कुछ अल्फाज खामोश क्यों?? - 1 - क्या मैं लड़की हूं ? Bushra Hashmi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कुछ अल्फाज खामोश क्यों?? - 1 - क्या मैं लड़की हूं ?

वह केवल एक राज़ था जिसे मैं जानना चाहती थी मेरे अंदर जो छिपा था । मैं खुद अपने अंदर के बदलाव से दंग थी ना जाने कैसी असमंजस थी वो जिससे निकालना मेरे लिए मुश्किल सा होता जा रहा था ।
शारीरिक ढांचा तो मेरा कुछ लड़कियों सा था चाल ढाल तो पूछिए मत पर अंदर मेरा दिलो दिमाग वो किस स्थिती में था ये समझना तनिक कठिन हो गया था लोग मुझे लड़कियों के साथ रहने को कहते मैं लडको में रहना पसंद करती घर में लोग मुझे वस्त्र तो लडकी के पहनने के लिए मजबूर किया करते और हमारा मन पैंट शर्ट को करता बाल कटवाने का करता कभी कभी तो ख्याल आता के गंजे भी हो जाऊं पर इतना आसान है क्या एक निम्न मध्य वर्गीय परिवार में अपने मर्जी का करना अरे करना तो बहोत दूर की बात है यहां तो आप के पहने खाने पीने जाने आने तक अपनी मर्जी नही रहती आप खुद की मर्जी से दोपहर का खाना भी नहीं खा सकते लडकी हो ऐसे ना बैठो, ऐसे ना हसो, वहां खड़े मत हो यहां लेटो मत कुछ इसी तरह जिंदगी चलती है हमारी और हम तो अपने आप में शहंशा ना आह: रानी बनना हमे मंज़ूर कहां हमे तो राज करना है शहंशा बनना है लोगो को समझाती लोग ही मुझे समझा देते पर लोगो के समझ को मैं फिर खुद को नही समझा पाती मेरा दिल ना ही दिमाग ये मानने को त्यार ही नही था की मैं लड़का नही लडकी हूं।
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने मुझे ये बता दिया कि मैं असल में क्या हूं मैं एक ऐसी कैदी ही जो आजाद होना चाहता है और वो लड़का बनने की इच्छा जो थी वो केवल आजादी की तलबगार थी एक ऐसी आजादी जिसमे वो हर चीज कर सके हर मंजिल पा सके ।हुआ कुछ ऐसा था की मेरे ही साथ की किसी लड़की जो आजाद थी उससे मुलाकात हुई वह तो शारीरिक मानसिक भावनात्मिक हर तरह से एक लड़की पर कारनामे ऐसे की आजकल के लड़के भी शर्मा जाए ।
बाइक लेकर रोड के १०० चक्कर तो यूं लगा देती उस लड़की से मिलने के बाद यही लगा मुझे की मैं केवल आजादी चाहती हू और मेरा अंतर मन वो हर काम करना चाहता है जो बाकी लोग आसानी से कर पाते है ।पर मेरी कहानी यहाँ तक सीमित नही थी मेरे माता पिता को समझाना बहुत कठिन था वो मुझे आजादी नही देना चाहते है क्योंकि मुझे तो आजादी हर चीज में चाहिए थी ना तो वो समाज का हवाला देकर कही न कही मेरे पंखों में उड़ान भरने से रोक रहे थे वो यह समझना ही नही चाहते थे की मेरा क्या मन है उन्हे पता ही नही चलता था की उनके बनाए नियमों से मेरा अपने ही घर में दम घुट रहा था उन्हे लगता की मैं पागल हूं या बच्ची जो कभी कुछ नहीं समझती। देखते ही देखते मैने बात रखना शुरू की शुरू शुरू में तो थोड़ी मुश्किलात आई पर बाद में कुछ इच्छाएं मेरी पूरी हुई तो कुछ चीज मैने अपने माता पिता की मानी । शर्त उन्होंने ये रखा की कुछ भी हो जाए मर्यादा नही टूटनी चाहिए एक हद तक उड़ने की आजादी मिली पर जो मिली वो ही ही मेरे आसमान को छूने के लिए काफी थी अब मैंने अपनी उड़ान भरी पर किसी के खिलाफ नही बल्कि उनके आशीर्वाद के साथ अभी पिंजरे से निकालना चालू किया अभी जरा फर्श से ऊंचा ही उड़ पाती हूं पर एक दिन आएगा जब आसमान में मेरे भी पंख फेलेंगे ।
अरे मैं अपना नाम बताना तो भूल ही गई मैं बॉसीबुशू एक टॉमबॉय
आप टॉमबॉय तो जानते ही होंगे फिर भी एक सरल भाषा में बता देता हूं अरे बता देती हु एक ऐसी लड़की जो लडको की तरह जीवन यापन करती है मैं वही हूं और इसी तरह रहना मुझे पसंद है मुझे ।।