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स्वतन्त्र सक्सेना की कहानियां - बद्री विशाल - 3

बद्री विशाल सबके हैं 3 कहानी

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

समीक्षा

स्वतन्त्र सक्सेना एक परिपक्व और विचारशील रचनाकार हैं, वे निबन्ध लेखक और कहानीकार हैं। उनकी कहानी जमीन से जुड़ी रहती हैं जो रोचक और विश्वसनीय भी होती हैं। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। जनवादी चेतना से लैस उनकी कहानियां पाठक को भीतर से स्पर्श करती हैं।

वेदराम प्रजापति

मैं ग्‍वालियर में डा. अहमद का क्‍लास फेलो था इंटर में हम दोनो साथ साथ पढ़ते थे उनका मेडिकल में एडमीशन हो गया मैंने पुलिस में भर्ती का टेस्‍ट दिया मैं सिलेक्‍ट हो गया प्रशिक्षण में जाने को ही था कि फौज का विज्ञापन दिखा मैंने उसमें भी भर दिया आर्मी अफसर में मैं चयन कर लिया गया दो वर्ष के प्रशिक्षण के बाद मैं सेकिन्‍ड लेफटी नेन्‍ट बन गया और मुरार में ही ड्यूटी पर आ गया वहीं अब्‍बा(डा. अहमद के पिता जी ) थे परिचय और गाढ़ा हो गया । अब मेरी शादी की बात चली इनके (अपनी पत्‍नी की ओर इशारा करते हुए ) पिता जी तब पुलिस में सब इंसपेक्‍टर थे उन्‍होंने मुझे पसंद किया और मेरी शादी हो गई । मेरी नौकरी के लगभग दो तीन साल हुए होंगे एक दिन मैं अपने गांव गया था कि रात के आठ – नौ बजे पिता जी को चार पांच लोग घेरे खड़े थे एक बंदूक की नाल पिता जी के सीने पर अड़ाए था वे जोर जोर से बात कर रहे थे –‘अभी उड़ा देंगे राम का नाम लो मान रये के नईं बोलो।‘ दूसरा बोला-‘ लगै डुकरा में होगी सो देखी जाएगी।‘ मैं दौड़ कर अपने कमरे में गया जहां पिता जी की बंदूक टंगी थी ली और दरवाजे पर आया निशाना साधकर जो बंदूक लिये था उस पर गोली चला दी उसके सिर में लगी दूसरे पर भी फायर कर दिया वह भी नीचे गिर गया फायर उसने भी किया पर निशाना चूक गया पिताजी के कंधे में गोली लगी वे गिर पड़े । मामला था कि एक विधवा की जो उस बंदूक वाले की भाभी थी दस बीघा जमीन पर कब्‍जा किये था पिता जी ने उस महिला से जमीन खरीद ली थी वे कह रहे थे कब्‍जा तुम नहीं कर पाओगे हमें दे दो यही धमका रहे थे । मां ने कहा मैं सब कर लूंगी मोटर साईकिल से अभी ग्‍वालियर निकल जाओ बाकी मैं देख लूंगी उन्‍होंने मुझे फौरन बीस हजार रूपए जो घर में थे मुझे दिए मोटर साईकिल से मैं चल दिया मां ने अपने समर्थक/शुभचिंतक बुलाए जीप से वे पुलिस स्‍टेशन पहुंची रिपोर्ट दर्ज कराई। विरोधी भी गए, वे दोनो पूरे गांव को परेशान किए थे,। अत: बहुत से लोग उनके विरोधी थे ।थाने में भी कई केस उनके खिलाफ दर्ज थे ।पिता जी की डाक्‍टरी जांच हुई वे इ्लाज के लिए ग्‍वालियर भेजे गए वे भी गिरफतार किए गए ।एक्‍ पड़ोस के श्री कांत अपनी छत पर थे उन्‍होंने पिता जी को धमकाने व व सीने पर बंदूक रखने की वीडियो फिल्‍म अपनी छत से बना ली थी जो बाद में बताई ।मैं सीधे अब्‍बा के पास पहंचा उन्‍हें सारी बात सच बता दी उन्‍होने कहा-‘ बात तो बुरी हुई सोचेंगे, यहीं रूको, बाहर मत निकलना,।‘ घर में ही रहना अपनी पत्‍नी(अम्‍मी) को बुलाया उन्‍हें बताया-‘ ये बेड रूम में सोएंगे अपन ड्र्ाईंग रूम में।‘ दो दिन बाद अब्‍बा बोले –‘तुम मुसलमान बन जाओ।‘, मैं उनका मुंह देखने लगा, वे बोले –‘घबडा़ओ नहीं, मैं परमानेन्‍ट मुसलमान बनने को नहीं कह रहा, टेम्‍परेरी मुसलमान, कुछ दिन के लिए ,नकली मुसलमान।‘ मैं हंस पड़ा दांत निकल आए तो अब्‍बा बोले कल से ट्रेनिंग शुरू मेरे साथ नमाज पढ़ना हैं में उनके साथ सुबह शाम नमाज पढ़ता उन्‍होने विस्‍तार से समझाया क्‍या क्‍या क्‍यों करते हैं प्रदर्शन किया । फिर छोटे भाई सुहैल ने मुझे हिन्‍दी में लिख कर दिया क्‍या बोलना है मैने याद कर लिया। एक दिन अब्‍बा बोले –‘मेरा और आपका रिजर्वेशन टिक्टि बन गया है।‘ हम एक दूसरे स्‍टेशन एक बंद कार से गए व उस स्‍टेशन से ट्रेन में बैठे ।अब्‍बा ने मेरा नया नामकरण किया बशीर खान अब्‍बा कार में बताते रहे-‘ तुम मेरे भतीजे हो, मेरे ममेरे भाई नसीर खान के बेटे हो , सब बातें रट लो, ये सब मैं तुम्‍हें कागज पर लिख कर नहीं दे सकता , तुम एक आर्मी मैन हो ,गम्‍भीरता समझते हो।‘ हम फर्रूखाबाद जिले के अब्‍बा के गांव पहुंचे। यहां पुलिस मेरे रिश्‍ते दारो को पकड़ रही थी, बंद कर रही थे ,मेरे घर की निगरानी की जा रही थी, मेरे दुश्‍मन भी पता लगा रहे थे, कुछ हमदर्द बन मां से पूंछने आते,। वहां हमे साजिद भाई से मिलवाया गया वे वकील थे पास के कस्‍बे में कोर्ट में प्रेक्टिस करते थे साथ ही खेती देखते थे वे अब्‍बा के बड़े भाई के बेटे थे मैं उनके साथ प्रत्‍येक शुक्रवार जुमा की नमाज पढ़ने कस्‍बे की मस्जिद जाता ट्रेक्‍टर पर अनाज बेचने मंडी जाता फालतू समय में किशोरो नौजवानों को जूडो कराते की ट्रेनिगं देने लगा दौड़ कूद भी शामिल हो गए कुछ लड़कियां भी आने लगीं एक बार मोहल्‍ले की लड़की को कुछ लड़कों ने गलत हरकत कर दी बिरो ध किया तो दूसरे दिन पांच छ:लड़के लाठी- डंडे लेकर शक्ति प्रदर्शन को आ गया मैं निकल रहा था एक व्‍यक्ति तलवार लिये था लड़की के भाई को घेर कर धमका रहे थे मैने हस्‍तक्षेप किया तो हावी होने लगे तलवार लहराई तो मैने उसकी कलाई पर चोट की तो छूट कर गिर गई उन दोनों को उत्‍साह भरा वे डंडा लेकर व कराते के दांव से भिड़ गए मैं भी साथ था वे लोग भाग गए हमारे मोहल्‍ले में लड़की पहली बार लड़ी थी सब वाह वाह कर उठे । पर साजिद भाई नाराज थे कहीं उन्‍होने रिपोर्ट की तो क्‍या होगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । साजिद भाई बोले-‘ यू आर अंडर वाच, सावधान रहो ,तुम बार बार बेवकूफी करते हेा।‘ मेरे से सीखने वालों की संख्‍या बढ़ गई एक बार अपने शिष्‍यों का ग्रुप लेकर जिले में गया हमारे लड़के लड़कियों ने बढि़या प्रदर्शन ि‍कया तभी वहां दशहरे का समय था निशाने बाजी की प्रतियोगिता हो रही थी जो एक मुश्किल निशाना लगा नहीं पा रहे थे मुझे भी मौका दिया निशाना लग गया।पुरूस्‍कार के लिये मेरा नाम पुकारा गया मंच पर पुरूस्‍कार बांटने वाले कोई रिटायर्ड फौजी थे। मैं उनके सामने पहुंचा तो बोले –‘चाल ढाल से तो आर्मी मेन लगते हो। हाईट वेट से भी फिट हो, करते क्‍या हो?’ जब कहा –‘एक किसान।‘ तो कन्‍धे उचकाने लगे, उनकी निगाहें देर तक घूरती रहीं । मेरे लड़कों ने मुझे उठा लिया प्रत्रकारों ने फोटो खींची लोकल अखबारों में छपी। साजिद भाई ने मुझे बहुत डांट पिलाई –‘खैर करो, यहां छपी, कहीं किसी ने देख ली तो सारी पोल पट्टी खुल जाती, सारी मेहनत पर पानी फिर जाता।‘ मैने कान पकड़े ठीक जुताई के समय ड्रा्ईवर बीमार हो गयाा तो मैने उनकी जमीन जोती बुवाई कर वाई उनकी परती पड़ी जमीन भी जोत दी।गंगा किनारे थी उसमें तीन ट्राली तरबूज व खरबूज हुए खूब खाए पर बांटना पड़े खत्‍म ही नहीं हो रहे थे । साजिद भाई की पत्‍नी को प्रसव होना था।‘ तो अहमद साहब बोले –‘ अब मैं बताता हूं । साजिद भाई की पत्‍नी को प्रसव होना था उन्‍हें ब्‍लड की जरूरत पड़ी उनका ब्‍लड ग्रुप निगेटिव था, किसी का ब्‍लड ग्रुप मिल नहीं रहा था, तो अपने पटेल साहब ने बीच में हस्‍तक्षेप कर कहा –‘मेरा देख लो,।‘ वहां बात चल रही थी –‘मायके वालों को बुलवा लो।‘ , वे सब इनकी बात पर हंस दिए।, पर डाक्‍टर ने कहा –‘ठीक है देख लेते हैं।‘ संयोग से मिल गया और इन्‍हों ने दिया।‘ फिर इनके कराटे के लड़के आ गए उनमें एक लड़का था ,नलिन उसे भी बुलाया था ,उसका भी मिल गया, पर साजिद भाई संकोच में थे ,कि उन्‍हीं में से कोई साथी जाकर पिताजी को बुला लाया, वे (साजिद भाई )डाक्‍टर से कह रहे थे थोड़ा ठहरो पर तभी बरामदे से पंडित श्‍याम लाल बोले –‘काहे को ठहरो, डाक्‍टर साहब निकाल लो,।’ और साजिद भाई को डांटने लगे-‘ आपसे ऐसी उम्‍मीद न थी, अरे एक बोतल क्‍या जितना चाहिए ले लें आप हमें गैर समझते हैं ।‘इस तरह मां बेटे की जान बच गई ।अहमद साहब फिर बोले –‘आप लोग जान कर आश्‍चर्य चकित होगे, उस बेटे का क्‍या नाम रखा गया ।‘ वह अब बड़ा हो गया न्‍यूरो सर्जन है अमेरिका में काम करता है बहू भी डाक्‍टर है हर साल कस्‍बे में आता है फ्री कैम्‍प करता है अपना खर्चा करता है और लोग भी चंदा करते हैं उस डाक्‍टर का क्षेत्र में प्रसिद्ध नाम है डा. गज्‍जू भाई !उसका असल नाम साजिद भाई ने रखा था।‘ अहमद साहब मुस्‍कराए रूक गए पटेल साहब शर्मिंदा हो गए।अहमद साहब फिर बोले –‘ असल नाम है डा. गजेन्‍द्र खान ।‘ तब पटेल साहब बोले-‘ अपने चाचा के नाम पर उसका नाम रखा।‘ जब श्रीमती शैलजा अहमद मुस्‍करानें लगी और श्रीमती पटेल तो जोर से ठहाका मार कर हंस पड़ीं तब डा. माथुर अंगूठे से पटेल साहब की ओर इशारा करते सब बच्‍चों से बोले-‘ चाचा जे बैठा है।‘ सब बच्‍चे हंसने लगे ।

अब तीसरे दिन तीर्थ दर्शन पूरे हो गए सब बच्‍चे बोले-‘ फूलों वाली घाटी देखेंगे।‘ बजुर्गों की राय थी-‘ लौट चले।‘ पर आखिर बच्‍चों की ही चली । जब ये बातें हो रहीं थीं तो पंडा जी के बेटे बोले-‘ मैं भी वहां तक चलूं?’ वहां से लौट आऊंगा।‘ पटेल साहब ने मुस्‍कराते हुए स्‍वीकृति दे दी, धीरे से उससे बोले-‘ लास्‍ट चांस।‘ तो वह हंस पड़ा लंच के बाद सब चले, पंडा जी आ गए थे, सब ने उन्‍हें दक्षिणा दी, व जो भी अन्‍य देय था चुकाया, पंडा जी संतुष्‍ट थे, सबको आर्शीवचन कह रहे थे । बस आगे चली ।

अब बस फूलोंवाली घाटी पहुंची वहां शाम हो गई थी सबने लंच लिया व विश्राम करने लगे पर नईमा फिर से पटेल साहब के करीब पहुंच गई पटेल चाचा नमस्‍ते नींद नहीं आ रही थी सोचा अगर आप फ्री हों तो ...; पटेल साहब बोले –‘ हां तो शुरू करते हैं अब थोड़ी सी ही रह गई ।‘ श्रीमती पटेल बोली-‘ वह तो लली की जिज्ञासा जगा रही है जैसे फिल्‍म में एन्‍ड क्‍या हुआ ।‘पटेल साहब –‘ पिता जी पूरी कोशिश कर रहे थे आखिर उनके प्रयास सफल हुए उन्‍होंने अब्‍बा से कहा वहां गांव में साजिद भाई के पास संदेश पहुंचा गजेन्‍द्र को भेज दो तो मेरा और साजिद भाई ने अपना रिजर्वेशन कराया हम दोनो ट्रेन से ग्‍वालियर आए और पिताजी के बताए कोर्ट में पहुंचे उन्‍होंने मेरा मेकअप कर रखा था मुझे शलवार कुर्ता पहिनाया काला चश्‍मा लगाया टोपी भी पहिनाई वे अपनी पेंट की जेब में पिस्‍टल रखे थे मतलब पठान की ड्रेस में मैं था पठान का कर्तव्‍य वे कर रहे थे पूरी तरह चौकन्‍ने थे वे हमारे वकील साहब जो बताए गये थे उनके पास पहुंचे और हम दोनो अदालत के कक्ष में घुस गए सीधे मजिस्‍ट्रेट साहब के कक्ष में पहुंचे वकील साहब ने कागज रखे मेरा समर्पण स्‍वीकार किया गया व सीधे जेल भेज देने का आदेश हो गया जब तक अन्‍य लोगों को पता लगा तब तक मैं जेल भेजा जा चुका था । वहां मुझे छ: महीने रहना पड़ा नया अनोखा अनुभव था पिताजी के सम्‍पर्क व प्रयास से मेरी छ: महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत हुई तीन साल केस चला बिरोधी कोई मजबूत प्रत्‍यक्ष्‍ दर्शी गवाह पेश नहीं कर सके यह पिताजी का प्रयास था ससुर साहब भी पूरा सहयोग कर रह्र थे । हमारी बंदूक भी जब्‍त नहीं हुई पुलिस के सारे दबाव घर की खोज बीन रिश्‍तेदारों की जासूसी के बावजूद मां की दृढ़ता व सूझबूझ थी वे टूटी नहीं न किसी के बहकावे में आईं उल्‍टे बदूंक की चोरी की रिपोर्ट लिखवा दी । थी जब कि उनकी(दुश्‍मन मृतकों की ) बंदूक घटना स्‍थल पर ही पुलिस ने जब्‍त की मैं बरी कर दिया गया हां इसमें पिताजी ने जो दस बीघा जमीन खरीदी थी वह बिक गई बहुत लोगों के अहसान हो गए जो पिताजी ने चुकाए उन्‍हें भी इसके लिए बहुत से सही गलत काम करना पड़े किसी का अहसान हो जाए तो उसका काम पड़ने पर आप कह नहीं सकते ये गलत काम है हम रजनीति या सामाजिक व्‍यवहार में किताबी नैतिकता में सीमित नहीं रह पाते सही गलत सब करना पड़ता है ।मैं बरी हो गया पर आर्मी अफसर नहीं रहा तुम्‍हारी आंटी तो बहुत डिस्‍टर्ब रहीं मेंन्‍टल डिप्रेसन में चली गईं तब से हमारा पारिवारिक जीवन पहले जैसा नहीं रहा । हां मेरे ससुर साहब भी परेशान तो हुए पर अपने को सम्‍हाल लिया उन्‍होंने ही प्‍लॉट दिया हमने ग्‍वालियार में मकान बनाया एक कॅालेज खोला जिसमें स्‍पोर्ट व एथलीट की ट्रेनिगं देने लगा मेरे रिटायर्ड आर्मी के साथी व सिपाही काम करते हैं ।कुछ स्‍पोर्ट टीचर हैं। चल निकला ।पिता जी के कारण अब मैं भी पटेल साहब बन कर रह गया, अब राजनीति व समाजिक काम करता हूं, हां पिताजी जैसा सफल नहीं हूं ,असली पटेल साहब वे ही हैं । उनका अब भी बहुत प्रभाव है उन्‍होंने एक और पढ़ाई पढ़ी है जो किसी कॉलेज या स्‍कूल में नहीं पढ़ाई जाती वैसे वे मात्र हस्‍ताक्षर कर लेते हैं बस । ।‘अब रात बहुत हो गई थी सब सोने चले गए ।

दूसरे दिन सुबह सब तैयार होकर घूमने निकले चूकि ऑफ सीजन था बहुत कम टूरिस्‍ट थे अत: सेवा देने वाले भी कम थे स्‍टाफ अपने घर चला गया था तो पास के एक पशुपालकों के डेरे पर गए वहां रूके एक बाबा हुक्‍का पी रहे थे पटेल साहब व उनके पिताजी उनसे मिले जब बताया कि कहां से हैं हम भी गांव से हैं खेती करते हैं व जानवर पालते हें तो उन्‍होंने अपना हुक्‍का पिताजी की ओर बढ़ाया वे सीनियर पटेल साहब की बातों से प्रभावित हुए ।अपना हुक्‍का बढ़ाना मेहमान के प्रति सम्‍मान व अपनत्‍व की बात थी । उनके डेरे का प्रबंध एक लड़की कर रही थी दूध वालों का हिसाब कम्‍प्‍यूटर पर कर रही थी लोगों को निर्देश दे रही थी बीच बीच में उठ जाती फिर अचानक एक भैंसा उछलने लगा वह दौड़ी बार बार चिल्‍ला रही थी भौंदू भौंदू फिर लट्ठ से मारने लगी साथ के और लड़के पानी की उस पर बौछार करने लगे उस लड़की ने हिम्‍मत कर के उस भैंसे के गले में पड़े पट्टे में लोहे की जंजीर का हुक फंसाया व उसे बांधा। तब बाबा बोले-‘ इस ने अभी दो माह पहले इस लड़की के भाई को पटक दिया। वह आराम कर रहा है।‘ तो पटेल साहब बोले –‘लड़की हिम्‍मत वाली है । ‘वह गिलास में सब को दूध लाई क्षमा मांग रही थी, मनुहार कर रही थी, दादा जी (पटेल साहब के पिता जी ) ने कहा –‘आधा गिलास कर दो ।‘तो छोटे गिलास ले आई जब धीरू(पटेल साहब के बेटे) ने कहा-‘ आधा गिलास ही में पी पाऊंगा।‘ तो हंस पड़ी,-‘ दादा जी तक तो ठीक है, पर तुम तो पूरा गिलास पियो।‘ धीरू बोला-‘ पचेगा नहीं ।‘ तो दादा जी की ओर देख कर कहा-‘ कैसे किसान के बेटे ?’अरे डेरे के चार चक्‍कर लगा लो, पच जाएगा ।कॉलेज में पढ़ते होगे ,खेत पर नहीं जाते, क्‍यों दादा जी !।‘सब हंस पड़े, पर धीरू शर्मा गया और श्रीमती पटेल कुछ बोलीं तो नहीं पर उन्‍हें अच्‍छा नहीं लगा । थोड़ी देर में कुछ गोरे लोग आ गए उन्‍हें भी बिठाला व उन से पूंछ कर कॉफी ऑफर की वह उनसे अंग्रेजी में बोलने लगी । पटेल साहब ने पूंछा-‘ बेटे कहां तक पढ़ी हो?’ तो बोली-‘ अंकल केवल मेट्रिक तक। यहीं जब सर्दियों में डेरा नीचे जाता है तब हम ज्‍यादा कहां पढ़ पाते हैं।‘ तो पटेल साहब बोले-‘ फिर अंग्रेजी कैसे सीखी ?’तो बोली –‘यहां टूरिस्‍ट आते हैं। उनको दूध व सामान देना ,और मैं ट्रेकिगं में गाईड करती हूं, बड़े भैया के साथ जाती थी, अब अकेले भी जाती हूं, तो उनकी सोहबत में सीख गई, काम चलाऊ फ्रेंच जरमन भी ,सब यहां गर्मियों में ट्रेकिगं को आते , चहल पहल रहती है, तो गाईड बन जाती हूं। ,अंकल जी ! हमारी लाईफ स्‍ट्रगल फुल है ,ईजी नहीं है,।‘ वह किसी से बात करने चली गई व साथियों को निर्देश दे रही थी। तो एक लड़के ने कहा –‘अभी दो महीने पहले एक रात तेंदुआ हमारे बाड़े में घुस आया, भैंस के पाड़े को पकड़ लिया, तो इसने लट्ठ से उसकी कुटाई शुरू कर दी, एक पंजा मारा जो कंधे पर लगा ,तब तक और लो ग दौड़े,पाड़ा बचा लिया, इसे अस्‍पताल ले गए, बाबा (बाबा की ओर इ्रशारा करते )और बड़े भैया की डांट पड़ी एक डेढ़ महीने दवा चली किसी की सुनती नहीं है मन का करती है ।‘ वे उसके बड़े भैया से मिलने गए जो लेटे थे बोले-‘ अब ठीक हूं पर धीरे धीरे चल पाता हूं भौंदू ने पटक दिया था जानवर हैं मस्‍ती में आ जाते हें तो कुछ भी कर बैठते हैं ।‘आप लोगों को कल बिब्‍बो ले जाएगी वे उनका चेहरा देखने लगे तो बोले-‘ अरे वही मेरी बहन हम सब लोग उसे बिब्‍बो कहते हैं।‘

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