नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 32 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 32

32

लगभग एक घंटे तक नृत्य चलता रहा और कैमरों में कैद होता रहा | बाद में सबको पंक्ति में बैठाकर कुछ मिष्ठान बाँटा गया और प्रश्नोत्तरी शुरू की गई | 

समिधा का मन उन बंद सींकचों के कैदियों की ओर बार -बार जा रहा था | उसने देखा उन सबको भी कागज़ की पुड़ियों में मिष्ठान दिया गया था जिसे लेते हुए उनके चेहरों पर किसी बेचारगी का भाव नहीं था | समिधा उन पर दृष्टि चिपकाए बैठी थी | कागज़ की पुड़िएँ पकड़ते हुए भी उन्हें कोई शर्म या झिझक महसूस नहीं हो रही थी | वे अपनी - अपनी पुड़िया खोलकर तुरंत ही खाने लगे थे | उसके मन में इन कैदियों के प्रति संवेदना भर उठी| 

कोई तो कारण होता होगा जो मनुष्य इतना बेशर्म बन जाता है !वैसे –भूख सबको बेशर्म कर देती है | 

‘भूखे भजन न होय गोपाला ‘कितनी बेबाकी से बात प्रस्तुत कर दी गई है | समिधा के मन में न जाने क्यों अपराध-बोध भरने लगा, एक व्यर्थ का अपराध-बोध जिसका उससे कोई दूर-दूर तक वास्ता न था –केवल मानवीय संवेदनाओं के तहत उसका मन डांवांडोल होने लगता था | मिटे सींकचोन में बंद क़ैदियों को देखते हुए भूख के न जाने कितने चित्र उसकी आँखों के सामने भरने लगे | 

मज़े की बात यह थी कि वहाँ के लगभग सभी क़ैदी क़त्ल के इल्ज़ाम में कैद थे | उनसे पूछे जाने पर –

“किस अभियोग में जेल में आए हो ? ”

“मर्डर“ बेबाकी से उत्तर देते हुए उनके चेहरों पर कोई अफ़सोस या शर्म का चिन्ह नज़र नहीं आ रहा था | 

“किसका मर्डर किया ? ”

“किसी का नहीं, फँसा दिया –“

एक, दो, दस, समिधा ने जितने कैदियों से पूछा उसे घुमा-फिरकर उत्तर यही प्राप्त हुआ | यहाँ तक कि उनके एक ही से उत्तरों से वह पस्त हो गई | अभी तक भूख का समय भी हो गया था | रौनक लगातार उनके साथ ही बना हुआ था | 

“रौनक ! तुम्हें जेल क्यों हुई ? समिधा ने अचानक उससे पूछ लिया | 

“मर्डर के लिए मैडम !”उसने नज़रें झुकते हुए उत्तर दिया | 

“क्या तुम पर भी झूठा इलज़ाम था ? ”

“नहीं, मैंने अपने बाप का ख़ून कर दिया था | ये सब भी झूठ बोलते हैं, किसी न किसी का ख़ून करके जेल में आए हैं और अब भी समझने के लिए तैयार नहीं हैं | ”

“पर—तुमने अपने पिता का ख़ून क्यों किया? ”समिधा ने उसके चेहरे पर दृष्टि गड़ा दी | 

“बस, गुस्सा आ गया !”

“अरे ! इतना गुस्सा ! लगते तो नहीं हो तुम इतने गुस्से वाले !” समिधा का दिल एक बार तो ज़ोर से धड़क ही गया था | वह एक ऐसे आदमी के साथ बात कर रही थी जिसने क्रोध में अपने पिता का ख़ून किया था और जो पिता का ख़ून करना स्वीकार रहा था | ऐसे आदमी का क्या भरोसा ? 

“बस्स –आ गया गुस्सा “रौनक कुछ इस अंदाज़ से बोला मानो गिल्ली-डंडा खेलते हुए उसके साथ किसी ने कोई बेईमानी की हो और उसने एक करारा थप्पड़ जड़ दिया हो ---बस्स---

वह इस समय रौनक के साथ अकेली रह गई थी | रौनक उसकी कुर्सी के पास ही नीचे बैठा हुआ था, पुण्या और सब लोगों के साथ दूर बैरकें देखने निकल गई थी | मिनट भर में उसने ख़ुद को सँभाल लिया और बोली ;

“तुम्हें अपने पिता की मृत्यु पर दुख नहीं है ? तुम्हारे पिता की जान चली गई !”

“दुख तो है –पर, अब क्या हो सकता है, जो होना था, वह तो हो गया | अब तो वो वापिस नहीं आ सकता –“कहकर उसने अपना सिर नीचे करके खुजाया | 

“ऐसा क्या हो गया था जो तुम्हें अपने पिता का ही क़त्ल करना पड़ा ? ”

“कुछ ऐसा हुआ भी नहीं था –बस –उस दिन घर में न जाने कितने दिनों के बाद अच्छा खाना बना था | माँ गरम गरम रोटियाँ सेक रही थी | मैंने बहुत बार कहा कि पहले मुझे दे दे, बहुत भूख लग रही थी | सुबह से बस ताड़ी ही पी थी, कुछ भी खाया ही नहीं था --| माँ ने थाली तो दोनों के सामने रखी थी पर –एक, दो, तीन ---लगातार बाप की थाली में रोटी डाले जा रही थी और वो—गपागप खाए ही जा रहा था | मेरे पेट में चूहे उछल-कूद मचा रहे थे | गर्मागरम बाजरे की रोटी, आलू का चटपटा मसाला पीसकर बनाया गया शाक, तलेला लीला मरचा (तली हुई हरी मिर्च ), गोड (गुड़), अथाणा (अचार) और इत्ता बड़ा छाछ का लोटा –कितनी बार माँ से कह चुका था –पर, जब भूख बस में नहीं रही मैंने पास पड़ी खुखरी अपने बाप की गर्दन पर चला दी –अब सिर ही काट दिया तो खा--कैसे खाएगा ? ”रौनक अपने बारे में बताते हुए काफ़ी उत्तेजित हो गया था और समिधा सहमी हुई सी उसके जेल में आने की कहानी सुन रही थी| 

“आपको पता है मैडम, भूख क्या होती है? उसने समिधा से पूछा | सामने से आती हुई पुण्या ने भी रौनक के ये शब्द सुन लिए थे | वास्तव में सभी के पेट में चूहे कूद रहे थे, सब वापिस लौट रहे थे | 

“हाँ भई, बिलकुल पता है, सबको भूख लग रही है, सभी वापिस आ रहे हैं | समिधा ने केवल ‘भूख’शब्द सुना था | इसके अतिरिक्त उसने समिधा और रौनक के बीच होने वाले संवाद सुने ही नहीं थे | वह थकी हुई सी आकर पेड़ के नीचे रखी हुई कुर्सियों में से एक पर आकर गिर सी गई | उसका दिमाग रौनक के मुख से शब्दों में से ‘भूख’शब्द पर अटक गया था और वह समिधा की ओर देखते हुए अपने पेट पर हाथ फिराने लगी थी | 

पुण्या का बचकाना व्यवहार देखकर समिधा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तो पसरी परंतु रौनक के शब्दों ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया | 

“जब आदमी के पेट में आँतें कुलबुलाती हैं तब उसको भूख के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता –न कोई आचार-व्यवहार, न कोई रिश्ता-नाता, न कोई काम –बस, एक ही बात सूझती है –वह है, भूख !वह अपना पेट कैसे भरे ? मैडम!गरीबों को भूख भी तो ज्यादा लगती है न ? ”रौनक धीरे से बोला, मानो भूख लगना कोई पाप हो !अपनी बात कहते हुएउसकी आँखों से आँसू झरने लगे थे और समिधा गुमसुम हो गई थी, उसकी भूख न जाने कहाँ गायब हो गई थी | भूख का एक नया चित्र उसके सामने था | पुण्या भी रौनक की बात सुनकर गंभीर हो उठी | 

सब पेड़ तक पहुँच चुके थे | अब भोजन के लिए बुलाया जा रहा था | मुक्ता ने सारा भोजन आपनी देख-रेख में तैयार करवाया था | समिधा आनमनी हो उठी | कई दृष्टांत ऐसे सुने गए थे कि भोजन न मिलने पर आदमी ने आदमी का भक्षण किया था | किसी माँ ने अपने नवजात शिशु को ही खा लिया था | ऐसी बातें सुनकर उसके रौंगटे खड़े हो जाते थे | 

आज जब रौनक ने आपबीती बताई तब उसे एहसास हुआ कि यदि उसने ताड़ी के नशे में अपने पिता का खून कर दिया था तो इसमें इतना आश्चर्य क्या था ? लेकिन बात कष्टदायक तो थी ही !मानवीय संवेदनाएँ क्या इस प्रकार छिछली होती हैं? प्रश्न था कि मनुष्य के अन्य संवेगों की भाँति भावनाएँ, संवेदनाएँ कुछ होती भी हैं अथवा नहीं ?