A bunch of flowers.. books and stories free download online pdf in Hindi

फूलों का गुच्छा..

आज शुभम का फिर छोटी सी बात पर प्रिया से झगड़ा हो गया,बात कोई बड़ी नहीं थी, दोनों की शादी होने वाली है और दोनों ही मिलकर अपनी शादी की शाॅपिंग कर रहे थे और प्रिया को हल्के गुलाबी रंग का लहंगा पसंद आया लेकिन शुभम बोला तुम लाल रंग का लहंगा लो, लेकिन प्रिया , शुभम की बात सुनने को तैयार नहीं थीं फिर क्या था इसी बात को लेकर दोनों में बहस हो गई और शुभम माॅल से रूठकर चला आया,प्रिया ने उसे कई काॅल किए लेकिन शुभम ने गुस्से से उसका काॅल रिसीव नहीं किया और समुद्र के किनारे आकर टहलने लगा।।
टहलते टहलते शुभम ने देखा कि एक बुजुर्ग भी छड़ी की सहारे वहां टहल रहे न हैं,तभी उन्हें कुछ ध्यान आया और उन्होंने अपने वोलेट को अपनी पैंट की पोकेट से निकाला उसे खोला और कुछ देर उसे निहार कर बंद करके अपनी पोकेट में रखने लगें लेकिन वोलेट पोकेट में ना जाकर नीचे जमीन पर गिर पड़ा,अब उस वोलेट को जमीन से उठाने पर उन बुजुर्ग को तकलीफ़ हो रही थी क्योंकि वो ज्यादा झुक नहीं पा रहे थे,शुभम से ये देखा ना गया था वो भागकर उनके पास पहुंचा और उनका वोलेट उठाकर उन्हें उनके हाथों में दे दिया।।
बुजुर्ग बोले....
थैंक्यू बेटा! इसमें मेरी बहुत कीमती चीज़ रखी है।।
थैंक्यू की कोई बात नहीं है अंकल! ये तो मेरा फ़र्ज़ था,वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि इस वोलेट में आपकी ऐसी क्या कीमती चीज़ रखी है,शुभम ने पूछा।।
हाॅ,जुरूर! इसमें मेरे पहले और आखिरी प्यार की तस्वीर है,जब मैं सत्रह साल का था तो वो मुझे मिली थी,ये उसके पास उसकी आखिरी तस्वीर थी जो उसने मुझे दी थी।।
अंकल! आपकी प्रेम-कहानी तो बड़ी दिलचस्प लग रही है,शुभम बोला।।
हाॅ,अब तो बस उसकी यादें ही मेरे पास हैं,इस तस्वीर के रूप में, बुजुर्ग बोलें।।
तो क्या आप अपनी प्रेम-कहानी मुझे सुना सकतें हैं,शुभम बोला।।
ज़रूर!तुम सुनना चाहते हो तो जरूर सुनाऊंगा, बुजुर्ग बोले।।
तो सुनो और इतना कहकर उन बुजुर्ग ने अपनी कहानी कहनी शुरू कर दी....
बात उस समय की है जब मैं सत्रह साल का था तो मेरे बड़े भाईजान फारूख़ अन्सारी के बहुत ही अज़ीज़ दोस्त थे,जिनका नाम गिर्वाणदत्त था,उनकी शादी तय हो गई,तो हमारे परिवार को भी शादी का न्यौता आया कोई उनके ताल्लुकात हमारे परिवार से बहुत अच्छे थे इसलिए हम दोनों भाइयों का उस शादी में जाना बहुत जुरूरी था और हम पहुंचे भी,तब बरातें तीन दिन की हुआ करतीं थीं, मतलब तीन दिन खूब खातिरदारी।।
जहां बरात गई थी,वो गांव बहुत ही खूबसूरत था और हमरा जनवासा, लड़की वालों से कुछ दूर स्थित सरकारी पाठशाला में था और वहीं मीठे पानी का कुआं भी था, जहां सारे गांव की औरतें और लड़कियां पीने का पानी लेने उस कुएं पर आती थीं और हम बरातियों को भी उसी कुएं पर नहाने के लिए कहा गया था क्योंकि पहले इतनी सुविधाएं ही नहीं होतीं थीं।।
गर्मियों का मौसम था तो शाम को मेरी नहाने की इच्छा हो गई,मैं कुएं पर पहुंचा तो एक लड़की पानी भर रही थी,वो भी लगभग मेरी हमउम्र रही होगी,उसने कुएं से बाल्टी की मदद से पानी निकाला , अपने दोनों घड़े भरें और चल दी एक के ऊपर घड़े अपने सिर पर रखें हुए,तभी उसके पैर में बबूल का कांटा चुभ गया और उसका संतुलन बिगड़ गया जिससे वो ज़मीन पर गिर पड़ी,घड़े भी फूट गये,उसे गिरा हुआ देखकर मुझे अच्छा ना लगा और मैंने दौड़कर उसे उठाया लेकिन वो खड़ी नहीं हो पा रही थी क्योंकि उसके पैर में काॅटा चुभा था, फिर मैंने उसके पैर का काॅटा भी निकाल दिया।।
काॅटा निकलते ही वो कुछ बिना बोले ही वहां से चली गई, लेकिन इस बीच उसके चेहरे की मासूमियत ने मेरा दिल जीत लिया था।।
रात को हम सब बराती लड़की वालों के घर खाने पर पहुंचे तब मुझे वो लड़की फिर से दिखी, लेकिन उसके तरफ पेट्रोमेक्स की रोशनी नहीं पहुंच पा रही थी, इसलिए मैं उसे ठीक से नहीं देख पा रहा था, लेकिन वो मुझे अच्छे से देख पा रही थी और वो मुझे बार बार निहारें जा रही थी।।
दूसरे दिन मैं जनवासे में ना रूका और गांव घूमने निकल पड़ा, मुझे आमों का एक बगीचा दिखा और माली से पूछकर मैंने वहां कुछ देर रूकने की इजाजत मांगी, माली ने इजाजत भी दे दी, मैं कुछ देर एक पेड़ के नीचे लेटा रहा फिर बग़ीचे में घूमने लगा, वहां कुछ फूलों के ही पौधे थे,पता नहीं मुझे क्या सूझी , मैं उन्हें तोड़कर गुलदस्ता बनाने लगा,तभी मुझे किसी के हंसने की आवाज़ आई और मैं देखा कि दो तीन लड़कियां पेड़ों से कच्चे आम तोड़कर खा रहीं थीं, मैं वहां पहुंचा तो वो चुप हो गईं और जाने लगीं, उनमें एक वो भी थी , कुएं के पास जिसके पैर में कांटा चुभा था।।
मैंने कहा ठहरो___
वो बोली, क्यों?
मैंने कहा,नाम तो बताती जाओ।।
तभी उन लड़कियों में से एक बोली___
ये क्यों अपना नाम बताएं,पहले आप अपना नाम बताइएं, हमें भी तो पता होना चाहिए कि जिसने हमारी सहेली के पैर से कांटा निकाला है उसका नाम क्या है?___
अच्छा,तो आपकी सहेली ने आपको सब बता दिया, मैंने कहा__
क्यों नहीं बताएगी जी!आखिर हमारी सहेली जो है , उनमें से दूसरी बोली।।
तो फिर आप ही लोंग अपनी सहेली का नाम बता दीजिए, मैंने कहा।।
पहले आप अपना नाम बताइए जी, उनमें से एक बोली।।
जी,मेरा नाम मुख़्तार अंसारी है, मैंने कहा।।
ये सुनकर सब सन्न रह गए क्योंकि शायद मैं मुस्लिम था इसलिए , लेकिन फिर भी मैंने कहा कि अब तो सहेली का नाम बता दीजिए....
जी,इसका नाम अहिल्या है, उनमें से एक बोली।।
जी,नाम तो बहुत अच्छा है, मैंने कहा।।
अच्छा जी तो ये फूलों का गुच्छा किसके लिए है? उनमें से एक ने पूछा।।
जी,अगर आपकी सहेली को पसंद है तो उन्हें दे दीजिए, मैंने कहा।।
तो लाइए और उनमें एक मेरे हाथ से फूलों का गुच्छा लेकर भाग गई।।
दूसरे दिन भी हमारी मुलाकात हुई और हमारे दिलों ने एक-दूसरे को अपना बना लिया।।
शादी खत्म हो गई और हम बिछड़ गए,वो भी शादी में आई हुई थी लेकिन उससे इतनी बात ना हो सकीं कि मैं उससे उसका पता ठिकाना पूछ सकता और शायद उसे पढ़ना लिखना भी नहीं आता था, लेकिन उसके पास उसकी एक छोटी सी तस्वीर थी जो उसने अपनी सहेली के द्वारा मुझे भिजवा दी,ये वही तस्वीर है जो अभी तक मेरे वोलेट में है।।
फिर हम ऐसे बिछड़े कि कभी मिल ना सकें, घरवालों के लाख कोशिशों के बावजूद भी मैंने निकाह ना पढ़वाया और उसका तो मुझे पता नहीं कि वो कहां है और कैसी है।।
मुख़्तार साहब की बात सुनकर शुभम बोला.......
क्या मैं उनकी तस्वीर देख सकता हूं।।
हाॅ! क्यों नहीं, मुख़्तार साहब बोलें।।।
शुभम ने तस्वीर देखी थी तो अवाक् होकर बोला___
क्या? मैं आपको कहीं ले जा सकता हूं।।
लेकिन कहां? मुख़्तार साहब बोले।।
बस,आप चलिए,शुभम बोला।।
और शुभम, मुख़्तार साहब को अपनी कार में बैठा कर किसी के घर ले गया और दरवाज़े की घंटी बजाई....
किसी ने दरवाज़ा खोला....और बोली...
आ गया तू!प्रिया का फोन आया था कि तू उससे रूठकर चला आया है।।
अरे अहिल्या बुआ! वो सब छोड़ो,इनसे मिलों और वो सूखे हुए फूलों का गुच्छा इन्हें दिखाओ,जो आपने उसे अभी तक फ्रेम करवा कर रखा है।।
क्या कह रहा है रे तू? अहिल्या बोली।।
हाॅ! बुआ! जिनके लिए आप ने आज तक अपनी गृहस्थी नहीं बसाई,सारी दुनिया से लड़ीं,वो मिल गए हैं,ये देखिए वो रहें....शुभम बोला।।
अहिल्या ने बाहर आकर देखा और मुख़्तार साहब ने अहिल्या को और दोनों की आंखें प्रेम भरें आंसुओं के साथ बरस पड़ीं।।❤️❤️
शुभम भी उन दोनों को देखकर अपने आंसुओं को रोक नहीं सका और चल पड़ा प्रिया को मनाने।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा....


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