यादें..
सुनो! बारिशों में तुम्हारा ख़्याल आता है।तुम कहां हो,कैसे हो, अब कब आओगे अक्सर ये सवाल रह जाते हैं। मन भाग कर तुम्हारे पास जाता है।
मन कितना अजीब होता है न यह कब क्या मांग जाए पता नहीं चलता।अब भी तुम्हारा नंबर तुम्हारे ही नाम से सेव है, कि तुम किसी रोज फोन करोगे, मैं तुम्हारी आवाज़ ही पहचान लूंगा, लेकिन फिर भी वह वैसे ही सेव है, कभी कभी उस पर फोन कर लेता हूं,और घंटी के बाद आती आवाज़,आप जिस व्यक्ति से संपर्क करना चाहते हैं वह अवैलबल नहीं है...लगता है कि तुम ही बोल रहे हो।
फोन में नंबर होना कुछ वैसा है जैसे डायरी के पन्नों में तुम्हारा होना,उसे देखता हूं,तो लगता है तुम हो कहीं न कहीं मेरा हिस्सा बनकर।मुझे अब भी लगता है कि तुम किसी रोज अचानक से आ जाओगे,और मुस्कुराओगे उसी तरह से...
आज कुछ ज्यादा लिख रहा हूं,अच्छा सुनो!आज देर हो रही है,फिर किसी रोज तुमसे बात होगी।
Good night ❤️
एक रात डायरी में ये लिखते हुए समीर सोने चला गया, लेकिन नींद कहीं और जा चुकी थी।उसके आंखों के सामने वो दिन किसी फिल्म की तरह आ गए जिसका वह हीरो था,और एक हीरोइन थी, जिसका नाम तान्या था।
पहली मुलाक़ात.....
तान्या और समीर एक ही इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़े थे।कितने अच्छे थे वो दिन जब समीर और तान्या पहली बार कॉलेज में मिले थे,रैगिंग के दौरान।समीर कंप्यूटर साइंस में था,और तान्या इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में।समीर और तान्या का पहला ही दिन रहा था।
समीर कॉलेज के गेट से जैसे अंदर गया,वहां कुछ सीनियर खड़े थे।उन्होंने आवाज़ दिया "ऐ हीरो!आजा भाई,बता क्या नाम है?"
समीर पहली दफा हिचकिचाया लेकिन फिर धीरे से बोला "समीर।"
टाइटल भी है कुछ...उनमें से एक सीनियर बोला।
समीर ने जवाब दिया," हां, दूबे"
"तब बोलना था न,चल कोई नहीं",उनमें से दूसरे ने बोला।
"अच्छा एक काम कर जा उस लड़की को सॉरी बोल कर आ",ऐसी बात तीसरा बंदा बोला।
ख़ैर समीर ने अपना चेहरा अजीब बना लिया,और उसका चेहरा वैसा था जैसे राहुल गांधी 2019 का चुनाव हार चुके हों।
ख़ैर उसने उस लड़की की ओर देखा,जो फोन पर कुछ उलझी हुई थी,शायद कुछ दिक्कत था।
समीर गया और सॉरी बोला,लेकिन वह खुद में ही उलझी हुई थी,ख़ैर उस रोज पहली मुलाक़ात बस ऐसे ही हुई थी।
अगले दिन कैंटीन से गुजरते हुए आवाज़ आईं, "एक्सक्यूज मी।"
समीर मुड़ा तो देखा वही लड़की है।वह शरमा गया।वो बोली,"कल सॉरी क्यों कह रहे थे?"
उसने जवाब दिया,"असल में सीनियर्स ने रैगिंग ली थी।"
दोनों खूब जोर से हंसे थे।"चाय पीते हो कि कॉफ़ी",उसने पूछा।
"अरे सॉरी के बदले ट्रीट, अरे वाह, कुछ भी मंगा दो,दोनों खूब चलता है",उसने जवाब देते हुए कहा।
बाई द वे, मैं समीर,उसने अपना नाम बताते हुए हाथ बढ़ाया।
"मैं तान्या,तान्या त्रिपाठी फ्रॉम कानपूर", तान्या ने हाथ मिलाते हुए कहा।
उसने चाय और बिस्किट ऑर्डर कर दिया था।चाय कितनी ग़ज़ब की चीज़ है न जो बातें वॉट्सएप,फेसबुक जैसी जगहों पर नहीं हो पाते वह चाय पर हो जाते हैं, चाय एक अहसास है जो आप साथ वाले के साथ बांट पाते हैं।
इसी तरह से कॉलेज चलता रहा,पहली मुलाक़ात कई मुलाकातों में तब्दील हो चुके थे।और मुलाकातों को एक नया नया जुनून चढ़ गया था।चार महीने यूं ही बीत गए, सेमेस्टर हुआ,छुट्टियां हुईं।
कॉलेज खुला,और अब फरवरी आ चुका था।दोनों तरफ़ लगभग एक ही सी हालत थी,सुबहें अब एक दूसरे के गुड मॉर्निंग और रात एक दूसरे के गुड नाइट के वॉट्सएप मैसेज से होती है।
यह गुड मॉर्निंग से गुड नाइट के बीच एक दूरी होती है, जो ख्वाहिशों से भरी रहती है,उसमें दो लोगों के बीच का फासला आहिस्ते आहिस्ते कम होने लगता है।
वैलेंटाइन वीक के दौरान ही समीर ने उसे प्रपोज कर दिया।
उसने कोई जवाब तो नहीं दिया,बस इतना कहा," दूबे मैं त्रिपाठी ही रहूंगी।"
समीर मुस्कुरा रहा था।
कॉलेज के 3 और साल....
कॉलेज बीत रहा था,वैसे जैसे पब जी में रातें गुज़र जाती हैं।हर दिन एक अलग सा रहता था। इंजीनियरिंग के पढ़ाई और परीक्षाओं के तनाव के बीच एक दूसरे का मिलना अच्छा लगता था।
औपचारिकताएं लगभग खत्म हो चुकी थीं।समीर अब केवल दुबे था,और तान्या बस त्रिपाठी।
दोनों एक दूसरे काफी वाक़िफ हो चुके थे।और यह बात समीर और तान्या के घर वाले भी जान चुके थे।इसके लिए दोनों घरों से एक सीमा तय की जा चुकी थी,और अलग अलग शर्तें निर्धारित की गई थीं।लेकिन कहते हैं न दीवारें आवाज़ कहां थाम पाती हैं।दोनों मिलते रहे वक्त गुजरता गया।
अब तान्या की मां उसे समझाया भी करती थीं, उसे लड़की होने का अहसास दिलाया जाता था, कि लड़की होने के बावजूद उसे मन के कॉलेज से इंजीनियरिंग का मौका मिला।मौका मिलता भी क्यों न आख़िर वह टॉपर थी।
प्लेसमेंट:
इसी ऊहापोह में प्लेसमेंट के डेट्स आ गए।और सबके सीवी बनने लगे।चार साल में याद कर कर के सोशल वर्क को सीवी पर चढ़ाया जा रहा था।चार साल कमरों की दीवारों पर बॉलीवुड की मोहतरमा की तस्वीरों की जगह अब गणपति बप्पा की फोटो चस्पा हो चुकी थी।लोग रात को देर तक जागते थे और सुबह जल्दी उठकर वहां पूजा पाठ करते थे।मन्नत बस एक कि प्लेसमेंट हो जाए।ख़ैर कॉलेज थोड़ा ठीक था,और लखनऊ का बड़ा कॉलेज था।इसलिए प्लेसमेंट हो जाते थे।तान्या और समीर ने पहले ही प्रायोरिटी के शहर चुन लिए थे,जो दोनों में कॉमन थे। तान्या का दो शहरों में प्लेसमेंट हुआ भोपाल और नोएडा जबकि समीर नोएडा में ही था।सैलरी नोएडा में भोपाल से कम थी, लेकिन नोएडा कानपूर से पास था और समीर भी वहीं था, इसलिए उसने नोएडा सलेक्ट कर लिया था।
नया शहर...
शहर बदल चुका था,शहर कितना खूबसूरत होता है, कोई गैरियत नहीं होती।बस आपको अपना लेता है वैसे ही जैसे आप हो।किसी शहर में जाना जितना कौतूहल भरा होता है,उससे कहीं मुश्किल शहर छोड़ना होता है।शहर कितना बाकी रह जाता है जाते जाते।वो रास्ते,वो बिल्डिंगें,जो आपको गुजरते देखती हैं अनवरत चुपके से।वो मकान जिसका हिस्सा बनकर आप रहते हैं, कितना कुछ आप वहीं छूट जाते हैं,और कितना शहर आपके साथ चला जाता है।
समीर और तान्या भी अब अमीनाबाद की कमी को महसूस कर पा रहे थे।लखनऊ के रवायती पान,अवध की शाम,गोमती का किनारा, चार बाग की आवाज़ सब कुछ उनके साथ गया था,और नोएडा में एक अच्छे खासे लखनऊ की यादें चली आईं थीं।
लिव इन....
तान्या और समीर अलग अलग कंपनियों के अलग अलग क्यूबिकल्स का हिस्सा थे।रोज सुबह ऑफ़िस जाने के पहले,और आने के बाद उनका वन बीएचके फ़्लैट काफी कुछ कहता था।वे उसका हिस्सा बन चुके थे, जिसमें लखनवी बिरयानी और कबाब का अपना मजा था।सुबह चाय बिस्किट,और नाश्ता लेकर जाना और शाम को लौटने के बाद एक दूसरे को देखना ही सुकून था।
लिव इन की बात घर तक पहुंच चुकी थी,लेकिन चूंकि अब दोनों इंडिपेंडेंट थे,और लड़का भी ब्राह्मण था इसलिए ज्यादा दबाव नहीं बना।
लेकिन शादी का वादा ले लिया गया था।ख़ैर वक्त रोज सूरज के निकलने से लेकर डूबने तक में खूब तेज बीत रहा था।
इसी बीच तान्या को विदेश जाने का ऑफ़र आया।वह सोच ही रही थी क्या करे।उसने समीर से पूछा भी कि क्या करना चाहिए।
समीर अब कैरियर ओरिएंटेड था,और वह कहीं बीच में फसा था।उसने उसे जाने को कहा,और लॉन्ग डिस्टेंस चलाने पर राजी हो गए।
लॉन्ग डिस्टेंस...
लॉन्ग डिस्टेंस में जीना दोनों के लिए एकदम नया था।शुरू में सब ठीक रहा लेकिन अब दूरी आ चुकी थी जो स्काइप और वॉट्सएप कॉलिंग नहीं दूर कर पा रहे थे। नाराज़गी बढ़ती रही, और शिकायतें भी। टाइम ज़ोन कितना बेकार होता है न ये चाहतों को भी उलट कर रख देता है।अनेक कड़वाहटों के बीच एक दिन रिश्ता टूट गया। मनाने की कोशिश किसी ने नहीं की।ऐसा नहीं था कि पहले झगड़े नहीं हुए थे लेकिन अबकी झगड़ा नहीं हुआ था बल्कि एक सहमति बनी थी रास्ते बदलने के।शाम अब ऑफिस मीटिंग और इंस्टाग्राम पर बीत रहा था।समीर को कई लड़कियों ने नोटिस भी किया,और बात करने की कोशिश भी।समीर चाह कर भी अब किसी से वैसे नहीं हो पा रहा था जैसा तान्या के साथ था।
यादें...
समीर ने डायरी लिखना शुरू किया था,जिसमें उस रोज लिखते लिखते एक चिट्ठी सरीखा लिख दिया था।और वह चुप था,रात ठहर चुकी थी।कमरे में चांद की रौशनी अब भी आ रही थी।
अचानक से उसने दोबारा कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की।मेल बॉक्स में जाकर इसी चिट्ठी को मेल कर चुका था।चिट्ठियां कितना अलग होती हैं,इनमें आंसुओं की महक भी चली जाती है।
मेल का जवाब आया...
दूबे,
पता नहीं कौन गलत था कौन सही।तुम अब भी मेरे पास रहते हो उतना ही जितना मेरे आंखों में चमक। मैं महसूस कर पाती हूं कि तुम कितना मुझमें समा चुके हो।आओ अगले हफ़्ते लखनऊ,मिलते हैं फिर सोचते हैं क्या करना है...
त्रिपाठी
लखनऊ....
लखनऊ सर्दी में गुलाबी हो चुका था।सुनहरी धूप में कूहरा छाया हुआ था। कानपूर से आने वाली ट्रेन का इंतज़ार समीर कर रहा था।ट्रेन आई, उसमें से तान्या उतरी।उसका उतरना वैसा ही था जैसे कॉलेज के दिन लौट आए।पूरा दिन वो अमीनाबाद से लेकर इंदिरा नगर तक घूमते रहे।
पुराने शहर में घूमकर अपने जिये हुए बिखरे दिनों को समेटते रहे।शाम को एक कैफे में बैठकर चाय मंगाते हुए समीर बोला," याद है,हमारी शुरुआत चाय के साथ हुई थी।"
दोनों मुस्कुरा रहे थे,चाय उन्हें हल्का हल्का पी रहा था।और वो किसी नशे में जा चुके थे।
जेब से एक डब्बा निकालते हुए समीर बोला,"त्रिपाठी शादी करोगी मुझसे।"
तान्या बोली,"मैं त्रिपाठी ही लगाऊंगी, दूबे नहीं।"
दो तारे आसमान में एक हो चुके थे,लेकिन इधर त्रिपाठी और दूबे भी।