मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 5 ) - अंतिम भाग ARUANDHATEE GARG मीठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 5 ) - अंतिम भाग




जगमोहन की बात सुनकर सभी हतप्रभ थे । वहां खड़े कुछ गांव वालों ने , जगमोहन की बात का समर्थन किया । क्योकि गांवों में आज भी , लड़की की इज्जत और दहेज एक समान ही होते हैं । दोनों को खानदान के और मुखिया के , इज्जत और स्वाभिमान से जोड़ा जाता है । माधुरी ये बात बहुत अच्छे से जानती थी , कि उसके पिता के लिए उनके खेत की जमीन , एक तरह से उनके बूंद - बूंद पसीने से कमाई पूंजी है । जिसे अगर उसके पिता ने खो दिया , तो ज़िन्दगी में कभी उसका परिवार चैन से बैठ के खाना नहीं खा पाएगा । ग़रीबी का जो आलम अभी है , शायद खेत की जमीन देने के बाद , इससे भी बत्तर हालत उसके परिवार की हो जाएगी । इस लिए उसने इस बात के विरोध करने के बारे में सोचा । पर वह कुछ कह पाती , उससे पहले ही रामलाल ने कहा ।

रामलाल - हमरे खेत , हमरे जिए का सहारा है समधी जी । अगर हम अपन खेतन का , अपना का देय देब , तो हमरे खाएं के लाले पड़ जईहें।

जगमोहन - हमी नहीं पता है रामलाल । हमरी भी अपने गांव - समाज मा कोनो इज्जत है । अगर अइसे हम खाली हाथ , अपनी बहू का लईके जाऊब , तो हमरी नाक कट जई , समाज - बिरादरी मा ।

रामलाल - अगर अइसन बात है , तो ठीक है । हम आपके बिटवा के नामे, अपनी जमीन करे की खातिर तैयार हैन ।

रामलाल इससे और कुछ आगे कहता , उससे पहले ही माधुरी ने अपना घूंघट, अपने सिर से हटाया और अपने ससुर के सामने जाकर कहा ।

माधुरी - हमारे पिता , आपके और आपके बेटे के नाम पर अपनी खेत की जमीन नहीं करेंगे ।

रामलाल - इ का कही रही हो बिटिया तुम ? अगर हम अइसन नहीं किए , तो तुम्हीं इ पंचे, अपना घर की बहू ना बनइहें ।

माधुरी - तो मत बनाने दीजिए पिता जी । जो लोग यहां भरी भीड़ में , अपने लालच के चलते , हमारे पिता की जमीन हड़पना चाहते हैं । वो लोग हमें अपने घर की बहू बनाने के बाद , हमारे मां - बाप और भाई के सिर से , रहने के लिए छत भी छीन लेंगे । ऐसे लोगों के घर की बहू बनने से अच्छा है , कि मैं अपने पिता के घर में ही रह कर, उनकी सेवा करूं ।

रामलाल - इ तुम ....???

सुशीला ( बीच में ही ) - आपकी बिटिया ठीक कही रही है जी । हम अपन खेत , कोनो का ना देब । जब हमरी स्थिति नीक होई जई , तब हम अपन बिटिया का ब्याह करब । लेकिन अइसन लोगन का, हम अपनी बिटिया ना देब ।

जगमोहन ने जब माधुरी और सुशीला की ये बातें सुनी , तो उसने गुस्से से पैर पटकते हुए अपने बेटे से वापस चलने को कहा । और उसका बेटा और वो , बिना माधुरी को लिए ही अपने घर चले गए । सत्यप्रकाश ने भी मौका पाते ही , रामलाल से सारा खर्चा भिजवाने को कहा और उसे एक बड़ी सी पर्ची , जिसमें शादी के खर्चे का पूरा हिसाब था , रामलाल को पकड़ा कर चला गया ।

माधुरी की बारात , बिना माधुरी को लिए ही चली गई थी । रामलाल के लिए ये सब सहनशीलता के बाहर था । वह वहीं पर जमीन में बैठ गया और कहने लगा ।

रामलाल - कइसन बाप हैन हम , हमरी बिटिया का घर बसने से पहिले ही उजाड़ दिए । अपना खेत का नहीं संभाल पाए । अरे हमका ता उहि रोज मर जाएं का चाही रहा है , जब हमरे खेतन मा कुछु भी नहीं बचा रहा । अगर हम मरी जाते, तो आज अइसन हमरी बिटिया की, भरे गांव मा बेइज्जती नाही होत । एहि से अब हमका आत्महत्या कर लें का चाही । हम अब ना रहब , इ संसार मा । बस .....।

इतना कह कर रामलाल खुद में बड़बड़ाते हुए , अग्नि कुंड में जल रही लकड़ियों में से एक लकड़ी को उठाता है और अपने ऊपर जैसे ही आग लगाने के लिए लकड़ी अपनी ओर बढ़ाता है वैसे ही मोहित उसका हाथ पकड़ कर , उससे लड़की छुड़ा लेता है और वापस अग्नि कुंड में डाल देता है और कहता है ।

मोहित - आप ये क्या कर रहे हैं । इस तरह खुद की जान लेना , ठीक नहीं है ।

रामलाल ( सिसकते हुए ) - का करें बिटवा ? ना ही खुद की फसल बचा पाए और ना ही अपनी बिटिया का घर बर्बाद होए से बचा पाए । अब कौन करी , हमरी बिटिया से ब्याह ??? का होई अब हमरी बिटिया का ????

मोहित - मैं करूंगा आपकी बेटी से शादी । और आपके खेतों को भी बचाऊंगा ।

रामलाल - पर बिटवा तुम कइसे? और दहेज .......????

मोहित - आप चिंता मत कीजिए । आपकी बेटी से शादी भी करूंगा और दहेज के नाम पर मुझे आपसे कुछ भी नहीं चाहिए । और रही आपके खेतों की बात , तो मैं उसमें पैसे लगाऊंगा ।

रामलाल - नहीं बिटवा......, हम अइसे तुम्हरे से , पैसा नहीं लेई सकन ।

मोहित - ठीक है...... , तो आपके पास जब फसल का पैसा आएगा तब आप मुझे लौटा दीजिएगा । पर अभी उधार समझ कर ही , ले लीजिए । मुझे लगेगा , कि मैंने अपने पिता की मदद की है ।

रामलाल अब दोबारा किसी पर भरोसा करना नहीं चाहता था । इस लिए उसने मना कर दिया । पर मोहित ने उसे अच्छे से समझाया । तो रामलाल मान गया । रामलाल ने खुशी - खुशी अपनी बेटी की शादी मोहित से कर दी । और मोहित ने शादी के बाद , अपने कहे अनुसार एक भी दहेज नहीं लिया। बल्कि उधार में पैसे देकर , रामलाल की मदद की ।

पांच महीने बाद ...........,

रामलाल की फसल कट कर , अब तक सोसायटी जा चुकी थी । और उसे कुछ ही दिनों में, उसका उचित मूल्य मिलने वाला था । मोहित की मदद से , रामलाल ने एक नई शुरुवात की थी । जिससे रामलाल की फसलें एक बार फिर से , खेतों में लहलहाने लगी थी । मोहित बहुत पढ़ा लिखा था , इस लिए उसे सरकारी काम - काज की , अच्छे से समझ थी । इस लिए उसने रामलाल को अपने साथ लेकर , सरकारी दफ्तर ना जाकर , उसे बैंक लेकर गया । और वहां उसने पहले से ही , रामलाल का अकाउंट बनवा दिया था । आज रामलाल को उसकी मेहनत की कमाई मिल चुकी थी। वह मोहित के साथ अपने घर आया और उसने , मोहित के सारे उधार के पैसे चुका दिए । साथ ही साहूकार का जितना भी कर्जा बकाया था , वो सब भी चुका दिया । अब रामलाल का परिवार कर्जे से मुक्त था और सुखी भी था ।
एक दिन उसके घर पर सुबह - सुबह , सरपंच का बेटा आया और उसने कहा ।

मोनू ( सरपंच का बेटा ) - का हो चच्चा !!!!! का करी रहेन हैन यहां ??? चली , भोपाल चलन का है । वर्तमान सरकार , ओला वृष्टि का मुआवजा का पैसा नहीं दिहिस है । ता ओकरे खातिर , आंदोलन करब । चला और अपना सहियोग दीहा , आंदोलन मा ।

रामलाल - माफ करिहा बेटा हमी । पर हमका ये सब नहीं करें का है । अरे हम गरीब आदमी , जो मिलत है खेत - खार से मेहनत का , ओहि खाएं मा विश्वास रखत हैन । और वैसे भी , अपील ओकरे साम्हु करी के जात है , जेहि हमरी बात सुने की फुरसत होए । जेसे हमें उम्मीद होए , कि हमरी बात उ सुनिहें । पर अइसन लोगन के साम्हुं उम्मीद करे से का फायदा , जिन्हीं सिर्फ अपने वोटन से मतलब है , किसान के मेहनत और परेशानी से नहीं । ये आंदोलन करी के एक कहावत सरकार मा शोभा देई , की " भैंस के आगे बीन बजाए और भैंस पड़ी पगुड़ाए " । ऐसे जो करना खाना , कमाना है । खुद के दम पर कमाय जाए सकत है । इ सरकार के माथे , बैठइहा ......, तो बैठन रही जैहा । काहे कि सरकार के काने मा , जू नहीं रेगें का है । और सरकार का आम जनता से कोनो मतलब नहीं रहे , ना ही कोनो फिकर राहत ही उन्हीं , आम जनता की और ना ही किसान की ।

मोनू ने जब रामलाल की बात सुनी , तो उसे उसकी बातों में सच्चाई दिखी । और उसने उसके पैर छू कर आशीर्वाद लिया और वहां से चला गया।

समाप्त

सच्ची घटना - ये कहानी काल्पनिक है , सिर्फ दो बातों को छोड़ कर । एक तो ये कि कोहरे की वजह से फसलों का बर्बाद होना और दूसरी बात ये कि ओला वृष्टि से गेहूं की फसलों का बर्बाद होना ।

मध्यप्रदेश में हमारे दादा जी का एक गांव है । कुछ साल पहले बहुत ज्यादा कोहरे की वजह से उनकी पूरी फसल बर्बाद हो गई थी और हाथ उनके कुछ भी नहीं आया था ।

इसी तरह ओले गिरने की वजह से , हमारे खुद के खेतों की गेहूं की फसल बर्बाद हुई थी । और ये बात , वहां की है जहां हम वर्तमान में रहते है । और ये बात ज्यादा पुरानी नहीं है , बल्कि इसी 2020 के, मार्च महीने की है । जब खूब बारिश हुई थी और हमारे खेतों में ओले गिरने से, पूरी गेहूं कि फसल सत्यानाश हो गई थी । गेहूं के बीज काले पड़ गए थे । बहुत नुकसान हुआ था ,एक तरह से हमारा , क्योंकि गेहूं का एक दाना भी हमारे हाथ में नहीं आया था ।

लेकिन हम थोड़े सम्पन्न परिवार से हैं , इस लिए इन दोनों मार को झेल गए । पर सोचने वाली बातें ये है , कि हमारे साथ - साथ छोटे किसानों की फसलें भी बर्बाद हुई होंगी । वो लोग कैसे इससे उबरे होंगे । और तो और इस बार कोरोना महामारी के चलते सभी की अर्थवयवस्था भी डगमगा गई थी । इन सब मार को कैसे छोटे किसानों ने झेला होगा , इसका शायद हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते ।

इन सब का नतीजा ये हुआ , कि इस साल गेहूं के दाम आसमान छू रहे हैं । खैर हम सपन्न परिवार के लोग तो ये अन्न ले ही लेंगे । लेकिन सोचने की बात ये है , कि गरीब किसानों ने कैसे अपना पेट पाला होगा । इस महामारी के दौर में , जब उसकी फसलें भी चौपट हो गई और उनके पास आमदनी का कोई साधन भी नहीं था । ऊपर से मंहगाई और ज्यादा बढ़ गई ।

इस लिए अगर कोई किसान किसी चीज़ की मांग करता है, तो वो ऐसे ही नहीं करता । उसके पीछे जरूर कोई न कोई कारण होता है । हमें किसानों के संघर्षों की अवहेलना ,नहीं करनी चाहिए , बल्कि उनकी प्रशंसा करनी चाहिए । मान रखना चाहिए उसकी बात का । ये कहानी उसी किसान की परेशानियों से अवगत कराने के लिए थी । हमारे भारत देश के किसान , अन्नदाता हैं । जो हमें अन्न देते हैं , जिनके चलते हम जिंदा है । इस लिए हमारे किसानों को , बहुत - बहुत धन्यवाद । इतनी मेहनत करके , हम तक अपने अनाज पहुंचाने के लिए ।

धन्यवाद ......,

जय जवान , जय किसान 🙏🏻🌾