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देखो...








इस दुनिया को देखो गौर से देखो.. बस देखते ही रहो...ओर कुछ करने की जरूरत ही नहीं है..तुम देखोगे तो जानोगे ओर जानोगे तो मानोगे ओर मानोगे तो तुम स्वयं अपनेआप जागोगे।

बस तुम जागोगे तो तुम्हे सब कुछ स्पष्ट और सुंदर दिखाई देने लगेगा... सब कुछ तुम्हे गति में दिखाई पड़ेगा.. सब कुछ बहता हुआ... निरंतर चलता हुआ तुम जानोगे।

मैं देखती हूं मुझे सब कुछ गतिमान अपने आप में बहता हुआ नजर आता है देखो... तुम जरा बारिश को गौर से देखो... सोचो बारिश निरंतर गिरती रहती है बीच में रुकती नहीं है उसका काम गिरना है.. वह अपने आप में गतिमान है...ऊपर से जब वो जमीन पर गिरती है.. तो बीच में कही रूकती नहीं है... गिर ही जाती है.. रुकना काम नहीं..

तुम नदी की धारा को देखो बस बहती ही रहती है.. सदा अनंत काल से बहती ही जा रही है और जब तक रहेगी बहती रहेगी.. कभी बीच में खड़ी नहीं रहेगी.. बस बहती ही रहेगी बहना ही नियम है.. जिस दिन रुक गई समझो उस दिन मर गई...अपने आपसे अपने अस्तित्व से हाथ धो बैठेगी....

समीर (वायु) को देखो... चलता ही रहता है अपनी अलग ही गति है अपनी गति को अपने हिसाब से चलाता है.. समीर कभी भी स्थिर नहीं रहता क्योंकि प्रकृति का जो नियम है वही अस्थिर है... स्थिर नहीं है.. प्रकृति के नियम मुताबिक कुछ भी स्थिर नहीं है... सब कुछ अस्थिर.. सब कुछ चलता हुआ... बहता हुआ..


तुम सागर को देखो कितना शोर मचाता रहता है पूरे का पूरा हिलता झूलता रहता है किनारों से टकराता रहता है कभी भी अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता..

कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि सागर किनारे तक आया ही ना हो बीच में ही कहीं रुक सा गया हो... रुकना काम नहीं किनारे से टकराना किनारों से मिलने आना हिलना झूलना अपने आप को अशांति से भर देना वही काम है सागर का कभी स्थिर नहीं रहता कभी चुप नहीं रहता बस अपने स्वभाव के अनुसार जीता रहता है..

आकाश को देखो बादलों को देखो जो चलते ही रहते हैं पता नहीं कहां जा रहे हैं पता नहीं उसकि मंजिल क्या है क्यों भागते रहते हैं कहां जाना है..ओर कहां से आते हैं.. कुछ भी नहीं पता.. बस चलते ही रहते हैं कभी रुकते ही नहीं..

तुम पृथ्वी को देखो जो निरंतर घूमती रहती है उसकी अपनी अलग ही गति है..

यह पूरा ब्रह्मांड है उसे तुम देखो सब कुछ गतिमान है स्वयं ब्रह्मांड गति में गतिमान है यहां पर कुछ भी रुका हुआ नहीं है सब कुछ बाहा जा रहा है चला जा रहा है..

और एक बात..
तुम अपनी ही बात ले लो तुम कहा सदा यही रहने वाले हो यहां कुछ भी सदा रहने को नहीं है सब कुछ बाहा जा रहा है सब कुछ गतिमान है सब कुछ प्रवाह मान है.. अपनी ही पलकों की बात कर लो जब तक जिओगे तब तक पलके जपकती ही रहेगी तुम्हारे पलके कभी भी नहीं रुकेगी... अपने अंदर जो निरंतर चल रही है वो संसो को देखो जो बिना रुके चली ही जा रही है कभी बीच में रूकती नहीं. और जिस दिन रुकी...स्थिर हुई उस दिन तुम चले जाओगे..तुम रुक ना पाओगे।






अपने हदय में झांको ओर देखो.. सुनो.. अपने हदय के संगीत को जिसे ईश्वर ने स्वयं बनाया है जो निरंतर धक धक धक किए जा रहा है रुकता नहीं है बस वह उसी दिन रुकेगा जिस दिन तुम्हारे चले जाने का समय आया होगा.. तुम वही लौट जाओगे जहां से तुम आए थे... यहां पर सब कुछ क्षणभंगुर है जो स्वयं अपने आप में पूर्ण है ...ओर जो पूर्ण है वहीं शून्य है... ओर शून्यता ही पूर्णता का मापदंड है।

तुम भी चले जाओगे यहां पर सब कुछ चलता हुआ है सब कुछ बेहता हुआ है सब कुछ गति में है फिर भी तुम यह बात को समझते नहीं हो कि यहां पर कुछ भी पकड़ने को नहीं है हम कुछ भी पकड़ नहीं सकते फिर भी हम पकड़ने की कोशिश करते रहते हैं और पकड़ना पाए तो दुखी हो जाते हैं मन ही मन टूट जाते हैं और रोने लगते हैं...


जब तुम रोते हो तो तुम्हारी आंख में से आंसू गिरते हैं और जो आंसू गिर रहे हैं वह तुम्हें कुछ कह रहे हैं कि देखो मैं तुम्हारे आंखों का आंसू हूं तुम्हारे आंखों ने ही मुझे जन्म दिया है फिर भी मैं कैसे गिर रहा हूं देखो कैसे बह रहा हूं क्योंकि बहना ही तो नियम है यही सत्य है मैं तुम्हारा होकर भी तुम्हारे पास या तुम्हारे गाल पर कहीं टिक नहीं सकता मैं गिरने के लिए ही जन्मा हूं मैं कहीं भी रुक नहीं सकता क्योंकि गिरना ही मेरा काम है चलना ही मेरा काम है बहना ही मेरा काम है रुकना नहीं..

पर यह आंसू की बातों को हम कहां सुनते हैं हम तो हमारे आंसू को देखते ही नहीं है यह जो इतनी बड़ी बात कह रहे हैं वह हमारे लिए व्यर्थ साबित होती है।

अरे अपने मन को देखो जो निरंतर एक पल छोड़े बगर सोचता ही रहेगा क्योंकि सोचना ही उसका काम है और यह सोचने की जो प्रक्रिया है वह चलती ही रहेगी कभी नहीं रुकेगी...

तुम समय को देखो जो कभी किसी के लिए नहीं रुकता एक समय एक ही बार आता है और चला जाता है...

बस तुम एक इंसान ही झड़ बुद्धि के होते चले जा रहे हो यहां पे तुम्हे कुछ छोड़ना ही नहीं है बस सब कुछ पकड़ ही रखना है...

कोई तुम्हारे जीवन में आता है तुम्हारा हदय उसके प्रति अपनापन महसूस करने लगता है बस तभी हम उसे पकड़ने में लग जाते हैं और फिर भी वह चला जाता है तो हम दुखी हो जाते हैं उसके बगैर हम जी नहीं पाते..हमारे हाल को हम खुद ही बेहाल कर देते हैं..

अरे समझो... पकड़ो मत तुम जैसे जी रहे हो वैसे ही जिए जाओ..

कोई आए तो आने दो उसको आने के लिए धन्यवाद दो आनंद मनाओ कि कोई नया आया है जब तक रहेगा तब तक उसमें जी लो हस लो रो लो बस जीते चले जाओ वह क्यों आया है वैसा कोई प्रश्न उसे मत करो बस उसके संग जिए जाओ हर एक पल को खास बनाते जाओ...

और वह जाए तो शोख से जाने दो आए तब कोई प्रश्न ना पूछा तो जाते वक्त प्रश्न क्यों.. की तुम क्यों जा रहे हो ? जो जा रहा है उसे जाने दो हदय को खाली कर दो कि कोई नया आए और उसमें रह सके पूरेपूरा खाली कर दो ताकि जो नया आए उसके लिए तुम्हारे हदय में जगह खाली हो.. तुम्हारा हदय खुला हो... जगह हो उसे रहने के लिए...

जो था उसके बारे में मत सोचो जो है उसके बारे में सोचो जो गया वह तो गया वह वापस आने वाला नहीं और जो आने वाला है वह रुकने वाला नहीं वह आकर ही रहेगा इसलिए भविष्य की चिंता ना करें किसी का इंतजार ना करें बस जो तुम्हारे पास है आस है वह सिर्फ और सिर्फ यही एक पल है जिसमें तुम स्वयं खड़े हो बस वही पल को जियो.. किसी का इंतजार ना करे...ओर इस पल मे जो तुम्हारे साथ है उसी के संग जिलों...डूब लो , मर लो...

बस रुको मत जो गया उसके पीछे भागो मत.. उसे पकड़ने की कोशिश ना करो अरे उसको दिल से धन्यवाद दो कि उसने जाने का फैसला लिया और तुम्हारे हृदय को खाली किया... किसी नए अनुभव को आने के लिए हदय को खुला किया.. बस सब आते चले जाएंगे और चलते चले जाएंगे आना जाना लगा रहेगा क्योंकि रुकना प्रकृति के नियम विरुद्ध है...कुछ भी रुकता नहीं.. ओर जो रुकता है वह अपने अस्तित्व से अपने आप से हाथ धो बैठता है..

इसीलिए मेरी मानो तो बस हंसते रहो गुनगुनाते रहो नाचते रहो सब कुछ देखते रहो दृष्टा बन जाओ और देखते-देखते तुम भी चले जाओगे और वापस कभी नहीं आओगे यह सात जन्मों की बातें झूठी है वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है इन पंचतत्व से तुम बने थे इन्हीं पंचतत्व में तुम फिर से विलीन हो जाओगे यही अंतिम सत्य है और अंत में जिसने जाना है वह पंचतत्व मे घुल ना पाए वह इस ब्रह्मांड की ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है..ओर वो इस ब्रमहांड की ऊर्जा बन सकता है.. और वो वही ऊर्जा है जिसे तुमने भगवान या ईश्वर का नाम दिया है जो चैतन्य है..



तुम चाहो तो संभावना अनंत है तुम भी जीते जी या मर के भगवान बन सकते हो जो पहले से ही तुम हो पर हां यह बात अलग है कि तुम भगवान बन नहीं सकते.. खुद को जानने की कोशिश नहीं करते बस इसलिए इस दुनिया में भगवान बहुत कम है...

अंत में फिर से कहती हूं कभी मत रुकना किसी के लिए मत रुकना चाहे जो भी हो जाए मत रुकना.. रुकना तुम्हारा काम नहीं बस बहते रहना ही यथार्थ है इस यथार्थ में जियो इसी पल में जियो ना के आने वाला पल ओर जाने वाला पल..

रुकना नहीं याद रहे...

जीते चले जाओ हंसते चले जाओ इतना हंसो इतना हंसो की हंसी ही भूल जाओ..
इतना ना नाचो इतना नाचो की नाच ही भूल जाओ..
इतना रोए इतना रोए के आंसू ही सूख जाए..
इतना जागो इतना जागो कि जागना ही ना आए..
इतना कुदो इतना कूदो की कूदने का कभी मन ही ना करें ..
और इतना प्रेम करो इतना प्रेम करो कि तुम स्वयं प्रेम ही बन जाओ अंत में सब कुछ प्रेम ही तो है...

प्रेम ही सब कुछ है कोई तुम्हें प्रेम करे तो समझना इस दुनिया की नई ऊर्जा तुम्हे मिलने वाली है..

जो तुम्हें प्रेम करे उसे तुम शायद वापस प्रेम ना दे पाओ पर तुम उसे मान सम्मान तो दे ही सकते हो और देना ही चाहिए क्योंकि उसने तुम्हें प्रेम करने के लायक जो समझा है...

इस जगत में कोई किसी से प्रेम नहीं करता कोई तुम्हें प्रेम करे तो समझ लेना तुम इस ब्रह्मांड की सबसे प्यारी चीज हो...

ओर एक बात में आपको बतादु की मेने क्या लिखा है..क्यों लिखा है.. में कुछ भी नहीं जानती।


आज भी बहुत कुछ लिखा है पर क्या लिखा ये नहीं पता... क्यों लिखा ये नहीं पता , किसके लिए लिखा है ये नहीं पता, क्या समझाने या क्या बताने के लिए लिखा है ये भी नहीं पता... में लिखती ही क्यों हूं मुझे ये भी नहीं पता.. ओर में ए सब लिख कैसे पाति हूं, ये सब मेरे अंदर आता कहासे है मुझे ये भी नहीं पता।

में लिखती हूं पर पढ़ने के बाद ये सब मेने ही लिखा है ये मेरी लिखावट है ... ये मानने को भी मेरा दिल तैयार नहीं होता।
खेर छोड़ो.....

आज तक मैंने कभी किसी से पूछा नहीं कि मैंने क्या लिखा है पर आज पूछ रही हूं... कि मेने क्या लिखा है??
बताना जरूर....की आप को क्या लग रहा है ??

पूजा..."अदल"
8-8-21


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