नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 11 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 11

11

समिधा सोच रही थी करुणा का पात्र यह आदिवासी नहीं बल्कि वह व्यक्ति है जो रात-दिन घुटन में साँस लेता है | वास्तव में अपनी उलझनों में फँसा वह हंसना, मुस्कुराना तक भूल गया है, सहज ठहाकों की बात तो उसके लिए चाँद पकड़ने जैसी हो चुकी है | समिधा ने एक युगल को बाज़ार के बीचोंबीच खुलकर हँसते हुए देखकर सोचा | उसे उनका यूँ खुलकर, खिलकर हँसना बहुत अच्छा लग रहा था | गाड़ी सड़क पर चलते हुए लोगों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी थी पर समिधा के मस्तिष्क में खिलखिलाते युगल की तस्वीर छपकर रह गई थी जिसमें औरत की काँख में उसका बच्चा पेट व पीठ पर पैर चिपकाए लटक रहा था, एक हाथ में उसने कोई चादर सी पकड़ रखी थी जो शायद बच्चे को सुलाने के लिए होगी और दूसरे हाथ ने बच्चे की कमर को घेर रखा था | 

मर्द के गले में एक स्कूल-बैग की भाँति मोटी, लंबी डोरी में एक ट्रांजिस्टर झूल रहा था और दूसरे हाथ में तीन डिब्बों वाला एल्यूमीनियम का टिफ़िन लटक रहा था | उनकी मस्ती देखकर समिधा का मन आनंदित हो गया | गाड़ी अब धूल भरे रास्तों पर गुज़र रही थी और समिधा उस युगल की मुस्कुराहटों पर मन ही मन कुर्बान हो रही थी | 

न जाने कैसे आज गाड़ी में इतनी देर तक चुप्पी पसरी हुई थी वरना मि. दामले के रहते चुप्पी किसी कोने में दुबककर रह जाती थी | 

“वो ---देखो सर –कितनी भीड़ है वहाँ पर ---“

अचानक रैम ने एक दिशा में इशारा करते हुए कहा | दामले ने चौंककर आँखें खोलीं, चुप्पी का राज़ खुला | दामले टूल रहे थे इसीलिए गाड़ी में चुप्पी पसरी हुई थी | 

“क्या हुआ –क्या हुआ –कहाँ ? ”वो एकदम चौंक उठे | 

“वो ---सर देखो न –कुछ हुआ है ---वो देखो पुलिस की टोपी भी दिखाई दे रही है ---“रैम उधर जाने के लिए उत्सुक दिखाई दे रहा था | 

“गाड़ी घुमाओ बंसी ---“ दामले का आदेश पाते ही गाड़ी ने ‘यू टर्न’ ले लिया और ड्राइवर बंसी गाड़ी को घुमाकर भीड़ की ओर ले गया | 

गाड़ी भीड़ से काफ़ी दूर रोक दी गई, सभी साथी बाहर उतरने लगे | समिधा की ओर घूमकर दामले बोले ;

“आप बैठिए मैडम---हम आते हैं अभी ---देखते हैं कुछ ‘मैटर’ ही मिल जाए शायद ---| ”

समिधा ने गर्दन हिलाई और भीड़ की ओर चुपचाप देखने लगी | दामले की सेना ने उस ‘युद्ध-स्थल’ की ओर प्रस्थान किया जिधर आदिवासियों के झुंड और सिपाहियों की टोपियाँ दिखाई दे रही थीं | युद्ध ही तो था ---आदिवासियों के गँवारपन, अशिक्षा, अजागरूकता, भय से निपटने का युद्ध !

‘क्या वह आदिवासी वास्तव में इतना विषाक्त या खतरनाक था कि सरकार को उनके सुधार करने के लिए एक सेना तैयार करनी पड़ी थी ? ’समिधा के मन में प्रश्न फिर से उभरा, वह चुप बनी उस दिशा को घूरती रही जिधर भीड़ के सिर और सिपाहियों की टोपियाँ दिखाई दे रही थीं | 

रैम सबसे पहले भागकर आया था और उस बड़े झुंड में गर्दन घुसाकर घटना के बारे में जानने का प्रयत्न कर रहा था | समिधा ने देखा उसने कुछ पलों में ही अपनी गर्दन बाहर निकाल ली और थोड़ी दूरी पर चार/पाँच लोगों के साथ खड़े होकर शायद घटना के बारे में जानने की चेष्टा में व्यस्त हो गया | 

वहाँ अलग-अलग स्थानों पर टोले बने हुए थे जो हाथ नचा-नचाकर, आँखें घुमाते हुए घटना के बारे में चर्चा कर रहे थे | अब तक मि. दामले अपने सभी साथियों के साथ घटना स्थल पर पहुँच गए थे और वे सभी वहाँ खड़े हुए लोगों के झुंड में अब अपनी-अपनी गर्दनें झुकाकर देखने की और समझने की कोशिश कर रहे थे | 

समिधा को गाड़ी में बैठे हुए काफ़ी देर हो चुकी थी, वह उकताने लगी थी, उसने सोचा अब गाड़ी से उतरना चाहिए कि उसे रैम भागता हुआ उसकी ओर आता दिखाई दिया, वह उतरते –उतरते रुक गई | रैम दौड़ता हुआ उसके पास पहुँच गया, उसकी साँसें फूल रही थीं | ---“

“मैडम ! एक बाप ने बेटे को मार दिया ---क़तल कर दिया| वह हाँफते हुए बोला | 

“क्यों? किसने ? कैसे ? ---“समिधा ने चौंककर कई प्रश्न एक साथ उगल दिए फिर अपने व्यवहार से सकपका सी गई | 

“मेरा मलब है तुम डर गए हो क्या ? ”समिधा ने अपने भय को छिपाते हुए रैम से पूछा | 

“अरे, नहीं मैडम ---यहाँ तो रोज़ का यही काम है –डर-वर की क्या बात है ? ”उसने अपनी बाहादुरी दिखाई | 

“पर ---एक बाप ने अपने बेटे को मार तो दिया –“बेशक वहाँ रोज़मर्रा यह सब कुछ होता हो पर रैम इतना भी सहज

नहीं था जैसे कुछ हुआ ही न हो, उसकी साँसें धौंकनी की भाँति ऊपर-नीचे हो रही थीं |