मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 2 ) ARUANDHATEE GARG मीठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मेरी मिट्टी मेरा खेत - ( भाग - 2 )







रामलाल और उसकी बेटी घर आ चुके थे । लेकिन उनके घर आते ही, झमाझम बारिश शुरू हो चुकी थी । बारिश लगातार एक हफ्ते तक चलती रही । पर अगर सिर्फ बारिश ही होती, तो उतना नुकसान नहीं था । लेकिन उसी एक हफ्ते के बीच, दो बार झमाझम बारिश के साथ ही , ओले भी गिरे । जिससे रामलाल और उसका पूरा परिवार चिंता में आ गया था । एक हफ्ते बाद बड़ी मुश्किल से बारिश रुकी , और उस दिन बादल छट गए थे । सुबह की धूप भी खिलखिला रही थी । पर ये नई धूप और नया दिन अच्छा गुजरने वाला था या फिर मुश्किलों से भरा , ये तो ऊपर वाला ही जानता था ।

खैर सुबह आठ बजे के लगभग घर के सभी लोगों की नींद खुली । क्योंकि ठंड बहुत ज्यादा थी , इस लिए सभी देरी से उठे थे । तैयार होकर रामलाल ने अपना खेत का सामान उठाया और खेत जाने के लिए तैयार हो गया । साथ ही उसने माधुरी को आवाज़ लगाई । रामलाल की आवाज़ सुनकर , माधुरी के साथ - साथ सुशीला और रघु भी आ गए । सुशीला ने जब रामलाल को , खेत जाने के लिए तैयार देखा , तो कहा ।

सुशीला - इ कहां जाए रहे हैं ?

रामलाल ( जूते पहनते हुए ) - खेत जाई रहे हैं , बेरा ( समय ) होई गई है , खेत जाएं की ।

सुशीला - अब का करिहा जाई के , उहां???? सप्ताह भर की बारिश और ओरा ( ओले ) में , सब तहस नहस हुई गवा होई ....।

रामलाल - अइसन कुछु ना हुआ होई । तुमहू धैर्य रखा और हम आवत हैइन , शाम के । खेत की देख - रेख करी के । सब ठीक ही होई , तुमहू जाई के आपन काम देखा ।

सुशीला - लेकिन, समझे की कोशिश करी .......।

रामलाल - हम कहीं दीहिन हैं ना , कि सब सही होई । तो सब सही ही होई । बेमतलब के , अपशकुन ना मनावा , हमरे जात के बेरा मा .....। अरी , ई मधुरिया कहां चली गई ???? ( माधुरी को आवाज़ देते हुए ) अरे मधुरिया , ओ मधुरिया बिटिया..... । तनिक जल्दी आओ.... , अबेरा होय रही है , जाएं के लाने ( के लिए ) ......।

माधुरी ( अपने कमरे से आवाज़ देते हुए ) - आए पिता जी ...।

माधुरी की आवाज़ सुनकर रामलाल दरवाज़े के चबूतरे पर आ कर बैठ गया , जबकि सुशीला उन दोनों के लिए कुछ खाने के लिए रखने लगी । देर से उठने की वजह से, सुबह तो कुछ नहीं बना था , रात की ही बासी रोटियां रखी हुई थी । तो सुशीला ने उनमें से ही छः ठो रोटी , लहसुन और मिर्ची की चटनी के साथ बांध दी ।

उधर माधुरी , अपने मां - बाप की बातें सुन चुकी थी । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, अपने पिता का अपनी जमीन और खेतों की फसलों का, मोह देखते हुए । सब कुछ तबाह हो चुका होगा.... , लेकिन तब भी उसके पिता ये मानने के लिए तैयार नहीं थे । पिता की आज्ञा थी , इस लिए बेचारी माधुरी भी कपड़े बदलकर तैयार हो गई और सोचने लगी , कि जब उसके पिता खेतों पर खराब हुई फसलें देखेंगे, तो कैसे व्यवहार करेंगे । वह अकेली उन्हें समझा भी पायेगी या नहीं , इसी बात की उसे चिंता थी ।

माधुरी अपने कमरे से बाहर आयी और फिर खेत का सामान ले कर रामलाल के पास आयी । उसे सुशीला ने खाने की पोटली दी और फिर रामलाल और माधुरी अपने खेत पहुंचे । वहां का नज़ारा देख कर , माधुरी का दिल धक सा हो गया । तो वहीं रामलाल को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । खेत की सारी फसल खराब हो चुकी थी । इसका अंदाजा माधुरी को था , पर खेत की इतनी खराब हालत हो जाएगी, कि सब्जियां भी पूरी नष्ट हो जाएंगी , इसकी उसे उम्मीद नहीं थी । पूरे खेत की फसल गेहूं , चना , सब्जियां और साथ ही मेंढ़ों में लगी, जो कुछ भी थोड़ी - बहुत सब्जियां थी , वो सब बर्बाद हो चुकी थी । आंधी तूफ़ान की वजह से , आम का पेड़ भी कट कर गिर गया था ।

रामलाल ने जब ये देखा , तो वह गेहूं के खेत की ओर बढ़ गया । माधुरी ने जब रामलाल को गेहूं की खेत की ओर बढ़ते देखा , तो उसने हाथ में पकड़ा हुआ सारा सामान , एक किनारे पर रखा और फिर अपने पिता की ओर बढ़ गई । रामलाल ने गेहूं के खेत में कदम रखा , तो उसके आंखों से झर - झर आंसू बहने लगे । गेहूं की हरी - हरी फसल , मिट्टी में अब मिली हुई पड़ी थी । गेहूं के बीज , पूरी तरह से काले पड़ गए थे । या ये कहें कि धूप ना लगने की वजह से, सारी फसल सड़ गई थी । रामलाल ने अपना रापा ( मिट्टी खोदने और उठाने वाला औजार ) उठाया , और खेत में चलाने लगा । उसकी आंखों से आसूं बहे जा रहे थे और वह लगातार रापा मिट्टी पर चलाए जा रहा था । वह इस समय क्या सोच रहा था , यह सिर्फ वही जानता था । तभी माधुरी वहां आयी, और अपने पिता को खेत पर औजार चलाते हुए देख कर , उसे बड़ी हैरानी हुई । पर रामलाल ने उसे देख लिया और अपनी आंखों में आयी नमी को, अपनी बेटी से छुपा लिया । माधुरी ने उसे अपने आंखों की नमी छुपाते हुए भांप लिया । उसने अपने पिता से एक सवाल किया ।

माधुरी - पिता जी , ये खेत और इस खेत की मिट्टी से आपको इतना लगाव क्यों हैं , कि आप इनमें कुछ भी न बचे होने के बाद भी , इसे फिर से सही करने की कोशिश कर रहे हैं । ये जानते हुए भी, कि जो बर्बाद हो गया , उसे अब दोबारा पहले जैसा ठीक नहीं किया जा सकता ।

रामलाल ने जब अपनी बेटी की बात सुनी , तो उसने रापा एक किनारे रखा , और जमीन से थोड़ी सी मिट्टी उठाई , जो हवा लगने से हल्की सी सुख चुकी थी । उसे अपनी हथेली में लेकर रामलाल ने कहा ।

रामलाल - बिटिया ....!!!! ई सिर्फ मिट्टी नहीं है , ई हमरी मात्र भूमि का ऋण है । जिसे हमें जमीन आसमान एक करके चुकाना है । ई जमीन देख रही हो , ई जमीन सिर्फ मिट्टी से सनी हुई कोई छोटी - मोटी जमीन नहीं है , ई हमरी माई है । जिकी ( जिसकी ) छत्र - छाया में हम, तुम , हमरा पूरा परिवार जीता है । ई फसल देख रही हो , जो आज बेजान सी जमीन की मिट्टी में मिली हुई है .....। ई सिर्फ फसल नहीं है बिटिया , ई खजाना है हमरे पूर्वजों का , हमरी मेहनत की एक - एक पाई का । जो आज यहां , बिना किसी सहारे के यूं मिट्टी से सना हुआ पड़ा है । जानती हो बेटा , ई खजाने का महत्व कितना है ..???? ई खजाने की वजह से , हम घर में कौड़ी ( पैसे ) देवत हैन , तुम्हरी अम्मा का । जेके बाद , तुम पंचे ( तुम सब ) दुई बेरा की रोटी तोदड़त ( खाते ) हो । अब बता बिटिया , जो अगर ई खजाना ना होई , तो तुम पंचे कैइसन खईहा ( खाओगे ) दो जून ( वक्त ) के रोटी ....???? कैइसन खईहा........???? बतावा बिटिया......., कैइसन खईहा ......???

इतना कह कर रामलाल वहीं जमीन पर बैठ जाता है और अपने करम ( मस्तक ) पर हाथ रख कर रोने लगता है । माधुरी को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था । पर उसे जिस बात का डर था , आखिर वही हुआ । उसका पिता आज उसके सामने , किसी टूटे हुए वृक्ष की भांति टूट कर जमीन में पड़ा हुआ ( बैठा हुआ ) था । जिसकी ना ही आवाज़ किसी को सुनाई दे रही थी और ना ही कोई उसे सहारा दे सकता था । माधुरी कभी अपने पिता को देखती और कभी अपने सामने खराब हुई फसल और जमीन में गिरे हुए आम के पेड़ को देखती ।

उसके पिता भी तो इसी भांति गिरकर बिखर गए थे , जिन्हे उसने हमेशा अपने सामने हंसते मुस्कुराते हुए देखा था । जिनकी छाया के तले , वो और उसका छोटा भाई, बड़े हुए थे । आज वही पिता उसके सामने अपनी हिम्मत हार कर बैठा था , जिसने कभी उसे ये सिखाया था कि " कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती " । एक बेटी के लिए वो सबसे मनहूस दिन होता है , जब उसके मां - बाप, उसी के सामने टूट कर बिखर गए होते हैं । एक हद तक वह अपने मां - बाप को तो संभाल लेती है , पर खुद को कभी नहीं संभाल पाती । कभी भी एक बेटी के आंखों के सामने से अपने मां - बाप का रोता हुआ और मुश्किलों के चलते , दर्द से तड़पता हुआ चेहरा नहीं जाता या ये कहूं की भूल ही नहीं पाती है वो इस पल को , जब उसके मां - बाप को किसी और के कंधे की जरूरत पड़ती है, अपने आसूं बहाने के लिए । वो भी उन्हें , जिन्होंने खुद अपने कंधे पर बैठाकर कभी उसे दुनिया दिखाई हो ।

वह ये सब देख ही रही थी , कि तभी आसमान में एक बार फिर घने काले बादल छा गए , जैसे कह रहे हों कि " हम अभी तुम्हारे किस्मत रूपी आसमान से , छटने वाले नहीं है " । माधुरी ने जब आसमान में घिरे हुए बादलों को देखा , तो अपने पिता से तुरंत कहा ।

माधुरी - पिता जी , उठिए ...!!! देखिए , फिर से बादल घिर आए हैं , आसमान में । चलिए वरना आप भीग जाएंगे ।

तभी आसमान में एक जोर - दार गर्जना हुई । शायद बिजली गिरी थी , उनके आस - पास के किसी खेत में ही । उसकी गर्जना सुनकर , माधुरी घबरा गई । और उसने अपने पिता को , जमीन से उठाते हुए, दोबारा अपनी बात दोहराई । बिजली की गर्जना सुनकर , रामलाल को होश आया । पर जब उसे होश आया , तब ही झमा - झम बारिश शुरू हो गई । पर रामलाल ने अपने पैर वहां से , एक बार भी अपने घर की ओर, नहीं बढ़ाए और रुंधे हुए गले से कहा ।

रामलाल - नहीं बिटिया ....!!! हामका हियहि ( यहीं ) रहन दया ( रहने दो ) । हम अपने इन मिट्टी , अपनी फसल और ई जमीन के साथे, रहय का चाहित हैं । हमका हमरी मिट्टी से, हमरी मां से अलग मत करा बिटिया , मत करा ( करो ) .....। हमी ( हमें ), फसलन के देख - रेख करें का है । कर्जा लइन हईन ( हैं ) येतना ( इतना ) का , सब ऐही फसल का काट के बेचें के बाद , ही तो चुका पाऊब ना , बिटिया ...। ऐहि लिए , हमका हेयिं ( यहीं ) रहें दया । हम अपना खेत के रखवारी ( रखवाली ) करब .....। बहुत नीके ( अच्छे ) से रखवारी करब हम ....।

माधुरी ने जब अपने पिता की बात सुनी , तो उसके आंखों से भी अश्रु - धारा बहने लगी । उसने किसी तरह अपने पिता को , वहां से बाहर निकाला । और उन्हें लगभग खींचते हुए , घर लेकर गई । पर रामलाल , उल्टे पैर अपने घर की ओर जा रहा था , या ये कहूं के उसकी बेटी के द्वारा ले जाया जा रहा था । वह एक टक अपने उस छूटते खेत को देख रहा था । जिससे उसे अभी भी उम्मीद थी, कि उसमें अब भी, कुछ ही दिनों में , हरी - हरी फसलें लहराने लगेंगी। पर सच तो ये था , कि रामलाल के कर्जे और प्रकृति की इस तरह से दोबारा दी हुई मार के चलते , हरी फसलों का दोबारा कम वक्त पर वापस उग पाना , संभव नहीं था ।

माधुरी अपने पिता को लेकर घर की दहलीज पर पहुंची , जहां उसे उसकी मां मिल गई । वह अपनी मां की मदद से, अपने पिता को घर के अंदर लेकर गई । दोनों ही काफी भीग चुके थे , और इसी के चलते रामलाल की हालत कुछ ठीक नहीं लग रही थी .....।

क्रमशः