अनोखा जुर्म - भाग-7 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अनोखा जुर्म - भाग-7

पीछा


सार्जेंट सलीम ने कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद हाशना से पूछा, “यह वाकिया कब हुआ था?”

“लगभग तीन साल पहले।” हाशना ने बताया।

इसके बाद सार्जेंट सलीम और हाशना वहां से उठ आए।

दोनों पार्किंग की तरफ बढ़ गए। तभी सार्जेंट सलीम से एक आदमी टकरा गया। इसके साथ ही सलीम ने अपने कोट की जेब पर दबाव सा महसूस किया। वह जब तक कुछ समझता, टकराने वाला आदमी सॉरी बोल कर बाहर की तरफ तेजी से चला गया। उसने पीछे देखे बिना ही सॉरी बोला था। सार्जेंट सलीम उसकी शक्ल नहीं देख सका था।

सलीम ने जेब में तुरंत ही हाथ डाला तो उसे एक कागज का टुकड़ा मिला। उस पर अखबार के कुछ शब्दों को जोड़ कर लिखा गया था, ‘लड़कियों से दूर रहा करो!’

यह मैसेज पढ़ते ही सलीम का पारा थर्मामीटर तोड़ कर बाहर आ गया। उसके जेहन में एक बहुत ही गंदी गाली कुलबुलाने लगी। उस ने किसी तरीके से उसे जब्त किया। वह गुस्से में तेजी से उस आदमी के पीछे लपका, लेकिन सड़क पर वह उसे कहीं नजर नहीं आया। सलीम ने कागज को मोड़कर कोट की भीतरी जेब में रख लिया और अपनी कार की तरफ बढ़ गया।

जब वह हाशना के साथ कैफे से बाहर निकला था तो हल्के सुरों में सीटी बजा रहा था, लेकिन इस वक्त गुस्से के मारे उसके कानों में सीटी बज रही थी। वह कोठी पर जाने के लिए निकला था, लेकिन गुस्से के मारे वह बेवजह कार को इधर-उधर दौड़ाता रहा। इस बीच लाल रंग वाली कार भी लगातार उसका पीछा कर रही थी। कार में वही आदमी सवार था, जो उसका पीछा करते हुए कैफे के अंदर तक आया था। सलीम पीछा किए जाने से बेखबर अपनी ही रौ में कार चलाए जा रहा था।

अचानक उसके दिमाग की धारा बहक गई और उसने मिनी को सिसली रोड की तरफ मोड़ दिया। सिसली रोड पर कुछ दूर पहुंचते ही पहाड़ों का सिलसिला शुरू हो गया था। शहर पीछे छूट गया था। सड़क के दोनों तरफ दूर-दूर तक सिर्फ पहाड़ नजर आ रहे थे। पूरी सड़क सन्नाटे में डूबी हुई थी। कुछ आगे जाने के बाद सलीम ने एक बटन दबाया और कार की फोर्डेबल छत हट गई। गुनगुनी धूप सीधे कार के अंदर आने लगी। अलबत्ता हवा में ठंडक थी। अचानक सलीम की नजर पीछे बैक ग्लास पर पड़ी। उसे कुछ दूरी पर लाल रंग की एक कार आती हुई नजर आई। उसने इस बात की परवाह नहीं की।

कुछ दूर जाने के बाद पीछा करने वाली कार तेजी से आगे निकल गई और फिर वह सड़क पर इस तरह से आड़ी-तिरछी खड़ी हो गई कि रास्ता बंद हो गया।

मिनी उस कार से पचास गज की दूरी पर थी। सलीम को खतरे का एहसास हो चुका था। अचानक उसने कार में पूरी ताकत से ब्रेक लगाए और फिर कार में बैक गेयर लगा कर एक्सीलेटर पर पूरा दबाव डाल दिया। कार पूरी तेजी से पीछे की तरफ भागी चली जा रही थी। सड़क काफी दूर तक सीधी और खाली पड़ी हुई थी। कुछ दूर तक इसी तरह से कार को बैक गेयर में चलाने के बाद सलीम ने टर्न लिया और मिनी को पुल स्पीड में डाल दिया।

सलीम ऐसा कुछ कर गुजरेगा, पीछा करने वाले लोगों को इसका एहसास ही नहीं था। वह कार को टर्न करने लगे। मिनी छोटी कार थी, इसलिए सलीम को दिक्कत नहीं हुई, लेकिन पीछा करने वाली कार बड़ी थी, इसलिए उन्हें टर्न करने में अच्छा खासा वक्त लग गया। जब तक वह कार को टर्न करते सलीम की गाड़ी काफी आगे निकल चुकी थी। सलीम ने बैक ग्लास में पीछे आ रही कार की तरफ देखा। वह काफी पीछे थी। कुछ देर बाद सलीम शहर में दाखिल हो गया। अब उसे कोई खतरा नहीं था।

शहर में दाखिल होने के कुछ देर बाद सार्जेंट सलीम को पीछा करने वाली कार कहीं नजर नहीं आई। सलीम ने एक स्टोर के सामने घोस्ट रोक दी और वान गॉग तंबाकू लेने के बाद कोठी की तरफ चल दिया।


अनोखा प्रयोग


कोठी पहुंचने पर इंस्पेक्टर कुमार सोहराब उसे कहीं नजर नहीं आया। झाना ने बताया कि वह लैब में हैं। सलीम जब लैब में पहुंचा तो वहां इंस्पेक्टर सोहराब एक अजीब प्रयोग कर रहा था। सोहराब एक चूहे को बिल्ली के सामने छोड़ देता। जब बिल्ली उसे खूब दौड़ा लेती तो वह बिल्ली की रस्सी पकड़ कर उसे रोक देता। उसके बाद वह चूहे पर होने वाले असर को बड़ी गंभीरता से देखता। इंस्पेक्टर सोहराब डायरी पर नोट्स भी लेता जा रहा था।

सलीम बड़े ध्यान से सोहराब का यह प्रयोग देख रहा था। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सोहराब एक बार और चूहे के पीछे बिल्ली छोड़ दी। जब चूहे की जान बच गई तो उसे खाने के लिए पनीर का एक टुकड़ा दिया, लेकिन चूहे ने उसे छुआ तक नहीं। वह डरा-सहमा बैठा रहा।

कुछ देर बाद सोहराब ने बिल्ली को लैब से बाहर छोड़ दिया। उसके बाद वह फिर आ कर चूहे के पास बैठ गया, लेकिन चूहा अभी भी डरा सहमा बैठा था। उसने पनीर के टुकड़े को नहीं खाया था। सोहराब ने एक बार फिर डायरी में कुछ लिखा और फिर चूहे को एक पिंजरे में बंद कर दिया। इसके बाद उसने साबुन से हाथ साफ किए और सोफे पर आकर बैठ गया।

उसके बैठते ही सलीम ने कहा, “चूहा भाग बिल्ली आई... यह खेल हम लोग बचपन में खेलते थे। आप अब तक वहीं फंसे हुए हैं!”

इंस्पेक्टर सोहराब ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए पूछा, “तुम्हारे चेहरे पर बारह क्यों बज रहे हैं?”

“पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसां पाए हैं... तुम शहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचा कर आए हैं।” सार्जेंट सलीम ने दिल पर हाथ रख कर कहा।

“किसी मुशायरे से पिट कर आ रहे हो!” इंस्पेक्टर सोहराब ने व्यंग करते हुए कहा।

इंस्पेक्टर सोहराब की इस बात पर सलीम भन्ना गया। उसने कहा, “कभी तो गंभीर रहा कीजिए!”

उसकी इस बात पर सोहराब बहुत देर तक हंसता रहा। नतीजे में सलीम बेवा औरतों की तरह रोनी सूरत बना कर बैठ गया।

“चलो ऊपर चलते हैं। वहीं बात होगी।” सोहराब ने उसकी सूरत देख कर बात को टालने की गजर से कहा। सोहराब ने बहुत प्यार से सलीम का हाथ पकड़ा और उसे बाहर लेकर आ गया। दोनों लॉन में आ कर बैठ गए। सोहराब ने कॉफी के लिए झाना को फोन कर दिया।

“मैं ब्लैक कॉफी नहीं पियूंगा।” सलीम ने मुंह बनाते हुए कहा।

“पी लो तुम्हार मूड ठीक हो जाएगा।” सोहराब ने कहा।

“मूड को और खराब नहीं करना है।” सलीम ने कहा।

सोहराब ने जेब से सिगार केस निकाला और उसमें से एक पीस निकाल कर उसे सुलगा लिया। दो-तीन कश लेने के बाद उसने कहा, “कहां गए थे?”

बदले में सार्जेंट सलीम ने हाशना से हुई सारी बातचीत बता दी। उसने कॉकरोच वाली घटना भी सोहराब को बताई।

“इसमें ऐसी तो कोई बात है नहीं, जिससे तुम्हारा मूड इस कदर उखड़ गया!” सोहराब ने सलीम की आंखों में देखते हुए पूछा।

जवाब में सलीम ने अखबार की कतरनों को मिला कर बनाई गई धमकी जेब से निकाल कर सोहराब के हाथ पर रख दी। उसे पढ़ कर एक बार फिर सोहराब को जोर की हंसी आ गई।

“शहर के बदमाशों के हौसले बहुत बुलंद हो गए हैं। अब वह खुफिया विभाग के होनहार जासूस को लड़कियों से दूर रहने की हिदायत देने लगे हैं।” सोहराब ने हंसते हुए कहा।

“हंस लीजिए... हंस लीजिए... कमबख्त मेरे हाथ नहीं आया वरना हाथ तोड़ कर चौराहे पर भीख मांगने के लिए बैठाल देता।” सलीम ने भन्नाए हुए लहजे में कहा।

सोहराब ने उससे पूछा, “यह कहां मिला तुमको?”

सलीम ने इंस्पेक्टर सोहराब को पूरी बात तफ्सील के साथ बता दी। सिसली रोड पर रास्ता रोके जाने वाली बात भी बयान कर दी। पूरी बात सुनने के बाद सोहराब ने कहा, “तुमने क्या फैसला लिया?”

“मुझे लगता है कि गीतिका ने जिस लड़के को यूनिवर्सिटी से निकलवाया था... वह रिवेंज ले रहा है।”

“एक अच्छी सी नौकरी देकर!” सोहराब ने पूछा।

“नौकरी का मामला अलग है। मैं गीतिका को डराने के मामले में कह रहा हूं।”

“लेकिन तुम्हें तो निगरानी में पीछा करने का कोई क्लू मिला नहीं था।” सोहराब ने पूछा।

उसकी इस बात पर सार्जेंट सलीम खामोश हो गया। कुछ देर की खामोशी के बाद सोहराब ने पूछा, “क्या सोचा है?”

“मैं कैंटीन में गीतिका के सर पर कॉकरोच रखने वाले लड़के को तलाशूंगा। मुझे लगता है कि उसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।”

“कोई हर्ज नहीं है। चेक कर लो एक बार।” सोहराब ने कहा।

तभी झाना काफी रख गया और सलीम कॉफी बनाने लगा।

सोहराब ने उसके हाथ से कॉफी मग लेते हुए कहा, “आज जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है, इसका मतलब यह है कि हमारी हर गतिविधि पर बदमाशों की नजर है। तुम्हें गीतिका की निगरानी जारी रखनी चाहिए। कल से अपनी चपरासी वाली नौकरी शुरू कर दो। और हां... तुम ऑफिस में गीतिका के साथ कॉकरोच वाला प्रयोग भी कर सकते हो।”

“और अभी आप लैब में जो प्रयोग कर रहे थे, वह क्या है?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“बाद में बताऊंगा। अभी तुम यूनिवर्सिटी से उस लड़के के बारे में पता करने की कोशिश करो।” सोहराब ने कहा।

सार्जेंट सलीम ने कॉफी खत्म की और उठ खड़ा हुआ। उसने सोहराब की तरफ देखते हुए कहा, “मैं घोस्ट ले जा रहा हूं।”

“ओके।” सोहराब ने कहा।

सार्जेंट सलीम घोस्ट लेकर सीधे यूनिवर्सिटी पहुंचा था। उसने वीसी को जैसे ही अपना विजिटिंग कार्ड भिजवाया, उसने फौरन ही सलीम को अंदर बुला लिया। सलीम को देख कर वीसी थोड़ा हैरान था। उसने सलीम से हाथ मिलाते हुए कहा, “खुफिया विभाग को हम जैसों से क्या काम आन पड़ा?”

“कोई खास बात नहीं है। बस एक छोटी सी जानकारी चाहिए थी।” सलीम ने बैठते हुए कहा।

“जी बताइए... क्या जानना चाहते हैं आप।” वीसी ने पूछा।

सार्जेंट सलीम ने उसे तीन साल पहले कैंटीन में घटी घटना के बारे में बताते हुए कहा, “इस घटना के बाद उस लड़के को सस्पेंड कर दिया गया था। हालांकि बाद में लड़की ने अपनी कंप्लेन वापस ले ली थी।”

“किस डिपार्टमेंट का मामला था?” वीसी ने कुछ सोचते हुए पूछा।

“कंप्यूटर साइंस डिपॉर्टमेंट।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

वीसी ने घंटी बजाई। तुरंत ही उसका ऑफिस अटेंडेंट आ गया। उसने तीन साल पहले ब्लैक लिस्ट हुए स्टूडेंट्स की फाइल लाने के लिए कहा।

ऑफिस अटेंडेंट कुछ देर बाद ही फाइल लेकर हाजिर हो गया। वीसी ने फाइल देखते हुए कहा, “उस स्टूडेंट का नाम राज वत्सल पुत्र विराज वत्सल था।”

“क्या उसका पता भी मिल सकता है?” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“इसमें पता नहीं है। यह जानकारी इनरॉलमेंट डिपार्टमेंट से मिलेगी। रुकिए मैं यहीं मंगाता हूं।” वीसी ने कहा और उसने रिसीवर उठा कर किसी के नंबर डायल किए। उधर से फोन रिसीव होते ही वीसी ने राज वत्सल का पता बताने के लिए कहा।

कुछ देर बाद ही इनरॉलमेंट डिपार्टमेंट का बाबू फाइल लेकर भागा हुआ आया। उसने एक कागज पर राज वत्सल का पता लिख कर सार्जेंट सलीम को दे दिया। सलीम ने वीसी को शुक्रिया कहा और बाहर आ गया।

सलीम ने घोस्ट को स्टार्ट किया और उसका रुख फंटूश रोड की तरफ मोड़ दिया। उसने कार की रफ्तार काफी बढ़ा दी थी। सलीम ने डैश बोर्ड पर रखे एड्रेस पर एक नजर डाली और कार की रफ्तार धीमी कर दी। फंटूश रोड की एक कोठी के गेट पर लिखे नंबर को चेक करने के बाद उसने कार रोक दी। कार को सड़क के किनारे पार्क करने के बाद वह नीचे उतर आया। कुछ दूर पैदल चलने के बाद सलीम गेट खोल कर जैसे ही अंदर घुसा, किसी अनहोनी से उसका दिल दहल गया।


*** * ***


इंस्पेक्टर सोहराब कौन सा प्रयोग कर रहा था?
सार्जेंट सलीम ने आखिर ऐसा क्या देख लिया था?

इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘अनोखा जुर्म’ का अगला भाग...