नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 19 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 19

19

“ज़िंदगी केवल वहीं नहीं होती जहाँ तुम रहती हो, ज़िंदगी तुम्हारे दायरे से निकलकर चारों तरफ फैली हुई है और सबको अलग-अलग सबक सिखाती-पढ़ाती रहती है ! मैंने तुम्हें पहले भी कितनी बार समझाया है, जिंदगी है, इसे जीना सीखो | वो बेचारा तुम्हारा शरीफ़ पति तुम्हारी चिंता में आधा हुआ जा रहा है | अब हम अगर ज़रा ज़रा सी बातों पर मस्ती छोड़ दें तो बस, जी लिए !मैं जीता-जागता उदाहरण हूँ तुम्हारे सामने, इतनी परेशानियाँ झेलकर भी किसीके सामने रोता हूँ क्या?” झाबुआ से लौटने के बाद जब समिधा ने सारांश तथा सान्याल से झाबुआ के बारे में चर्चा की थी तब उसकी बात पर गौर न करके सान्याल उसे ही उल्टे यह सब कहने लगे | 

समिधा के ये मित्र अपनी युवावस्था में ही अनेकों मानसिक व शारीरिक परेशानियों से टूटने की सीमा तक जूझे थे, अपना सब कुछ ही गवाँ चुके थे वे, रिश्ते भी –परंतु जीवन से जूझना नहीं छोड़ा था उन्होंने और हर साँस को मुस्कुराते हुए एक

नियामत की भाँति स्वीकार किया था ---पर, वह कौनसा किसीके सामने रो रही है ?

मानवीय संवेदनाएँ हैं, उनसे निर्लिप्त कैसे रहा जा सकता है ? भावनाएँ व संवेदनाएँ ही न हों तो ज़िंदगी है क्या?पाँच तत्वों का निर्जीव खिलौना ---इससे अधिक कुछ नहीं !जब ज़िंदगी मिली है तो मानवीय संवेदनाओं को नकारा तो नहीं जा सकता न !ज़िंदगी को जीने के लिए सारी संवेदनाओं की ज़रूरत होती है | 

“मैं भी तो यही कहता हूँ ---तुम इस तरह से ज़रा सी बात पर परेशान होने लगीं तो कर लिया काम !इससे तो छोड़ो इसे, तुम यह सब पचा नहीं पाओगी –‘सारांश भी बीच में टपक पड़े | 

‘किसी की जान चली जाना –ज़रा सी बात तो है नहीं ?”उसे अपने उन मित्र की बात पर क्षोभ हुआ था | उन्होंने तो कितने अपनों को बेवक्त ही खो दिया था, वे जानते, समझते थे –खोना किसे कहते हैं –फिर भी ?’

‘और ---सारांश तो पहले से ही भाँजी मरने पर तुले हुए हैं ‘ समिधा ने सोचा और दोनों से नाराज़ हो गई | 

सारांश ने पहले भी कई बार उसके मस्तिष्क की सफ़ाई करने का प्रयास किया था | अपने से जुड़े हुए अपने स्नेहियों की सोच अपने स्थान पर ठीक हो सकती है पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि भावनाओं व संवेदनाओं की पोटली बनाकर फेंक दी जाए !उसे लगता, आदमी के ज़िंदा रहने की परिभाषा ही बदल गई है !

समिधा को पति का यह कहना बिलकुल अच्छा नहीं लगा था ;

“छोड़ो काम---“

‘क्या मतलब हुआ भला’!--वह सारांश से कुछ अधिक ही नाराज़ हो गई और उसने पति की चुनौती को स्वीकार कर लिया था | 

“तुम नहीं पचा पाओगी –“इसका क्या मतलब हुआ भला ! सारांश स्वयं कितने भावुक थे !क्या वे नहीं जानते थे ?और उनके मन में जो गुत्थी उलझ रही थी वह क्या उनकी भावुकता का हिस्सा नहीं थी?

इस धारावाहिक के लिए समिधा का लेखन काफ़ी पहले शुरू हो चुका था, कुछ शूट भी हो चुके थे | समिधा ने एक एपिसोड में वकील की कहानी को प्रस्तुत किया था, तब कहीं जाकर उसका मन कुछ शांत हो पाया था | 

एक शिक्षित पुरुष अपनी खूबसूरत, शिक्षित, संस्कारी पत्नी के साथ कैसे इस प्रकार का व्यवहार कर सकता है ?यह प्रश्न उसके मनो-मस्तिष्क को मथता रहा था | आज हम स्त्री-पुरुष में बराबरी का दावा करते हैं, क्या यह वास्तविकता है ?वैसे तो समय के नाज़ुक मोड़ सभी को कभी न कभी तिराहे-चौराहे पर ला खड़ा करते हैं | सामाजिक कार्यों से जुड़े रहने के कारण न जाने कितनी बार समिधा ने ऐसी विषम स्थितियों का सामना किया है, कभी पुरुषों का असमान्य व्यवहार तो कभी स्त्रियों का !

कामना की कथा जानकर उसे बहुत कष्ट हुआ, इस प्रकार किसी पति के द्वारा पत्नी को ‘यूज़’करना एक पत्नी के लिए शर्मनाक था !उसे लगा वकील ने अपने घर में दो कठपुतलियाँ पल रखी हैं जिनकी डोर उसके दोनों हाथों की ऊंगलियों में फँसी है, जब चाहे जिस ऊँगली की डोर खींच दे| ऐसे मालिक बने वकील के गाल पर दो करारे तमाचे रसीद करने का मन हो आया था समिधा का !वह वकील किसी आदिवासी बंदे के नाम पर एलाट की गई सरकारी ज़मीन पर क्या शानदार कोठी बनाए ऐंठ दिखा रहा था | सरकार के द्वारा एलाट की गईं ऐसे ही जाने कितने लोगों की ज़मीन पर वहाँ के तथाकथित अमीर अवसरवादी लोग अंगद के समान पैर जमाए बैठे थे | कमोबेश उनका चरित्र कामना के पति के समान ही था | 

मि. दामले ने कई बार वकील के बारे मेन जिज्ञासा प्रगट की पर समिधा इस बारे में उन्हें कोई स्पष्टता देना नहीं चाहती थी | आवश्यक तो नहीं कि हर बात ही उघाड़कर सबसे बाँटी ही जाए ! एक लेखिका के रूप में उसकी अपनी सोच तथा स्वतंत्र चिंतन था | वैसे उसे शक था कि कामले के कानों में इस बात की भनक अवश्य पड़ी होगी | वे ‘शोध टीम ‘को लेकर कई महीनों से उस इलाक़े में घूम रहे थे | उनका स्वभाव था सामने वाले के मुख से बात सुनकर उस पर अपनी टिप्पणी ठोकने का !

“मि. दामले, कहानी में कल्पना नहीं होती है क्या ? क्या केवल वास्तविकता पर ही सारी फ़िल्में बनती हैं ?ठीक है, हमारा केंद्र क्षेत्र की वास्तविक स्थिति को उजागर करने तथा वहाँ के निवासियों में जागृति उत्पन्न करने पर भी न जाने हम कितनी बातें कल्पना करके ही प्रस्तुत कर रहे हैं, आप भी जानते हैं दर्शकों को चटपटी बातें देखने में खूब आनंद आता है | ”

समिधा के यह उत्तर सुनने के पश्चात दामले ने कुछ नहीं पूछा, उनके अनुसार घटना चटपटी थी और उन्हें उसे प्रस्तुत करने के लिए सहमत होना ही था | अत: जिज्ञासावश एक-दो बार पूछकर वे चुप हो गए | 

मि.दामले आदिवासी प्रदेश की धूप-छाँह सी ज़िंदगी के तमाम पहलू अपनी कला पर आज़माना चाहते थे, चाहते थे कि एक सही व स्तरीय सीरियल से उन्हें वाहवाही प्राप्त हो सके | परिश्रमी मनुष्य का काम उसके लिए पूजा, अर्चना होता है | जिसमें वह स्वयं तो डूबा रहता ही है अपने साथ जुड़े हुए और लोगों को भी ज़बरदस्ती इस पूजा में सम्मिलित किए रहता है | चाहे कोई दूसरा इतनी तल्लीनता से लग पाए या नहीं, वह पूजा –कार्य के घेरे से निकलकर कहीं नहीं जा सकता | दिन-रात की चिंता न करके वे अपने साथियों के साथ काम में जुटे रहे| परिश्रम का परिणाम अच्छा ही होता है| दामले अपने काम से काफ़ी संतुष्ट थे पर कहीं न कहीं उन्हें अब भी कुछ कमियाँ खटक रही थीं | इसीलिए सबको पुन: अब अपने साथ झाबुआ के महत्वपूर्ण इलाक़ों में घसीटना चाहते थे | 

“मैडम ! बस—अब एक सप्ताह में पूरा शूट करके ले आएँगे | ”

“पर –मि. दामले अब मेरे आने की कोई ज़रूरत नहीं है | ”

“अरे ! नहीं मैडम, आपको तो आना ही होगा ---ख़तम जो करना है काम | जब तक आप लिखकर नहीं देंगी –हम क्या कर लेंगे ?”

दामले ने उसका दिमाग चाट डाला | 

“मैं तो आपको दे चुकी हूँ—और अब आपके झाबुआ से मेरा इतना परिचय हो गया है कि वहाँ की हवा खिड़की से गुज़रकर मेरे कमरे में आने लगी है | आपको जो चाहिए मैं वो सारे संवाद आपको यहीं लिखकर दे दूँगी | ”

“अरे मैडम ! अभी आपने सारी वास्तविक स्थिति देखी ही कहाँ है? इस बार बस—मैं वहीं शूट करने वाला हूँ| आपके साथ पुण्या प्रधान भी आने वाली हैं, आप वहीं संवाद लिखकर देंगी और हम पुण्या जी के साथ वहीं शूट कर लेंगे | यहाँ बस –एडिटिंग रह जाएगी | बस, वहीं सब काम पूरा हो जाएगा | ”

समिधा ने दामले को समझाने की बहुत चेष्टा की, उसके कई काम बीच में पड़े थे पर मि. दामले पर उसके मना करने का कोई असर नहीं हुआ | जब उसे मना नहीं पाए तो सारांश के पास पहुँच गए | सारांश इसमें क्या करते ?दामले सारांश के पीछे हाथ धोकर ही पड़ गए थे | 

“सर, प्लीज़ मना लीजिए मैडम को –मेरा काम बिलकुल एडिटिंग पर है सर !मैडम आपकी बात मानेंगी न !ज़रा आप मेरी तरफ से ‘रिक्वेस्ट’कर लीजिए –प्लीज़ सर--| ”