परिवार, सुख का आकार (भाग 3) - उन्नत्ति की सीढ़ी Kamal Bhansali द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

परिवार, सुख का आकार (भाग 3) - उन्नत्ति की सीढ़ी

परिवार भाग 3 ( उन्नत्ति की सीढ़ी )

आज जो सँसार का स्वरुप है, उसकी उन्नति में परिवार की भूमिका को नकारना सहज नहीं है। यह विडम्बना आज के स्वरुप की होगी कि आनेवाले समय में सबकुछ होते हुए भी परिवार में, अटूट स्नेह और प्रेम नहीं होगा, अगर हालात इसी गलत दिशा की तरफ मुड़ रहे है, तो निसन्देह मानवता को अपने अस्तित्व के प्रति गंभीर चिंतन की जरुरत है ।

समय के तीन भाग होते है, यह हम सभी जानते है, वर्तमान, भूतकाल और भविष्य और शायद इनका निर्माण भी बड़ी शालीनता से इंसान को अपनी गलतियों को सुधारने और उसके अनुरुप जीवन को बेहतर और शांत बनाने के लिए किया गया है। समय के मामले में हर इंसान को अपनी भूमिका स्वयं समझनी होती है, अनिश्चित भविष्य उसे बुद्धिमान बनाना चाहता है, बिता हुआ समय उसे समझदार बनाना चाहता है। पर हकीकत कुछ और ही आभाष देती है, समय के प्रति लापरवाही इंसानी फितरत नजर आती है।

परिवार शब्द की अगर कोई विशेषताओं पर, आत्मिक ज्ञान से अनुसंधान करें तो उसे अपने जीवन की सफलताओं में, परिवार की समयानुसार भूमिका में, उसके, समय की बचत का अनुभव किया जा सकता है। दैनिक जीवन की कई आवश्यकताओं की पूर्ति जब परिवार करता है, तो सोचिये आपकी सफलताओं और आपकी प्रसिद्धि में परिवार कितना उपयोगी है ? आज उसी परिवार की अनदेखी अपनी स्वार्थपूर्ण महत्वकांक्षाओं के कारण जब कोई करता है, तो तय है, उसका सफलता का सफर थोड़े दिनों बाद गुमनामी और स्त्रांश का शिकार होनेवाला है।

आखिर, आज परिवार जो सदियों से अपनी भूमिका सही ढंग से निभा रहा था, उसे किसने बीमार किया और कौन, कौन से विषैले कीटाणुओं से त्रस्त वो हुआ ? इसी सन्दर्भ में हम अपना चिंतन गतिमय करे तो यथार्थ यही कहेगा, आपसी अपनत्व और प्रेम जो परिवार की रीढ़ की हड्डी का काम करते थे, वो स्वार्थ और अंहकार के कीटाणुओं से ग्रसित हो गए, और परिवार लकवे की गंभीर बीमारी का शिकार हो, निष्क्रिय जीवन निभा रहा है। आइये, एक नजर से, आज के सन्दर्भ में परिवार को बीमार करने वाली हमारी सोच पर कुछ शुद्ध आत्मिक चिंतन कर, अपने आप को शिक्षित बनाने की चेष्टा करे।

अंहकार और अभिमान.....

किसी भी परिवार की शालीनता, इन दोनों की मात्रा और आकृति पर निर्भर करती है। ये दोनों तत्व अपना अस्तित्व बोध हर कर्म में कराना चाहते है, मात्रा की अधिकता बिना इनका ज्यादा असर परिवार की शालीनता पर नगण्य ही होता है। पर किसी कारण किसी भी सदस्य में जब इसका अनुपात बढ़ जाता है, तो शालीनता में कमी आ जाना स्वभाविक ही होता है। आजतक परिवारों में इसका इलाज नम्रता के उपदेश से किया जाता था। घर का धार्मिक वातावरण में नम्रता की कभी कमी नहीं होती थी। आधुनिक युग ने घर से धर्म को उठाकर सार्वजनिक जगह पर एक कार्निवल का रुप दे दिया गया है। आज धर्म की चर्चा और उपासना दैनिक जीवन में परिवार के भीतर कम नजर आने लगी, उसकी जगह आपसी तनाव का वातावरण नजर आने लगा। शिक्षा में नैतिक अंश की कमी का होना भी परिवार के लिए भारी पड़ रहा है। घर का स्वामी अनुशासनहीनता को संयमित करने में अक्षम हो रहा है, उसकी विचार धाराओं को सब समय नकारा जाता है। उसकी मजबूरी यही होती है, कि वो परिवार को सिर्फ आर्थिक सम्पन्नता से ही नहीं संस्कारों और आपसी प्रेम से सक्षम करना चाहता है। यह सही है, की उसका चिंतन आज की जीवन शैली के कुछ विपरीत हों पर असली जीवन का मूल्यांकन, सदस्यों को भी नहीं भूलना चाहिए।

अंहकार, कभी भी इंसानी भावनाओं पर आक्रमण कर सकता है, उसकी फितरत भी यहीं है, किसी एक सफलता पर यह इंसानी मस्तिष्क में प्रवेश करने की चेष्टा करता है, और परिवार में विद्रोह की भूमिका बनाना शुरु कर देता है। नम्रता की भावना अगर परिपूर्ण है, तो निश्चित है, यह कुछ भी नुकसान नहीं कर पाता। इसलिए परिवार में नम्रता का वातावरण बना रहना चाहिए, जो काफी मुश्किल है। परिवार की बदलती स्थिति जहां सदस्य अलग अलग जगह रहते है, उन का सन्तुलन सही रहना, वर्तमान में परिवारों के सामने चुनौती ही है, इस से इंकार करना असंभव लग रहा है। कहते है, जिस परिवार में हंसी का वातावरण होता है, वहां अंहकार अदृश्य रहता है, तथा कम नुकसान दायक होता है।

अंहकार की लाचारी यही है, वो कभी अदृश्य नहीं रह सकता, अत: उसका प्रभाव परिवार के सदस्यों पर पड़ना लाजमी है। परिवार का हर रिश्ता परिवार की गरिमा होता है, उसे कभी जब इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है, तो नकारत्मक ऊर्जा परिवार को बीमार करने में सफलता हासिल कर सकती है, और परिवार का मानसिक विघटन यहीं से शुरू हो जाता है। इस बीमारी का इलाज सहज और सरल है, अगर परिवार बिना तर्क के सभी सदस्यों के सुझाव को उचित स्थान दे और आपसी चिंतन में अगर प्रत्येक सदस्य बेखोप सम्मलित होता है, तो समझ लीजिये आप एक सही परिवार के सदस्य है।

अभिमान एक ऐसा तत्व है, जिसका महत्व दैनिक जीवन में नकारना गलत होगा, इसकी सिर्फ अधिकता से खतरा है। "हमें अपने देश पर अभिमान है", "हमेंअपने परिवार पर अभिमान है" या, "हमें हमारे परिवार के अमुक सदस्य की सफलता पर अभिमान है" । कितने अच्छे लगते है, ह्रदय की गहराई से निकलते है, लाजमी है, प्रभाव भी चमत्कारी होते है। यहां संगठन की मजबूती तो सामने आती है, परन्तु अपनी सक्षमता का अहसास भी दूनिया की नजर से देखा जा सकता है, चाहे वो देश हो, समाज हो या फिर हमारा अपना परिवार ही, क्यों न हो ? यह भी एक साक्ष्य है, बिना किसी एक विशिष्ठता के अभिमान करना हास्यपूर्ण ही होगा।

गौर कीजिये, " सन्तानो से परिवार बनता, परिवार से समाज और कई रूपांतरों के समावेश से देश बनता तो फिर परिवार अपने योगदान पर गर्व कैसे नहीं करेगा"। एक सही मजबूत परिवार ही देश को सच्चा सैनिक दे सकता है, जिससे हम सुरक्षित रहते है। जरा गौर कीजिये, परिवार के लिए अपने योगदान पर। हमारा सही दृष्टिकोण जीवन में यही हो, हम अंहकार को परिवार के वातावरण से दूर रखकर एक सक्षम परिवार के सदस्य होने का गौरव प्राप्त करने की चेष्टा करेंगे, जिससे हम अपने परिवार, समाज और देश पर सही अभिमान कर सके।
लेखक ✍️ कमल भंसाली