऐसे उन्‍होंने बहुत सारे प्रस्‍ताव दिखाए। धीरू देखता रहा फिर जैसे उकता गया बोला –‘अभी नहीं एक साल नौकरी हो जाए तब सोचूंगा।‘ वे इसरार कर रहीं थी-‘ बड़े लोग है, इनकार नहीं कर सकते, फिर क्‍या सब बैठे रहेंगे ।तीन तो ये पंडित जी से जन्‍म कुंडलियां भी मिला ली हैं। एक फोटो दिखाते बोली ये तो बहुत सुंदर है, इसकी कुंडली में राज योग है, जंहां जाएगी राज करेगी ।‘धीरू-‘ मम्‍मी मैं कहीं का राजा नहीं हूं मुझे कोई राज नहीं करना ,मुझे बख्‍शो ।‘ ये सब ब्‍यूटी शॉप से मेकअप करके खिंचवाई फोटो हैं इनसे चमत्‍कृत मत हो ओ ।‘ पंडित तो किसी की भी जन्‍म कंडली मिला देते हैं बस उनसे कह दो मिलाना है मिल जाती है । ‘ श्रीमती पटेल –‘ आखिर कोई लड़की तो पसंद हो बताओ उस से कर दें । धीरू-‘ अम्‍मा तुम रहने दो ,तुम कर नहीं पाओ गी, मैं अभी शादी करना नहीं चाहता, दो तीन दिन को आया हूं ,चैन से रहने दो ,ये राग मत अलापो ।‘ उत्‍साह में श्रीमती पटेल ने बेटे के सिर पर हाथ रख दिया बेटे-‘ तुम बताओ उसी से करेगे, बस ढंग की हो।‘ धीरू –‘अब ये शर्त ढंग बेढंग नहीं चले गी।‘ तब तक पटेल साहब आ गए बोले-‘ क्‍या है कैसी बहस हो रही है ?’श्रीमती पटेल-‘ अरे लड़कियों की फोटो दिखाईं सब रिजेक्‍ट कर दीं, बहुत सी ऐसे घर की हैं ,मना करने में प्रॉब्‍लम्‍ आएगी, क्‍या करें, जन्‍म कुंडली भी मिल रहीं हैं ,वे देने को तैयार हैं, अच्‍छी शादी करेंगे, सुंदर पढ़ी लिखी लड़कियां हैं, क्‍या चाहिए भाई तुम्‍हें पसंद हो बता ओ, ,सो नहीं मतलब समझ में नहीं आ रहा।‘ पटेल साहब से बोलीं-‘ तुम्‍ही समझाओ, क्‍या बात है ,,जॉब है, उमर है, रिश्‍ते आ रहे हैं ,फिर कब करेंगे बुढ़ापे में? तब कोई नहीं मिलेगी, उल्‍टे ढूंढते फिरोगे ,अभी नखरे आ रहे हैं ।‘ तीन चार दिन यही राग अलापा जाता रहा अब धीरू का जाने का आखिरी दिन था रात का रिजर्वेशन था बहुत दिक किया तो बोला –‘ कह दूं मैं अपनी पसंद की नहीं बाबा की पसंद की करूंगा बाबा ने एक लड़की पसंद की है मैं कर लूंगा।‘ श्रीमती पटेल पटेल साहब से बोलीं-‘ अरे पिता जी ने लडंकी पसंद कर ली, मुझे बताया नहीं, ये क्‍या बात है, डोकर से पूंछो कौन को पसंद किया? बताया क्‍यों नहीं? लड़के को बहका रहे हैं।‘ तब पटेल साहब झुंझला गए। पिताजी उसी दिन गांव से शहर आए तो बहूरानी चढ़ बैठीं –‘दादा! तुमने घीरू को कौन सी बिटिया देख ली, उसे बताया, हमें नहीं ,हमें तो बताते ।‘पिता जी आश्‍चर्य चकित बोले-‘ मैने कैान सी पसंद की, मुझे मालूम है, तुम मेरी बताई करोगे नहीं, जो तुम्‍हें पसंद हो करो, अब पूंछ ही रहे हो ,तो इतनी कहोंगो ,धीरू से भी पूंछ के करो ,जबरई न करियो , ब की राजी सो मेरी राजी बहू घर आये।‘ श्रीमती पटेल-‘ अब वो ई तो कह रहो कै बाबा ने पसंद करी ,ब से करोंगो, तो बताई दो ,कौन सी पसंद करी, ज्‍यादा न टरकाओ ।‘ पिता जी –‘ बुलाओ उसे मैने कब कही ।‘धीरू बुलाए गये तो श्रीमती पटेल एक दम आपे से बाहर आक्रोश में बोलीं –‘ बाबा तो कह रहे मैने कब बताई अब इनके सामने बताओ बोलो कौन सी बताई।‘ धीरू –‘ बाबा ने एक लड़की पसंद की है वह जो धनवंती जैसी फुर्तीली व विनम्र है जिस घर जाएगी उजाला करेगी, पूंछ लें, मैं तैयार हूं ।‘

पिता जी –‘ हां बह लड़की मैने देखी थी बहुत कुशल है सुगढ़ है पर मैं जानता हूं आपके स्‍टेटस की नहीं है आप नहीं करेंगे मैने कहा भी नहीं वह तो उसे देख प्रभावित हुआ तो मुंह से उसकी प्रशंसा में निकल गई जे तो नईं कई कै धीरू बई से करें न धीरू से कई ।‘

धीरू –‘ जब बाबा ने पसंद कर ली तो मुझे भी पसंद है मैं उसी से करूंगा करवा सकें तो बोलें वरना कोई बात नहीं आप जबरदस्‍ती नहीं कर पाएंगे ।

श्रीमती पटेल –‘ उससे तो नहीं हो सकती भैंस पालने वाली लड़की यहां सोसायटी में नाक कट जाएगी ।‘

धीरू –‘ अरे वह मेरे साथ रहेगी हम यहां नहीं आएंगे बस हो गया, आप सोच लें बता देना, मैं जा रहा हूं ।ट्रेन का टाईम हो रहा है। ज्‍यादा बहस नहीं। पिताजी से पूंछे ।‘

पटेल साहब –‘ हां दादा को बहुत पसंद है मुझे भी वह बहुत स्‍मार्ट लगी। शादी धीरू की तुम्‍हें जिससे करना हो करो। बस घीरू से पूंछ कर ।‘

श्रीमती पटेल –‘ आग लगा कर बाप बेटे कैसे मासूम बन रहे हैं। लड़के को बहका दिया हे भगवान रक्षा करो। मेरी सासो मां मेरी मय्यो तुम जियत जिंदा रहीं तम्‍हारी चली तुम मीठा बोलतीं थीं पर मेरी जिंदगी तो बरबाद हो गई क्‍या सोचा था क्‍या हो गया सारे सपने धूल में मिल गए मेरे को ही नहीं सुनते हैं सात गांव में तुम्‍हारा चलावा था तुम्‍हारे पति और बेटे पालतू बिल्‍ली बन कर रहे सब तुम्‍हारी सुनते थे तुमने किसी की नहीं सुनी तुमने मोय खूब पेरो । अब तुम्‍हारा दिन , तेरहवीं वर्षी ,पटा सब किया गंगा जी, गया सब जगह ले गए ,तब भी पेर रहीं, जो कसर रह गई वह भी बक्‍करो, वो भी करेंगे, पर लड़के से अपना साया हटा लो , देखो कैसा पगलाया है, उस पर कृपा करो ।मेरी हाथ जोरे की विनती है। वरना मेरी आत्‍मा भी सरापेगी, नरक में भी ठौर नहीं पाओगी।‘ उनकी आंखें गीली हो गईं । ।‘धीरू सबके चरण स्‍पर्श करते हुए –‘अच्‍छा मैं जा रहा हूं इस बार चार दिन भयंकर बहस हुई, कोई निर्णय नहीं हुआ ,मैने अपना फैसला बता दिया ,यदि आप लोग तैयार हों तो ठीक, वरना बाबा की पसंद के अनुसार मैं शादी कर लूंगा ,आपको सूचित कर दूंगा और किसी से नहीं बाय बाय ।‘

डा.अहमद साहब पूरी टीम के साथ लौटे यात्रा सफल रही सब प्रसन्‍न थे ।डा. अहमद ने वहां से लाए प्रसाद के पैकेट बनवाए जो अधितर मेवा ही था। पैकेट सारे स्‍टाफ में बांटे गए, कम्‍पाडंडर पाठक जी को भी एक पैकेट मिला। उन्‍होंने सबके सामने तुरंत ही माथे से लगाया ,छोटे- छोटे पैकेटे थे कुछ लो गों ने तो वहीं खोल कर खा लिए, पर पाठक जी घर ले आए। श्रीमती से कहा –‘बच्‍चों में बांट देना।‘ अगले दिन जब खाना खाने बैठे, तो श्रीमती जी खीर ले आईं, वे भोजन के अंत में खाने लगे, सहसा याद आया ,-‘अहमद साहब का प्रसाद बच्‍चों में बांट दिया?’ तो पठकाइन बोलीं –‘बच्‍चों ने तो नहीं खाया मैने सारे मेवे खीर में डाल दिए थे।‘ पाठक जी की खीर तब तक थोड़ी सी ही रह गई थी। उनका हाथ रूक गया। फिर पूरी खा कर कुल्‍ला कर ते बोले –‘चलो बद्री विशाल सबके हैं।‘

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