अनोखा जुर्म - भाग-8 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनोखा जुर्म - भाग-8

फायरिंग

गेट से अंदर पहुंचते ही सार्जेंट सलीम ठिठक कर रुक गया। अंदर एक लाश रखी हुई थी। वहां तमाम लोग बैठे हुए थे। कुछ महिलाएं जारो कतार रो रहीं थीं। एक बच्चा एक महिला से चिमटा हुआ खड़ा था। यह मंजर देख कर सार्जेंट सलीम उदास हो गया।

कई लोग उस की तरफ देखने लगे थे। सलीम एक खाली कुर्सी पर जा कर बैठ गया। कुछ देर वह यूं ही शांत बैठा वहां मौजूद लोगों का जायजा लेने लगा। इस के बाद वह उठ कर एक आदमी के पास जा कर खड़ा हो गया। उस आदमी ने सलीम की तरफ नजरें उठा कर देखा। सलीम ने उससे कहा, “मैं पुलिस विभाग से हूं। आप से कुछ देर बात कर सकता हूं?”

वह आदमी उठ कर खड़ा हो गया। सलीम ने उस से धीमी आवाज में कहा, “यहां बात करना उचित नहीं होगा। अगर आप को दिक्कत न हो तो हम गेट के बाहर तक चलते हैं।”

“आइए।” उस आदमी ने कहा।

इसके बाद वह आदमी और सार्जेंट सलीम गेट से बाहर आ गए। कुछ दूर पर पाकड़ के एक पेड़ के नीचे दोनों जा कर खड़े हो गए।

सार्जेंट सलीम ने भूमिका बनाते हुए कहा, “इस वक्त ऐसी बातों का मौका तो नहीं है, लेकिन हमारी भी मजबूरी है।”

“आप जो पूछना चाहते हैं पूछ सकते हैं।” उस आदमी ने कहा।

“यह घर राज वत्सल का ही है न।” सलीम ने पूछा।

“जी।” उस आदमी ने जवाब दिया।

“और यह लाश किसकी है... कैसे मौत हो गई?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“यह लाश राज वत्सल की ही है।” उस आदमी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, “फैक्ट्री से आते वक्त एक ट्रक ने उन की कार को टक्कर मार दी। इस हादसे में उन की मौत हो गई।”

राज वत्सल की मौत की खबर से सलीम चौंक पड़ा था। हालांकि गेट से अंदर दाखिल होते हुए यह आशंका उसके मन में पहले से ही हो गई थी। वह मन से इस आशंका को निकालने की भरसक कोशिश कर रहा था, लेकिन वह डर सच साबित हुआ था।

कुछ देर की खामोशी के बाद सलीम ने पूछा, “आप राज के कौन हैं?”

“मेरा नाम शांतनु है। मैं राज का जीजा हूं।”

“क्या राज के पिता विराज जी से मुलाकात हो सकती है?” सलीम ने कहा।

“वह भी अब इस दुनिया में नहीं हैं।” शांतनु ने जवाब दिया।

“ओह! आईएम सॉरी।” सार्जेंट सलीम ने कहा, “अब मुझे इजाजत दीजिए।”

शांतनु वहां से चला गया और सार्जेंट सलीम अकेला रह गया। वह कुछ देर वहीं खड़ा रहा उसके बाद कार की तरफ बढ़ गया। स्टेयरिंग सीट पर बैठ कर उसने घोस्ट स्टार्ट की और उसे तेजी से आगे बढ़ा ले गया।

उसका दिमाग भन्नाया हुआ था। वह सोच रहा था कि न कोई क्लू है। न कोई घटना हुई है। बेमतलब की मगजमारी जारी है। उसने घोस्ट का रुख कोठी की तरफ मोड़ दिया। कुछ देर बाद उसकी कार कोठी के गेट से इंटर कर रही थी।

सार्जेंट सलीम ने घोस्ट पार्क की और उससे नीचे उतर आया। नौकर से मालूम हुआ कि सोहराब लाइब्रेरी में है। वह सीधे लाइब्रेरी पहुंच गया। वहां सोहराब होठों पर हाथ रखे गंभीर मुद्रा में बैठा हुआ कुछ सोच रहा था। वह उंगली को इस तरह से मुंह पर रखता था मानो चुप रहने को कह रहा हो। सार्जेंट सलीम उसके सामने जा कर बैठ गया।

उसे देखते ही इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने पूछा, “क्या रहा।”

सार्जेंट सलीम ने कहा, “इस केस की फाइल को क्लोज कर दीजिए। इसमें कुछ नहीं है। बेवजह की मगजमारी है। कहीं कोई क्लू नहीं है। बस भागते फिर रहे हैं।”

“मैंने केस पर राय नहीं मांगी थी। यह पूछा था कि तफ्तीश में क्या हाथ आया।” इंस्पेक्टर सोहराब ने गंभीरता से कहा।

सार्जेंट सलीम उसे दिन भर की तफ्तीश और शांतनु से मिली जानकारी बताने लगा। जब उसने राज वत्सल का नाम लिया तो सोहराब चौंक पड़ा। उसने तुरंत पूछा, “पिता का नाम?”

सलीम ने कहा, “विराज वत्सल।”

“ओह!” सोहराब के मुंह से अनायास निकला और वह सोच में डूब गया।

सार्जेंट सलीम कुछ देर तक उसे देखता रहा उसके बाद उसने पूछा, “क्या खास है इस नाम में?”

“यह वही आदमी है, जिसके खाते से गीतिका की मां के खाते में पैसे आते थे।” सोहराब ने बताया।

इंस्पेक्टर सोहराब की इस बात से सार्जेंट सलीम भी चौंक पड़ा। उसने सोहराब से पूछा, “आपने बताया था कि उनकी मौत हो गई है। इसका मतलब यह हुआ कि इसके पीछे गहरी साजिश है।”

“तुम्हें जानकर ताज्जुब होगा कि विराज वत्सल की मौत भी संदिग्ध हालत में हुई थी। वह सुबह अपने बिस्तर पर मरे हुए मिले थे। उस वक्त घर में सिर्फ नौकरानी थी। बाकी लोग शहर से बाहर किसी करीबी की शादी में गए हुए थे।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“यह कब की बात है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“पिछले साल की। यानी गीतिका को नौकरी मिलने के बाद की बात है।” सोहराब ने जवाब दिया।

अचानक उसने चौंकते हुए कहा, “सलीम हाशना की जान को खतरा है। मैं तुरंत संदलगढ़ रवाना हो रहा हूं।”

“मैं समझा नहीं आपकी बात।” सार्जेंट सलीम ने सोहराब को गौर से देखते हुए पूछा।

“साधारण सी बात है। गीतिका या उसकी मां से नजदीकी रखने वाला हर कोई रास्ते से हटाया जा रहा है। विराज वत्सल, फिर उसका बेटा राज वत्सल मारे जा चुके हैं। तुम्हें जो धमकी मिली है, उसमें भी साफ तौर से कहा गया है कि लड़कियों से दूर रहा करो... यानी गीतिका से दूर रहो।” सोहराब ने सलीम से कहा और हाशना को फोन मिलाने लगा।

दूसरी तरफ से हाशना की आवाज सुनते ही सोहराब ने कहा, “हाशना तुम्हारी जान को खतरा है। तुम किसी भी कीमत पर घर से मत निकलना और मेरे अलावा किसी का फोन भी रिसीव मत करना। अपने मोबाइल की लोकेशन भी ऑफ कर दो। मैं तुरंत तुम्हारे पास आ रहा हूं।”

सोहराब ने फोन काट दिया और सलीम से कहा, “तुम तुरंत ऑफिस जाओ और गीतिका का घर तक पीछा करते हुए कुछ देर चायखाने पर बैठना फिर लौट आना। निकलो जल्दी ऑफिस छूटने का टाइम हो रहा है।”

इसके बाद सोहराब तेजी से बाहर निकल गया। वह सीधे पार्किंग की तरफ जा रहा था। वहां उसने फैंटम की स्टेयरिंग संभाली और कार तेजी से आगे बढ़ गई। कोठी के गेट से बाहर निकलते ही कार की रफ्तार तेज हो गई। उसका रुख संदलगढ़ की तरफ था।

शहर से बाहर पहुंचते ही सोहराब की कार की रफ्तार और तेज हो गई थी।

संदलगढ़ शहर के पास का एक कस्बा था। संदलगढ़ का नाम कभी चंदनगढ़ हुआ करता था। अंग्रेज इसे सैंडलगढ़ कहते थे। बाद में लोगों ने अपनी सुविधा के मुताबिक उसे संदलगढ़ कर दिया। इसका ये नाम इसलिए पड़ा था क्योंकि यहां चंदन के जंगलात हुआ करते थे।

यह इलाका हाशना की पुश्तैनी विरासत था। यहां 25 किलोमीटर के इलाके में चंदन के जंगल फैले हुए थे। जंगल के पश्चिम दिशा में एक बड़ी सी कुदरती झील भी थी। यह झील काफी लंबी थी। इससे यह नदी होने का एहसास कराती थी।

कुछ देर बाद ही सोहराब की कार जंगल में दाखिल हो रही थी। रात हो चुकी थी और बड़े-बड़े चंदन के पेड़ देव से खड़े नजर आ रहे थे। उनकी खुश्बू से पूरा इलाका महक रहा था। जंगल के एक हिस्से में आबादी थी। उसी आबादी के बीच में हाशना की बड़ी सी कोठी थी।

सोहराब ने कोठी के सामने अपनी कार रोक दी। जब वह नीचे उतरा तो उसे इस बात पर बहुत ताज्जुब हुआ कि वहां पहले से पुलिस की एक गाड़ी खड़ी हुई थी। उसे खतरे का एहसास हुआ और उसने जेब से माउजर निकाल ली और तेजी से कोठी के पीछे वाले हिस्से की तरफ चला गया।

कोठी की चहारदीवारी काफी ऊंची थी। उस पर चढ़ पाना मुश्किल था। उसने एक रास्ता तलाश लिया था। पास के एक चंदन के पेड़ की डाली चहारदीवारी से कुछ दूर से हो कर गुजरी थी। वहां से चहारदीवारी पर कूदा जा सकता था।

सोहराब ने माउजर जेब में रख ली और तेजी से पेड़ पर चढ़ने लगा। कुछ देर बाद ही वह उस डाल तक पहुंच गया। वहां से उसने एक नपी तुली सी जंप लगाई और सीधे दीवार पर पहुंच गया। सोहराब ने बैलेंस बनाते हुए किसी तरह से अपने पैरों को मजबूती से दीवार पर जमा लिया। इसके बाद वह बड़ी सावधानी से दीवार से नीचे उतर गया।

सोहराब दबे पांव कोठी के पिछले हिस्से के एक पाइप से ऊपर चढ़ने लगा। वह छत पर पहुंच चुका था। उसने एक खिड़की से नीचे बरामदे में झांक कर देखा तो उसे तीन आदमी एक लड़की उठा कर ले जाते हुए नजर आ गए।

सोहराब सीढ़ियों की तरफ लपका। वह जब नीचे पहुंचा तो उसे वह तीनों आदमी कहीं नजर नहीं आए। वह दबे पांव चलता हुआ बाहर की तरफ जाने लगा। तभी उसे अपने पीछे आहट सुनाई दी और अगर वह तुरंत न झुक गया होता तो उस राड ने उसके सर को बुरी तरह से जख्मी कर दिया होता। इसके साथ ही सोहराब ने पूरी ताकत से पैर चलाया था। नतीजे में उस पर हमला करने वाला बिना आवाज किए जमीन पर धराशाई हो गया था।

सोहराब तेजी से बाहर की तरफ भागा, क्योंकि उसने एक गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनी थी। जब वह बाहर पहुंचा तो पुलिस की गाड़ी टर्न हो रही थी।

इंस्पेक्टर सोहराब ने जेब से माउजर निकाल कर दो फायर किए और गाड़ी के अगले दोनों टायर पंक्चर हो गए। माउजर की आवाज सुन कर जीप से कई लोग उतर कर अलग-अलग दिशाओं में भाग खड़े हुए। कुछ देर बाद उन्होंने पोजीशन ले ली और सोहराब की तरफ अंदाजे से फायरिंग शुरू कर दी।
*** * ***

सोहराब की पुलिस से मुठभेड़ क्यों हो गई थी?
हाशना को किससे खतरा था?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ का अगला भाग...