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अब लगभग शाम के सात बज रहे थे | सूर्यदेव थके-माँदे अपने निवास की ओर प्रस्थान करने के लिए कदम बढ़ा चुके थे | कहीं कहीं उनके अवशेष दिखाई दे रहे थे, गोधूलि का झुटपुटा वातावरण में पसरने लगा था | लगभग दसेक मिनट में ही झाबुआ का विस्तार पाकर गाड़ी किसी दूसरी दिशा की ओर मुड़ गई | सब चुप थे और वातावरण के अंधकार में घिरते हुए उस अंधकार को अपनी-अपनी दृष्टि से नापने का प्रयत्न कर रहे थे | अपने-अपने विचार, अपनी-अपनी सोच ! गाड़ी में बैठे हुए मुसाफ़िर कई---जिनकी मंज़िल एक –चिंतन भिन्न !
एक मोड़ के पश्चात सड़क पर और भी गाड़ियाँ नमूदार हो गईं | शायद उन गाड़ियों को देखकर सबके चेहरे पर पसरी चिंता व दुविधा की लकीरें कुछ कम हुईं होंगी | अब तक अँधेरा पसर चुका था गाड़ी के अंदर और बाहर दोनों जगह अँधेरा ! कहीं-कहीं दूर-दूर पर सड़क पर खड़े खंबों पर जुगनू सी रोशनी टिमटिमा रही थी जिनके होने न होने का कोई विशेष अर्थ न था | लगभग डेढ़ घंटे से गाड़ी बिना रुके चलती जा रही थी और सब इस बेचैनी और प्रतीक्षा में थे कि कब अलीराजपुर पहुँच सकेंगे !अभी गंतव्य पत पहुँचने में लगभग और दो घंटे लगने बाकी थे |
कभी-कभी कैसा हो जाता है न मन !इधर-उधर की गफ़लतों में कैद !जो अभी घटित न हुआ हो उसके घटने की कल्पना मात्र करके, व्यर्थ ही भयभीत होना संभवत: मन की एक ऐसी स्थिति है जिसे वह किसी अनहोनी आशंका में पहले से ही ओढ़ लेता है | चुप्पी के पसर जाने से केवल साँसें ही जीवन का प्रमाण थीं ---और हाँ, गाड़ी के चलने की आवाज़ भी !सभी अपने-अपने विचारों में कैद न जाने कब उस ‘चैक-पोस्ट’पर पहुँच गए जहाँ से पुलिस की छत्रछाया में अलीराजपुर तक का सफ़र तय करना था |
घर्र घर्र करती हुई गाड़ी जहाँ रुकी वहाँ घुप्प अँधेरा पसरा हुआ था | पीछे-पीछे दूसरी गाड़ी भी आ लगी थी | समिधा तथा अन्य सभी बाहर का जायज़ा लेने की कोशिश कर रहे थे | पाँचेक मिनट की शांति के बाद कुछ और भी गाड़ियों ने जुड़ना शुरु कर दिया और उनकी कतार लंबी होने लगी थी| यह पीछे से आती हुई गाड़ियों की ‘सिग्नल –लाइट्स’से पता चल रहा था जो नियोन-साइन सी जल-बुझ रही थीं | अन्यथा वहाँ पुलिस की प्रतीक्षा में खड़ी सभी गाड़ियों के काँच बंद थे और अंदर से ही अटकलें लगाने की कोशिश कर रही थी समिधा !
समिधा और प्रसून ही पहली बार यहाँ आए थे | पुण्या ने भी बताया था कि वह भी अलीराजपुर में लगभग एक माह की शूटिंग कर चुकी थी अत: वह वहाँ के वातावरण व स्थितियों से पूर्व परिचित थी | दामले और बंसी तो आते-जाते ही रहते थे| उसे न जाने क्यों लगा कि उन सबमें वही सबसे अधिक भयभीत थी | यहीं से पुलिस ‘एस्कॉट’में सभी गाड़ियाँ गंतव्य की ओर चलनी थीं | दिन में पुलिस केवल गश्त लगाती थी परंतु रात में अलीराजपुर की ओर जाने वाली गाड़ियों को पुलिस की सशस्त्र ‘एस्कॉट’ दी जाती थी |
अब सब लोग पुलिस-स्टेशन कहे जाने वाले उस स्थान पर आ चुके थे और इस समय समिधा का मन पुलिस-स्टेशन की दयनीय अवस्था पर अकुला रहा था | समिधा जिस गाड़ी में थी, वह सबसे आगे थी अत: जायज़े के लिए उसका रास्ता पूरा साफ़ था | वह अंधकार में आँखें फाड़कर देख रही थी पर उसे कोई भी आकृति स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही थी |
अंधकार में घूरकर देखने पर उसे दो खंबे से दिखाई दिए | उसे समझ में नहीं आया आख़िर ये दो खंबे यहाँ पर क्यों होंगे?उनकी गाड़ियों के पीछे की लाइट्स जल-बुझ रही थीं | कुछ मिनटों में ही एक बड़ा सा ट्रक घर्र घर्र करता वहाँ आया जिसकी रोशनी उन खंबों पर पड़ी |
‘ओह!’उसके मुख से निकला और अचानक ही चेहरे पर मुस्कुराहट फ़ेल गई | दरअसल, उसका मन बुक्का फाड़कर हँसने को हो आया | वह उस पुलिस-स्टेशन का गेट था और उसके दोनों ओर दो खंबे नहीं, दो मरियल से सिपाही खड़े थे जो बामुश्किल बंदूक संभाले हिलते-डुलते से नज़र आ रहे थे | बंदूकों का भार उनको जमकर खड़ा नहीं होने दे रहा था | दूर कहीं शायद बरामदे में दो बड़े जुगनू से या रोशनी की छोटी-छोटी गेंदें इधर से उधर हिल-डुल रही थीं जैसे कोई एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर छोटी-छोटी गेंदें फेंक रहा हो और दूसरी ओर से फिर गेंद वापिस आ रही हो|
यह खेल लगातार चल रहा था, अब समिधा की पुतलियाँ उन रोशनी की गेंदों के साथ इधर से उधर डोलने लगी थीं | अचानक उसे यह एक मनोरंजन सा खेल लगने लगा | वह इधर-से उधर डोलती उन रोशनी की गेंदों के साथ अपनी पुतलियाँ घुमाने लगी| वास्तव में वे पुलिस-स्टेशन के भीतरी भाग में लंबे तार से लटकते हुए दो बहुत कम वॉट के बल्ब थे, शायद ज़ीरो वॉट के ! जिनकी लंबी डोरी हवा के साथ इधर से उधर डोल रही थी और सारे वातावरण में अंधकार होने के कारण बल्बों से बंधी तार अँधेरे का हिस्सा बनकर रह गईं थीं |
काफ़ी देर तक समिधा इस मद्धम सी डोलती रोशनी के खेल का आनंद लेती रही | फिर अचानक उसके इस खेल में किसीने बाधा डाल दी| यह उसी ट्रक के ड्राइवर की खुरदुरी आवाज़ थी जिसकी रोशनी से अंधकार में हल्का सा उजाला फैला था और उसे पता चला था कि पुलिस-स्टेशन के बाहर दो खंबे न होकर बंदूकधारी पुलिस वाले थे |
बीस-पच्चीस मिनट खड़े होने के बाद ट्रक का हृष्ट-पुष्ठ सरदार ड्राइवर जो बहुत खीज चुका था, अपने ट्रक से नीचे उतरा| अब तक शेष गाड़ियों के हॉर्न भी धीरे-धीरे शोर मचाने लगे थे | सन्नाटे को तोड़ती गाड़ियों की आवाज़ें वातावरण को पीं-पीं से भरने लगीं थीं | ट्रक की हैडलाइट्स खुली छोड़कर ड्राइवर लुंगी संभालते हुए अपने ट्रक से नीचे उतरा| वह अपनी आधी खुली पगड़ी को फिर से कसते हुए गेट की ओर बढ़ा और वहाँ रुककर अपनी ज़ोरदार आवाज़ में बोला –
“ओए –थानेदार साब !कदी आएगा आपका एस्कॉट ?”
रौबीली आवाज़ सुनकर गेट पर खड़े एक सिपाही के मुँह से धीमी सी आवाज़ निकली –
“अब्बी आएगा साब –
उसके साथी ने अपने हाथ में पकड़ी टॉर्च लंबे-तगड़े बंदे के मुख पर फेंककर उसे नीचे तक धीमी रोशनी से नहला दिया था| “ओय—टारच दिखाता है हमको---स्ंतोखे को टारच दिखाता है ?”
कहते हुए लंबा-तड़ंगा ड्राइवर उसकी ओर बढ़ा |
“अब देख लिया --?साले, अब हमें जाने दो –सारा टैम बेस्ट करके रख दित्ता ए –कहाँ है त्वाड़ा साब –चलो हम बात करते हैं –नईं चाइदा एस्काट—बेसकाट !साली सारी रात बेस्ट करके रख दित्ती ---“
उसने अपनी अंटी में से एक बॉटल निकालकर मुँह में लगा ली, कुछ घूँट गटकने के बाद उस बॉटल को अँधेरे की ओर उछा ल दिया और बोला –
“ओये –लेके चल अपने साब के पास --| ”
मरियल सिपाही का भाग्य अच्छा था कि तभी अचानक अँधेरे को चीरती हुई ‘एस्कॉट –वैन’ की घर्र –घर्र सुनाई दी |
“आ गई –सा—ब –“
दोनों सिपाही एक साथ बोल उठे, शायद उन्होंने एक लंबी साँस भी ली होगी, समिधा ने सोचा | क्षण भर में ड्राइवर ने एक सिपाही की पीठ पर एक धौल ड़े मारी | सिपाही बेचारा लड़खड़ाया फिर संभलने का प्रयास करने लगा | अँधेरे और सन्नाटे के बीच पहलवान ड्राइवर की धौल की आवाज़ पूरे वातावरण को थर्रा गई | डेढ़ पसली का सिपाही बेचारा ‘हो—हो’करता रह गया | ट्रक-ड्राइवर लुंगी संभालता अपने ट्रक की ओर चल दिया | उसके लिए यह कुछ विशेष नहीं था | वह बड़े आराम से अपने ट्रक में चढ़कर आगे की गाड़ियों के चलने की प्रतीक्षा में एलर्ट होकर बैठ गया और गला फाड़कर कोई पंजाबी टप्पा गाने लगा |
‘सिपाही ज़रूर सूखे पत्ते सा खड़खड़ा रहा होगा –“
समिधा ने अँधेरे में सिपाही कि स्थिति को समझने का प्रयास करते हुए कहा | गाड़ी में बैठे हुए सभी लोग जो घबराए हुए थे, यकायक खुलकर हँस पड़े |
“ड्राइवर टाइम-पास कर रहा था मैडम, अपने लंबे-चौड़े डीलडौल का फ़ायदा उठा लिया उसने !”दामले बोल उठे |
“हाँ।पर बेचारा सिपाही !उसकी तो हालत खराब कर दी सरदार जी ने !”पुण्या ने कहा |
“दुनिया ऐसे ही चलती है मैडम ---!” दामले जी दार्शनिक में तब्दील हो गए थे |
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