Nainam Chhindati Shasrani - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 24

24

गाड़ी में सहज मौन पसरा रहा और लगभग दस मिनट पश्चात गाड़ी अलीराजपुर के ‘बैस्ट’ होटल के सामने जाकर रुक गई | अँधकार में आँखें गड़ाने पर समझ में आया कि होटल किसी बाज़ार में स्थित था | दो-एक चाय व पैन की दुकानें अभी खुली थीं जहाँ आदिवासी युवा लड़के मदिरा की झौंक में, बीड़ियों से वातावरण को प्रदूषित करते हुए ‘ही—ही, हो-हो’कर रहे थे | रेडियो पर सन्नाटे को चीरता हुआ ‘आजा सनम, मधुर चाँदनी में हम–तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार‘ बज रहा था | 

होटल पर भी एक छोटा सा बल्ब टिमटिमा रहा था जो होटल के साइनबोर्ड पर लटक रहा था, उसे भी न जाने कहाँ से तार निकालकर लटकाया गया था | होटल का नाम ही ‘बैस्ट’ था जिसका ज़िक्र दामले बार-बार करते थे परंतु बल्ब की बेचारी सी रोशनी में कुछ भी लिखा हुआ दिखाई नहीं दे रहा था, केवल ऊपर बोर्ड है, उसका आभास भर था | शेष सब दुकानों के शटर गिरे हुए थे | 

होटल का सिंहद्वार यानि मेन –गेट एक आम छोटे से घर के दरवाज़े जैसा था | अगर दामले न बताते तो वहाँ पर होटल कि संभावना का पता लगाना कठिन था | होटल जैसे तो कोई आसार ही नज़र नहीं आ रहे थे | दामले ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खटखटाया परंतु उसकी आवाज़ वातावरण में बिखरकर रह गई | कोई उत्तर न मिलने पर उन्होंने दुबारा खटखट किया | दो-एक मिनट बाद अंदर से उनींदी सी आवाज़ आई | 

“कौन --?”

फिर किसीकी पदचाप दरवाज़े के पास आई और ‘खट्ट’ से कुंडी खोलने की आवाज़ सुनाई दी | दरवाज़ा खुलने पर एक साँवला सा आदमी नमूदार हुआ जिसकी उम्र लगभग कोई 40/45 के बीच की होगी | 

“हो—साब –“उसने आँखें मलते हुआ कहा | 

“क्या सो गए महेश ?अमदाबाद से दामले दादा –“

“हो—हो—साब –आप --! आओ—आओ –“

दामले के पीछे-पीछे पूरा काफ़िला उस तथाकथित ‘बैस्ट’ होटल के सिंहद्वार में प्रवेश कर गया | 

वहाँ एक पतली लॉबी जैसी थी जिसके बीचोंबीच एक छोटा सा काउंटर था, उसी के एक ओर सीढ़ियाँ थीं जो ऊपर की ओर जा रही थीं | काउंटर पर एक काले रंग का टेलीफ़ोन भी विराजमान था जिस पर ताला जड़ा था | दामले ने महेश को ताला खोलने की आज्ञा दी और दोनों स्त्रियों को अपने परिवार को अपने सुरक्षित पहुँचने की सूचना देने की सुविधा मिल गई| 

निवास के लिए कमरे ऊपर थे | समिधा व पुण्या को एक कमरा मिला | सारे रास्ते दामले जिस बैस्ट होटल का राग अलापते आए थे उसी की ऊपर की मंज़िल में पहुँचकर समिधा तथा पुण्या को उबकाई आने लगी | बताया गया था ‘अटैच्ड बाथरूम्स’हैं | ऊपर गलियारे में पंक्ति से कमरे बने हुए थे| होटल के ‘केयरटेकर’ महेश ने जैसे ही कमरा खोला दोनों स्त्रियाँ एक बदबूदार भभके से दो कदम पीछे की ओर हट गईं | 

“पता नहीं, इस बार यहाँ क्यों आए हैं ? पिछली बार अच्छा–ख़ासा एक घर था, महीना भर रहकर गए थे | कोई परेशानी नहीं, सब साफ़-सुथरा ---!”

कमरे को देखकर पुण्या का मूड बहुत ख़राब था, वह बड़बड़ करती जा रही थी | अचानक पीछे से दामले की आवाज़ सुनाई दी –

“अब क्या करें मैडम ---वो पहले वाला ‘सूट’ नहीं मिल पाया ---“दामले ने कुछ अपराधी-भाव से कहा | 

“क्या मि. दामले, ऐसे एट्मास्फ़ीयर में काम होता है कहीं –“ वह भुनभुनाती रही | 

समिधा भी बैचेनी महसूस कर रही थी, कोई रास्ता तो था नहीं, रहना तो वहीं था | उसने दामले से कहा कि वे उन्हें कम से कम अगरबत्ती के कुछ पैकेट्स तो मँगवा दें | 

दामले जी ने सीढ़ियों के पास जाकर आवाज़ लगाई और महेश को अगरबत्ती लाने का आदेश दिया | पाँच मिनट में समिधा के हाथ में अगरबत्तियों के कुछ पैकेट्स और माचिस थमा दी गई | उसने कमरे के बाहर ही खड़े होकर चार-पाँच अगरबत्तियाँ जला लीं और उन्हें चारों ओर घुमाते हुए कमरे में प्रवेश किया | 

अंदर का और भी बुरा हाल था | कहने को चादरें और तकिए के गिलाफ़ धुले हुए थे लेकिन उनकी चिकटी, बदबूदार दुर्गंध पूरे कमरे में पसरी हुई थी | उस तथाकथित ‘डबल बैड‘ के सामने दीवार से लगी हुई लकड़ी की दो कुर्सियाँ भी सजी हुई थीं | समिधा ने दीवारों और दरवाज़े के छेदों में अगरबत्तियाँ लगा दीं | महेश दोनों के ट्रॉली बैग्स कमरे में सरका गया था | 

“अच्छा मैडम, गुड नाइट –मिलते हैं सुबह को –“ डायरेक्टर साहब भी थके हुए थे | 

क्या गुड और क्या नाइट—वे दोनों चुपचाप दामले को जाते हुए देखती रहीं, मुँह पर अपने दुप्पट्टे कसकर लपेटे हुए | इस प्रकार पूरी रात बैठना संभव नहीं था | समिधा अपने पास नींद की गोलियाँ रखती थी | उसने खुद भी खाई और पुण्या को भी दी | वह घर से लाई हुई श्वेत धवल, बेदाग चादर बिछाने को तत्पर हुई ही थी कि पुण्या चिल्लाई –

“नहीं दी—दी---“पुण्या की आवाज़ से वह चौंक गई | 

“अरे! इसमें भी बदबू आ जाएगी ---“

हाँ, यह तो उसने सोचा ही नहीं था | उसने झट से अपने हाथों को वहीं थाम लिया और अपनी साफ़-शफ़्फाक चादर अपने हाथों में समेट ली | उस रात दोनों ही नींद की गोलियाँ खाकर कुर्सी पर बैठी टूलती रहीं, बिस्तर पर लेटने का साहस न कर सकीं | दोनों कुर्सी पर गर्दन और पैरों को पलंग की पट्टी के किनारों पर टिकाकर न जाने वे दोनों कौनसी मुद्रा में झौंके खातीं रहीं | किसी न किसी प्रकार रात्रि व्यतीत हुई | समिधा ने आँखें मिचमिचाकर देखा, खिड़की में से झुटपुटा झाँक रहा था | चुपचाप उसने मुँह पर ढीले हो गए कपड़े को कसा और आँखों के अलावा पूरे चेहरे को लपेटकर सो कौल्ड अटैच्ड बाथरूम में घुस गई | दो मिनट बाद ही बाहर कमरे में आकर उसने एक साँस ली और बुरा सा मुँह बनाया | जल्दी से ब्रश पर पेस्ट लगाकर उसने धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला और कमरे से बाहर आ गई | 

इस समय लॉबी में भी रात की अपेक्षाकृत झुटपुटे में चीज़ें अधिक साफ़ दिखाई दे रही थीं | रात को पूरी लॉबी में बत्तियाँ जली हुईं थीं पर गहरे गुलाबी रंग से पुती दीवारों में सब कुछ इतना धुंधलका था मानो धुंध सी छाई हुई हो | इस समय दीवारें साफ़ दिखाई देने लगीं थीं और उन पर पुता भड़कीला गुलाबी रंग भी | लॉबी की दीवारों पर तंबाकू की पीकें ऊपर से नीचे डिज़ाइन बना रही थीं | इसी लॉबी में एक ही ओर मुँह किए हुए कई दरवाज़े बने हुए थे जो भीतर से बंद थे | एक वॉशबेसिन भी सजा हुआ था जो कभी सफ़ेद रहा होगा अब पीला हो गया था | समिधा ब्रश करती हुई कुल्ला करने वॉश-बेसिन की ओर बढ़ी और वहाँ पहुँचते ही पीक, बीड़ी, व माचिस की तिल्लियों से उसे अटा पाया | पेस्ट के साथ ही उसे उबकाई आई और वह वहाँ से फिर कमरे की ओर भागी | 

पुण्या अभी तक गर्दन लटकाए कुर्सी पर पसरी हुई थी | संभवत: उस पर अभी तक नींद की गोली का असर था | अब तक कुछ और उजास कमरे में भरने लगा था | समिधा को सबसे पहले कुल्ला करना था –पर –कहाँ ?

अचानक उसे सामने वाली खिड़की का ख़्याल आया | रात में तो यहाँ का भी भूगोल समझ में नहीं आया था, अब कुछ चीज़ें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं | वह खिड़की की ओर भागी, पेस्ट का झाग उसके मुँह में बुरी तरह भर गया था और उसे बुरी तरह उबकाई आ रही थी | खिड़की में से नीचे झाँककर देखने पर उसे नीचे कोई दिखाई नहीं दिया, उसने फटाफट अपने वॉटर-बैग में से मुँह में पानी भरकर दो-तीन बार नीचे कुल्ला कर दिया और राहत की साँस लेने का प्रयास किया | 

अचानक नीचे से हो—हो—की बहुत तेज़ी से चिल्ला’ने की आवाज़ सुनाई दी | समिधा ने घबराकर खिड़की में से झाँककर मुँह पीछे खींच लिया | संभवत: कमरे के नीचे ‘वैदर-शेड’ में कोई सो रहा था | ऊपर से दिखाई न देने के कारण उसे पता नहीं चला कि नीचे कोई हो सकता है | 

‘एक और मुसीबत !’वह बुदबुदाई और उसने पुण्या को झकझोर दिया जो गहरी नींद में थी | 

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