प्रभु दयालु है Pratap Singh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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प्रभु दयालु है



"चल जल्दी उठ!"
"सोने दो न माँ!"
देख खुशी भी तैयार हो गयी, चल उठ जल्दी!"
"नहीं! जल्दी उठ...चर्च जाना है।
"इस बार रहने दो न माँ, अगले हफ्ते चलूंगा।"
"नहीं! तू जल्दी कर, नहीं तो फादर इस बार फिर मुझे टोकेंगे की सोनू को अपने साथ क्यों नहीं लायी।
"कोई बहाना लगा देना, कह देना उसकी तबियत खराब है।"
"चुप! ऐसी बात बोलना भी नहीं। अभी ज्यादा महीने भी नहीं हुए है, वो तो समय रहते फादर के पिलाये पवित्र जल, और उनके द्वारा की गयी प्रार्थना की बदौलत तेरी जान बची। फिर कभी ऐसा बहाना नहीं लगाना।"
करीब छः महीने उड़ीसा के तट पर आये तूफान के बाद झुंपा के घर मे कुछ नहीं बचा था। समुन्द्र में मछली पकड़ने गया उसका पति तूफान के बाद से लापता था। जिंदा भी था या नहीं कुछ पता नहीं चल पाया था। सरकार ने कुछ दिन तो उनके खाने पीने का इंतजाम किया, पंरन्तु बाद में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। झुंपा के लिए परिवार को पालने का प्रश्न ही बहुत गहरा था, ऊपर से सोनू को बुखार ने पकड़ लिया। जो बस्ती मैं रहने वाले झोलाझाप डॉक्टर की दवा देने के बाद भी उतरने का नाम नही ले रहा था। बड़े डॉक्टर को दिखाने को तो वह सोच भी नहीं सकती थी। राशन खरीदने तक को पैसे थे नहीं। दवा कहाँ से लाती।
तभी बस्ती में एक बड़ी सी वैन आयी और जिसमें आया बहुत सा राशन बस्ती वालों में बंटने लगा। खाने को राशन की कमी अकेले झुंपा के घर में थोड़े ही न थी, पूरी बस्ती का यही था, सो पूरी बस्ती टूट पड़ी। स्वाभिमानी झुंपा की राशन के लिए लाइन में लगने की हिम्मत नही हो पाई। पंरन्तु खुशी न जाने कब राशन की लाइन में लग पांच किलो चावल का थैला हाथ में खुशी से सराबोर अपनी जीत का जश्न मनाते हुए घर को आ रही थी। झुंपा एक बार को खुशी को डाँटना चाहती थी पंरन्तु घर में कुछ था भी तो नहीं। खाली पेट दवा लगेगी कैसे? यही सोच झुंपा ने झट थैला हाथ मे लेकर चावल का पतीला चूल्हे पर चढ़ा दिया, और सोनू के तपते माथे पर हाथ रख उसका तापमान मापा तो झुंपा चिंता मैं पड़ गयी। तीन दिन हो गए थे सोनू को बुखार में तपते हुए।
"यही घर है, बेचारा तीन दिन से बुखार से तप रहा है।" इमली ने गले में क्रोस टांगे झक सफेद कपड़े पहने फादर को सोनू को दिखाते हुए कमरे में प्रवेश किया।
"प्रभु बड़ा दयालु है, वह अपने बच्चों से बहुत प्रेम करता है। वह सब ठीक करेंगे।" सिस्टर के दिये पवित्र जल को फादर ने सोनू के मुंह मे डालते हुए कहा। साथ ही फादर ने पार्थना कर कुछ पुड़िया झुंपा जिन्हें कुछ समय के अंतराल पर सोनू को खाने की हिदायत दे कर थमा दी।
फादर के दिये पवित्र पानी, पुड़िया या प्रार्थना, न जाने किसने असर दिखाना शुरू कर दिया। तीन दिन में सोनू स्वथ्य हो चला था। इन दिनों में सिस्टर का रोज़ाना घर में आकर प्रार्थना करना भी चल रहा था।
एक चमत्कार और हुआ उसका लापता पति जो तूफान के बाद सरकारी अस्पताल मे भर्ती था, स्वथ्य होकर घर लौट आया था।
झुंपा के लिए तो ये सब फादर द्वारा की गई प्रार्थना का परिणाम था। परिणामस्वरूप जब फादर ने अगले रविवार को चर्च आने को कहा तो वह टाल नही पाई। साथ मैं उसने अपने पति को भी राजी कर लिया। ख़ुशी, और सोनू कौतूहल वश कुछ हफ्ते तो माँ के साथ गए। पंरन्तु सोनू का मन अब चर्च जाने को नही करता था।
"नहीं माँ! मेरा मन नही लगता वहाँ पर, मुझे तो आज भी अपने कानों में मंदिर में बजते घंटो की गूंज सुनाई देती है।"
"सुनाई तो मुझे भी देती है बेटा, पंरन्तु मैं नहीं चाहती फादर की बात टालने से कोई अनर्थ हो जाये। इसलिए तो मैंने फादर के कहने पर अपने मंदिर सुभद्रा-कृष्ण-बलराम को हटा कर यीसु को बिठा दिया। सब पूजा-पाठ छोड़ दिया, तीज-त्यौहार छोड़ दिये।"
"अच्छा तो थोड़ी देर रुको मैं तैयार होकर आता हूँ।" सोनू के लिए धर्म से ज्यादा मां की भावनाएं महत्वपूर्ण थी।
सोनू झट तैयार हो चुका था।
"चलो मां!"
घर से कुछ दूर चला ही था कि सोनू के कानों मैं रथ यात्रा मै कृष्ण-बलराम के उद्घघोष करते जुलूस की आवाज पड़ने लगी थी
झुंपा पति के साथ खुशी का हाथ पकड़े तेजी से चर्च को चले जा रही थी। चर्च तक पहुँची तो देखा सोनू नहीं था। फादर को सोनू के बारे मे एक बार फिर झूट बोलना पड़ा। चर्च में फादर द्वारा की जा रही प्रार्थना जो आज भी उसकी समझ से बाहर थी, उसमे आज तो मैं झुंपा का मन बिलकुल नहीं लगा।
प्रार्थना समाप्त होने की ही प्रतीक्षा कर रही झुंपा सोनू को रास्ते भर तलाशती तेजी से घर की ओर भागी। आधे रास्ते पहुंची तो देखा सोनू रथ-यात्रा में कृष्ण-बलराम के रथों के रस्सों को खेंच रहा था।
झुंपा के आँखों से झरझर आंसू बह निकले। वह भी अपने को रोक न सकी। पति तो मानो इसी पल की प्रतीक्षा में था।
पसीने से लथपथ पूरा परिवार आज आनंद से सराबोर हो चुका था।
घर पहुँचते ही संदूक मैं रखे राधा-कृष्ण, बलराम को निकाल घर मे रखे गंगाजल से स्नान करा पुनः मंदिर मे स्थापित किया। यीशु मसीह की छोटी सी मूर्ति को बक्से मैं रखने को थी कि सोनू ने घर मे प्रवेश किया।
"आज रथ-यात्रा मैं कितना आनंद आया न मां!"
खिलखिलाते सोनू को सामने देख झुंपा ने बक्से मैं रखने जा रही यीशू की मूर्ति को भी पूरी आस्था से मंदिर मे स्थापित कर दिया।
उसे विश्वास है...प्रभु दयालु है।

स्वरचित
प्रताप सिंह
वसुंधरा, ग़ाज़ियाबाद
9899280763