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समिधा के मन में अनेकों प्रश्न उभरने लगे, उसके प्रश्नों का समाधान कामना ने कर दिया | उसने बताया कि जो कुछ प्रगति वह झाबुआ में देख रही है, वह मात्र 1 / 2 प्रतिशत ही है | झाबुआ और उसके आस-पास के गाँवों में बेहद गरीबी तथा लाचारी पसरी हुई है | सरकार योजनाएँ बनाती है गरीब तबके के लिए और ये अनपढ़ लोग ताड़ी के नशे में गुनाह करके बचने के चक्कर में कहीं भी फँस जाते हैं | उनका लाभ उठाते हैं वकील, सेठ, मंत्री तथा वे सब जिन्हें अवसर मिल जाता है | पैसा चढ़ता है इन गरीबों के नाम पर और मुट्ठी गर्म होती है अमीरों की | ये तो बस ताड़ी के नशे में गुनाह कर बैठते हैं |
‘हाँ, ताड़ी का कितना बड़ा प्रमाण उसे कल ही तो मिला था | ’धूल को चाटती सी ज़िंदगी बिना किसी विशेष कारण के धूलि-धूसरित हो जाती है | पल भर में जो कुछ घटित होता है, वह फिर लौटकर आता है क्या?इस प्रकार ज़िंदगी को खो देना सहज तो हरगिज़ नहीं हो सकता, चाहे वह किसी की भी क्यों न हो !गए कल की दुखद घटना ने फिर से उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया और वह सोचने के लिए मजबूर हो गई, ज़िंदगी कितनी क्षणिक है !पेड़ से गिरकर अकाल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाने वाले युवक के माता-पिता का क्या हो रहा होगा ?उसके मन में फिर उदासी की लहर सी उठने लगी |
“आप यहाँ पर ख़ुश हैं?सुखी हैं?”समिधा के समक्ष कामना ने एक नाज़ुक सा प्रश्न रख दिया |
“सुख-दुख की बात तो तब आती है दीदी जब कोई चायस हो | रहना तो अब इनके साथ ही है ---सो, ओ. के “उसने गंभीर मुद्रा में कहा और एक बेबस सी बेचारगी उसके चेहरे पर पसर गई |
कामना के चेहरे पर बिखर आई उदासी ने उसके भीतर का सच उगल दिया था पर सच को सहज रखने के अतिरिक्त और कोई चारा कहाँ होता है !सहज, संयमित रहना व्यक्ति के लिए एक ऐसी आवश्यकता बन जाती है जिसे ओढ़ना-बिछाना ही पड़ता है |
जीवन के आम मसलों की बात का रुदन-गीत हर क्षण गाया भी तो नहीं जा सकता | यदि कोई गाए भी तो सुनेगा कौन ?
और समाज ---? वह तो एक ऐसा सागर है जिसमें अधिक से अधिक नदियाँ मिलकर सव प्रवाहित हो जाती हैं और किसीको पता भी नहीं चलता कि किस नदी के मन में क्या घटाटोप छिछलन भरी होगी | उसे तो बस अपने संग बहा ने का काम मिला है, वह किसी नदी के भीतर झाँकने के लिए रुकता है क्या?उसे तृप्त सागर के सिरहाने नदिया खड़ी हुई दिखाई तो देती है पर वह उसके भीतर के वैराग्य तक कहाँ पहुँच पाता है ?
कामना का सहज दिखता परिवेश तथा उसका आचरण इतना असहज तो था ही कि समिधा उसके भीतर चलने वाली उमड़ती लहरों को छू पा रही थी |
“और –आपके बच्चे ?”समिधा को घर में किसी बच्चे का कोई चिन्ह नज़र नहीं आ रहा था |
“एक है –चिंतन ! छह साल का है, इंदौर में अपने दादा-दादी के साथ रहता है | यहाँ पर उसको रखने का कोई अर्थ नहीं
है | ”
वह उठकर सामने काँच की अलमारी में रखी हुई अपने बेटे की तस्वीर ले आई |
“बहुत प्यारा है ---“समिधा जानती थी अपने बच्चे की प्रशंसा सुनकर हर माँ खिल उठती है | बच्चा था भी बड़ा प्यारा सा ---|
उसने देखा कामना की आँखें अपने बच्चे की तस्वीर देखकर और अतिथि से बच्चे की प्रशंसा सुनकर भर उठी थीं |
चाय पीते-पीते बहुत सी बातें होती रहीं | कामना ने उसे बताया कि यहाँ पर लड़की के जन्म से लोगों में प्रसन्नता की लहर भर जाती है, बेटे के जन्म पर कोई अपनी खुशी नहीं बाँटता | यहाँ मर्द की ज़िंदगी औरत के चारों ओर घूमती है | वह ज़िंदगी घर के काम से जुड़ी हो, या बाहर के काम से, चाहे मुहब्बत से जुड़ी हो या मार -पीट से! परंतु—औरत के बिना ज़िंदगी है ही नहीं !
‘हो भी कैसे सकती है ?’ समिधा ने सोचा, फिर भी औरत की कद्र तो सब जानते ही हैं, कैसी होती है?वह किसी और ट्रैक पर चढ़ने ही लगी थी कि कामना ने कहा ;
“यहाँ बेटी पैदा हुई नहीं कि माँ-बाप की बाँछें खिली नहीं –हमारे जैसा तो होता नहीं है कि बेटी पैदा हुई और बेटी की चिंता शुरू –“
कामना ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा ---
“यहाँ तो बेटियों की बोली लगती है ---आपको यहाँ की एक मज़ेदार बात बताती हूँ ---“अचानक वह उत्साहित दिखने लगी|
“यहाँ पर एक मेला लगता है जिसे ‘भगोरिया’का मेला कहते हैं | उस मेले में लड़कियाँ अपनी पसंद का साथी चुनकर उसके साथ भाग जाती हैं | कई-कई दिनों बाद उन्हें ढूँढकर लाया जाता है | लड़की को उसके माता-पिता वापिस अपने घर ले जाते हैं और लड़के के माता-पिता से अपनी इच्छानुसार पैसे की माँग करते हैं | जब लड़के वाले पैसे देने की स्थिति में होते हैं तब ही लड़की, लड़के को सौंपी जाती है | ”
“हाँ, मैंने भगोरिया के मेले के बारे में पढ़ा तो था पर आपसे सुनकर अधिक आनंद आ रहा है जैसे मेरे सामने कोई तस्वीर बन रही हो | शादी के बाद इनका परिवार आम परिवारों की तरह रहता है?”
“हाँ, पर यहाँ मर्द कई-कई बीबियाँ रखते हैं, दो/तीन तो होती ही हैं | ”कामना की उदास आवाज़ समिधा से छिपी न रह सकी |
“अच्छा !पर बीबियों में लड़ाई नहीं होती?एक मियान में कई तलवारें या दो भी हों तब भी ---!”
“अंदर ही अंदर कुछ न कुछ तो होता ही रहता है, फिर भी रहते सब साथ ही हैं | औरतें घर का सारा काम और थोड़ी बहुत जो इनके पास खेती-बाड़ी होती है, उसे संभालती हैं –“
“और मर्द क्या करते हैं ?”
“मर्द ---?”कामना हँसी |
“मर्द बच्चे पैदा करते हैं ।ताड़ी पीते हैं और ताड़ी के नशे में एक-दूसरे को काट डालते हैं --| ”
“आपको डर नहीं लगता यहाँ ?”समिधा ने पूछा |
“अब तो यहाँ कितना समय हो गया है दीदी !वैसे भी डरकर जीवन तो जीया नहीं जा सकता है न?आख़िर कब तक डरेंगे आप?जो होगा देखा जाएगा, सोचकर ही यहाँ रहा जा सकता है और यहाँ ही क्या ?सारे विश्व की यही तो स्थिति है !किसको पता कौन, कहाँ पर सुरक्षित है?है कितने दिन की ज़िंदगी ?जैसी चाहे, निकल जाए।मैं तो बहुत नहीं सोचती अब !”
फिर क्षण भर रुककर ढीले से स्वर में बोली –
“सारा बाज़ार का काम औरतें ही करती हैं यहाँ!भले घरों के मर्द बाज़ार-हाट करने कम ही जाते हैं | मैं झुनिया को ले जाती हूँ अपने साथ | ” उसकी लंबी सी असहाय सी साँस ने समिधा का मन बेचैन कर दिया |
काफ़ी देर तक बातें होतीं रहीं, बहुत सी नई बातें पता चलीं | ऐसी बातें जिन्हें वह अपने लेखन में प्रयुक्त कर सकती थी | दोपहर का एक बज चुका था | समिधा को संकोच हुआ | वह तो यहाँ यही काम करने आई थी पर कामना का तो खाने का सामय हो रहा था |
जब उसने कामना से क्षमा माँगते हुए कहा कि अब उसे चलना चाहिए तब कामना ने बताया कि खाना तो वकील साहब के आने के बाद ही होगा | इसलिए वह परेशान न हो, झुनिया ने खाना तैयार कर लिया होगा | उसने अपनी बात पूरी की ही थी कि बाहर से ‘पीं—पीं ‘सुनाई दी | कामना चौकन्नी सी हो गई | वकील साहब खाना खाने आ चुके थे |
अब उसका उठना लाज़मी हो गया था | बाहर आई तो वकील साहब से परिचय हुआ, शालीन परिचय ! एक अलग ही प्रकार की तेज़ दृष्टि वाला तेज़-तर्रार व्यक्तित्व ! समिधा को पति-पत्नी दोनों की दृष्टि में एक अजीब सी अजनबीपन का एहसास हुआ | कामना ने धीरे से कहा ;
“दीदी ! फिर आइएगा ---| ”