घर पर आकर मैने सारी बात अपनी पत्नी को बताई थी।वो सब बातें मेरी बेटी के कानों में भी पड़ी थी।लड़का अच्छा था।अच्छी नौजरी करता था और रिश्ता होने की पूरी उम्मीद थी।
अगले दिन मैने अपने बेटे के साथ अपनी बेटी का फोटो डॉक्टर साहिब के पास भिजवा दिया था।जगदीश कोटा से लौटा तब मेरे से बोला,"डॉक्टर साहिब से मिल आये?"
"हां"मैं उसे सब बात बताते हुए बोला,"और बात तुम कर लेना।"
डॉक्टर साहिब विधुर हो चुके थे।वे अपने अविवाहित पुत्र के साथ होस्टल में रहते थे।उनका पुश्तेनी मकान पथवारी में था।डॉक्टर साहिब अपने पुश्तेनी घर भी जाते रहते थे।वहां उनके दूसरे बेटे बहुये रहती थी।उनके घर के पास ही जगदीश के मौसाजी संतोष का घर था।
जगदीश ने अपने मौसाजी से भी गुड़िया के रिश्ते के बारे में डॉक्टर साहिब से बात करने के लिए कहा था।जगदीश ने यह भी कह दिया था कि गुड़िया कु शादी में पांच लाख तक खर्च कर देंगे।संतोष उनसे अच्छी तरह परिचित था।इसलिए जगदीश को बताया,"डॉक्टर साहिब इतने में राजी नही होंगे।"
संतोष का कहना भी सही था।उन्हें अपने तीनो लड़को की शादी में अच्छा दहेज मिला था।मुकेश अच्छी नौजरी पर लग चुका था।उसके लिए बहुत रिश्ते आ रहे थे।लोग काफी दहेज देने के लिए तैयार थे।
डाक्टर ईश्वर और संतोषी बचपन के दोस्त थे।संतोष ने गुड़िया के रिश्ते की बात डॉक्टर साहिब से चलाई थी।लेकिन डॉक्टर साहिब कुछ नही बोले।कई दिनों तक डाक्टर साहिब का कोई जवाब नही आया तब पत्नी मुझे सलाह देते हुए बोली,"आजकल अच्छे लड़के जल्दी रुक जाते है।उनका जवाब नही आया तो क्या तुम मिल आओ उनसे।"
और मैं एक दिन डॉक्टर साहिब से मिलने के लिए जा पहुंचा।
"शर्माजी अभी कहीँ भी तय नही किया है।"
"मेरी तरफ भी ध्यान रखना।"
"कैसी बात करते हो।आप परिचित है।संतोष तो मेरा बचपन का दोस्त है।सबसे पहले आप कि बेटी है,"डॉक्टर साहिब बोके,"दहेज में सामान मुझ से पूछकर ही देना।मैं बता दूंगा क्या चाहिए और क्या नही।"
"जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा।"
और मैने घर लौटकर सारी बात पत्नी को बताई थी।मेरी बात सुनकर पत्नी बोली,"शायद डॉक्टर साहिब बात को इसलिए लम्बा खींच रहे है।अगर कोई ज्यादा दहेज देने वाला आ जाये तो उससे बात करे।"
"तुम ऐसा क्यों सोच रही हो?"पत्नी की बात सुनकर मैं बोला।
"आजकल माहौल ही ऐसा है।सरकारी नौकरी लगते ही लड़के के मा बाप मुँह फाड़ने लगते है।दिखावे के लिए श यही कहते है।हमे कुछ भी नही चाहिए।"
"डॉक्टर साहिब सीधे सच्चे इंसान है।हेड ऑफ डिपार्टमेंट है।अच्छी तनख्वाह मिलती है।पचाश किताबे उनकी है,जिनकी रॉयल्टी आती है।क्या कमी है उनके पास पैसे की।"मैने पत्नी को समझाया था।
हम पति पत्नी बेटी के रिश्ते की बाते करते वो ब्बते उसके कानों में भी पड़ती थी।वो भी कुछ सोचती होगी।
जगदीश का आगरा से कोटा ट्रांसफर हो गया था।वह महीने में एक बार ही आगरा आ पाता था।वह आता तब घर ज़रूर आता था।वह आया तब मेरी पत्नी उससे बोली,"भाई साहिब,डॉक्टर साहिब के पास जा आओ।चार महीने हो गए बात चलते।कुछ तो जवाब मिले।ना कर दे तो कहीं और बात चलाये।"
"ठीक कह रही हो भाभी,"जगदीश मुझसे बोला,"आज चलते है।"
और मैं जगदीश के साथ डॉक्टर साहिब के पास जा पहुंचा था।
"कोटा से कब आये?"डॉक्टर साहिब जगदीश से बोले थे।
(शेष अंतिम पार्ट मे)