त्रिधा - 15 आयुषी सिंह द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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त्रिधा - 15

माया को आशीष जी के साथ भेजकर त्रिधा भी अपना हैंड बैग उठाकर वापस हॉस्टल की तरफ लौट रही थी और तभी दो हाथों ने पीछे से आकर उसकी आंखें बंद कर ली त्रिधा ने तुरंत उन हाथों को अपनी आंखों से हटाया और पीछे पलट कर देखा तो सामने संध्या खड़ी थी और जोर जोर से हंस रही थी त्रिधा ने संध्या को घूर कर देखा और बोली - "तुमने तो मुझे डरा ही दिया था… तुम यहां पर क्या कर रही हो?"

संध्या हंसते हुए बोली - "चलो आंखिर मैंने तुम्हें डराया तो सही! तुम किसी से तो डरती हो।" और इतना कहकर वापस ताली बजा कर हंसने लगी।

त्रिधा कहने लगी - "अब हंसना बंद करो और बताओ कि तुम यहां पर क्या कर रही हो?"

संध्या ने अपनी आंखें गोल करते हुए त्रिधा के पास आकर कहा - "पिछले साल तो तुमने पता चलने नहीं दिया, मगर इस साल मुझे पता चल ही गया और अब तुम मुझसे बचकर कहीं नहीं जा सकती।" इतना कहकर संध्या ने त्रिधा का हाथ पकड़ा और उसे जबरदस्ती अपने साथ लेकर जाने लगी। त्रिधा भी चुपचाप संध्या के साथ साथ चलने लगी। हालांकि त्रिधा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था मगर उसने सोचा संध्या तो बेवकूफ है, उससे रोड पर बहस करने का क्या फायदा! वैसे भी होगा कुछ नहीं बस भीड़ के सामने अपना ही मजाक बनवा लेगी।

कुछ देर बाद त्रिधा और संध्या हर्षवर्धन के रेस्टोरेंट में पहुंच गईं। त्रिधा यहां पहले भी आ चुकी थी। आज हर्षवर्धन के रेस्टोरेंट को देखकर त्रिधा हैरानी से अपने मुंह पर हाथ रखे चारों तरफ देख रही थी। हर्षवर्धन का पूरा रेस्टोरेंट खाली था और त्रिधा के पसंदीदा ऑर्किड के फूलों से सा हुआ था। त्रिधा को विश्वास ही नहीं हो रहा था यह रेस्टोरेंट इतना ज्यादा सुंदरता से सजाया हुआ है। मगर उसे समझ नहीं आया कि रेस्टोरेंट क्यों सजा हुआ है! अपनी सोच में ही थी त्रिधा अपनी सोच में ही थी कि तभी पीछे से आकर दो हाथों ने एक बार फिर त्रिधा की आंखों को अपने हाथों से ढक लिया। त्रिधा ने वापस उन हाथों को अपनी आंखों से हटाया और जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो खुशी और हैरानी से उसकी आंखें चौड़ गईं। प्रभात और हर्षवर्धन, दोनों मुस्कुराते हुए उसके सामने खड़े थे।

त्रिधा दोनों को देखकर पूछने लगी - "क्या हुआ? तुम तीनों एकसाथ!"

प्रभात मुस्कुराते हुए त्रिधा के गले लग गया और बोला - "हैप्पी बर्थडे त्रिधा! पिछली बार हमें कुछ बताया ही नहीं था तुमने इसलिए हम तुम्हारा जन्मदिन नहीं मना पाए मगर इस बार दोनों सालों की कमी पूरी कर देंगे।"

"बिल्कुल!" और इतना कहते हुए हर्षवर्धन केक लेकर वहां आ गया।

संध्या ने एक गिफ्ट रैप त्रिधा के आगे बढ़ाया और बोली - "ये मेरी तरफ से मेरी त्रिधू के लिए, अभी पहन।"

त्रिधा ने खुशी से गिफ्ट ले लिया। देखा संध्या उसके लिए एक खूबसूरत सी रिस्ट वॉच लेकर आई थी। त्रिधा ने घड़ी पहन ली और हर्षवर्धन को देखने लगी। हर्षवर्धन भी त्रिधा को ही देख रहा था और प्रभात उन दोनों को एक दूसरे को निहारते हुए देख कर मुस्कुरा रहा था। प्रभात हर्षवर्धन के पास आकर बोला - "तुझे इसलिए घूर रही है क्योंकि तूने उसे कुछ गिफ्ट नहीं दिया अब तक।"

हर्षवर्धन मुस्कुराते हुए बोला - "मेरा गिफ्ट त्रिधा कभी नहीं भूलेगी... मगर तू क्या लाया है इसके लिए?"

प्रभात मुस्कुरा दिया और कहने लगा - "कुछ ऐसा जो त्रिधा को पसंद भी आएगा और जिसे लेने में यह न - नुकुर भी नहीं कर पाएगी। अपनी स्वाभिमानी दोस्त के लिए बहुत सोच समझ कर कुछ लाया हूं।"

त्रिधा ने जब केक कट किया तब हर्षवर्धन और प्रभात ने मिलकर त्रिधा के चेहरे पर केक की आइसिंग लगा दी और संध्या मुस्कुराते हुए उन तीनों के फोटो ले रही थी। त्रिधा तीनों को घूरते हुए देख रही थी। कुछ देर बाद त्रिधा ने संध्या, प्रभात और हर्षवर्धन को भी फोटो क्लिक करवाने को कहा और खुद उनके फोटोज़ लेने लगी। कुछ फोटोज़ उसने सिर्फ संध्या और प्रभात के लिए। रेस्टोरेंट्स के सबसे अच्छे हिस्से में जाकर वह उन दोनों के साथ में फोटो ले रही थी। वाकई दोनों साथ में बहुत खूबसूरत लगते थे और आज तो त्रिधा के जन्मदिन के कारण हर्षवर्धन, संध्या और प्रभात, तीनों ही बहुत अच्छे से तैयार होकर आए थे। यह बात अलग थी कि जिस का जन्मदिन था, वह खुद ऐसे ही घूम रही थी। यह सोचकर त्रिधा खिसियानी हंसी हंस पड़ी। त्रिधा ने कभी सोचा भी नहीं था कि ये लोग उसका जन्मदिन इतना खास बना देंगे।

कुछ देर बाद सब एक साथ बैठकर बातें करने लगे। हर्षवर्धन ने वेटर को बुलाकर सारा खाना त्रिधा की पसंद का ऑर्डर कर दिया। संध्या और प्रभात हैरानी से हर्षवर्धन को देख रहे थे कि आखिर उसे त्रिधा की पसंद कैसे पता चली! पर त्रिधा हैरान नहीं थी क्योंकि यह सब उसके साथ पहले भी हो चुका है। वह बस मुस्कुरा रही थी हर्षवर्धन को देखते हुए कि कोई तो था जो उसे इस हद तक समझता था कि उन दोनों के बीच शब्दों की जरूरत भी नहीं पड़ती थी।

काफी देर तक सब साथ रहे मगर फिर संध्या घर जाने के लिए कहने लगी क्योंकि उसे देर हो रही थी।

हर्षवर्धन अपने हाथों में एक बड़ा सा गिफ्ट रैप लेकर आया। हर्षवर्धन का गिफ्ट देखकर प्रभात और संध्या के साथ-साथ त्रिधा भी हैरानी से उसे ही देख रही थी।

हर्षवर्धन ने त्रिधा को जब गिफ्ट थमाया तो उसे छूकर भी त्रिधा को कुछ समझ नहीं आया कि यह क्या है। हर्षवर्धन का गिफ्ट रैप बहुत मोटे गत्तों के बीच पैक किया गया था शायद।

त्रिधा हर्षवर्धन से पूछने लगी - "इसमें क्या है हर्षवर्धन? यह तो बहुत बड़ा है।‌"

हर्षवर्धन मुस्कुराते हुए बोला - "हॉस्टल जाकर खोल कर देखना त्रिधा। यहीं खोलोगी तो हॉस्टल ले जाने में परेशानी होगी और मेरा सरप्राइज भी खराब हो जाएगा।"

त्रिधा कुछ कह पाती इससे पहले ही प्रभात भी अपना गिफ्ट लेकर त्रिधा के सामने आ गया और उसे पकड़ाते हुए बोला - "इसे भी हॉस्टल जाकर ही खोलना त्रिधा। अभी के लिए बस इतना समझ लो कि कुछ ऐसा है जो तुम बहुत लंबे समय से पाना चाहती थीं मगर इसे खरीद नहीं सकती थीं।"

त्रिधा आंखें चौड़ाते हुए बोली - "पर तुमने तो कहा था कि कुछ भी एक्सपेंसिव नहीं है।"

प्रभात मुस्कुरा दिया और बोला हॉस्टल जाकर खोल कर देख लेना अगर पसंद नहीं आए तब बोलना।

संध्या ने त्रिधा को गले लगा लिया और बोली - "आज का दिन मेरी भी जिंदगी के सबसे अच्छे दिनों में से एक था त्रिधा क्योंकि यह मेरी त्रिधा का जन्मदिन है।" फिर त्रिधा के गाल पर प्यार से हाथ रखते हुए संध्या बोली - "एक बात हमेशा याद रखना त्रिधा हम सब दोस्त हैं और दोस्तों से भी बढ़कर एक परिवार की तरह हैं। परिवार में लड़ाइयां, झगड़े, गलतफहमियां, उलझनें सब होता है, मगर फिर भी प्यार कभी कम नहीं होता। हम सबके बीच भी लड़ाई, झगड़े, गलतफहमियां हो सकती हैं मगर हमारा आपस का प्यार कभी कम नहीं होगा। मुझसे पहले प्रभात पर तुम्हारा हक है क्योंकि प्यार सिर्फ प्यार होता है मगर एक अकेले दोस्त में मां, बाप, भाई, बहन, प्यार, हर रिश्ता होता है। प्रभात को सही रास्ता दिखाना मेरी जिम्मेदारी है मगर कभी मैं भटक जाऊं तो मेरा साथ मत छोड़ना त्रिधा।"

संध्या की बात सुनकर त्रिधा ने संध्या को "पागल" कहते हुए गले से लगा लिया इतने में हर्षवर्धन संध्या के पास आ गया और बोला - "बस अब तुम सेंटी मत हो।" फिर त्रिधा को देखते हुए बोला - "ये अकेली ही हम सबके हिस्से का रो लेती है।"

हर्षवर्धन की बात सुनकर सब हंस पड़े। आज का दिन चारों ने काफी अच्छा बिताया था और सभी के लिए यादगार भी था आज का यह दिन आखिर एक लंबे समय बाद ये चारों साथ थे।

शाम को अपने हॉस्टल में आकर त्रिधा, हर्षवर्धन और प्रभात के दिए हुए गिफ्ट्स खोलकर देख रही थी मगर इससे पहले उसने मुस्कुराते हुए दोनों के गिफ्ट्स के रैपिंग पेपर भी संभाल कर रख लिए। जैसे ही त्रिधा ने प्रभात का गिफ्ट खोलकर देखा तो खुशी से हैरान रह गई। उसमें हाथों के बुने हुए दो स्वेटर थे। उसे याद आया एक बार उसने प्रभात से कहा था कि बचपन में ही उसके मम्मी पापा के चले जाने के कारण वह कभी जान ही नहीं पाई कि मां के हाथों से बने स्वेटर स्नेह की कितनी गर्माहट लपेटे होते हैं अपने धागों में। गिफ्ट बॉक्स में स्वेटर के साथ साथ एक नोट भी था "अभी गर्मियां हैं, मगर सर्दियों में यह स्वेटर जरूर पहनना त्रिधा।" त्रिधा मुस्कुरा दी। भराभर गर्मियों में भी स्वेटर पहन कर देख रही थी और पागलों की तरह हंस रही थी वह। अपने मोबाइल में अपनी कुछ तस्वीरें क्लिक करने के बाद उसने स्वेटर संभाल कर रख दिए सर्दियों के इंतजार में और हर्षवर्धन का दिया गिफ्ट खोला तो उसकी चीख निकल पड़ी। हर्षवर्धन ने उसे अपनी बनाई एक पेंटिंग गिफ्ट की थी। यह वही पेंटिंग थी जो त्रिधा को देखने के बाद हर्षवर्धन ने पूरी रात जागकर बनाई थी। त्रिधा पागलों की तरह पूरे कैनवास को छूकर देख रही थी। आज उसे अपने लिए हर्षवर्धन का प्यार समझ आया था। उसे हमेशा लगता था कि कॉलेज खत्म होने के बाद जब वह भोपाल से चली जायेगी तब हर्षवर्धन वक्त के साथ साथ उसे भूल जायेगा मगर आज समझ गई थी वह कि वह भोपाल से जायेगी तो हर्षवर्धन का मन भी अपने साथ ले जाएगी और पीछे बचेगा तो सिर्फ दर्द सिर्फ और सिर्फ हर्षवर्धन झेलेगा उस दर्द को हमेशा के लिए। अपने मोबाइल पर कॉल आने पर त्रिधा चिढ़ गई और बड़बड़ाने लगी - "अब इंसान आराम से अपने गिफ्ट्स भी नहीं देख सकता।" मोबाइल उठाकर देखा हर्षवर्धन ही था।

"रोने का कोटा पूरा हुआ आज का?" त्रिधा के कॉल रिसीव करते ही उस ओर से हर्षवर्धन की आवाज सुनाई दी।

त्रिधा मुस्कुरा दी और पूछने लगी - "तुम्हें कैसे पता चला?"

हर्षवर्धन हंस पड़ा। वह बोला - "बहुत अच्छे से जानता हूं तुम्हें। आज मिले तोहफे देखकर तो तुम्हें गंगा जी, नर्मदा जी को यहां बुलाना ही था।"

त्रिधा मुस्कुरा दी और बोली - "तुम्हीं ने बात की न प्रभात और संध्या से।"

हर्षवर्धन बोला - "अरे पागल हो क्या? मुसीबतों का जन्मदिन कौन मनाना चाहता है? तुम मेरी जिंदगी में किसी मुसीबत से कम हो क्या? न साथ हो न दूर हो।"

त्रिधा हंस पड़ी और बोली - "बात मत बदलो... तुम्हारे अलावा कौन याद रखता कि मेरा जन्मदिन कब पड़ता है?"

हर्षवर्धन थोड़ा गंभीर होकर बोला - "भूल गईं त्रिधा आज संध्या ने क्या कहा था? दोस्त हैं है सब और दोस्तों से भी ज्यादा एक परिवार हैं। लड़ाई, झगड़े, गलतफहमियां हम सबके बीच के प्यार को कभी कम नहीं कर पाएंगी। तुम्हारा जन्मदिन प्रभात ने ही पता किया था कॉलेज में वह भी पिछली साल ही मगर अक्टूबर में पता चला था उसे इसीलिए इस बार उसने ही मुझसे और संध्या से बात की तुम्हें सरप्राइज देने के लिए। वो तो तुम रेस्टोरेंट के पास ही मिल गईं तो थोड़ा प्लान बदलना पड़ा वरना संध्या तो तुम्हारे हॉस्टल आकार तुम्हारे मुंह और आंखों पर पट्टी बांधकर लाने वाली थी तुम्हें।"

त्रिधा हैरानी से हर्षवर्धन की बात सुन रही थी। और हर्षवर्धन बोलता जा रहा था "वर्षा के आने के बाद उनका समय बंटा है, तुम्हारे लिए उनका प्यार नहीं। लेकिन तुम्हारे जल्दबाजी में लिए गए फैसले वे दोनों नहीं समझ पाए। त्रिधा कभी कभी गलत हम सब होते हैं मगर गलत होना और बुरा होना दो अलग बातें हैं।"

त्रिधा हैरानी से बोली - "मगर मैंने तो उन्हें कभी गलत भी नहीं कहा बुरा क्यों कहूंगी? मैं जानती हूं कि ये परिस्थितियां ही गलत हैं।"

हर्षवर्धन ने कहा - "मुझे पता था त्रिधा तुम बहुत समझदार हो और सब कुछ समझती हो मगर तुम्हें समझाना भी मेरा ही तो फर्ज है न!"

त्रिधा मुस्कुराते हुए बोली - "हां मैं समझ गई और सिर्फ इतना ही नहीं इसके अलावा और भी बहुत कुछ समझ गई हूं आज मैं।" त्रिधा की बात सुनकर हर्षवर्धन उससे पूछने लगा - "और क्या समझ गईं तुम?"

त्रिधा कहने लगी - "तुम्हारी बनाई पेंटिंग देखी मैंने... और अब यह मत पूछना कि मैं क्या समझी हूं... तुम भी बहुत अच्छे से समझ गए कि मैं क्या समझी हूं। गुड नाइट।" कहकर त्रिधा ने मुस्कुराते हुए फोन रख दिया।

हर्षवर्धन का कॉल रखते ही त्रिधा के फोन पर प्रभात का कॉल आ गया। त्रिधा ने तुरंत उसका कॉल रिसीव किया।‌ उस तरफ से प्रभात कहने लगा - "क्या कर रही थीं? गर्मियों में ही दोनों स्वेटर पहन कर देख लिए न।"

त्रिधा हंस पड़ी और बोली - "तुम्हें कैसे पता कि मैंने स्वेटर पहन कर देखे ही हैं?"

प्रभात बोला - "बहुत अच्छे से जानता हूं मैं तुम्हें... अति उत्साहित होने की बहुत पुरानी बीमारी है तुम्हें। वैसे भी जब जब तुम बहुत ज्यादा खुश होती हो तो तुम्हारे एक दो स्क्रू गिर जाते हैं।"

त्रिधा मुस्कुरा पड़ी और बोली - "मेरा जन्मदिन इतना खूबसूरत बनाने के लिए तुम्हारा, संध्या और हर्षवर्धन, तीनों का बहुत-बहुत धन्यवाद। आज का दिन में कभी नहीं भूल पाऊंगी मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे दिनों में से एक था यह दिन।"

कुछ देर प्रभात से बात करने के बाद त्रिधा ने कॉल रख दिया और आराम से अपने बिस्तर पर लेट गई। वह समझ चुकी थी कि वर्षा गलत तो है मगर उसे प्रभात और संध्या की जिंदगी से दूर करना इतना आसान नहीं है। उसे इन दोनों की जिंदगी से दूर करने के लिए उसे सामान्य होना ही पड़ेगा। वर्षा वह मधुमक्खी है जो शहद परोस कर सबके बीच रहती है मगर त्रिधा यह बखूबी समझ गई थी कि शहद परोसने वाली मधुमक्खियां बहुत खतरनाक होती हैं और मधुमक्खियों को कभी भी सीधे-सीधे नहीं मारते वरना वे पलटकर काटती ही हैं, मधुमक्खियों को मारने के लिए छल शह और मात की जरूरत है और अब त्रिधा यही करने वाली थी।

अगले दिन त्रिधा सुबह जल्दी ही सो कर उठ गए और नाश्ता करने के बाद जल्दी जल्दी तैयार होने लगी। आज उसे संध्या, प्रभात और हर्षवर्धन सभी से मिलना था। सबसे पहले वह हर्षवर्धन से मिलने जा रही थी फिर संध्या और उसके मम्मी पापा से मिलकर वह प्रभात के घर उसके मम्मी पापा से मिलकर वापस हॉस्टल लौटने वाली थी। त्रिधा ने हर्षवर्धन को पहले ही कॉल कर दिया था, वह उसे लेने आ गया था। कुछ देर बाद दोनों झील के किनारे खड़े थे।

हर्षवर्धन बोला - "तुम झील के इस किनारे का वो किस्सा तो नहीं भूली न त्रिधा?"

त्रिधा हंसते हुए बोली - "वो दिन मैं कभी भूल भी नहीं सकती जब तुमने मेरा मोबाइल झील के पानी को समर्पित कर दिया था।"

हर्षवर्धन मासूमियत से अपने गाल पर हाथ रखते हुए बोला - "मैं भी कभी नहीं भूल सकता त्रिधा उस दिन को। गुस्से में ही सही मुझे पहली बार छुआ था तुमने।"

त्रिधा ने कुछ नहीं कहा बस उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। हर्षवर्धन ने आगे बढ़कर उसके आंसू पोंछे और बोला - "तुम्हें रुलाने का मेरा कोई इरादा नहीं था त्रिधा... सॉरी। मैं बस मजाक कर रहा था। तुम दुखी क्यों होती हो? जिससे प्यार होता है उससे ही तो इंसान नाराजगी जता सकता है न!"

त्रिधा ने हर्षवर्धन के गाल को छूकर कहा - "जिससे प्यार होता है उसे तकलीफ भी नहीं पहुंचाते। तुमने हमेशा मुझे प्यार दिया और मैं तुम्हें सिवाय तकलीफों के कुछ नहीं दे पाई।"

हर्षवर्धन त्रिधा के हाथ को अपने हाथों में लेकर मुस्कुराते हुए बोला - "आज तुमने माना तो सही कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो। इतना मत सोचो त्रिधा, यह तुम्हारी कॉलेज लाइफ है, इसे एंजॉय करो। मेरे साथ तो तुम्हें जीवन भर ही रहना है और तब न जाने कितनी बार मुझे ऐसे ही तोहफे मिलेंगे।" हर्षवर्धन अपने गाल पर वापस हाथ रखकर हंसते हुए बोला फिर आगे कहने लगा - "तब उदास हो जाना मगर अभी से तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है, अभी तो तुम बस अपने करियर और अपने दोस्तों पर ध्यान दो। हर्षवर्धन सिर्फ तुम्हारा था, तुम्हारा है और तुम्हारा ही रहेगा।"

त्रिधा नजरें झुकाए हुए बोली - "मैं तो कब का मान चुकी हूं कि बहुत प्यार है मुझे तुमसे।" हर्षवर्धन ने आगे बढ़कर त्रिधा को गले लगाना चाहा मगर कुछ सोचकर रुक गया तब त्रिधा ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया। कई घंटों तक दोनों ऐसे ही झील के किनारे बैठे रहे। दोपहर में त्रिधा को झील के किनारे बैठना अच्छा लगता था न लोग होते थे और न ही कोई शोर। वह बस सुकून से हर्षवर्धन के साथ ये दिन जी लेना चाहती थी।

कुछ देर बाद हर्षवर्धन ने त्रिधा को संध्या के घर के पास छोड़ दिया और खुद अपने घर चला गया। त्रिधा जैसे ही संध्या के घर गई संध्या का छोटा भाई मयंक त्रिधा से लिपट गया और बोला - "त्रिधा दीदी आप कितने दिनों के बाद आई हो। मैंने संध्या को कितना बोला था कि आपको लेकर आए लेकिन यह तो किसी की बात ही नहीं सुनती है और ना ही मुझे आपसे मिलवाने के लिए लेकर जा रही थी। आपको पता है मुझे आपकी कितनी चिंता हो गई थी। आपको पता है मैन आपको कितना याद करता था लेकिन मम्मी पापा के पास तो टाइम ही नहीं होता, बस संध्या ही है पूरे घर में जो फालतू है और यह भी मुझे आपसे मिलवाने नहीं लेकर गई। मैं आपके लिए चॉकलेट भी लेकर आया हूं और एक गिफ्ट भी लेकर आया हूं आप जल्दी मेरे साथ चलो।"

मयंक की बात सुनकर त्रिधा हंसने लगी और बोली - "मयंक तुम तो बिल्कुल अपनी संध्या दीदी की तरह हो गए हो! कितना बोलने लगे हो।"

त्रिधा की बात सुनकर सब लोग हंसने लगे। संध्या के मम्मी पापा वहीं थे। त्रिधा ने उन दोनों के पैर छुए और फिर उनके गले लग गई। संध्या की मम्मी भी बहुत देर तक त्रिधा के सिर पर प्यार से हाथ फेरती रहीं। वे बोलीं - "वैसे मयंक गलत नहीं कह रहा है बेटा। तू इतने समय से क्यों नहीं आई थी हमसे मिलने?"

त्रिधा संध्या को देख कर बोली - "कुछ खास बात नहीं मम्मा। बस ऐसे ही... वक्त ही नहीं मिल पाया।"

तब संध्या की मम्मी ने त्रिधा के कान मरोड़ते हुए कहा - "अपने परिवार से मिलने के लिए वक्त मिलता नहीं है बेटा, निकाला जाता है। अबकी बार से अगर तू समय से घर नहीं आई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। इस संध्या से तो मैं कह कह कर थक गई थी कि तुझसे बात करवाए मगर इसने कोई बात ही नहीं की। सिर्फ इतना कहती रहती कि उसे किसी से बात नहीं करनी।"

त्रिधा हल्की सी मुस्कुराई और संध्या को देखने के बाद संध्या की मम्मी से बोली - "हां मम्मा बस कॉलेज और पढ़ाई की थोड़ी चिंता थी इसीलिए मूड भी ठीक नहीं रहता था।"

संध्या के पापा ने त्रिधा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - "कोई बात नहीं बेटा। अब तो एग्जाम हो गए हैं अब छुट्टियों में आती रहना चलो आकर खाना खा लो बाकी सभी बातें होती रहेंगी।"

"ओके पॉप्स।" कहकर त्रिधा मुस्कुराती हुई खाना खाने बैठ गई। त्रिधा ने गौर किया संध्या के घर में कुछ भी नहीं बदला था। संध्या के मम्मी पापा आज भी उसे अपनी बेटी की तरह ही प्यार कर रहे थे। मयंक आज भी उसे अपनी बड़ी बहन की तरह सम्मान दे रहा था और उनकी डाइनिंग टेबल पर आज भी त्रिधा की पसंद का ही खाना लगा हुआ था। हां कुछ भी तो नहीं बदला था संध्या के घर में सिवाय संध्या और त्रिधा की दोस्ती के जो अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा समय देख चुकी थी। मगर अब त्रिधा खुश थी उसे पता था उसके दोस्त कहीं नहीं जाएंगे बस उन्हें सही तरह से समझाने भर की जरूरत है।

कुछ देर बाद त्रिधा और संध्या एक बार फिर संध्या के रूम में थे और वे दोनों अपनी पसंदीदा मूवी कुछ कुछ होता है देख रहे थे। मूवी में शाहरुख खान और रानी का रोमांस देखकर संध्या बोली - "कितना अच्छा होता न त्रिधा मैं और प्रभात भी कहीं ऐसे ही डांस कर रहे होते।"

संध्या की बात सुनकर त्रिधा मुस्कुराने लगी और फिर अगले ही पल सपाट लहजे में उससे कहने लगी - "और कुछ सालों बाद तुम मर भी जाती।"

संध्या ने चेहरे पर बिना किसी भाव भंगिमा के त्रिधा की पीठ पर दो तीन मुक्के जड़ दिए और त्रिधा भी संध्या को थप्पड़ मुक्कों से पीटने लगी। बहुत समय बाद ऐसा हो रहा था कि दोनों सहेलियां आपस में इतनी खुश थीं।

शाम होने पर त्रिधा एक एक कर सबसे आज्ञा लेकर प्रभात के घर जाने के लिए निकलने लगी। शाम को प्रभात के घर डिनर करने के बाद वह वापस हॉस्टल जाने वाली थी। संध्या, त्रिधा को घर से बाहर तक छोड़ने आई थी। त्रिधा को जाते देखकर संध्या ने उसे कसकर गले लगा लिया और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोली - "इस एक साल में हमारे बीच बहुत कुछ सही नहीं रहा त्रिधा, हमारी दोस्ती ने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं मगर इन उतार-चढ़ावों के कारण ही हमारी दोस्ती पहले से भी ज्यादा पक्की हो गई है। हम सभी अपने अपने जीवन में एक दूसरे की अहमियत समझने लगे हैं। त्रिधा पुराना जो कुछ हुआ सो हुआ मगर अब मैं सब कुछ बहुत अच्छा कर दूंगी। तुम कभी परेशान मत होना, न मैं तुम्हें कभी छोडूंगी और न ही तुम्हारे प्रभात को कभी तुमसे दूर जाने दूंगी।"

त्रिधा ने भी संध्या को अपने गले से लगा लिया और बोली - "मैं जानती हूं संध्या तुम सब ठीक कर दोगी मगर कहीं बहुत देर न हो जाए… कहीं मैं ही तुम सब से दूर न हो जाऊं!"

त्रिधा की बात सुनकर संध्या बोली - "ऐसे मत कहो त्रिधा। अब कुछ भी गलत नहीं होगा। बस तुम खुश रहो जितनी खुश तुम कल थीं, उतना खुश मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा मैं चाहती हूं तुम्हारी खुशी हमेशा बनी रहे इसके लिए मुझसे जो बन पड़ेगा मैं हमेशा करूंगी।"

त्रिधा संध्या के गले लग गई और बोली - "चलो अब जाने दो देर हो रही है।"

संध्या के घर से त्रिधा जब प्रभात के घर पहुंची तो उस वक्त प्रभात और उसकी मम्मी हॉल में बैठे हुए थे और प्रभात के पापा अपने रूम में थे। प्रभात के पापा बहुत लंबे समय से त्रिधा से मिलना चाहते थे और इस बार उनकी भी छुट्टियां हो गई थी तो वे भी आ गए।

त्रिधा ने प्रभात की मम्मी को इशारे से चुप रहने के लिए कह दिया और पीछे से जाकर प्रभात के कान जोर से ऐंठ दिए। प्रभात समझ गया कि यह त्रिधा ही है और प्रभात पीछे पलटकर अपनी आंखें छोटी करके त्रिधा को घूरने लगा। त्रिधा ने मुंह बिगाड़ दिया और प्रभात की मम्मा के सामने जाकर खड़ी हो गई। प्रभात की मम्मी ने त्रिधा को लाड़ से गले लगा लिया और उन्होंने भी उससे वही शिकायत की जो संध्या की मम्मी ने की थी। प्रभात की मम्मी बोलीं - "बहुत दिनों बाद आई त्रिधा। इतने दिनों से क्यों नहीं आई?"

त्रिधा कहने लगी - "बस थोड़ी परेशान थी मम्मी इसीलिए आना नहीं हुआ।"

प्रभात के पापा तभी आए। त्रिधा को देखते ही वे पहचान गए कि यह त्रिधा ही है। उन्होंने त्रिधा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा - "बहुत प्यारी हो बेटा। प्रभात हमेशा तुम्हारी बहुत तारीफ करता था और इसे तुम्हारी तारीफ सुनने के बाद मैं भी काफी समय से तुमसे मिलना चाहता था। आज तुमसे मिलने के बाद मैं समझ गया कि प्रभात वाकई तुम्हारी झूठी तारीफ नहीं करता। तुम सच में बहुत समझदार दिखती हो"

त्रिधा प्रभात को जीभ दिखाकर चिढ़ाती हुई बोली - "थैंक्स पापा।"

प्रभात वहां आकर बोला - "बस दिखती ही है समझदार, यह है नहीं समझदार पापा।"

कुछ देर बाद त्रिधा ने प्रभात और उसके मम्मी पापा के साथ डिनर किया। आज तो मन ही मन उसे सिलेब्रिटी वाला फील आ रहा था। सब उससे कितने प्यार से बातें कर रहे थे और सबके साथ बैठकर खाना खाना उसे ऐसा लग रहा था जैसे बरसों बाद परिवार मिला हो। और वाकई पिछले एक साल में वह बिलकुल ही भूल गई थी किसंध्या और प्रभात के पैरेंट्स उसे कितना प्यार करते हैं। वह तो बस प्रभात और संध्या को खो देने के डर से ही बिना सोचे समझे कुछ भी किए जा रही थी। आज त्रिधा को समझ आया कि अगर उनकी दोस्ती टूटती तो संध्या और प्रभात के पैरेंट्स के दिल भी टूटते जिन्होंने त्रिधा को अपनी बेटी मान लिया था।

प्रभात के घर त्रिधा ज्यादा देर तक नहीं रुक सकती थी क्योंकि आठ बजते ही उसका हॉस्टल बंद हो जाता था और उससे पहले ही उसे हॉस्टल पहुंचना होता था। त्रिधा जब सबसे मिलकर जाने लगी तो उसने प्रभात के मम्मी पापा के चेहरे पर एक उदासी देखी। त्रिधा समझती थी उन्हें एक बेटी की कमी खलती थी जो त्रिधा ने पूरी कर दी थी। आज उसे अहसास हुआ कि संध्या और प्रभात से अपनी नाराजगी के चलते उसने मम्मी पापा (प्रभात के पैरेंट्स) और मम्मा पॉप्स (संध्या के पैरेंट्स) को कितना दुख दिया था। उनका कितनी बार उससे बात करने का मन हुआ होगा मगर उसने किसी से मिलना तो क्या बात करना तक जरूरी नहीं समझा। अपने दोस्तों से अपनी नाराजगी रखते रखते बड़ों का स्नेह भूल गई थी वह।

कुछ देर बाद त्रिधा सबसे मिलकर, बाय बोलकर अपने हॉस्टल के लिए जाने लगी। बाहर अंधेरा हो गया था। प्रभात उसे छोड़ने बाहर तक आया तब बाहर फैले अंधेरे को देखकर उससे बोला - "देर हो गई है त्रिधा, चलो तुम्हें मैं छोड़ आता हूं।"

त्रिधा मुस्कुराते हुए प्रभात के गले लग गई और बोली - "नहीं प्रभात मैं चली जाऊंगी। तुम परेशान मत हो वैसे भी हॉस्टल अगली ही गली में है। प्रभात अपना और सबका ध्यान रखना। और सुनो... मेरे सबसे अच्छे दोस्त बनने के लिए थैंक्स और सुनो... ऐसे ही अकडू खडूस रहना हमेशा और सुनो सुनो... संध्या के पागलपन को झेलना सीखो अब।"

प्रभात मुस्कुरा दिया और त्रिधा के सिर पर हाथ रख कर बोला - "मेरी सबसे अच्छी दोस्त बनने के लिए तुम्हारा शुक्रिया त्रिधा।"

त्रिधा प्रभात बाय कहकर निकल गई। बाहर रोड पर काफी अंधेरा था, रोड लाइट्स काम नहीं कर रही थी शायद। त्रिधा थोड़ी ही आगे चली थी और सोच रही थी कि प्रभात को साथ ले ही आना चाहिए था। त्रिधा कुछ ही कदम चली होगी और अचानक उसे अपने ठीक पीछे एकदम पीली लाइट्स जलती हुई महसूस हुईं और अगले ही क्षण….


क्रमशः

आयुषी सिंह