नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 15 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 15

15

काम अपनी गति से चल रहा था, सुबह ‘लोकेशन’ पर निकल जाना, रास्ते में जो भी मिले चना-चबैना खाकर फिर आगे बढ़ जाना | दो दिन बाद ही शारीरिक तथा मानसिक थकान से समिधा के पुर्ज़े ढीले होने लगे | समय भी कम था, दामले की इच्छा थी कि एक लेखिका की हैसियत से समिधा भी उन ‘लोकेशन्स ’को तय करने में ‘टीम ‘का हिस्सा बने | जहाँ-जहाँ वे अपनी सीरियल की शूटिंग करना चाहते थे, वे समिधा को भी साथ चलने का आग्रह करते जबकि उसके जाने की कोई इतनी ज़रूरत भी नहीं थी | काम यहाँ आए बिना भी हो सकता था | उसके मस्तिष्क का कचूमर निकल गया था और शरीर की स्थिति भी बदतर होने लगी थी | 

तीसरे दिन जब मि. दामले ने समिधा को असहज देखा तब सुबह की कॉफ़ी पीते हुए बोल उठे ;

“क्या बात है मैडम, कुछ थकी हुई दिखाई दे रही हैं | ”

“हाँ, पता नहीं क्यों, रात में नींद नहीं आई---“

“एक काम करते हैं मैडम ! अपने पास अभी दो दिन हैं, आज आप दिन में आराम कर लीजिए | शाम को कुछ लोगों को बुलाया है मीटिंग के लिए –आराम करने से शाम को आप अच्छा महसूस करेंगी| ”

“ठीक है, यही ठीक रहेगा | ”

समिधा के लिए अकेले रहना ठीक ही रहा | रैम की माँ ने आकर अपने परिवार व झाबुआ की स्थिति के बारे में खुलकर बताया | उसका अपना बचपन बहुत गरीबी व अभावों में बीता था | भूख के कारण तथा लोगों को स्वादिष्ट भरपेट खाते देखकर लोलुप बाल –मन किस प्रकार खाने की चीज़ें अपने लिए मुहैया कराता था, यह सब सुनकर समिधा की आँखें भर आईं | रैम की माँ ने बताया था रैम की माँ अपनी गरीब सहेलियों के साथ घरों में भीख माँगने जाती थी | पहचान छिपाने के लिए वे सब सहेलियाँ चूल्हे की राख़ अपने चेहरे पर लपेट लेतीं थीं | 

अनेकों परिवार अपनी जाति व धर्म बदलकर इसाई बन गए थे | अब उन्हें जीवन की तीन प्रमुख चिंताएँ ‘रोटी-कपड़ा-और मकान ‘से निज़ात मिल गई थी | झाबुआ के बहुत से लोगों ने अपने लिए राह खोज ली थी | हाँ, अब भी बहुत से लोग ऐसे थे जिनके पेट और पेट चिपके हुए दिखाई देते थे | ऊपर से ताड़ी का सेवन उनसे न जाने कितने अपराध करवाता था| लोग उन्हें ताड़ी और दो रोटी के चक्कर में फाँसकर अपने काम निकलवाने में शैतानी चतुरता का प्रयोग करते थे | 

रैम की माँ ने समिधा से एक वकील साहब की चर्चा की थी जो वहाँ पास ही रहते थे | उस घर से उसे बहुत सी नई बातें जानने को मिल सकती थीं | वकील साहब फौजदारी के वकील थे | 

पहले तो समिधा को झिझक महसूस हुई फिर उसने सोचा जिस काम के लिए वह यहाँ आई है, उसमें झिझक की गुंजाइश ही कहाँ है ? अत: नाश्ता करने के कुछ देर बाद ही वह वकील साहब की कोठी के गेट पर खड़ी थी | 

घर शानदार था, कोठी के पोर्च में गाड़ी खड़ी थी | एक सरसरी नज़र कोठी के चारों ओर घुमाते हुए समिधा ने बड़े से लोहे के मज़बूत दरवाज़े पर लगी घण्टी बजा दी | एक सलोनी सी युवा लड़की बाहर आई, वह कुछ पूछती कि अंदर से एक मध्यम आयु की शिक्षित लगने वाली सुंदर स्त्री भी उसके सामने आकर खड़ी हो गई | समिधा के नमस्कार करने पर उसने बहुत शालीनता से समिधा का परिचय पूछा और उसे अंदर ले गई | 

समिधा आदिवासी इलाक़े में बनी सुंदर, सम्पन्न कोठी की प्रशंसा में अपनी दृष्टि चारों ओर घूमकर बोली ;

“आपका घर तो बहुत सुंदर है | ”

“थैंक्स, आप किसी ख़ास ‘प्रोजेक्ट’ के लिए आई हैं क्या ? समिधा ने देखा स्त्री की प्रश्नवाची दृष्टि उसके चेहरे पर चिपकी हुई थी | नए व्यक्ति के प्रति उत्सुकता स्वाभाविक थी, उसने स्त्री को अपने परिचय के साथ अपने आने का कारण भी बताया | स्त्री ने बड़े स्नेह से उसे अंदर आने का निमंत्रण दिया | 

कुछ मिनटों बाद ही समिधा स्त्री के साथ घर के सुंदर, व्यवस्थित ‘ड्रॉइंग–रूम’में थी | सलोनी सी लड़की न जाने कहाँ गायब हो गई थी | समिधा की दृष्टि उसे खोजने लगी | पहनावे से वह घर की बच्ची तो नहीं लगती थी पर आदिवासी भी नहीं लगती थी | 

“लगता है, आप झुनिया को तलाश कर रही हैं ?”वकीलनी ने उसकी नज़रें ताड़ लीं थीं | 

वह झेंप सी गई, समझ में नहीं आया, क्या कहे ?उसने एक झीनी मुस्कुराहट ओढ़ ली परंतु वकीलनी उसकी खोजी दृष्टि को पहचान गई थी | 

“कोई बात नहीं, हमारे यहाँ जो भी आता है वह झुनिया के बारे में उत्सुक रहता है | ”उन्होंने सरल भाव से कहा | 

समिधा हौले से मुस्कुरा दी | 

“झुनिया---पानी तो लाना | ”उन्होंने समिधा से लड़की को मिलवाने के इरादे से कहा, समिधा को ऐसा लगा | 

समिधा के पूछने से पूर्व ही वकील साहब की खूबसूरत पत्नी ने अपना तथा अपने परिवार का परिचय देना प्रारंभ कर दिया था | 

“हम लोग इंदौर के हैं दीदी पर –कई वर्षों से यहाँ पर बस गए हैं | मैं भोपाल की बेटी हूँ ---माफ़ करिए, मैं अपना नाम बताना तो भूल ही गई | ”मानो उससे कोई बड़ा अपराध हो गया हो | 

“मेरा नाम कामना है, मेरे ससुर जी भी वकील हैं | अब दो वर्ष से वो मेरी सास के साथ इंदौर में रह रहे हैं, पहले हम साथ ही रहते थे | अब उन्होंने प्रैक्टिस करनी छोड़ दी है | हम लोग यहाँ पर दसेक वर्षों से हैं | वकील साहब को अपने पिता जी का जमा-जमाया काम मिल गया | इन्हें यहाँ पर जमाकर अब वो फ्री हो गए ---लीजिए, आ गई झुनिया !”

वही सलोनी सी युवा लड़की समिधा के सामने ‘ट्रे’लिए चली आ रही थी | 

“तो तुम झुनिया हो ----“समिधा ने उससे बातें करने के लिहाज़ से पूछा | 

सलोनी लड़की के चेहरे पर बहुत प्यारी सी मुस्कुराहट खिल उठी| उसने समिधा के सामने रखी हुई मेज़ पर ‘ट्रे’रख दी और उसी सहज मुस्कान के साथ एक ओर खड़ी हो गई | 

अब समिधा ने लड़की को गौर से देखा, दरसल वह साँवली, सलोनी सूरत की प्यारी सी युवती थी | उम्र यही होगी –कोई 17/18 वर्ष !जीवन के बसंती रंगों में खिलता सा उसका यौवन एक अल्हड़ आकर्षण लिए हुए था | समिधा की नज़र उस पर चिपक सी गई | 

“अरे! आप लीजिए न !”कामना ने अपनत्व से कहा | उसका ध्यान अपने सामने रखी खाद्य –व्यंजनों से सजी ट्रे पर गया जिसमें पानी नहीं, बहुत कुछ सजा हुआ था | उसे आदेश तो केवल पानी का ही दिया गया था | यहाँ तो ट्रे में पानी के साथ सूखा नाश्ता भी सजा हुआ था | 

“अरे!इस सबकी ज़रूरत नहीं थी ---अभी नाश्ता करके ही निकली हूँ –“

“झुनिया जानती है, किसको, कैसे?अटेंड करना होता है | ”कामना ने कहा | झुनिया चुपचाप कोने में आँखें नीची करके खड़ी रही | 

“झुनिया ---जा, तू और काम ख़त्म कर ले –“मालकिन ने झुनिया को आदेश दिया और युवती सिर झुकाकर चली गई | 

झुनिया के जाने के बाद वकीलनी ने उसे बताया कि झुनिया झाबुआ के पास के ही किसी गाँव की है | उसका पिता वकील साहब के पास किसी केस के सिलसिले में आया था | वह झुनिया को पैसे के लालच में बेचना चाहता था पर वकील साहब ने उसे बहला-फुसलाकर अपने पास रख लिया था | अब यहाँ पर रहकर वह घर का काम तो कर ही रही है, साथ में पढ़ भी रही है | महीने, दो महीने में उसका पिता आकार पैसे ले जाता है |